Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

दक्षिण काली साधना

::::::::महाकाली [दक्षिण काली ] साधना विवरण ::::::::

====================================

             भगवती काली ही एकमात्र ऐसी शक्ति हैं जिन्हें आदि शक्ति कहा जाता है |सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति इन्ही द्वारा होती है और फिर वह इन्ही में विलीन होता रहता है |सभी देवी देवता मनुष्य के जीवन के जन्म से मृत्यु के बीच के भाग को प्रभावित करते हैं किन्तु जन्म और मृत्यु दोनों काली द्वारा ही होता है |अतः जन्म और मृत्यु ही न हो तो मुक्ति और आत्मा का पूर्ण विलय काली में हो जाए तो मोक्ष |अर्थात मुक्ति और मोक्ष काली में ही है |भगवती कालिका अर्थात काली के अनेक स्वरुप, अनेक मन्त्र तथा अनेक उपासना विधियां है। यथा-श्यामा, दक्षिणा कालिका (दक्षिण काली),श्मशान काली ,रूद्र काली ,कामकला काली ,गुह्य काली, भद्रकाली, महाकाली आदि । दशमहाविद्यान्तर्गत भगवती दक्षिणा काली (दक्षिणकालीका) की उपासना की जाती है।

        आपको ध्यान देना चाहिए की प्रार्थना एक अलग विधा है ,आराधना एक अलग विधा है ,उपासना एक अलग विधा है और साधना बिलकुल अलग विधा है |यदि आप इनके अंतर को नहीं जानते तो आप भारी भूल कर रहे हैं |कोई भी देवी -देवता और शक्ति प्रार्थना ,आराधना और उपासना तक तो आपके माता -पिता ,भाई -बहन स्वरुप हो सकते हैं आप जिस भाव से भी उन्हें मानें कोई दिक्कत नहीं ,किन्तु जब बात साधना की आती है तब यह प्रेम और मात्र यह भाव की वह तो माता -पिता हैं ,वह क्षमा करते हैं सोचना आपको परेशानी दे सकता है |विशेषकर उग्र महाविद्याओं ,जैसे काली ,बगला ,दुर्गा ,छिन्नमस्तिका ,धूमावती आदि की साधना में आपकी गलतियाँ क्षमा नहीं होती और आपको गंभीर परिणाम मिलते हैं ,अतः जब साधना करें तो पूरी सावधानी से और बिना गलतियों के |काली का कोई भी स्वरुप हो उसमे उग्रता एक आवश्यक तत्व है |इनका दक्षिण काली स्वरुप सर्वाधिक पूजित स्वरुप है जिसके साधना -उपासन के बारे में हम अपने इस अलौकिक शक्तियां वेबसाईट पर बता रहे हैं |

दक्षिण कालिका के मन्त्र :-

———————–  भगवती दक्षिण कालिका के अनेक मन्त्र है, जिसमें से कुछ इस प्रकार है।

(1) क्रीं,

(2) ॐ ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं।

(3) ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

(4) नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।

(5) नमः आं क्रां आं क्रों फट स्वाहा कालि कालिके हूं।

(6) क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रींह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा। इनमें से कीसी भी

मन्त्र का जप किया जा सकताहै।

पूजा -विधि :-

————-  दैनिक कृत्य स्नान-प्राणायम आदि से निवृत होकरस्वच्छ वस्त्र धारण कर, सामान्य पूजा-विधि से काली- यन्त्र का पूजन करें।तत्पश्चात ॠष्यादि- न्यास एंव करागन्यास करके भगवती का इस प्रकार ध्यानकरें-

 ध्यान

———

शवारुढां महाभीमां घोरदृंष्ट्रां वरप्रदाम्।

हास्य युक्तां त्रिनेत्रां च कपाल कर्तृकाकराम्।

मुक्त केशी ललजिह्वां पिबंती रुधिरं मुहु:।

चतुर्बाहूयुतां देवीं वराभयकरां स्मरेत्॥”

इसके उपरान्त मूल-मन्त्र द्वारा व्यापक-न्यास करके यथा विधि मुद्रा-प्रदर्शन पूर्वक पुनः ध्यान करना चाहिए।

पुरश्चरण : – कालिका मन्त्र के पुरश्चरण में दो लाख की संख्या में मन्त्र-जप कियाहै। कुछ मन्त्र केवल एक लाख की संख्या में भी जपे जाते है। जप का दशांश होम घृत द्वारा करना चाहिए । होम का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश अभिषेक तथा अभिषेक का दशांश ब्राह्मण – भोजन कराने का नियम है।

