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ध्यान की प्रक्रिया और ध्यान के लाभ

कैसे करें ध्यान साधना 
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ध्यान का सीधासीधा संबंध मन से है। मनुष्य के अन्दर दो प्रकार का मन होता है एक बाह्यमन तथा दुसरा अंर्तमन। अंर्तमन की अपेक्षा बाह्यमन का स्वभाव अत्यंत चंचल तथा कुटिल है जीसमे काम क्रोध, लोभ, अहंकार, इष्र्या, राग, द्वेष, छल, कपट इत्यादि विकार उत्पन्न होते रहते हैं जो मुख्य रूप से मनुष्य के पतन का कारण है। बाह्यमन हमेशा व्यक्ति को बुरे कर्मों के लिए प्रेरित करता है।
अंर्तमन का स्वभाव है शांत निर्मल और पवित्र जो मनुष्य को हमेशा अच्छे कार्यो के लिए प्रेरित करता है इसी मन के अन्दर छुपी होती है अलौकिक दिव्य और चमत्कारिक शक्तियाँ। बाह्यमन जब सुप्तावस्था में होता है तब अंर्तमन सक्रिय होने लगता है और इसी अवस्था को ध्यान कहा जाता है। मन को बेलगाम घोड़े की संज्ञा दी गई है क्योंकि मन कभी एक जगह स्थीर नही रहता तथा शरीर की समस्त इद्रियों को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिस करता है। मन हर समय नई नई इच्छओं को उत्पन्न करता है। 
एक इच्छा पूरी नही हुई कि दुसरी इच्छा जागृत हो जाती है। और मनुष्य उन्ही इच्छाओं की पुर्ति की चेष्टा करता रहता है। जिसके लिए मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, पीड़ा इत्यादि से गुजरना पड़ता है। इसके बावजुद भी जब मनुष्य की इच्छाओं की पूर्ति नही हो पाती तब मन में क्लेश तथा दुख होने लगता है। यदि मन को किसी तरह अपने वश में कर एकाग्रचिŸ कर लिया जाय तब मनुष्य की आत्मोन्ती होने लगती है तथा समस्त प्रकार के विषय विकारों से उपर उठने लगता है और अंर्तमन में छुपे हुये उर्जा के भंडार को जागृत कर अलौकिक सिद्धियों का स्वामी बन सकता है। 
मन को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन है परंतु कुछ प्रयासो के बाद मन पर पूर्ण रूप से नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। मन को साधने के लिए शास्त्रों में अनेकों प्रकार के उपाय हैं जिसमे से सबसे आसान तरीका है ध्यान साधना |ध्यान के माध्यम से कुछ ही दिनों या महिनो के प्रयास से साधक अपने मन पर पूरी तरह नियंत्रण रखने में समर्थ हो सकता है क्योंकि शास्त्रों में ध्यान को मन की चाबी कहा गया है। ध्यान साधना से मन के सारे विकार धीरेधीरे समाप्त होने लगते हैं, तथा अंर्तमन जागृत तथा चैतन्य होने लगता है।  मन की एकाग्रता धीरेधीरे बढ़ने लगती है। मनुष्य के शरीर की सुप्त शक्तियाँ जागृत होने से शरीर पूर्णतः पवित्र निर्मल तथा निरोग हो जाता है।
ध्यान की शुरुआत के पूर्व की क्रिया– ‘मैं क्यों सोच रहा हूं
इस पर ध्यान दें।हमारा विचारभविष्य और अतीत की
हरकत है। विचार एक प्रकार का विकार है। वर्तमान में जीने से ही जागरूकता जन्मती
है। भविष्य की कल्पनाओं और अतीत के सुख
दुख में जीना ध्यान
विरूद्ध है।
ध्यान शुरू करने से पहले आपका रेचन हो जाना
जरूरी है अर्थात आपकी चेतना
(होश) पर छाई धूल हट जानी जरूरी है। इसके लिए चाहें
