अप्सरा रम्भा :
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रम्भा का नाम कथाओं कहानियों में विशेष सुंदरी के तौर पर आता है |यह एक अप्सरा थी ,जिसे समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक रत्न बताया जाता है |कथाओं में कई रम्भाओं का उल्लेख मिलता है ,एक रम्भा समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थी और दूसरी कश्यप और प्राधा की पुत्री थी। क्या दोनों एक ही थीं, यह शोध का विषय हो सकता है। इसी तरह रम्भा के अन्य स्थानों पर उल्लेख भी मिलते हैं |यदि रम्भा के अस्तित्व को तंत्र जगत की अप्सरा नामक शक्ति के अनुसार परिभाषित करें तो सभी राम्भायें एक ही हो सकती हैं ,क्योकि अप्सरा एक ऊर्जा है जो धरती और आकाश के बीच के स्थान में होती है और इसमें शक्ति होती है की यह एक साथ कई स्थानों पर उपस्थित हो सके |यह एक पारलौकिक शक्ति होती है |किन्तु तार्किक और धार्मिक कथाओं में विश्वास रखने वालों के लिए यह मानना थोडा कठिन हो सकता है |कहानियों के अनुसार इन्द्र ने देवताओं से रम्भा को अपनी राजसभा के लिए प्राप्त कर लिया था। रम्भा अपने रूप और सौन्दर्य के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी। ‘महाभारत’ में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है। स्वर्ग में अर्जुन के स्वागत के लिए रम्भा ने नृत्य किया था। रम्भा नाम की अप्सरा कुबेर की सभा में थी। रम्भा कुबेर के पुत्र नलकुबेर के साथ पत्नी की तरह रहती थी। रम्भा-नलकुबेर के संबंध को लेकर रावण ने उपहास उड़ाया था। रावण द्वारा इस प्रकार व्यंग्य और उपहास करने के कारण नलकुबेर ने रावण को शाप दिया था कि ‘जा, जब भी तू तुझे न चाहने वाली स्त्री से संभोग करेगा, तब तुझे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा।’ माना जाता है कि इसी शाप के भय से रावण ने सीताहरण के बाद सीता को छुआ तक नहीं था। अन्य जगहों पर उल्लेख मिलता है कि रावण ने रम्भा के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया था जिसके चलते रम्भा ने उसे शाप दिया था।
अप्सरा उर्वशी :
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श्रीमद्भागवत के अनुसार यह उर्वशी स्वर्ग (हिमालय के उत्तर का भाग) की सर्वसुन्दर अप्सरा थी। एक बार इन्द्र की सभा में उर्वशी के नृत्य के समय राजा पुरुरवा (चंद्रवंशियों के मूल पिता) उसके प्रति आकृष्ट हो गए थे जिसके चलते उसकी ताल बिगड़ गई थी। इस अपराध के कारण इन्द्र ने रुष्ट होकर दोनों को मर्त्यलोक में रहने का शाप दे दिया था। मर्त्यलोक में पुरुरवा और उर्वशी कुछ शर्तों के साथ पति-पत्नी बनकर रहने लगे। इनके 9 पुत्र आयु, अमावसु, विश्वायु, श्रुतायु, दृढ़ायु, शतायु आदि उत्पन्न हुए। उर्वशी को इन्द्र बहुत चाहते थे।
माना जाता है कि नारायण की जंघा से उर्वशी की उत्पत्ति हुई है, लेकिन पद्म पुराण के अनुसार कामदेव के ऊरू से इसका जन्म हुआ था। उर्वशी तो अजर-अमर है। यही उर्वशी एक बार इन्द्र की सभा में अर्जुन को देखकर आकर्षित हो गई थी और इसने अर्जुन से प्रणय-निवेदन किया था, लेकिन अर्जुन ने कहा- ‘हे देवी! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं…।’ अर्जुन की ऐसी बातें सुनकर उर्वशी ने कहा- ‘तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं अतः मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम 1 वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे।’ ,इस कथा को पांडव वनवास में अर्जुन के नृत्य शिक्षक के रूप से सम्बंधित माना जाता है |इस तरह उर्वशी के संबंध में सैकड़ों कथाएं पुराणों में मिलती हैं।…………………………………………….हर हर महादेव
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