दीक्षा किससे और कैसे लें ?
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आज के समय में बहुत से लोगों की यह समस्या है की वह दीक्षा लेना चाहते हैं ,मंत्र धारण करना चाहते हैं ,साधना करना चाहते हैं ,शक्ति -भुक्ति और मुक्ति चाहते हैं किन्तु उन्हें उपयुक्त ऐसा गुरु नहीं दिखता जैसा वह चाहते हैं |कहने को तो देश और समाज में एक से बढकर एक सक्षम और सम्मानित गुरु हैं किन्तु फिर भी अक्सर हमसे लोग गुरु बताने का सुझाव मांगते हैं तो आश्चर्य होता है की आखिर ऐसा है क्यों ,क्यों लोगों को गुरु की तलाश है |जब हम इनके कारणों की पड़ताल करते हैं तो दोनों तरफ कमियाँ पाते हैं |
जो गुरु समाज में हैं उनमे से अधिकतर भौतिकता में लिप्त हैं और मात्र मंत्र देकर शिष्य बनाने का कर्तव्य पूरा कर दे रहे |उनके पास समय ही नहीं की वह शिष्य का मार्गदर्शन करें |जो समाज से दूर है गुरु और जो वास्तविक गंभीर साधक हैं उन्हें शिष्य बनाने में रूचि ही नहीं |उन्हें अपनी साधना से ही फुर्सत नहीं की वह शिष्य बनाने की सोचें ,उनके अरुचि का कारण वास्तविक शिष्य का न मिलना भी है |जब हम शिष्यों की ओर देखते हैं तो यहाँ और अधिक कमियां दिखती हैं |लगभग सभी शिष्य जो दीक्षा चाहते हैं वह भौतिकता की ही पहले चाह रखते हैं |धन ,सम्पत्ति ,सुख ,शक्ति की चाहत ही पहले होती है |कोई मुक्ति -मोक्ष के बारे में नहीं सोचता |मोक्ष -मुक्ति के बारे में बुजुर्ग और रिटायर्ड लोगों को ही सोचते देख रहे जिनके पास अब समय ही नहीं की वह बहुत कुछ कर सकें |अक्सर अधिकतर इच्छुक जो हमसे सम्पर्क करते हैं उनकी चाहत अप्सरा ,यक्षिणी ,योगिनी ,कर्ण पिशाचिनी साधना की होती है ,कुछ तो भूत प्रेत की भी साधना करना चाहते हैं |हां महिलायें जरुर देवियों की अधिक साधना करना चाहती है किन्तु उद्देश्य लगभग अधिकतर का भौतिक ही होता है |
हमारा विषय यह नहीं की आप भौतिक उद्देश्य से दीक्षा लेना चाह रहे या आध्यात्मिक उद्देश्य से अपितु हमारा विषय यह है की आप किससे और कैसे दीक्षा लें की आप अपने उद्देश्य में अधिकतम सफल हो सकें |इसमें कोई बुराई नहीं की आपका उद्देश्य भौतिक और सुख सुविधाओं की चाहत वाला है |अब समाज में रहने वाला ,सांसारिक जीवन जीने वाला पहले अपनी स्थिति ही तो ठीक करना चाहेगा |जब घर परिवार ही ठीक नहीं होगा तो कैसे शांत और संतुष्ट भाव से आध्यात्मिक उन्नति की ओर सोच पायेगा ,अतः भौतिक उद्देश्य रखना बुरा नहीं |बस यह जरुर देखिये दीक्षा के पहले ही की कहीं आप ऐसे जाल में तो नहीं फंसने जा रहे की आप इस गुरु उस गुरु के यहाँ ही भटकते रह जाएँ और आपको मिले कुछ नहीं |वर्षो तक साधना उपासना करने पर भी आपकी स्थिति में कोई परिवर्तन न आये और आपको शक्ति और मुक्ति में से दोनों ही दुर्लभ हो जाएँ |
