Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

कालसर्प योग और भ्रम

 कालसर्प योग :: भ्रान्तियां और सामान्य प्रभाव

———————————————-

          कालसर्प योग आज के समय में ज्योतिष जगत और सामान्यजन में जाना-पहचाना नाम है |यह एक योग है जिसे आज दोष के रूप में परिभाषित किया जा रहा है और बहुत इसके नाम से डराया जाता है ,जबकि यह सभी अन्य ज्योतिषीय योगों की तरह एक योग है |चूंकि यह दो क्रूर और पापी ग्रहों के मध्य बनने वाला योग है अतः इसके दुष्प्रभाव तो होते ही हैं पर ऐसा भी नहीं की इससे ही सारी समस्याएं होती हों ,और इनका प्रभाव कम ही नहीं किया जा सकता |इसके कुछ दुष्प्रभाव हैं तो कुछ खासियतें भी हैं |मूल ज्योतिषीय शास्त्रों में कालसर्प दोष नामक कोई दोष नहीं लिखा |यह आधुनिक प्रचार है ,हाँ यह योग होता जरुर है पर यह ही सबसे घातक नहीं |

         कालसर्प योग जातक में जीवटता, संघर्षशीलता एवं अन्याय के प्रति लड़ने के लिए अदम्य साहस का सृजन करता हैं । ऐसे जातक अपने ध्येय की सिद्धी के लिए अद्भुत संघर्षशक्ति पाकर उसका दोहन कर सफल होते हैं एवं लोकप्रियता प्राप्त करते हैं । अध्यात्मिक महापुरूषों एवं राजनैतिज्ञों को यह योग अत्यंत रास आता हैं । राजयोग भी यह प्रदान करता हैं । जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसाय, कला, साहित्य, क्रीड़ा, फिल्म, उद्योग, राजनीति एवं आध्यात्मक के चरमोत्कर्ष पर इस योग वाले जातक पहुचे हैं । प्रथम भाव से द्वादश भाव तक बनने वाले अनंत कालसर्प योग से शेष नाग कालसर्प योग तक जातकों में विश्व क्षितिज के श्रेष्टतम महामानव शामिल हैं । उल्लेखनीय हैं कि स्वतंत्र भारत का जन्म भी कालसर्प योग में 15 अगस्त 1947 को हुआ था । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को भी कालसर्प योग था एवं नेहरू जी को शपथग्रहण का मुहूर्त निकालने वाले विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्य पद्मभूषण पं. सूर्य नारायण व्यास को भी कालसर्प योग था ।

           अतः कालसर्प योग से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैं विशेष रूप से कालसर्प योगधारी भारतवासी ज्योतिषीय सिद्धांतानुसार कि समान योग वाले व्यक्तियों में सामंजस्य एवं मित्रता होती हैं एवं वे एक दूसरे के पूरक होते हैं देश के सर्वश्रेष्ठ नागरिक साबित होते हैं यह तालिका में अनेक उदाहरणों द्वारा सुस्पष्ट हैं । राहू क्रूर ग्रह हैं इसे शनि के तुल्य गुणों वाला माना गया हैं शनि के समान इस ग्रह में भी वास्तव में राहू एवं केतु कोई ग्रहीय पिंड न होकर छाया ग्रह हैं । हमें ज्ञात हैं कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही हैं एवं चन्द्रमा पृथ्वी की । पृथ्वी के परिभ्रमण वृत्त के दो बिन्दु परस्पर विपरीत दिशा में पड़ते हैं इन्ही काटबिन्दुओं (छायाओं) को राहू एवं केतु नाम दिया गया हैं । चूॅकि इस सौर मण्डलीय घटना का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता हैं इसलिए ज्योतिषीय गणना में इसे स्थान देकर कुण्डली में अन्य आध्यात्मिक, राजनैतिक चिंतन दीर्घ विचार, ऊॅचनीच सोचकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती हैं ।

         राहू मिथुन राशि में उच्च एवं धनु राशि में नीच का होता हैं । कन्या इसकी मित्र राशि हैं । केतु इसके विपरीत धनु में उच्च एवं मिथुन में नीच का होता हैं । केतु मंगल के गुणों वाला परन्तु अपेक्षाकृत सौम्य ग्रह हैं । शनि, बुध एवं शुक्र राहू के मित्र एवं सूर्य, चन्द्र, मंगल शत्रु तथा गुरूसम हैं । जबकि मंगल केतु का मित्र सूर्य, शनि, राहू शत्रु एवं चन्द्र, बुध, गुरू सम ग्रह हैं । कालसर्प योग युक्त जातक की कुण्डली में सभी ग्रह राहू एवं केतु के मध्य एक ही ओर स्थित होते हैं। माना जाता हैं कि कालसर्प योग में राहू सर्प का सिर एवं केतु पूॅछ वाला भाग हैं । सभी अन्य ग्रह राहू के मुख में गटकाये जाने के कारण इस योग को विपरीत परिणाम का सृजनकर्ता कहा जाता हैं । 

