Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

उर्जाओं की रति और God Particle

::::::::बिना रति के कोई सृष्टि नहीं होती ::::::::

===============================

             रति का नाम सुनते ही सामान्यतया हर किसी के मष्तिष्क में मानव या जंतु रति की बात सोच में आती है |किन्तु यह केवल इन्ही में नहीं होती यह समस्त सृष्टि के प्रत्येक उत्पत्ति के पूर्व होती है |अध्यात्म-धर्म के क्षेत्र में तो इसका नाम सुनते ही बहुतेरे नाक-भौ सिकोड़ने लगते हैं ,जबकि इसके बिना तो कुछ संभव ही नहीं है |उन नाक भौ सिकोड़ने वालों तक की उत्पत्ति संभव ही नहीं ,फिर इससे इतनी अस्पृश्यता क्यों |बिना रति के तो यह जीवन ही संभव नहीं |रति केवल जीवन या जीव उत्पत्ति को ही नहीं कहते |किसी भी प्रकार के उत्पादन में होने वाली आपसी क्रिया रति है |चाहे वह ऊर्जा उत्पादन ही क्यों न हो |रति तो समस्त सृष्टि में चल रही है |रति से ही तो सृष्टि उत्पन्न हुई है |समस्त सृष्टि रति संलग्न है |मूल देवता अर्थात मूल राज राजेश्वर शिव या विष्णु ब्रह्माण्ड के नाभिक के केंद्र में रति संलग्न हैं |इससे ही आत्मा नामक सूक्ष्मतम परमाणु सृष्टि बीज के रूप में समस्त ब्रह्माण्ड में बर्फ के फुहार की भांति विकरित हो रहा है |इसकी रति से ही ब्रह्माण्ड के नया ऊर्जा केन्द्रों की रति चल रही है |हमारा सूर्य भी इसी के कारण रति संलग्न है और ऊर्जा उत्पादित कर रहा है और हमारे ग्रह भी |

                नहीं समझ आया ?ठीक है हम आपको विज्ञान की भाषा में आधुनिक परिभाषा में समझाते हैं |अभी कुछ दिन पहले बहुत शोर मचा था गाड पार्टिकल यानी ईश्वरीय कं की खोज की |वैज्ञानिक खोज पाए या नहीं यह अभी भी रहस्य ही है किन्तु आज का विज्ञान इतना जरुर प्रमाणित कर रहा है की इस ब्रह्माण्ड में सब कुछ परमाणुओं से बना है |परमाणु संरचना तक आज का विज्ञानं पहुँच गया है पर परमाणु के अवयव इलेक्ट्रान ,प्रोटान और न्यूट्रान कैसे बने यह आज का विज्ञानं नहीं जानता |अब हम आपको बिलकुल उपर से नीचे की ओर लेकर चलते हैं |हम जिसे परमात्मा या परम ब्रह्म कहते हैं उन्हें हम शिव नाम देते हैं |

               उस,निर्गुण ,निराकार ,सर्वव्यापी शिव में जब सृष्टि की इच्छा होती है तो उनके एक छोटे अंश मे एक बिंदु पर हलचल होती है और एक भंवर उत्पन्न होती है जो प्याले की आकृति में बवंडर या स्टार्म की तरह गति करती है तब इसके विपरीत ठीक इसके उपर एक और भंवर उत्पन्न होती है और वह उपर से इसमें नीचे की ओर समा जाती है |पहला भंवर उर्ध्वमुखी त्रिकोण सा और दूसरा भंवर अधोमुखी त्रिकोण सा होता है जिनके केंद्र में सूक्ष्म नलिका सा स्थान होता है जिससे इनके उपर नीचे करने पर ऊर्जा फुहार निकलती है |इन ऊर्जा त्रिकोणों का उपर नीचे होना ही रति कहलाता है और इस रति से नए त्रिकोण उत्पन्न होते हैं |उर्ध्वमुखी त्रिकोण धनात्मक और अधोमुखी त्रिकोण रिनात्मक आवेश के माने जाते हैं |इन्हें ही आप देव यंत्रों में देखते हैं |यही मूल भैरवी चक्र भी है |इन आवेशित कणों से बना परमाणु आज के परमाणु से खरबों गुना सूक्ष्म किन्तु खरबों गुना शक्तिशाली और गतिवान जो क्षण भर में ब्रह्माण्ड में हलचल मचा दे |

