कर्ण पिशाचिनी साधना [Karn Pishachini Sadhna ]
=============== [तृतीय मंत्र – वाम मार्ग ]
कर्ण पिशाचिनी का नाम तंत्र जगत में जाना पहचाना है |सामान्य जन भी भूत -भविष्य बताने वाली सिद्धि के रूप में इसे जानते हैं ,यद्यपि यह भविष्य नहीं बता सकती |भविष्य के कथन साधक के पूर्वानुमान और तुक्के होते हैं जो कभी सही ,कभी गलत हो सकते हैं |हाँ यह पैशाचिक साधना से उत्पन्न शक्ति भूत और वर्त्तमान ठीक ठीक बता देती है अतः इस आधार पर व्यक्ति भविष्यवक्ता बन बैठता है,किन्तु भविष्य कथन केवल इस शक्ति के आधार पर सही नहीं होता |या तो सटीक अनुमान हो अथवा ज्योतिष का ज्ञान हो तभी भविष्य सही हो सकता है |कर्ण पिशाचिनी जितनी जल्दी आएगी उसकी शक्ति उतनी ही कम होगी |देर से आने पर शक्ति अधिक होती है |कर्ण पिशाचिनी के अनेक मंत्र और पद्धतियाँ हैं |कुछ सात्विक और कुछ अघोर क्रियागत |
कर्ण पिशाचिनी मूलतः वाम मार्ग की शक्ति है ,जो अधिकतर सिद्धों ,नाथों द्वारा सिद्ध की जाती है |इसकी परिकल्पना भी नाथ पंथ से प्रेरित है |इसे देवी कहना उपयुक्त नहीं है ,क्योकि इसका भाव समीकरण देवी जैसा नहीं है ||यह एक तामसी शक्ति है |इसकी सिद्धि भी इसी प्रकार करनी चाहिए |इसमें किसी पवित्र या सौम्य भाव की छाया पड़ते ही यह गायब हो जाती है |यह पवित्र भाव ,पवित्र स्थान ,साफ़ सुथरे वातावरण में सिद्ध नहीं होती |मंदिर ,पूजा -स्थल ,नदी का मनोरम किनारा ,सुगन्धित फूलों का बाग़ ,स्वच्छ स्थान पर इसे सिद्ध नहीं किया जा सकता |यह विद्या शक्ति उपासक या दुर्गा पाठी को आसानी से सिद्ध नहीं होती |कई कर्ण पिशाचिनी वर मांगती हैं की मुझे तुम किस रूप में चाहते हो -माँ ,पुत्री ,बहन ,स्त्री या प्रेमिका |आप इसमें से जिस रूप को स्वीकार करोगे ,उस स्त्री की परिवार में हानि हो जायेगी |यदि माँ रूप में माना तो माँ की हानि हो जायेगी |कभी कभी यह विशेष लावण्य रूप को ग्रहण करती है ,अतः माँ -बहन रूप में मानते मानते पत्नी भाव को प्राप्त करने की इच्छा होने लगती है |ऐसी स्थिति में साधक का पतन हो जाता है |बहन रूप में मानते मानते पत्नी रूप मानने पर गृहस्थ से नाता टूट जाता है |पत्नी को कष्ट होता है और साधक तथा उसकी पत्नी साथ नहीं रह पाते |अतः कर्ण पिशाचिनी की साधना बहुत सोच समझकर ही करनी चाहिए |इस प्रकार की किसी साधना को कमजोर हृहय वालों को नहीं करना चाहिए क्योकि साधना अवधि में पिशाचिनी भयात्म्क वातावरण भी उत्पन्न करती है और किसी गलती पर भारी विपत्ति और कष्ट भी उत्पन्न करती है |
साधक के सामने सिद्धि के समय यह एक साधारण श्याम वर्ण की युवती के रूप में प्रकट होती है |इसकी मुखाकृति तेजस्वी लगती है और यह अलंकार रहित होती है |शरीर पर कोई आभूषण नहीं होता है |मस्तक में एक देदीप्यमान प्रकाश किरने छोड़ता हुआ आड़ा नेत्र होता है |इसकी ओर देख पाना संभव नहीं होता है |ललाट में यह देदीप्यमान आड़ा नेत्र ही कर्ण पिशाचिनी की पहचान है |इसके पीछे मृत आत्माओं की भीड़ होती है किन्तु यह सब साधक को भयभीत करने का प्रयास नहीं करते |प्रकट होने पर कर्ण पिशाचिनी साधक के मस्तक पर हाथ रखती है |यह समय ही साधक की कठिन परीक्षा का समय होता है |इस समय उसे भयभीत करने वाला कोई दृश्य तो नहीं दिखाई देता है किन्तु कर्ण पिशाचिनी का प्रथम स्पर्स ही भय से संज्ञा शून्य करने वाला तथा साधक को विचलित करने वाला होता है |उस समय साधक साहसपूर्वक इसके प्रश्न का उत्तर देकर इसे वशीभूत कर साथ रहने के लिए वचन बढ कर लेता है |यह स्थिति इसकी सिद्धि की द्योतक मानी जाती है |
