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बगलामुखी दीक्षा [Baglamukhi Deeksha ]

बगलामुखी
दीक्षा

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दस महाविद्याओं में शत्रु का स्तम्भन करने, शत्रु का नाश करने में बगलामुखी का नाम सबसे ऊपर है | इस देवी का दूसरा नाम पीताम्बरा भी है | इसी विद्या को ब्रह्मास्त्र विद्या कहा जाता है | यही है प्राचीन भारत का वह ब्रह्मास्त्र जो पल भर में सारे विश्व को नष्ट करने में सक्षम था | आज भी इस विद्या का प्रयोग साधक शत्रु की गति का स्तम्भन करने के लिये करते हैं | ये वही विद्या है जिसका प्रयोग मेघनाद
ने अशोक वाटिका में श्री हनुमान पर किया था ( राम चरित मानस के सुन्दर कांड में इसका उदाहरण
है |[ ब्रह्म अस्त्र
तेहि सांधा कपि मन कीन्ह विचार, जो ब्रह्म सर मानऊ महिमा मिटै अपार ], ये वही ब्रह्मास्त्र है जिसकी साधना श्रीराम ने रावण को मारने के लिये की थी, ये वही ब्रह्मास्त्र है जिसका प्रयोग महाभारत युद्ध के अंत में कृष्ण द्वैपायन व्यास के आश्रम में अर्जुन और अश्वत्थामा ने एक दूसरे पर किया था और जिसके बचाव में श्री कृष्ण को बीच में आना पड़ा था | ( महाभारत के अंत में ) ये वही सुप्रसिद्ध विद्या है जिसके प्रयोग से कोई बच नहीं सकता | यह बगलामुखी और उनकी शक्ति है |
तंत्र शास्त्र के अनुसार
एक बार एक भीषण तूफ़ान
उठा उससे सारे संसार का विनाश होने लगा | इसे देखकर भगवान विष्णु
अत्यंत चिंतित
हुये | तब उन्होंने श्री विद्या
माता त्रिपुर सुंदरी को अपनी तपस्या से संतुष्ट किया | सौराष्ट्र में हरिद्रा नामक सरोवर में जल क्रीड़ा करते हुये संतुष्ट देवी के ह्रदय से एक तेज प्रगट हुआ जो बगलामुखी के नाम से प्रख्यात हुआ | उस दिन चतुर्दशी तिथि थी और मंगलवार का दिन था | पंच मकार से तृप्त देवी के उस तेज ने तूफ़ान को शांत कर दिया | देवी का यह स्वरुप
शक्ति के रूप में शत्रु का स्तम्भन करने के मामले में अद्वितीय था | इसलिये इसे ही ब्रह्मास्त्र विद्या
कहा जाता है
यह तांत्रिक साधना है और तांत्रिक देवी हैं | यह देवी वाममार्ग यानि कौलमत द्वारा पंच मकार यानि मद्द, मांस, मीन, मुद्रा, और मैथुन के द्वारा भी प्रसन्न की जाती है और दक्षिण
मार्ग यानि सतोगुणी साधना के द्वारा भी माता की साधना की जाती है
यह दीक्षा अत्यन्त तेजस्वी, प्रभावकारी है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक निडर एवं निर्भीक हो जाता है। प्रबल
से प्रबल
शत्रु को निस्तेज करने एवं सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए इससे अधिक उपयुक्त कोई दीक्षा नहीं है। इसके प्रभाव से रूका धन पुनः प्राप्त हो जाता है। भगवती वल्गा
अपने साधकों को एक सुरक्षा चक्र प्रदान करती हैं, जो साधक को आजीवन हर खतरे से बचाता
रहता है।दीक्षा बगलामुखी का साधक ही दे सकता है |अन्य महाविद्या का साधक अथवा कोई अन्य मत का
सात्विक साधक भले वह कितना ही सक्षम हो बगलामुखी की दीक्षा नहीं दे सकता अथवा दी
गयी दीक्षा प्रभावहीन होगी |इनकी ही दीक्षा की दुकानें आजकल सबसे अधिक खोली गयी
हैं ,क्योंकि यह भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं ,किन्तु
अधिकतर दुकानों के पकवान फीके हैं क्योंकि दुकानदार वास्तविक साधक नहीं केवल
व्यवसायी हैं |
माता बगलामुखी की साधना युद्ध में विजय होने और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है। बगला मुखी के देश में तीन ही स्थान है। कृष्ण और अर्जुन ने महाभातर के युद्ध के पूर्व माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। जिसकी साधना सप्तऋषियों
ने
वैदिक काल में समय समय पर की है। इसकी साधना से जहां घोर शत्रु अपने ही विनाश बुद्धि से पराजित हो जाते हैं वहां साधक का जीवन निष्कंटक तथा लोकप्रिय बन जाता है।
बगलामुखी का मंत्र: हल्दी या पीले कांच की माला से आठ माला ऊँ ह्लीं बगुलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:’
दूसरा मंत्र– ‘ॐ ह्ल्रीम बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीम स्वाहा।मंत्र का जाप कर सकते हैं।
भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलगअलग महत्व है।
।। बगलामुखी ।।
सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला संहासन पीले ऊपर कौन बसे सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी कच्ची बच्ची काककूतियास्वानचिड़िया, बगला बाला हाथ मुद्गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे बाला बगलामुखी नमो नमस्कार

ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ………………………………………..हर
-हर महादेव 



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