            अब यहाँ प्रथम सृष्टि होती है और सूक्ष्म कण उत्पन्न होता है |इनमे धनात्मक और रिनात्मक कण होते हैं जिनकी आपसी क्रिया से दूसरा थोडा बड़ा कण बनता है |इससे निर्वाण शरीर बनता है और यहीं त्रिदेव की सृष्टि होती है |इनकी आपसी क्रिया से इससे बड़ा एक कण फिर बनता है\जिससे ब्रह्म शरीर बनता है |फिर इनकी आपसी क्रिया से इससे बड़ा एक कण बनता है |यहाँ पर आत्म शरीर का स्तर आता है |फिर इनकी आपसी रति द्वारा यानी क्रिया द्वारा इससे बड़ा कण उत्पन्न होता है और मनोमय शरीर की स्थिति आती है |इसके बाद के स्तर पर बने कं  कण से आपका हमारा सूक्ष्म शरीर निर्मित होता है और इसे आज तक विज्ञानं खोज नहीं पाया |इसी कण को आज का विज्ञानं गाड पार्टिकल बोल रहा जबकि वास्तव में गाड पार्टिकल तो अभी आज के विज्ञान से हजारों साल दूर है |

          अब इस कण की आपसी क्रिया से इलेक्ट्रान ,प्रोटान ,न्यूट्रान ,पाजित्रान आदि बने और आपकी इलेक्ट्रानिक बाडी यानी विद्युत् शरीर बनती है जिसे हम भाव शरीर की स्थिति भी ख सकते हैं |इनकी आपसी क्रिया से आज का परमाणु बना |इस परमाणु की रति से आपके शरीर में कोशिकाओं में मौजूद अवयव बने जिनकी आपसी रति से यानी आपसी सम्मिलन से कोशिका बनी |कोशिका से भौतिक शरीर बना ,शरीर की रति से नया शरीर बना |पत्थर ,लोहा ,लकड़ी में भी परमाणु ही होते हैं जो आपसी क्रिया से ही बनते हैं |अर्थात परमाणुओं की आपसी रति से ही सबकुछ बनता है |उदाहरण, कार्बन ,आक्सीजन ,नाइट्रोजन ,हाइड्रोजन सब गैस है वातावरण में पर कार्बन और आक्सीजन मिलकर पानी बन जाता है ,इसमें हाइड्रोजन मिल जाता है तो ग्लूकोज और कार्बोहैद्रेट बन जाता है ,इसमें नाइट्रोजन मिल जाता है तो प्रोटीन बन जाता है और यह सब स्थूल रूप से अनाज बन जाते हैं |इसी प्रकार पत्थर ,खनिज ,सूर्य ,पृथ्वी ,सब कुछ इन्ही से बना है मतलब आपसी रति से ही तो उत्पन्न होता है | रति का मतलब आनंद नहीं आपसी क्रिया होता है और आपसी क्रिया से ही सबकुछ उत्पन्न होता है |

        हमारा नाभिक भी रति संलग्न है ,हमारे अन्य ऊर्जा केंद्र भी |इस रति से ही हमारा जीवन ,हमारी क्रिया ,हमारी समस्त प्रवृत्तियाँ एवं गुणों का अस्तित्व है |जैसे ही यह रति रुकेगी हम मृत हो जायेंगे |इस रति से ही हमें वह अमृत प्राप्त होता है ,जो जीवन के लिए आवश्यक है |धनात्मक और ऋणात्मक ऊर्जा धाराओं के मध्य जब आपसी क्रिया होती है तो ऊर्जा फुहार निकलती है ,जिससे खाली हुए स्थान को भरने के लिए ब्रह्माण्ड से अमृत तत्व या परम तत्व की ऊर्जा आती है |उसी से जीवन चलता है |आपसी क्रिया बंद ,तो परम तत्व की ऊर्जा आणि बंद और जीवन समाप्त |

