Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

कैसे सिद्ध होती हैं अप्सरा /यक्षिणी ?

कैसे सिद्ध होती हैं अप्सरा /यक्षिणी ?

——————————————-

        सामाजिक रूप से गृहस्थ जीवन में रहने वाला हर व्यक्ति हमेशा से यह चाहता रहा है की उसके साथ कोई अलौकिक शक्ति जुड़ जाय ,कोई पारलौकिक सहायता मिले ,उसकी क्षमता बढ़ जाय की वह अपने समस्त कष्टों से ,दुखिन से मुक्त हो जाय ,निरोग हो जाय ,सुखी रहे ,सम्पन्न रहे और धनवान रहे जिससे भोग विलास के साथ जीवन जिए |कुछ लोग इससे भी आगे सोचते रहे हैं की यह सब तो मिले ही उन्हें पारलौकिक शक्तियों से शारीरिक सुख भी मिले ,उनमे आकर्षण ,वशीकरण की शक्ति आये जिससे वह जिसे चाहें पा सकें ,कोई ऐसी शक्ति मिल जाय जिससे जितना धन चाहें पा जाएँ ,जितनी शक्ति चाहें मिल जाय ,ऐसी शक्ति मिले जिससे वह जो चाहें करवा सकें |इन्ही सब चाहतों नें ऐसी शक्तियों की प्राप्ति के मार्ग बनाये और लोग इन्ही चाहतों में अप्सरा ,यक्षिणी ,बेताल ,यक्ष ,गन्धर्व ,किन्नर-किन्नरी ,पिशाच ,पिशाचिनी ,भैरव आदि साधना करने लगे |

         यह वह शक्तियाँ हैं जो हमेशा स्थायी रूप से रहती हैं अर्थात इनकी जन्म मृत्यु नहीं होती |कुछ लोग इनमे कठिनाई पाने पर भूत -प्रेत ,ब्रह्म ,जिन्न आदि की भी साधना कर अपने काम निकालने लगे |इन साधनाओं में अप्सरा ,यक्षिणी ,यक्ष ,बेताल ,भैरव आदि उच्च शक्तियाँ होती हैं यद्यपि यह देवताओं और उनसे उपर की महाविद्याओं से काफी नीचे की शक्तियाँ हैं फिर भी मानव के भौतिक सभी उद्देश्य यह पूरे कर सकते हैं ,इसलिए इनकी साधना अधिकतर साधक ,तांत्रिक अपनी साधना को निर्विघ्न रखने और सुविधाएं जुटाने के लिए किया करते थे ताकि वह उच्च साधना भी करते रहें और उनकी सुरक्षा तथा भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती भी होती रहे |समयक्रम में सामान्य जनमानस इन्हें जान गया और वह भी इनकी साधना करने लगा किन्तु इनकी साधना में सबको सफलता नहीं मिलती क्योंकि अधिकतर इनकी साधना सीधे नहीं होती |आज अधिकतर लोग यह सोचते हैं की किताबों से या किसी गुरु से मंत्र लेकर निश्चित संख्या में जप कर लेंगे और अप्सरा ,यक्षिणी आदि सिद्ध हो जायेंगी ,कुछ लोग ