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ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

विपरीत प्रत्यंगिरा कवच

विपरीत प्रत्यंगिरा कवच

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          जब सभी पूजा पाठ ,सामान्य उपाय ,सामान्य क्रियाएं असफल हो जाती हैं तब प्रत्यंगिरा विद्या का प्रयोग होता है | प्रत्यंगिरा विद्या की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यदि इसके साधक पर किसी भी शत्रु द्वारा भयंकरतम अभिचार प्रयोग किया गया हो तो यह विद्या उसे नष्ट कर डालती है |विपरीत प्रत्यंगिरा के रूप में यह विद्या शत्रु द्वारा संपादित अभिचार कर्म को दोगुने वेग से प्रयोगकर्ता पर ही वापिस लौटा देती है और वह यदि न सम्भाल पाया तो खुद नष्ट हो जाता है |प्रत्यंगिरा कवच और विपरीत प्रत्यंगिरा कवच में मूल अंतर यह है की प्रत्यंगिरा कवच रक्षात्मक ही जबकि वीपरीत प्रत्यंगिरा आक्रामक है |हमने आपको बताया है की कैसे प्रत्यांगीरा मन्त्र का गायत्र से संयोजन शत्रु को मृत्यु दे सकती है |प्रत्यंगिरा यन्त्र माता प्रत्यंगिरा का निवास माना जाता है जिसमे वह अपने अंग विद्याओ ,शक्तियों ,देवों के साथ निवास करती है ,अतः यन्त्र के साथ इन सबका जुड़ाव और सानिध्य प्राप्त होता है ,|प्रत्यंगिरा यन्त्र के अनेक उपयोग है ,यह धातु अथवा भोजपत्र पर बना हो सकता है ,पूजन में धातु के यन्त्र का ही अधिकतर उपयोग होता है ,पर सिद्ध व्यक्ति से प्राप्त भोजपत्र पर निर्मित यन्त्र बेहद प्रभावकारी होता है ,,धारण हेतु भोजपत्र के यन्त्र को धातु के खोल में बंदकर उपयोग करते है ,,जब व्यक्ति स्वयं साधना करने में सक्षम न हो तो यन्त्र धारण मात्र से उसे समस्त लाभ प्राप्त हो सकते है ,..

          भगवती प्रत्यंगिरा की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है ,शत्रु पराजित होते है ,सर्वत्र विजय मिलती है ,मुकदमो में विजय मिलती है ,अधिकारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,शत्रु का विनाश होने लगता है ,व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है ,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,वाद-विवाद में सफलता मिलती है ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |किसी भी अभिचार का प्रभाव कम हो जाता है |टोने -टोटके -नजर दोष प्रभावित नहीं कर पाती |वायव्य आत्माओं और बाधाओं का शरीर पर प्रभाव कम हो जाता है अथवा समाप्त हो जाता है ,,यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से भी प्राप्त होते है |जो लोग बार-बार रोगादि से परेशान हो ,असाध्य और लंबी बीमारी से पीड़ित हो अथवा बीमारी हो किन्तु स्पष्ट कारण न पता हो ,पूर्णिमा -अमावस्या को डिप्रेसन अथवा मन का विचलन होता हो उन्हें प्रत्यंगिरा यन्त्र धारण करना चाहिए |

           जिन्हें हमेशा बुरा होने की आशंका बनी रहती हो ,खुद अथवा परिवार के अनिष्ट की सम्भावना लगती हो ,अकेले में भय लगता हो अथवा बुरे स्वप्न आते हों ,कभी महसूस हो की कमरे में अथवा साथ में उनके अलावा भी कोई और है किन्तु कोई नजर न आये |कभी लगे कोई छू रहा है अथवा पीड़ित कर रहा है ,कभी कोई आभासी व्यक्ति दिखे अथवा आत्मा परेशान करे |कभी अर्ध स्वप्न में कोई छाती पर बैठ जाए ,लगे कोई गला दबा रहा है |किसी के साथ कोई शारीरिक सम्बन्ध बनाये किन्तु वह दिखाई न दे अथवा स्वप्न या निद्रा में ऐसा हो |बार -बार स्वप्न में कोई स्त्री -पुरुष दिखे जिससे दिक्कत महसूस हो |आय के स्रोतों में उतार-चढ़ाव से परेशान हो ,ऐसा लगता हो की किसी ने कोई अभिचार किया हो सकता है या लगे की कोई अपना या बाहरी अनिष्ट चाहता है तो ऐसे व्यक्तियों को भगवती प्रत्यंगिरा की साधना -आराधना-पूजा करनी चाहिए साथ ही सिद्ध साधक से बनवाकर काली यंत्र चांदी के ताबीज में धारण करना चाहिए |यदि साधना उपासना न कर सकें तो भी कवच अवश्य पहनना चाहिए |

            यन्त्र निर्माण प्रत्यंगिरा साधक द्वारा ही हो सकता है और इसकी शक्ति साधक की शक्ति पर निर्भर करती है |यन्त्र निर्माण के बाद इसकी तंत्रोक्त प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक होती है क्योंकि प्रत्यंगिरा तंत्र की शक्ति हैं |इसके बाद इसका अभिमन्त्रण प्रत्यंगिरा के मूल मंत्र से होता है |यहाँ साधक विशेष की जानकारी के अनुसार कवच में भगवती काली की ऊर्जा से सम्बन्धित वस्तुएं भी भरी जाती हैं चूंकि यह काली की ही स्वरुप हैं |यह यन्त्र यदि पूर्ण अभिमंत्रित है तो बेहद शक्तिशाली हो जाता है |इसका परीक्षण उच्च स्तर का साधक कर सकता है अथवा जिन्हें भूत -प्रेत जैसी कोई समस्या हो उसके हाथ में रखते ही इसका प्रभाव मालूम होने लगता है | यन्त्र निर्माण में तंत्रोक्त पद्धति का ही प्रयोग होता है ,सामान्य कर्मकांडी अथवा साधक इसे नहीं बना सकता ,न ही किसी अन्य महाविद्या अथवा देवी -देवता का साधक इसे निर्मित कर सकता है |इस प्रत्यंगिरा यन्त्र को जब विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र से अभिमंत्रीत किया जाता है तो यह विशेष मारक बन जाता है |विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र के बाद यह किये कराये ,तांत्रिक अभिचार ,टोने टोटके ,भूत प्रेत ,नकारात्मक शक्तियों से रक्षा तो करता ही है उन्हें वापस भी कर देता है |यहाँ यदि मन्त्र भी धारक जपे तो कोई भी क्रिया दुगने वेग से क्रीया करने वाले पर ही लौट जाती है और उसी को नष्ट कर देती है |