           परमाणुओं के मध्य आपसी संयोग रति है जिससे नया पदार्थ बनता है |रति ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का ,सृष्टि की उत्पत्ति का ,जीवन की उत्पत्ति का कारण है |इसी से सृष्टि हो रही है अन्यथा न तो कुछ बन रहा है ,न नष्ट हो रहा है |मूल तो बस परम तत्व है ,बस वह स्वरुप बदलता रहता है |इसी रति को भैरवी चक्र के माध्यम से व्यक्त किया जाता है |दो शंक्वाकार [त्रिभुज] ऊर्जा धाराएं जिनपर भिन्न आवेश है एक दुसरे के आकर्षण में आपस में समाकर एक नए की सृष्टि कर देते हैं |इनके आपस में मिलने पर नाभिक या मध्य केंद्र उत्पन्न होता है जिसमे परम तत्व ही अपने सगुण रूप राज राजेश्वर शिव या विष्णु के रूप में स्थापित हो उस इकाई का संचालन करता है |इसी ऊर्जा की अभिव्यक्ति भैरवी चक्र है |भैरवी चक्र की साधनाओं में लिंग एवं योनी की पूजा की जाती है |इसकी तकनिकी और साधनाएं आश्चर्यजनक हैं |यदि कोई कुछ भी कामना करता है ,तो इसकी विधियों से वह वर्षों का काम सप्ताहों में पूर्ण कर लेता है |

           यही कारण है की तंत्र मार्ग में सर्वाधिक महत्व इन्ही साधनाओं को प्राप्त है |कहा गया है की एक वीराचारी साधक हजार तपस्वियों के बराबर होता है |लिंग और योनी पूजा का तात्विक अर्थ है |यद्यपि यह पूजा स्थूल रूप से भी होती है ,किन्तु तात्विक अर्थ यही होता है की धनात्मक ऊर्जा धारां ,ऋणात्मक ऊर्जा धारा के प्रतिक्रिया स्वरुप उत्पन्न होती है और ऋणात्मक के आवेश से आकर्षित हो उसमे समाकर एक नई सृष्टि करती है |लिंग-योनी पूजा दो प्रक्रितोयों की पूजा है ,दो गुणों की पूजा है जिनके कारण सृष्टि उत्पन्न होती है |यह प्रकृति अथवा ब्रह्माण्ड की मूल शक्तियों की सांकेतिक पूजा या सगुण स्थूल और सामान्य उपलब्ध पूजा है |यह यह भी संकेत करता है की परम तत्व के दोनो विपरीत गुण जिनसे सृष्टि की ,जीव की उत्पत्ति होती है हममे है ,उसे कहीं अन्य खोजने की जरुरत नहीं है ,प्रकारांतर से यह परम तत्व के दोनों गुणों की पूजा है |योग मार्ग का साधक दोनों गुणों को खुद में देखता है और दोनों गुणों की आंतरिक उर्जा रति से योगी बनता है |तंत्र मार्गी स्थूल स्वरुप पकड़ता है क्योंकि यहाँ अत्यधिक तीव्र और अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे शीघ्रता से उच्चावस्था मिलती है |भैरवी साधना में मनुष्य के सृष्टि क्षमता को ही परम तत्व या परमात्मा की प्राप्ति का माध्यम बनाया जाता है ,जिसमे प्रथम लक्ष्य दोनों गुणों के मध्य स्थित राज राजेश्वर शिव या अर्ध नारीश्वर की प्राप्ति होती है |इनके बिना परम तत्व तक पहुचना संभव नहीं होता |…………………………………………………………हर-हर महादेव


Discover more from Alaukik Shaktiyan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Latest Posts