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उच्छिष्ट गणपति साधना

उच्छिष्ट गणपति साधना

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गणेश या गणपति ऐसे देवता है जो सभी मार्गों में पूजे जाते हैं |मूलतः tantra के और शिव
परिवार के इस देव को वैदिक मार्ग में भी प्रमुख स्थान है और इन्हें ही प्रथम पूज्य
माना जाता है |इनकी साधनाएं भी वैदिक मार्ग ,
tantra मार्ग
और योग मार्ग तीनो प्रकार से की जाती है |यह आज्ञा चक्र के नियंत्रक हैं |आज्ञा
चक्र ही सबसे मुख्या नियंता होता है अतः इन्हें प्रथम पूज्य कहा जाता है |हम यहाँ
इनकी मुख्य
tantra साधना पर कुछ लिखने का प्रयत्न कर रहे हैं ,,यद्यपि
बिना गुरु मागदर्शन के इनकी
tantra
साधना नहीं शुरू की जानी चाहिए
तथापि जो पहले से कुछ साधनाएँ कर चुके हैं वह इन्हें कर सकते हैं |
मंत्रोद्धर
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लकुली () ‘इ’ के साथ भृगु () एवं अर्थात् स्ति’ सदृक इ’ के सहित लोहित प’ अर्थात् पि, दीर्घके सहित वक () अर्थात् शा’ साक्षि इ’ से युक्त (चि), फिर लिखे अन्तमें शिर (स्वाहा) लगाने से नवाक्षर निष्पन्न होता है
मन्त्र का स्वरुप – ‘ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा’
इसमन्त्र के कङ्कोल ऋषि विराट्छन्द उच्छिष्ट गणपति देवता कहे गये हैं ।मन्त्र के दो, तीन दो, दो अक्षरोम से न्यास के पश्चात् सम्पूर्ण मन्त्र सेपञ्चाङ्गन्यास करना चाहिए तदनन्तर उच्छिष्ट गणपति की पूजा करनी चाहिए॥
विनियोग
—————  अस्योच्छिष्टगणपतिमन्त्रस्य कङ्कोलऋषिर्विराट्छन्दः उच्छिष्टगणपतिर्देवता सर्वाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः
ऋषयादी व्यास
——————- कंकोल ऋषये नमः शिरसि |ॐ विराट छन्दसे नमः मुखे |ॐ
उच्छिष्ट गणपति देवताये नमः हृदि |विनियोगाया नमः सर्वांगे |
कर न्यास
————  ॐ हस्ति
अन्गुष्ठाभ्याम नमः |ॐ पिशाचि तर्जनिभ्याम नमः |ॐ लिखे मध्यमाभ्याम नमः |ॐ स्वाहा
अनामिकाभ्याम नमः |ॐ हस्ति पिशाचि लिखे कनिष्ठिकाभ्याम नमः |ॐ हस्ति पिशाचि लिखे
स्वाहा करतलकर प्रिष्ठाभ्याम नमः |
हृदयादि पञ्चाङ्गन्यास
——————– यथा हस्ति हृदयाय नमः, पिशाचि शिरसे स्वाहा, लिखेशिखायै वौषट्, स्वाहा कवचाय हुम्, हस्ति शिरसि लिखे स्वाहा अस्त्रायफट्
पञ्चाङ्गन्यास करने के बाद उच्छिष्ट गणपति का ध्यान इसप्रकार करना चाहिए मस्तक पर चन्द्रमा को धारण करने वाले चार भुजाओं एवंतीन नेत्रों वाले महागणपति का मैं ध्यान करता हूँ जिनके शरीर का वर्णरक्त है, जो कमलदल पर विराजमान हैं, जिनके दाहिने हाथों में अङ्‍कुश एवंमोदक पात्र तथा बायें हाथ में पाश एवं दन्त शोभित हो रहे हैं, मैं इसप्रकार के उन्मत्त उच्छिष्ट गणपति भगवान् का ध्यान करता हूँ
इसके बाद पीठादी पर रचे हुए सर्वतोभद्र मंडल अथवा गणेश मंडल में पद्धति के
अनुसार मंडूकादी परतत्वांत स्थापित किये जाते हैं |फिर ॐ मं मंडूकादी परतत्वांत
पीठ देवताभ्यो नमः से पूजन करने के उपरांत नौ पीठ शक्तियों की पूजा की जाती है |
अब स्वर्णादि से निर्मित यन्त्र अथवा मूर्ती ताम्र पात्र पर रखें और उसे
घी से लेपकर उसपर दूध व् पानी की धार छोड़ें |फिर स्वच्छ वस्त्र से सुखाएं और
“ॐ ह्रीं सर्वशक्ति कमलासनाय नमः “के मंत्र से पुश्पाद्यासन दें |अब इसे
पीठ के मध्य में स्थापित करें और पद्धति के अनुसार प्रतिष्ठा करें |अब मूल मंत्र
से मूर्ती प्रकल्पित करते हुए पाद्यादी पुश्पांत उपचारों से पूजा करें और देवता की
आज्ञा ग्रहण कर आवरण पूजा करें |क्रमशः निर्दिष्ट मन्त्रों से पाँचों आवरणों की
पूजा करें |आवरण पूजा के उपरांत धूपादी नमस्कारांत पूजन करें तथा मांस ,फल ,मोदक
या गुड की बलि दें |बलि मंत्र निम्न प्रकार होगा —
ॐ गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणेशाय महा यक्षाय अयं बलिः |