तो योग का भस्त्रिका
, कपालभाति
प्राणायाम कर लें। आप इसके अलावा अपने शरीर को थकाने के लिए और कुछ भी कर सकते
हैं।
शुरुआत में शरीर की सभी हलचलों पर ध्यान दें और उसका निरीक्षण करें। बाहर
की आवाज सुनें। आपके आस
पास जो भी
घटित हो रहा है उस पर गौर करें। उसे ध्यान से सुनें।
फिर धीरेधीरे मन को भीतर
की ओर मोड़े। विचारों के क्रिया
कलापों
पर और भावों पर चुपचाप गौर करें। इस गौर करने या ध्यान देने के जरा से प्रयास से
ही चित्त स्थिर होकर शांत होने लगेगा। भीतर से मौन होना ध्यान की शुरुआत के लिए
जरूरी है।
अब आप सिर्फ देखने और महसूस करने के लिए तैयार हैं। जैसेजैसे देखना और सुनना गहराएगा आप ध्यान में उतरते
जाएंगे।
ध्यान साधना प्रयोग 
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सर्व प्रथम साधक ब्रह्ममुहूर्त मे उठकर स्नान आदि क्रियाओं से निवृत होकर अपने पूजा स्थान अथवा किसी निर्जन स्थान में पद्मासन, सिध्दासन या सुखासन में बैठ कर ध्यान लगाने का प्रयास करे, ध्यान लगाते समय अपने सबसे पहले अपने आज्ञा चक्र पर ध्यान केद्रित करे तथा शरीर को अपने वश मे रखने का प्रयास करें|
 प्रारंभ में सिद्धासन में बैठकर
आंखें बंद कर लें और दाएं हाथ को दाएं घुटने पर तथा बाएं हाथ को बाएं घुटने पर
रखकर
, रीढ़ सीधी रखते हुए गहरी श्वास लें और छोड़ें। सिर्फ पांच
मिनट श्वासों के इस आवागमन पर ध्यान दें कि कैसे यह श्वास भीतर कहां तक जाती है और
फिर कैसे यह श्वास बाहर कहां तक आती है। पूर्णत
: भीतर कर मौन का
मजा लें। मौन जब घटित होता है तो व्यक्ति में साक्षी भाव का उदय होता है। सोचना
शरीर की व्यर्थ क्रिया है और बोध करना मन का स्वभाव है।
बिल्कुल शांत निश्चल और स्थीर रहें, शरीर को हिलाना डूलना खुजलाना इत्यादि करें। तथा नियम पुर्वक ध्यान लगाने का प्रयास करें।उपरोक्त ध्यान
विधि को नियमित
30 दिनों तक करते रहें। 30 दिनों बाद इसकी
समय अवधि
5 मिनट से बढ़ाकर अगले 30 दिनों के लिए 10 मिनट और फिर
अगले
30 दिनों के लिए 20 मिनट कर दें। शक्ति को संवरक्षित
करने के लिए
90 दिन काफी है। इसे जारी रखें।
ध्यान साधना के तीन आयाम 
सर्वप्रथम
साधक जब ध्यान लगाने की चेष्टा करता है तब मन अत्यधिक चंचल हो जाता है तथा मन में अनेकों प्रकार के ख्याल उभरने लगते हैं। साधक विचार को जितना ही एकाग्र करना चाहता है उतनी ही तिव्रता से मन विचलित होने लगता है तथा मन में दबे हुए अनेकों विचार उभर कर सामने आने लगते हैं इस लिए ध्यान साधना को तीन आयामों में विभक्त किया गया है।
1 विचार दर्शन 
2 विचार सर्जन
3 विचार विसर्जन।
विचार दर्शन:- साधक को चाहिए कि जब ध्यान लगाने बैठे तब मन में जो विचार उत्पन्न हो उसे होने दें विचारो को आने से रोकें ही विचारो को दबाने की चेष्टा करे। मन में विचार लाना नही है और ही विचारों को आने से रोकना है, केवल दृष्टा बन कर विचारों को देखते रहना है। 