, हमने अपने वेबसाईट और ब्लॉग के पूर्व के लेखों में कर्ण पिशाचिनी है क्या यह बता रखा है और इसकी दो प्रकार की साधनाएं सात्विक तथा अघोर क्रियागत ,दो भिन्न लेखों में प्रकाशित की हैं |अघोर क्रियागत साधना भी वाम मार्गीय साधना ही है किन्तु वाम मार्ग में ही ऐसी प्रक्रिया भी है जिसमे मल मूत्र भक्षण आवश्यक नहीं ,यद्यपि अशुद्ध यहाँ भी रहना होता है और लगभग प्रक्रिया वैसी ही अपनाई जाती है |बिन मल मूत्र भक्षण के निम्न साधना की जा सकती है |पूर्व में दी गयी अघोर क्रियागत साधना सी ही यह भी साधना है ,जहाँ अंतर है वहां अलग पद्धति लिखी जा रही है |दोनों पद्धतियों का सूक्ष्म अवलोकन कर साधना की जा सकती है |साधना बिन गुरु अनुमति ,बिना सुरक्षा कवच ,बिना पूर्ण प्रक्रिया योग्य ज्ञानी से समझे भूलकर भी नहीं करनी चाहिए |
मन्त्र –
——- ॐ ह्रीं कर्ण पिशाचिनी अमोघ सत्य वादिनी मम करणे अवतर अवतर सत्यं कथय कथय अतीतानागतवर्त्तमान दर्शय दर्शय ऐं ह्रीं कर्ण पिशाचनी स्वाहा |
सामग्री –
———- २४ हड्डियों की दो मालाएं ,लाल कपडा ,लाल या काला उनी आसन बाजोट ,९ बड़े बड़े दीपक सरसों तेल से भरे हुए ,मूर्ती ,कर्ण पिशाचिनी यन्त्र ,पूजन सामग्री
स्थान – निर्जन ,एकांत स्थान ,वट वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान
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विधि –
——- इस साधना में कृष्ण नवमी की रात्री से अमावश्या की रात्री तक जप किया जाता है |२४ हड्डियों की एक माला पर जप होता है और दूसरी माला साधक के गले में होती है |९ दीपक चारो तरफ जलाए जाते हैं और दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके जप किया जाता है |जप अर्ध रात्री से रात रहने तक किया जाता है |जप पूर्व मूर्ती ,यन्त्र की पूजा की जाती है और मांस मदिरा अर्पित की जाती है |जप पूर्ण निर्वस्त्र अवस्था में होता है |मल मूत्र विसर्जन वहीँ आसपास करना होता है और शयन भी वहीँ किया जाता है |दातुन मंजन नहीं किया जाता और जूठे बर्तन में ही भोजन किया जाता है |गायत्री अथवा शक्ति की उपासना आदि भूलकर भी नहीं होनी चाहिए ,न ही मंदिर आदि में प्रवेश करना चाहिए |शेष पद्धति अघोर क्रियागत साधना जैसी |कर्ण पिशाचिनी एक तामसी शक्ति है जो अशुद्धि पसंद करती है अतः पूर्ण तामसिकता और काम भाव से ही साधना होनी चाहिए |यह पद्धति अनुष्ठानों से प्रेरित है अतः संकल्प लेकर निश्चित संख्या में रोज जप किया जाना बेहतर है |जप समय ध्यान पूरी तरह एकाग्र हो और व्यक्ति को निर्भय होना चाहिए |यदि वास्तविक प्रत्यक्षीकरण की अभिलाषा है और अनुष्ठान के दौरान प्रत्यक्षीकरण नहीं होता तो ,अनुष्ठान के बाद भी मंत्र जप यथा नियम जारी रखा जा सकता है |अनुष्ठान पूर्ण होने पर व्यक्ति को घटनाओं की सूचना मिलने लगती है |
विशेष चेतावनी
========== उपरोक्त साधना पद्धति मात्र जानकारी के उद्देश्य से दिया जा रहा है |जैसा की शास्त्रों में ,किताबों में कर्ण पिशाचिनी की साधना दी हुई है ,हम भी ब्लॉग और पेज पर मात्र जानकारी देने के उद्देश्य से इसे प्रकाशित कर रहे हैं |मात्र इस लेख के आधार पर साधना न करें |साधना पूर्व अपने गुरु से अनुमति लें और किसी सिद्ध काली साधक से सुरक्षा कवच बनवाकर जरुर धारण करें ,जो ऐसा हो की सुरक्षा भी करे औए पिशाचिनी के आगमन को रोके भी नहीं |योग्य ग्यानी से समस्त प्रक्रिया और मंत्रादी समझ लें ,जांच लें |किसी भी हानि अथवा परेशानी के लिए हम जिम्मेदार नहीं होंगे |धन्यवाद |………………………………………………………….हर-हर महादेव
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