Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

महामाया कवच

भुवनेश्वरी कवच

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         भगवती भुवनेश्वरी दस महाविद्या में से एक प्रमुख महाविद्या हैं |जिस प्रकार श्री विद्या त्रिपुरसुन्दरी सृष्टि की देवी हैं अर्थात सृष्टि उत्पन्न करती हैं और महाकाली उस सृष्टि के संहार की जिम्मेदारी उठाती हैं उसी तरह भुवनेश्वरी के अधीन समस्त जगत का पालन पोषण है |जैसे वेदों में विष्णु को पालन पोषण की जिम्मेदारी दी गयी है उसी तरह शक्ति साधना में भुवनेश्वरी इसकी अधिष्ठात्री हैं |इनका भी निवास मूल रूप से अनाहत चक्र ही माना जाता है और इन्हें विष्णु की शक्ति ,महामाया कहा जाता है ,यह मूल महालक्ष्मी स्वरूप हैं ,,और इन्ही का बीज ह्रीं माया बीज और देवी बीज कहा जाता है |इनकी साधना भगवान् राम ने लंका विजय के लिए की थी जब मेघनाथ आदि की माया से और उनकी तपस्या से राम की विजय कठिन हो रही थी |इनकी ही तपस्या जब रावण वंश कर रहा था तो विघ्न डाले गए और राम को इन्हें आराधित करना पड़ा ,अन्यथा राक्षसों की तपस्या पूर्ण होने पर राम की विजय मुश्किल थी |यह महामाया ही सारे प्रपंचों की अधिष्ठात्री हैं और इन्ही की शक्ति से विष्णु शक्तिमान हैं |इन्हें ही ऍ ह्रीं श्रीं से उपासित किया जाता है |

               भूवन अर्थात इस संसार की स्वामिनी भुवनेश्वरी, जो ‘ह्रीं’ बीज मंत्र धारिणी हैं, वे भुवनेश्वरी ब्रह्मा की भी आधिष्ठात्री देवी हैं। महाविद्याओं में प्रमुख भुवनेश्वरी ज्ञान और शक्ति दोनों की समन्वित देवी मानी जाती हैं। जो भुवनेश्वरी सिद्धि प्राप्त करता है, उस साधक का आज्ञा चक्र जाग्रत होकर ज्ञान-शक्ति, चेतना-शक्ति, स्मरण-शक्ति अत्यन्त विकसित हो जाती है। भुवनेश्वरी को जगतधात्री अर्थात जगत-सुख प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। दरिद्रता नाश, कुबेर सिद्धि, रतिप्रीती प्राप्ति के लिए भुवनेश्वरी साधना उत्तम मानी है है। इस महाविद्या की आराधना एवं दीक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की वाणी में सरस्वती का वास होता है। इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जो भुवनेश्वरी नहीं दे सकती |

           भुवनेश्वरी को आदिशक्ति और मूल प्रकृति भी कहा गया है। भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध हुई। भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है। इस महाविद्या की आराधना से सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्रकट होने लगती है। ऐसा व्यक्ति अच्छे राजनीतिक पद पर आसीन हो सकता है। माता का आशीर्वाद मिलने से धनप्राप्त होता है और संसार के सभी शक्ति स्वरूप महाबली उसका चरणस्पर्श करते हैं। इनकी कृपा साधना से प्राप्त होती है ,किन्तु जो लोग साधना न कर सकें वह ,भुवनेश्वरी साधक द्वारा प्राप्त कवच यन्त्र धारण करें तो भी इनकी कृपा उन्हें मिलती है क्योंकि कवच में साधक द्वारा भुवनेश्वरी कि शक्ति अवतरित कि हुई होती है |

१. भुवनेश्वरी कवच धारण से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है |सम्पत्ति में विशेष वृद्धि होती है |शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह बढने से आत्मबल और कार्यशीलता में वृद्धि होती है |कोशिका क्षय की दर कम होती है |व्यक्ति की सोच में परिवतन आता है ,उत्साह में वृद्धि होती है |नया जोश उत्पन्न होता है |

२. शारीरिक  उर्जा ,उल्लास ,जीवनी उर्जा की वृद्धि होती है तथा शारीरिक कमियां दूर होती हैं |कार्य क्षमता में वृद्धि ,-शक्ति में वृद्धि होती है तथा आलस्य -प्रमाद -एकाग्रता की समस्या में कमी आती है |अनजाने भय ,आशंका में कमी आती है |रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है |असाध्य और लम्बी बीमारी की सम्भावना कम हो जाती है |मानसिक स्वास्थय में सुधार होता है |बार हो रही स्वास्थ्य समस्या में कमी आती है |