मन एक विचार से दुसरा विचार दुसरे से तीसरा इस तरह से अनेको प्रकार के विचार घटना, दुर्घटना, वास्तविक तथा काल्पनीक अनेकों विचार मन में उत्पन्न होते रहेंगे परंतु आपको उन विचारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने की जरूरत नही केवल दृष्टा बनकर आप देखते जाइये कि मन किस प्रकार कल्पना लोक में उड़ान भर रहा है। ऐसा करने से धीरेधीरे आपके विचारों में कमी आने लगेगी और विचार स्थीर होने लगेंगे।
विचार सर्जनःइस क्रिया में साधक को अपनी आँखे बंद कर मन को आज्ञाचक्र पर कुछ देर तक केद्रित करने का प्रयास करना चाहिए तत्पश्चात मन मे कोई विचार लाए और कुछ देर तक उस पर ध्यान को केद्रित करें और उस विचार को मन से हटा दें तथा पुनः दुसरा विचार लाएं और उस पर भी कुछ देर तक
ध्यान केंद्रित कर उसे भी मन सें हटा दें। इस तरह मन में अलगअलग विचारों को लाते रहें तथा कुछ देर तक उसपर अपना ध्यान केंद्रित कर उसें हटाते जायें। इस तरह करते रहने से धीरेधीरे मन थकान अनुभव करने लगेगा और कुछ देर के लिए कुछ सोंचना बंद कर देगा, आपको ऐसा लगेगा कि मन आराम करना चाह रहा है।धीरेधीरे आप देखेगे कि मन आपके काबु मे हो ने लगेगा तथा विचार शुन्य होने लगेगा। 
विचार विर्सजन:- जब आंखें बंद
करके बैठते हैं तो अक्सर यह शिकायत रहती है कि जमाने भर के विचार उसी वक्त आते
हैं। अतीत की बातें या भविष्य की योजनाएं
, कल्पनाएं आदि सभी विचार मक्खियों की
तरह मस्तिष्क के आसपास भिनभिनाते रहते हैं। इससे कैसे निजात पाएं
? माना जाता है कि
जब तक विचार है तब तक ध्यान घटित नहीं हो सकता।अब कोई मानने को भी तैयार नहीं होता
कि निर्विचार भी हुआ जा सकता है। कोशिश करके देखने में क्या बुराई है। ध्यान
विचारों की मृत्यु है। आप तो बस ध्यान करना शुरू कर दें। जहां पहले
24 घंटे में चिंता
और चिंतन के
30-40 हजार विचार होते थे वहीं अब उनकी संख्या घटने लगेगी। जब पूरी
घट जाए तो बहुत बड़ी घटना घट सकती है।
साधक अपनी आँखे बंद कर धीरेधीरे गहरी श्वांस ले और धीरेधीरे छोड़े कुछ देर बाद मन में कोइ विचार आने दें। जैसे ही मन में कोइ विचार आता है उसे तुरंत अपने मन से हटा दें, फिर मन में कोइ विचार आये उसे भी हटा दें, इस तरह मन मे उठने वाले सभी विचारो को मन से हटाते जाएं ऐसी क्रिया को हि विचार विर्सजन कहा जाता है। इस क्रिया मे साधक को चाहिए कि मन मे उठने वाले विचारों को रोकें बल्कि उन विचारों को मन से हटाने का प्रयास करते रहना चाहिए। इस प्रकार से अभ्यास करते रहने से मन निर्विकार तथा निर्विचार होने लगता है और विचार शुन्य की स्थिती बनने लगती है तथा अर्तमन के जागृत होने से अलौकिक एवं चमत्कारिक दृष्य तथा घटनाएं ध्यान की अवस्था में दिखाई देने लगते हैं।

सावधानी ध्यान किसी स्वच्छ और शांत वातावरण में
करें। ध्यान करते वक्त सोना मना है। ध्यान करते वक्त सोचना बहुत होता है। लेकिन यह
सोचने पर कि
मैं क्यों सोच रहा हूंकुछ देर के लिए सोच रुक जाती है। सिर्फ श्वास
पर ही ध्यान दें और संकल्प कर लें कि
20 मिनट के लिए मैं अपने दिमाग को शून्य कर देना चाहता हूं।………………………………………………………………………..हरहर महादेव 



विशेष – किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 

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