Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

कुण्डलिनी जाग्रत करने के नियम

कुंडलिनी जागरण के नियम

—————————–

कुंडलिनी जागरण के नियम मार्ग की दृष्टि से भिन्न होते हैं |tantra मार्ग में इसकी पद्धति भिन्न है और योग मार्ग में भिन्न है |दोनों में ही बिना गुरु के इसका जागरण संभव नहीं |tantra में भी योग के कुछ सूत्र उपयोग में लाये जाते हैं और योग में भी tantra के कुछ सूत्र उपयोग में लाये जाते हैं |योग सब प्रकार से नियंत्रण और नियमों का कठोरता से पालन करते हुए इसका जागरण करता है और भोगों से विरक्ति ,कठोर शारीरिक क्रियाएं आवश्यक होती हैं ,जबकि tantra विभिन्न तकनीकियों का उपयोग करते हुए शरीर की ऊर्जा को इतना बढाने में विश्वास करता है की वह कुंडलिनी जगा दे ,यद्यपि यह मार्ग योग से अत्यंत खतरनाक है और इसमें सफलता का प्रतिशत भी कम होता है क्योकि साधक के पथ भ्रष्ट होने की संभावना भी अधिक होती है और भ्रष्ट हो भी जाते हैं |कुंडलिनी जागरण की तकनीकियाँ तो गुरु ही अपने अपने सानिध्य में समझाता है अतः तकनिकी जानकारी अचानक नहीं दी जा सकती |योग के अंतर्गत कुछ मूल भूत नियम हैं इसके को हमेशा पालन करने ही होते हैं ,|उनका विवरण निम्न है |

१. सर्वप्रथम स्वयं को शुद्ध और पवित्र करें |शुद्धता और पवित्रता आहार और व्यवहार से आती है |आहार अर्थात सात्विक और सुपाच्य भोजन तथा उपवास |व्यवहार अर्थात अपने आचरण को शुद्ध रखते हुए सत्य बोलना और सभी से विनम्रतापूर्वक मिलन |

२. स्वयं की दिनचर्या में सुधार करते हुए जल्दी उठना और समय पर सोना |प्रातः और संध्या को प्रार्थना -संध्यावंदन करते हुए नियमित प्राणायाम ,धारणा और ध्यान का अभ्यास करना |

३, कुंडलिनी जागरण के लिए कुंडलिनी प्राणायाम अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध होते हैं |अपने मन और मष्तिष्क को नियंत्रण में रखकर कुंडलिनी योग का लगातार अभ्यास किया जाए तो ६ से १२ माह में कुंडलिनी जागरण संभव होने लग सकती है |लेकिन यह सब किसी योग्य गुरु के सानिध्य में ही संभव होता है |

संयम और सम्यक नियमों का पालन करते हुए लगातार ध्यान करने से धीरे धीरे कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है और जब यह जाग्रत हो जाती है तो व्यक्ति पहले जैसा नहीं रह जाता |वह दिव्य पुरुष बन जाता है |

जब कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है तो पहले व्यक्ति को उसके मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव होने लगता है |फिर वह कुंडलिनी तेजी से ऊपर उठती है और अगले चक्र पर जाकर रूकती है |उसके बाद साधना जारी रहने पर फिर ऊपर उठने लग जाती है और अगले चक्र तक पहुचती है |जिस चक्र पर यह रूकती है उसके व् उसके नीचे के चक्रों में स्थित नकारात्मक ऊर्जा को हमेशा के लिए नष्ट कर चक्र को स्वच्छ और स्वस्थ कर देती है |

कुंडलिनी के जाग्रत होने पर व्यक्ति सांसारिक विषय भोगों से दूर होने लगता है और उसका रुझान अध्यात्म ,पवित्रता ,शुद्धता के साथ रहस्य जानने की और होने लगता है |कुंडलिनी जागरण से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बढ़ जाती है और व्यक्ति खुद में शक्ति और सिद्धि का अनुभव करने लगता है |कुंडलिनी जागरण के प्रारम्भिक काल में हूँ हूँ की गर्जना सुनाई दे सकती है |आँखों के सामने पहले काला ,फिर पीला और बाद में नीला रंग दिखाई दे सकता है |साधक को अपना शरीर गुबारे की तरह हवा में उठता अथवा हल्का लग सकता है |वह गेंद की तरह अपने स्थान पर ऊपर नीचे उठता गिरता महसूस कर सकता है |ऐसा लग सकता है की गर्दन का भाग ऊपर उठ रहा है |उसे सर में शिखा के स्थान पर चींटियाँ चलने का अनुभव हो सकता है |सर के उपरी भाग पर दबाव महसूस हो सकता है |सर पर प्रकाश अथवा ऊर्जा आती महसूस हो सकती है |रीढ़ में कम्पन महसूस हो सकता है |……………………………………………………………………हर-हर महादेव


Discover more from Alaukik Shaktiyan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Latest Posts