यन्त्र /कवच धारण से लाभ

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१. भगवती प्रत्यंगिरा की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है |शत्रु पराजित होते है ,शत्रु की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ,उसका स्वयं विनाश होने लगता है |शत्रु क्रमशः नष्ट होते जाते हैं |

३. ,मुकदमो में विजय मिलती है ,वाद विवाद में सफलता मिलती है |सर्वत्र विजय का मार्ग प्रशस्त होता है |

४.कार्य क्षेत्र में कर्मचारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,व्यक्तित्व का प्रभाव बढ़ता है |सम्मान प्राप्त होता है ,| आभामंडल की नकारात्मकता समाप्त होती हैं |शरीर का तेज बढ़ता है |

५. मानसिक चिंता ,विचलन ,डिप्रेसन से बचाव होता है और राहत मिलती है |,पूर्णिमा -अमावस्या के मानसिक विचलन में कमी आती है |

६.किसी अभिचार /तंत्र क्रिया द्वारा अथवा किसी आत्मा आदि द्वारा शरीर को कष्ट मिलने से बचाव होता है |यदि साथ में मंत्र जप भी इनका करें तो किया कराया ,टोना टोटका ,तांत्रिक अभिचार ,मारण ,मोहन ,उच्चाटन ,वशीकरण ,कृत्या ,मूठ आदि कोई भी क्रिया उसी व्यक्ति को दुगने वेग से वापस होकर मारती है जिसने इन्हें किया होता है |

७. पारिवारिक सुख ,दाम्पत्य सुख बढ़ जाता है | नौकरी ,व्यवसाय ,कार्य में स्थायित्व प्राप्त होता है | व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है |

८. कोई भी तांत्रिक क्रिया ,अभिचार ,टोना -टोटका ,कृत्या ,मूठ अथवा कितना भी भयंकर किया कराया हो सब नष्ट हो जाता है धीरे धीरे यदि पहले से हुआ है ,और यदि भविष्य में होता है तो उससे सुरक्षा कवच प्रदान करता है |

९.,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,पहले से कोई प्रभाव हो तो क्रमशः धीरे धीरे समाप्त हो जाती है |,तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,भविष्य की किसी संभावित क्रिया से सुरक्षा मिलती है |किये -कराये -टोने -टोटके की शक्ति क्रमशः क्षीण होते हुए समाप्त होती है |

१०. कोई भी संकट हो ,विपत्ति हो ,आपदा हो ,भय हो हर क्षेत्र में सुरक्षा प्राप्त होती है ,विजय का मार्ग प्रशस्त होता है |शत्रु कितना भी प्रबल हो विजय साधक और धारक की ही होती है |

११. ,परीक्षा ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |हीन भावना में कमी आती है ,खुद पर विश्वास बढ़ता है |एकाग्रता बढती है तथा उत्साह ,ऊर्जा में वृद्धि होती है |

१२. भूत-प्रेत-वायव्य बाधा की शक्ति क्षीण होती है ,क्योकि इसमें से निकलने वाली सकारात्मक तरंगे उनके नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास करते हैं और उन्हें कष्ट होता है |,उग्र देवी होने से नकारात्मक शक्तियां इनसे दूर भागती हैं और धारक के पास आने से कतराती हैं |किसी वायव्य बाधा का प्रभाव शरीर पर कम हो जाता है |

१४. मांगलिक ,पारिवारिक कार्यों में आ रही रुकावट दूर होती है |ग्रह बाधाओं का प्रभाव कम होता है |शनि -राहू -केतु के दुष्प्रभाव की शक्ति क्षीण होती है |

१५. यदि बंधन आदि के कारण संतानहीनता है तो बंधन समाप्त होता है |

१८. किसी भी व्यक्ति के सामने जाने पर सामने वाला प्रभावित हो बात मानता है और उसका विरोध क्षीण होता है |,पारिवारिक कलह ,विवाद कम हो जाता है तथा लोगों पर आकर्षक शक्तियुक्त प्रभाव पड़ता है |

१९. घर -परिवार में स्थित नकारात्मक ऊर्जा की शक्ति क्षीण होती है जिससे उसका प्रभाव कम होने लगता है |पारिवारिक सौमनस्य में वृद्धि होती है |

२१. स्थान दोष ,मकान दोष ,पित्र दोष ,वास्तु दोष का प्रभाव व्यक्ति पर से कम हो जाता है क्योकि अतिरिक्त ऊर्जा का संचार होने लगता है उसमे |

                यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से प्राप्त होते है |,यन्त्र में उसे बनाने वाले साधक का मानसिक बल ,उसकी शक्ति से अवतरित और प्रतिष्ठित भगवती की पारलौकिक शक्ति होती है जो वह सम्पूर्ण प्रभाव प्रदान करती है , ……………………………………………………..हर-हर महादेव


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