Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

नवग्रह दुष्प्रभाव रोधक कवच

सभी ग्रहों के दुष्प्रभाव निवारण का समग्र उपाय

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ज्योतिषीय उपाय और नवग्रह कवच /ताबीज

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           हर व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी ग्रह की प्रतिकूलता अवश्य आती है |कुछ के लिए कई ग्रह प्रतिकूल हो सकते हैं या दशा -अन्तर्दशा -गोचर के अनुसार एक साथ अनेक ग्रह प्रतिकोल्ल प्रभाव देने लगते हैं |कई लोगों के जीवन में कालसर्प योग ,मांगलिक योग ,विष योग ,विषधर योग ,पिशाच बाधा योग ,दरिद्र योग ,दाम्पत्य सुख बाधक योग होते हैं जिनमे से कुछ के जीवन में कई अनिष्टकारक योग भी होते हैं |इन योगों ,कष्टों ,ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए ,इसकी शान्ति के लिए कई तरह के उपाय किये जाते हैं ,जिनमे रत्न धारण करना ,वनस्पति धारण करना ,दान करना ,जप -हवन करना ,यन्त्र पूजा करना ,टोने -टोटके करना आदि आते हैं |यह या तो अधिक खर्चीले होते हैं या आम आदमी के लिए श्रम साध्य और दुष्कर होते हैं |केवल -रत्न या वनस्पति धारण करना ऐसा काम होता है जो व्यक्ति को सबसे अधिक सुविधा जनक होता है |अन्य सभी उपाय व्यक्ति के लिए इसलिए मुश्किल हो जाते हैं की उसकी सामान्य दिनचर्या इनसे प्रभावित होने लगती है |

          रत्नों का प्रभाव निश्चित रूप से होता है और यह ग्रहों के प्रभाव को बढ़ा देते हैं |इस प्रकार जो ग्रह कमजोर हो या अन्य ग्रह से पीड़ित हो किन्तु जातक [व्यक्ति ] के लिए शुभ हो उसके लिए रत्न धारण अच्छा होता है किन्तु जो ग्रह पापी हो ,कष्ट कारण हो ,बुरे योग बना रहा हो उसके लिए रत्न धारण उपयुक्त नहीं होता है ,क्योकि ग्रह की शक्ति बढने से वह और कष्टकारक हो जाएगा |रत्न से किसी ग्रह की शांति नहीं होती अपितु उसकी रश्मियों की मात्रा और ग्राह्यता व्यक्ति में बढ़ जाती है जिससे उस ग्रह को बल मिलता है |पूजा -पाठ और मन्त्र जप -हवन सबके बस का नहीं |इसके लिए विशेषज्ञता और जानकारी की जरूरत होने के साथ ही समय की भी आवश्यकता होती है |एकाग्रता और उपयुक्त ध्वनि उच्चारण आवश्यक तत्व होते हैं |रटते हुए जप का कोई प्रभाव नहीं होता ,उपर से उच्चारण दोष होने पर नुक्सान की भी संभावना होती है |यन्त्र पूजा और पूजा पाठ के अपने विधान होते हैं जिनका सम्यक पालन आवश्यक होता है |यह सब आज के आपाधापी के युग में सबके लिए कठिन हो जाता है |वनस्पति धारण करना ,टोने -टोटके प्राकृतिक ऊर्जा विज्ञानं हैं जिनकी एक निश्चित ऊर्जा होती है |यह काम करते हैं किन्तु जब ग्रहों के दुष्प्रभाव की शक्ति या ऊर्जा अधिक हो तब उसके अनुसार इन्हें करना या धारण करना होता है |कई ग्रहों के दुष्प्रभाव होने पर या कोई नैसर्गिक कुंडली का योग होने पर मात्र इनसे ग्रहों की शक्ति को संतुलित कर देना कठिन कार्य होता है |वनस्पति धारण हो या टोने -टोटके पूर्ण जानकारी और सावधानी की भी जरूरत होती है |वनस्पति या जड़ी निश्चित नक्षत्र -योग में निष्काषित और प्राण प्रतिष्ठित -अभिमंत्रित होनी चाहिए |