हम आपको बताते हैं आप समझें ध्यान से |दीक्षा का मूल उद्देश्य तो मुक्ति और मोक्ष ही होता है जिसके द्वारा गुरु भगवत प्राप्ति का मार्ग बताता है अथवा मंत्र ,पद्धति बताता है |किन्तु आज के संघर्षमय युग में दीक्षा दो तरह की हो गयी है |एक तो मुक्ति -मोक्ष वाली आध्यात्मिक दीक्षा और दूसरी भौतिक उद्देश्यपरक दीक्षा ,जिसमे शिष्य की चाहत अपने सुख ,समृद्धि को पहले पाने की होती है जिससे वह संतुष्ट ,सुखी हो ,अपनी जिम्मेदारियों का उपयुक्त निर्वहन कर मुक्ति मार्ग का अनुसरण कर सके |कुछ लोग ऐसी दीक्षा भी चाहते की उनके दोनों उद्देश्य एक साथ पूरे हो जाएँ तो कुछ लोग मात्र भौतिक उद्देश्य से ही दीक्षा चाहते हैं |अगर आप आध्यात्मिक उद्देश्य से अर्थात मुक्ति अथवा मोक्ष की कामना से दीक्षा प्राप्त करना चाहते हैं ,गुरु बनाना चाहते हैं अथवा मंत्र प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको बहुत अधिक मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती और यदि आपको मंत्र मिल जाए तो उसका जप ,चिंतन करते हुए भी आप अपने प्रयास से अपने उद्देश्य तक पहुँच सकते हैं |मूल गुरु दीक्षा तो यही रही है और आज भी अधिकतर लोग गुरु धारण कर इसका अनुसरण करते हैं |इस प्रकार की दीक्षा के लिए एक उच्च आध्यात्मिक और सम्पूर्ण रूप से साधना आदि में रहने वाला ,समाज से दूर रहने वाला गुरु ही सबसे अधिक उपयुक्त होता है जिसके मंत्र में बल हो ,जिसकी कृपा आपमें भगवद्भक्ति जगा सके |इसी के अंतर्गत कुंडलिनी जागरण ,योग मार्ग आदि की दीक्षाएं भी आ जाती हैं जो मोक्ष या मुक्ति मार्गीय हैं |थोड़े बहुत मार्ग ,पद्धति के अंतर से यही मूल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है |
अब हम भौतिक अथवा सुख -समृद्धि की कामना वाली दीक्षा की बात करते हैं |सामाजिक जीवन जीने वाले और जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाले ऐसी दीक्षा चाहते हैं |इसके अंतर्गत शक्ति ,धन ,सम्पत्ति ,समृद्धि ,यश ,मान ,सम्मान ,भूत -भविष्य -वतमान का काल ज्ञान ,पारिवारिक ,सामाजिक उद्देश्य पूर्ण करने वाली ,कष्ट -दुःख मिटाने वाली शक्तियों -सिद्धितों की प्राप्ति वाली साधनाओं को करने ,पाने की कामना होती है |कुछ लोग केवल यही चाहते हैं तो कुछ लोग इसको पाकर सुखी जीवन जीते हुए फिर आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हैं |बहुत से लोग चाहत सुख -समृद्धि की भी रखते हैं किन्तु गुरु तलाश करते हुए ऐसे गुरु के पास पहुच जाते हैं जहाँ उन्हें मात्र आध्यात्मिक दीक्षा मिलती है और फिर उनके भौतिक उद्देश्य पूर्ण नहीं होते |कुछ लोग आध्यात्मिक लक्ष्य लिए हुए भौतिक उद्देश्यपरक साधना करने लगते हैं |भौतिक उद्देश्य से ली गयी दीक्षाओं में शक्ति प्राप्ति का मार्ग मुख्य होता है किन्तु अक्सर होता यह है की इन्हें मंत्र मिल जाता है विभिन्न गुरुओं से ,शास्त्रों में लिखी पद्धति छपवाकर दे दी जाती है या यह किताबों से ले लेते हैं और मंत्र रटते रहते हैं |लाखों मंत्र जप पर भी कोई परिणाम नहीं दिखता ,क्योंकि इस मार्ग का तरीका बिलकुल भिन्न होता है |जब आप शक्ति प्राप्ति की कामना रखते हैं ,जब उद्देश्य से साधना कर रहे हों तो आपको निशचित तरीके से तकनिकी साधना करनी होती है जिसका मार्गदर्शन इन्हें इनके गुरु से नहीं मिल पाता |