कालसर्प योग के दुष्परिणाम

——————————–

विभिन्न प्रकार के दैहिक व मानसिक कष्ट भोगने पड़ते हैं। स्वास्थ्य प्राय: बिगड़ा रहता है।

पैतृक संपत्ति उसके जीवन में नष्ट हो जाती है या पैतृक संपत्ति उसे नहीं मिलती। मिलती भी है तो आधी-अधूरी।

भाइयों का जातक को सुख नहीं मिलता। कार्य-व्यवसाय में भाई-बंधु धोखा देते हैं।

जन्म स्थान से दूर जाकर जीविकोपार्जन करता है। भूमि-भवन का सुख नहीं मिलता है।

शिक्षा भरपूर लेकर भी उसका जीवन में उपयोग नहीं होता।

संतान से कष्ट पाता है। संतान निकम्मी व चरित्रहीन होती है।

आजीवन जातक संघर्ष करता रहता है। शत्रु भय निरंतर बना रहता है।

गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता। गृहकलह पीड़ा देता है। पत्नी मनोनुकूल नहीं मिलती।

भाग्य कभी साथ नहीं देता।

दु:स्वप्न वशात् अनिद्रा का रोग पाल लेता है।

कोर्ट-कचहरी, दावे-थाने के चक्कर लगाने पड़ते हैं। धन का नाश होता है।

मान्यता हैं कि पिछले जन्म में नागहत्या के कारण यह योग निर्मित होता हैं एवं इसी लिए ऐसे जातकों को सर्पभय हमेशा बना रहता हैं साथ ही स्वप्न में सर्प के दर्शन होते रहेते हैं । गोचर में कालसर्पयोग आने पर लगभग 15 दिवस तक यह सतत बना रहता हैं |

        आवश्यक नहीं हैं कि कालसर्पयोग व पितृदोष की शांति त्रयम्बकेश्वर में ही करवायी जावे  इसकी शांति जहा भी पवित्र नदीं बहती हो उसका किनारा हो, प्रतिष्ठित शिव मन्दिर हो वहा पर की जा सकती हैं । कालसर्प की शान्ति हेतु लोग त्रयम्बकेश्वर जाते हैं लेकिन पूरे शिव पुराण में कहीं नहीं लिखा कि त्रयम्बकेश्वर में ही कालसर्पयोग व पितृदोष की शांति की जाती हैं । लोग भ्रम में हैं व एक भेड़ चाल सी बन गई हैं कि त्रयम्बकेश्वर जाना हैं । त्रयम्बकेश्वर में यजमानों को कर्मकाण्डी मन्दिर नहीं ले जाकर घर में ही पितृदोष व कालसर्प योग की शांति करवा देते हैं जिससे यजमानों को पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती हैं । त्रयम्बकेश्वर द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक हैं वहा जाने से तो धर्म की प्राप्ति होती हैं न कि केवल कालसर्पयोग शांत होता हैं । ईश्वर में मनुष्य को दण्ड देने के लिए घातक योग बनाये हैं तो उसका उपचार भक्ति एवं मंत्रों के माध्यम से बताया भी हैं  उपचार से कालसर्प योग समाप्त तो नहीं होता हैं, और होने वाले कष्टों से पूर्ण मुक्ति भी नहीं मिलती हैं लेकिन 25 से 85 प्रतिशत तक राहत मिलने की सम्भावनाये रहती हैं ।

         इसकी शान्ति कराने से दुष्प्रभाव के प्रतिशत में कुछ कमी आ जाती है ,योग समाप्त नहीं होता और आजीवन कुछ न कुछ प्रभाव देता रहता है |जरुरी नहीं की उपरोक्त लिखे गए दुष्प्रभाव साथ मिलें पर इनमे से कुछ जरुर जीवन में आ जाते हैं क्योंकि लगभग ६ भाव कुंडली के खाली हो जाते हैं |काल सर्प योग होने पर संतान ,संपत्ति और सुख अथवा दाम्पत्य सुख में से एक की कमी देखि जाती है |काल सर्प की मात्र शान्ति करा देना ही इसका उपाय नहीं है अपितु इसके कारण एक विशेष प्रकार की गंभीर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव व्यक्ति पर हो जाता है |अधिक जरूरत उससे व्यक्ति को सुरक्षित रखने की होती है |शान्ति कराने से दुष्प्रभाव में कमी आती है किन्तु व्यक्ति पर ग्रहों का प्रभाव और व्यक्ति के गुण अवगुण नहीं बदलते क्योंकि उस पर इनके नकारात्मक प्रभाव आते हैं| उसमे व्यावहारिक और व्यक्तिगत कमियां उत्पन्न होती हैं जो खुद के लिए ही कष्टकारक बनती हैं |इन प्रभावों को रोकने की ही अधिक जरूरत होती है |लोग इस पर ध्यान नहीं देते और मात्र पूजा करा देना और शान्ति करा देना ही उपाय समझते हैं जिससे उन्हें लाभ कम समझ में आता है |……………………………………………हर-हर महादेव


Discover more from Alaukik Shaktiyan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Latest Posts