          दान -पशु /पक्षी सेवा और प्रवाह के अपने नियम होते हैं |वस्तु का किसी नदी या जल में प्रवाह तरंग विज्ञानं पर आधारित है जो व्यक्ति के हाथों की तरंगों और भावनाओं के साथ मानसिक शक्ति /अवचेतन पर कार्य करता है |दान में विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है |जिसे आप दान दे रहे हैं यदि उसने आपके दान के मूल्य से कोई गलत कार्य किया तो आप भी जिम्मेदार हो जाते हैं |यदि वह दुर्गण युक्त और व्यभिचारी या मांसाहारी या मद्यप है तो आपके दान का उल्टा प्रभाव हो जाता है और आप एक गलत व्यक्ति को बढ़ावा देने के जिम्मेदार हो जाते हैं |यह ऊर्जा विज्ञान है ,मात्र दान देकर हाथ झाड़ लेने से आपका उद्देश्य पूरा नहीं होता अपितु सही पात्र को दान देनें पर ही आपका उद्देश्य पूरा होता है |यह नहीं सोचा जा सकता की मैनें तो दान दे दिया ,वह उसका क्या करता है मुझे मतलब नहीं |आपके सोचने से कुछ नहीं होता ,यह ऊर्जा विज्ञानं है जो व्यक्ति के सत्कर्मों ,उसके आध्यात्मिक शक्ति ,सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद या कृतज्ञता के भाव से जुड़ा होता है |कलुषित व्यक्ति ,गलत आचरणकर्ता के सकारात्मक ऊर्जा नहीं होती ,भले वह धनवान और आडम्बरयुक्त हो अतः उसके आशीर्वाद में भी शक्ति नहीं होगी या भावना में भी कोई ऊर्जा नहीं होगी ,की आपका भला हो सके |पशु /पक्षी को चारा या अन्न देना भी इसी विज्ञानं का हिस्सा है जिससे ग्रह प्रभाव की शांति होती है |इन सभी की अपनी एक ऊर्जा होती है और यह निश्चित ऊर्जा स्तर तक ग्रह प्रभाव को संतुलित करते हैं |

          वर्षों के अनुभव के आधार पर हमने यह पाया की अक्सर उपाय करते समय एक ही प्रकार का उपाय उपाय किया जाता है ,चाहे वह ज्योतिष के रत्न आदि धारण करना हों या दान -प्रवाह ,पशु -पक्षी को अन्न देना या कर्मकांड के वैदिक हवन -पूजा -पाठ आदि हों या तंत्र के मंत्रादी का जप और टोने -टोटके ,वनस्पति धारण |विशेषज्ञता ,विशिष्टता और पूर्ण पद्धति के अनुसार किये गए उपाय प्रभावी होते हैं इसमें संदेह नहीं किन्तु अक्सर पूर्ण उपाय श्रमसाध्य और काफी खर्च कराने वाले साबित होते हैं उपर से इनमे सीधे प्रभावित व्यक्ति की संलिप्तता कम ही होती है जिससे उसे पूर्ण अंश कम ही मिल पाता है |यदि व्यक्ति एक से अधिक ग्रहों की प्रतिकूलता का सामना कर रहा हो तब तो उसके लिए उपाय करना और खर्च उठाना या सभी के मूल रत्न आदि धारण करना कठिन हो जाता है |कुछ स्थितियों में एक ही पूजा -शान्ति का खर्च इतना होता है की व्यक्ति वही नहीं करवा पाता |