ऐसे बहुत से लोग अक्सर हमसे संपर्क करते रहते हैं जिन्होंने विभिन्न गुरुओं से दीक्षा तो ले ली है किन्तु या तो गुरु के पास समय नहीं या गुरु को तकनिकी जानकारी नहीं ,उन्होंने इनकी चाहत पर मंत्र तो दे दिया |कुछ लोग समूह में या फोन या इंटरनेट पर मंत्र प्राप्त कर खुद को दीक्षित मान लेते हैं तो कुछ लोग फोन पर शक्तिपात प्राप्त कर समझने लगते हैं की उनकी कुंडलिनी का जागरण हो गया |हम आपको बता दें की समूह दीक्षा या दूरस्थ या फोन या इंटरनेट की दीक्षा जैसा कोई प्रावधान गुरु दीक्षा में उचित नहीं है |दीक्षा हमेशा गुरु से सामने बैठकर ली जाती है और अकेले ही ली जाती है |दीक्षा के अपने नियम और विधि विधान हैं |चाहे वह आध्यात्मिक दीक्षा हो या भौतिक लक्ष्य की हमेशा दीक्षा सामने ही होनी चाहिए |भौतिक दीक्षा में मात्र एक बार मन्त्र लेकर जप करने से अक्सर लक्ष्य प्राप्त नहीं होते |इसमें समय समय पर तकनिकी ज्ञान की आवश्यकता होती है और साधना में हो रहे अनुभव के अनुसार गुरु का मार्गदर्शन चाहिए होता है |इसलिए यह दीक्षा ऐसे गुरु से होनी चाहिए जिससे समय समय पर मिला जा सके और गुरु भी सक्षम हो की वह मार्गदर्शन कर सके |
आध्यात्मिक दीक्षा में बस एक ही गुरु होता है जीवन भर के लिए किन्तु भौतिक दीक्षा में कई गुरुओं से दीक्षा ली जा सकती है किन्तु प्रथम गुरु की अनुमति जरुरी होती है दूसरा गुरु बनाने के लिए |अश्रद्धा और अविश्वास किसी भी गुरु पर नहीं होनी चाहिए |मूल समस्या आज यह है की शिष्य आज भीड़ देखता है ,प्रचार और नाम देखता है ,गुरु का वैभव और शानो -शौकत देखता है ,चमत्कार की आशा करता है |इस चक्कर में वह अक्सर व्यावसायिक गुरु जो नाम का गुरु बना होता है ,चोला धारण किये हुए होता है ,तंत्र -मात्र ,टोने -टोटके कर रहा होता है उसके पास पहुँच जाता है |यह लोग दीक्षा को व्यवसाय बनाये होते हैं या इन्हें शिष्यों को मात्र मन्त्र देने से मतलब होता है |यहाँ मंत्र लेकर लाखों जपने पर भी जब विशेष लाभ नहीं दिखता तो अक्सर लोग निराश होते हैं |शुरू में कोई नहीं समझता की जो गुरु वास्तविक साधक होगा वह भीड़ क्यों लगाएगा ,वह तो भीड़ से दूर रहेगा ,वह शिष्यों की फ़ौज क्यों खड़ा करेगा वह तो योग्य शिष्य खोजेगा ,वह प्रचार ,प्रसिद्धि और वैभव विलासिता का क्या करेगा ,उसे तो अपने लक्ष्य से मतलब होगा |लेकिन शुरू में लोग नहीं ध्यान देते और नाम सुनकर दीक्षा लेने की कोशिश करते हैं |बाद में यहाँ वहां फिर नए गुरु की तलाश करते हैं |
हम उन सभी लोगों से कहना चाहेंगे जो भी लोग भौतिक उद्देश्य रखते हों ,सुख समृद्धि ,जीवन की उन्नति की कामना से साधना करना चाहते हों या वह लोग भी जो आध्यात्मिक उन्नति चाहते हों ,मुक्ति मोक्ष चाहते हों |आप गुरु की तलाश में जल्दबाजी न करें |कभी ऐसे गुरु के पास न जाएँ जिनके पास आपसे बात करने की भी फुर्सत न हो ,जो आपको समय समय पर मार्गदर्शन न दे सके भले ही वह कितना भी बड़ा गुरु क्यों न हो |कारण की बड़ा गुरु हो या प्रसिद्द चमत्कारी गुरु ,उनके मात्र मंत्र देने से आपको बहुत अधिक लाभ नहीं होना |आपकी सफलता आपकी क्षमता पर निर्भर होती है ,तकनिकी जानकारी से होती है ,अनुभवों के अनुसार समय समय पर मार्गदर्शन से होती है |भौतिक साधनाओं में भावना का महत्त्व कम तकनिकी जानकारी और विशेष तरीके का अधिक होता है जो की समय समय पर