३. परीक्षा ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |हीन भावना में कमी आती है ,खुद पर विश्वास बढ़ता है |एकाग्रता बढती है |शत्रु पराजित होते है ,मुकदमो में विजय मिलती है ,वाद विवाद में सफलता मिलती है |सर्वत्र विजय का मार्ग प्रशस्त होता है |

४. कर्मचारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,व्यक्तित्व का प्रभाव बढ़ता है |सम्मान प्राप्त होता है ,| आभामंडल की नकारात्मकता समाप्त होती हैं |शरीर का तेज बढ़ताहै,नौकरी ,व्यवसाय ,कार्य में स्थायित्व प्राप्त होता है | व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है |किसी भी व्यक्ति के सामने जाने पर सामने वाला प्रभावित हो बात मानता है और उसका विरोध क्षीण होता है |

५. मानसिक चिंता ,विचलन ,डिप्रेसन से बचाव होता है और राहत मिलती है |,पूर्णिमा -अमावस्या के मानसिक विचलन में कमी आती है |आप किसी तांत्रिक अभिचार ,टोने -टोटके ,किये -कराये का प्रभाव कम होता जाता है |आप पर बार बार टोने -टोटके हो रहे हों तो आपके ऊर्जा वृद्धि होने से उनका निष्प्रभावी होना शुरू हो जाता है ||नाकारात्मक उर्जा से प्रभावित हो रहे हों तो उसमे कमी आने लगती है क्योंकि सकारात्मक ऊर्जा संचार बढ़ जाता है |

६. किसी अभिचार /तंत्र क्रिया द्वारा अथवा किसी आत्मा आदि द्वारा शरीर को कष्ट मिलने से बचाव होता है |,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,पहले से कोई प्रभाव हो तो क्रमशः धीरे धीरे समाप्त हो जाती है |, तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,भविष्य की किसी संभावित क्रिया से सुरक्षा मिलती है |किये -कराये -टोने -टोटके की शक्ति क्रमशः क्षीण होते हुए समाप्त होती है |

७. पारिवारिक सुख ,दाम्पत्य सुख बढ़ जाता है |दाम्पत्य जीवन की संतुष्टि बढ़ जाती है दाम्पत्य प्रेम बढ़ता है |दम्पतियों के बीच शारीरिक कमियों में सुधार आता है |आपसी सम्बन्ध मधुर होते हैं |बीच की दूरियां ,मनमुटाव ,टकराव कम होते हैं |घर -परिवार में विघ्न -बाधाएं समाप्त होती हैं ,प्रसन्नता -उल्लास और खुशियों की वृद्धि होती है |आकस्मिक घटनाओं में कमी आती है तथा कर्म में सुधार होता है | बच्चे -पति -पत्नी अथवा परिवार का सदस्य का पारिवारिक मर्यादा -सम्मान के अनुसार आचरण में वृद्धि होती है |नैतिकता जाग्रत होती है और गलत से बचने की भावना का विकास होता है |

८.  मांगलिक ,पारिवारिक कार्यों में आ रही रुकावट दूर होती है |ग्रह बाधाओं का प्रभाव कम होता है |घर -परिवार में स्थित नकारात्मक ऊर्जा की शक्ति क्षीण होती है जिससे उसका प्रभाव कम होने लगता है |पारिवारिक सौमनस्य में वृद्धि होती है |पारिवारिक कलह ,विवाद कम हो जाता है तथा लोगों पर आकर्षक शक्तियुक्त प्रभाव पड़ता है | संतान अपेक्षित उन्नति करते हैं ,गलत आदतों के प्रति रूचि नहीं जगती ,लक्ष्य केन्द्रित होकर अपने भविष्य के प्रति सचेत होंने लगते हैं |