           इन स्थितियों का विश्लेषण करते हुए हमने पाया है की यदि तीनों उपायों के यानी वैदिक ज्योतिषीय ,कर्मकाण्डीय और तंत्रोक्त पद्धतियों के कुछ अंशों को एक साथ समायोजित किया जाय तो ग्रहों की शुभता को बढ़ाया जा सकता है ,अनिष्ट कारक ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है ,साथ ही उन्हें अनुकूल और प्रसन्न भी रखा जा सकता है |इसके लिए हमने नवग्रह यन्त्र ,नवग्रहों के वैदिक वनस्पतियों के साथ नवग्रहों से सम्बन्धित और उन्हें प्रभावित करने वाले तांत्रिक जड़ी बूटियों को एक साथ सम्मिलित कर नवग्रहों के मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा करके ,जप -अभिमन्त्रण और हवन किया |इसके साथ कुछ अन्य वस्तुओं का संयोग किया जो की व्यक्ति की क्षमता का विकास कर सकें तथा उसकी नकारात्मकता को हटा सकें जो की पृथ्वी की शक्तियों के कारण उत्पन्न हो रही हों |यह वस्तुएं हमारे महाविद्या साधना में अभिमंत्रित की हुई थी जिससे यह महाविद्याओं की शक्ति से शक्तिकृत हो चुकी थी |इन्हें कवच में सम्मिलित करने पर यह कवच /ताबीज अद्भुत प्रभाव देने वाले साबित हुए |खुद पर और परिचितों पर प्रयोग करने के बाद इन्हें हमने बहुतों को प्रदान किया जिसके बहुत अच्छे परिणाम मिले |

             यह कवच नवग्रहों में से किसी के भी दुष्प्रभाव या कई के सम्मिलित दुष्प्रभाव को कम करने के साथ ही शुभद ग्रहों के प्रभाव को बढ़ा देता है जिससे उनकी पूर्ण शुभता मिलती है |इस कारण अनिष्ट कारक ग्रह का प्रभाव और कम हो जाता है |इसके साथ ही यदि कोई नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति पर हो तो वह भी दूर हो जाता है तथा व्यक्ति को भगवती की भी सुरक्षा मिलती है |इस कवच में नवग्रहों के भोजपत्र निर्मित यन्त्र ,उनकी ज्योतिषीय वनस्पतियाँ जैसे पीपल ,शमी ,अपामार्ग आदि ,उनसे सम्बन्धित तांत्रिक जड़ी बूटियों जैसे भारंगी ,अम्लवेत ,नागदौन के जड़ आदि को प्राण प्रतिष्ठित कर उन्हें तंत्रोक्त नवग्रहीय मन्त्रों से अभिमंत्रित किया गया होता है और तब इनमे अन्य वस्तुओं जो की भगवती की ऊर्जा को समाहित करती हों को सम्मिलित किया जाता है ताकि नवग्रहों पर भी प्रभाव पूर्ण हो और भगवती की भी शक्ति अलग से मिले |

            इस कवच /ताबीज का एक लाभ तो यह होता है की यह व्यक्ति के शरीर के सीधे संपर्क में होता है अर्थात सभी उर्जाओं ,शक्तियों ,वस्तुओं को व्यक्ति के शरीर के साथ जोड़ दिया जाता है जिससे उसे पूर्ण लाभ शीघ्र प्राप्त होता है ,इसके साथ इसकी ऊर्जा निश्चित रूप से प्राप्त होती है |दूसरा लाभ यह होता है की व्यक्ति को बार बार अलग अलग ग्रहों आदि के उपाय की बहुत जरूरत नहीं रहती और वह बड़े अनुष्ठानों पूजा -पाठ ,कर्मकांड से भी बचता है तथा खुद कुछ करने की जरूरत भी नहीं होती |तीसरा लाभ इससे यह होता है की इससे टोने -टोटके ,अभिचार ,किये कराये ,नजर दोष आदि से भी सुरक्षा हो जाती है |इस प्रकार यह एक साथ अनेकों उद्देश्य पूर्ण करता है |यह हमारे वर्षों के अनुभव की खोज है जिसके परिणाम बहुत अच्छे मिले हैं |यह सभी ग्रहों के प्रभाव को संतुलित करते हुए व्यक्ति को अपनी दिनचर्या में रखते हुए उसे लाभ प्रदान करता है |इससे सभी प्रकार के दोषों ,योगों में लाभ मिलता है |…………………………………………………………….हर हर महादेव 


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