इसके बाद देवता को निवेदित मोदक और पान खाकर उच्छिष्ट मुख से जप
करें |इसके पुरश्चरण में एक लाख मंत्र का जप किया जाता है |
इस मन्त्र का एक लाखजप करना चाहिए, तदनन्तर तिलों से उसका दशांश होम करना चाहिए ।उसका दशांस तर्पण ,मार्जन ,ब्राह्मण भोजन किया जाता है |इस क्रिया से
मंत्र सिद्धि को प्राप्त होता है |मंत्र सिद्ध करके मान्त्रिक साध्य प्रयोग कर
सकता है |
काम्य प्रयोग
——————- साधक कपि (रक्त चन्दन) अथवा सितभानु (श्वेत अर्क) की अपने अङ्‍गुष्ठ मात्र परिमाणवाली गणेश की प्रतिमा का निर्माण करे जो मनोहर एवं उत्तम लक्षणों सेयुक्त हो तदनन्तर विधिपूर्वक उसकी प्राणप्रतिष्ठा कर उसे मधुसे स्नान करावे॥ कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से शुक्लपक्ष की चतुर्दशी पर्यन्त गुड सहित पायस का नैवेद्य लगा कर इस मन्त्र का जप करे
यहक्रिया प्रतिदिन एकान्त में उच्छिष्ट मुख एवं वस्त्र रहित हो कर, ‘मैंस्वयं गणेश हूँ’ इस भावना के साथ करे। घी एवं तिल की आहुति प्रतिदिन एकहजार की संख्या में देता रहे तो इस प्रयोग के प्रभाव से पन्द्रह दिन केभीतर प्रयोगकर्ता व्यक्ति अथवा राजकुल में उत्पन्न हुआ व्यक्ति राज्यप्राप्त कर लेता है
 इसी प्रकार कुम्हार के चाक की मिट्टी की गणेश प्रतिमाबना कर पूजन तथा हवन करने से राज्य अथवा नाना प्रकार की संपत्ति कीप्राप्ति होती है ॥४३४४॥
बॉबी की मिट्टी की प्रतिमा में उक्त विधिसे पूजन एवं होम करने से अभिलषित सिद्धि होती है; गौडी (गुड निर्मित)प्रतिमा में ऐसा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, तथा लावणी प्रतिमाशत्रुओं को विपत्ति से ग्रस्त करती है
निम्बनिर्मित
प्रतिमामें उक्त विधि से पूजन जप एवं होम करने से शत्रु का विनाश होता है, औरमधुमिश्रित लाजा का होम सारे जगत् को वश में करने वाला होता है
शय्यापर सोये हुये उच्छिष्टावस्था
में जप करने से शत्रु वश में हो जाते हैं ।कटुतैल में मिले राजी पुष्पों के हवन से शत्रुओं में विद्वेष होता है
द्युत, विवाद एवं युद्ध की स्थिति में इस मन्त्र का जप जयप्रद होता है इसमन्त्र के जप के प्रभाव से कुबेर नौ निधियों के स्वामी हो गये। इतना हीनहीं, विभीषण और सुग्रीव को इस मन्त्र का जप करने से राज्य की प्राप्ति होगई लाल वस्त्र धारण कर लाल अङ्गराग लगा कर तथा ताम्बूल चर्वण हुए रात्रिके समय उक्त मन्त्र का जप करना चाहिए
बलि के मन्त्र का उद्धार सानुस्वार स्मृति (गं), इन्दुसहितआकाश (हं), अनुस्वार एवं औकार युक्त ककार लकार (क्लौं), उसी प्रकार गकारलकार (ग्लौं), तदनन्तर उच्छिष्टग’ फिर एकार युक्त (णे), फिर शाय’ पद, फिर महायक्षाया’ तदननत्र (यं) और अन्त में बलिः’ लगाने से १९ अक्षरों काबलिदान मन्त्र बनता है
विमर्श मन्त्र का स्वरुप इस प्रकार है गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्टगणेशाय महायक्षायायं बलिः
विशेष

———- नए साधक सीधे गणपति की tantra साधना न करें |गणपति का स्वरुप सौम्य होने पर भी tantra साधना में यह प्रतिक्रियावादी हो जाते हैं ,अतः त्रुटियों पर
नुकसान हो सकता है |बिना सोचे समझे ,किताबें पढकर अथवा पोस्ट देखकर साधना करने न
बैठें |अगर गुरु नहीं मिल रहे तो पहले कुछ महीने गणपति की सात्विक साधना करने के
बाद ही तांत्रिक साधना का प्रयत्न करें |बेहतर हो की गुरु के मार्गदर्शन में करें
और साथ ही अच्छी पुस्तक की मदद लें क्योकि सम्पूर्ण मंत्र और विधियों को दे पाना
हर पोस्ट में संभव नहीं होता है |साधना में सम्पूर्ण विधि और जानकारी होनी चाहिए |…………………………………………………..हर
हर महादेव



विशेष – ज्योतिषीय परामर्श ,कुंडली विश्लेषण , किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव ,सामाजिक -आर्थिक -पारिवारिक समस्या आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 


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