९. भुवनेश्वरी यन्त्र धारण से शारीरिक  उर्जा ,धन-संमृद्धि-संपत्ति ,साधन सम्पन्नता ,हिम्मत, साहस, बल, ओज, पौरुष, प्राप्त होता है , ,आय के नए स्रोत बनते है ,अकस्मात् धन प्राप्ति की सम्भावना बनती है, समृद्धि के नए रास्ते मिलते हैं |दुःख-दारिद्र्य .रोग-शोक, समाप्त होते हैं ,सुरक्षा प्राप्त होती हैं ,किसी प्रकार की अशुभता का शमन होता है ,सौभाग्य वृद्धि होती है ,ग्रह बाधा का शमन होता है ,रुकावटें दूर होती हैं ,विजय प्राप्त होती है ,यश-मान सम्मान-प्रतिष्ठा ,पुत्र पौत्रादि की उन्नति प्राप्त होती है ,कलह -कटुता का प्रभाव कम होकर खुशहाली प्राप्त होती है ,मानसिक शांति प्राप्त होती है |     अभाव समाप्त होते हैं फिर चाहे वह किसी भी क्षेत्र के हों और संतुष्टि की मात्र बढती है |

१०. आर्थिक-व्यावसायिक समस्याएं ,साझेदारी की समस्याएं ,मित्रों से अनबन ,धोखे जैसी स्थितियों में क्रमशः सुधार आने लगता है |सही समय सही निर्णय लेने की क्षमता वृद्धि होने से सार्वभौम उन्नति होती है | स्थायी -अस्थायी सम्पत्ति से सम्बन्धित विवाद का निवारण होता है |विवाद -प्रतियोगिता -प्रतिद्वंदिता में बुद्धि बल से विजय मिलती है | हानि की सम्भावना कम हो जाती है |

११. आय के स्रोतों में उतार-चढ़ाव कम हो जाता है , जिम्मेदारियों की पूर्ती होती है ,अनायास व्यय अथवा अपव्यय कम होने लगता है  |ऋण की स्थिति में सुधार होता है | डूबा धन ,दिया पैसा या उधार वापसी की सम्भावना बढती है | साझेदार ,मित्र -सहयोगी धोखा नहीं दे पाते क्योंकि एक तो व्यक्ति ही सावधान रहता है दुसरे व्यतित्व का प्रभाव बदल जाता है |

१२. कार्यक्षेत्र में स्थायित्व की वृद्धि होती है ,सम्मान बढ़ता है | अनिच्छित स्थानान्तरण जैसी स्थितियों में सुधार होता है क्योंकि अधिकारी वर्ग की संतुष्टता बढती है |सहयोगी कर्मचारी से सामंजस्य बढ़ता है |अपमानजनक स्थितियों ,अप्रिय स्थितियों से बचाव होता है और अपेक्षित उन्नति होती है |लोगों को नियंत्रित करने की क्षमता में वृद्धि होती है |अधीन कर्मचारी अवहेलना नहीं करते |समूह को नियंत्रित -आकृष्ट करना ,लोगों से इच्छानुसार कार्य कराना सरल हो जाता है क्योंकि आत्मबल और प्रभाव बढ़ जाता है |

१३. यह अवचेतन पर बहुत अच्छा कार्य करता है और व्यक्ति की नैतिकता ,सदाशयता ,प्रेम ,दया ,बड़ों के प्रति सम्मान ,माता -पिता के प्रति श्रद्धा ,समझ ,अपनी उन्नति -भलाई के प्रति सोच बढ़ा देता है जिससे व्यक्ति स्वयं जागरूक हो अपना -अच्छा बुरा ,समझने लगता है और धीरे -धीरे ऐसे कार्यों से विमुख होने लगता है जो उसके और घर -परिवार के लिए उचित न हों |यह कवच उसकी सुप्त शक्तियों को जाग्रत करने और उत्साह प्रदान करने में सक्षम है |यह आतंरिक परिवर्तन लाता है जिससे सोच ,कर्म बदलते हाँ फलतः उन्नति के नए मार्ग मिलते हैं |

१४. अनाहत चक्र की विकृति ,कमी का प्रभाव क्रमशः सुधरने लगता है ,इसकी अति सक्रियता अथवा कम सक्रियता से उत्पन्न दोषों में सुधार होता है |यन्त्र के साथ जुडी भगवती की ऊर्जा व्यक्ति के बिना कुछ किये उसके अनाहत को प्रभावित कर सुधार करती है |

१५. किसी पूजा -पाठ ,साधना -उपासना में त्रुटी हो गयी हो और कोई देवी -देवता रुष्ट हो गया हो अथवा ईष्ट अप्रसन्नता का सामना कर रहे हों तो उनका दुष्प्रभाव समाप्त होता है |भुवनेश्वरी मूल आदि शक्ति और महामाया है तो व्यक्ति राजातुल्य स्वभाव का लोगों का पालनहार बनता है और उसके इच्छित कार्य पूर्ण होते हैं |


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