विशेष : -” दक्षिणाकालिका “ देवी के मन्त्र रात्रि के समय जप करने से शीघ्र सिद्धि प्रदानकरते है। जप के पश्चात स्त्रोत, कवच, ह्रदय आदि उपलब्ध है, उनमें से चाहें जिनका पाठ करना चाहिए । वे सभी साधकों के लिए सिद्धिदायक है।

परिचय- दुर्गाजी का एक रुप कालीजी है।जो की दुर्गा से उत्पन्न होता है |मूलतः काली सर्वत्र विद्यमान है और यह आदि शक्ति है | यह देवी विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी है।

         यह तथ्य प्रसिद्ध है कि इनकी कृपा मात्र से भक्त को ज्ञान, सम्पति, यश और अन्य सभी भौतिक सुखसमृद्धि के साधन प्राप्त हो सकते है, पर विशेष रुप से इनकी उपासना सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव के संदर्भ में की जाती है। कालीजी की रुप रेखा भयानक है। देखकर सहसा रोमांच हो आता है। पर वह उनका दुष्ट दलन रुप है। भक्तों के प्रति तो वे सदैव ही परम दयालु और ममता मयी रहती है। उनकी पूजाके द्वारा व्यक्ति हर प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।

       लाल आसन पर कालीजी की प्रतिमा अथवा चित्र या यन्त्र स्थापित करके, लाल चन्दन, पुष्प तथा धूप दीप से पूजा करके मन्त्र जप करना चाहिए। नियमत रुप से श्रद्धापूर्वक आराधना करने वाले जनों को कालीजी (प्रायः सभी शक्ति स्वरुप)स्वप्न मे दर्शन देती है। ऐसे दर्शन से घबङाना नहीं चाहिए और उस स्वप्न की कहीं चर्चा भी नही चाहिए। कालीजी की पुजा में बली का विधान भी है। किन्त सात्विक उपासना की दृष्टि से बलि के नाम पर नारियल अथवा किसी फल का प्रयोग किया जा सकता है। वैसै, देवी – देवता मात्र श्रद्धा से ही प्रसन्न हो जाते है, ये भौतिक उपादान उनकी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते । कुछ भी न हो और कोई साधक केवल श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति ही करता रहे, तो भी वह सफल मनोरथ हो सकता है।हां विशेष साधना अनुष्ठान में कोई गलती अथवा त्रुटी नहीं होनी चाहिए |इनसे उग्र शक्ति ब्रह्माण्ड में नहीं है और त्रुटी को यह क्षमा नहीं करती |

ध्यान स्तुति-

खडगं गदेषु चाप परिघां शूलम भुशुंडी शिरः

शंखं संदधतीं करैस्तिनयनां सर्वाग भूषावृताम्।

नीलाश्मद्युतिमास्य पाद द्शकां सेवै महाकालिकाम्।

यामस्तौत्स्वपितो हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम्॥

जप मन्त्र-

ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः।

प्रार्थना-

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै ससतं नमः।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै निततां प्रणतां स्मताम्॥

श्री महाकाली यन्त्र

——————-

श्मशान साधना मे काली उपासना का बङा महत्व है। इसी सन्दर्भ मे महाकाली यन्त्र का प्रयोग शत्रु नाश, मोहन, मारण, उच्चाट्न आदि कार्यों में प्रयुक्त होता है। मध्य मे बिन्दू, पांच उल्ट कोण, तीन वृत कोण, अष्टदल वृतएवं भूरपुर से आवृत महाकाली का यन्त्र तैयार करे।

इस यन्त्र का पूजन करते समय शव पर आरुढ, मुण्ड्माला धारण की हुई, खड्ग, त्रिशूल, खप्पर व एक हाथ मे नर-मुण्ड धारण की हुई, रक्त जिह्वा लपलपाती हुईभयंकर स्वरुप वाली महाकाली का ध्यान किया जाता है। जब अन्य विद्यायें विफलहो जाती है तब इस यन्त्र का सहारा लिया जाता है।

             महाकाली की उपासना अमोघ मानी गई है। इस यन्त्र के नित्य पूजन से अरिष्टबाधाओं का स्वतः ही नाश होकर शत्रुओ का पराभव होता है। शक्ति के उपासकों केलिए यह यन्त्र विशेष फलदायी है। चैत्र, आषाढ, आश्विन एवं माघ की अष्टमी इसकी साधना हेतु सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है।………………हर हर महादेव


Discover more from Alaukik Shaktiyan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Latest Posts