मिलना चाहिए |आप ऐसा गुरु तलाश करें जिससे आप बात कर सकें ,मिल सकें और मार्गदर्शन ले सकें |आपकी सफलता गुरु पर कम आप पर अधिक निर्भर होती है |गुरु को ज्ञान होना चाहिए ,तकनिकी जानकारी होनी चाहिए जो वह दे सके |वह कैसे रहता है ,कहाँ रहता है ,किस स्थिति में रहता है यह मत देखिये क्योंकि हीरा कोयले में ही होता है ,वास्तविक गुरु अक्सर सामान्य ही रहना चाहता है ,खुद को छुपाये रखता है |ऐसे गुरु को तलाश कीजिये |
अब हम आपको बताते हैं की आप कैसे दीक्षा लें |आप कभी भी फोन पर ,इंटरनेट पर या भीड़ में दीक्षा न लें |जब भी दीक्ष लें गुरु के आभामंडल क्षेत्र में आकर दीक्षा लें |आप गुरु से सामने बैठकर दीक्षा लें |दीक्षा हमेशा अकेले में लें |उनके मुख से प्रत्यक्ष मंत्र सुनकर दीक्षा लें ,उनसे पद्धति और तरीका समझकर साधना करें |दीक्षा बाद उनका चरण स्पर्श जरुर से करें |आप जब दीक्षा को जाएँ तो एक बार कोशिश करें की गुरु ही निर्णय करें की आपके लिए कौन से ईष्ट देवता अनुकूल होंगे या मंत्र अनुकूल होगा |अगर वह पूछें तभी आप अपने मन के ईष्ट को बताएं |आप जब दीक्ष को जाएँ तो गुरु जो भी वस्त्र धारण करते हों उनके पूर्ण वस्त्र को आप साथ रखें ,या सवा पांच मीटर रेशमी गेरुआ या लाल या श्वेत कपडा साथ रखें |थोडा फल -फूल और मिष्ठान्न रखें ,गुरु के २७ दिनों के पूर्ण भोजन के लिए पर्याप्त दक्षिणा साथ रखें |इतना आपको दीक्षा बाद गुरु को समर्पित करना चाहिए |यदि आपका उद्देश्य भौतिक उद्देश्य का है तो इतना तो साथ होना ही चाहिए साथ ही आपको रक्षा कवच की दक्षिणा भी साथ रखनी चाहिए क्योंकि भौतिक उद्देश्य में शक्ति साधना ही अक्सर आती है जो बिना गुरु के रक्षा कवच के नहीं करनी चाहिए |
हमारे पास प्रतिदिन लगभग एक दर्जन ऐसे फोन काल्स आ जा रहे जिनमे लोग दीक्षा चाहते हैं ,साधना करना चाहते हैं ,या विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त होकर शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं |बहुत से लोग विभिन्न गुरुओं से दीक्षित भी होते हैं और वर्षों साधना पर उन्हें परिणाम कम मिल रहा होता है या कोई अनुभव ही नहीं हुआ होता |कुछ के साथ ऐसा भी है की उन्होंने बिना सोचे समझे गुरु तो बना लिया अब उनके गुरु या तो दुसरे मार्ग के हैं या उन्हें जानकारी ही नहीं जो साधक चाह रहा |कुछ के गुरु तो बड़े प्रसिद्द नाम वाले हैं किन्तु उनसे वह मिल भी नहीं सकते ,बात भी नहीं कर सकते |यह सभी मार्गदर्शन चाहते हैं ,साधना में आगे बढना चाहते हैं ,वास्तविक अनुभव चाहते हैं | ऐसे सभी लोगों से कहना चाहेंगे की वह अच्छे गुरु को पहले तलाशें |अपने उद्देश्य को समझें ,चाहते क्या हैं ? उस मार्ग का गुरु खोजें ,जब मन स्थिर हो जाए तो उनसे अनुरोध कर दीक्षा लें और सतत लगे रहें ,कभी भी अविश्वास को अपने मन में स्थान न दें क्योंकि अक्सर साधना की सफलता आप पर निर्भर होती है ,गुरु मार्गदर्शक होता है |यदि आपके गुरु मार्गदर्सन नहीं कर पा रहे तो उनसे अनुमति लेकर दुसरे गुरु से तकनिकी जानकारी प्राप्त करें | …………………………………….हर हर महादेव
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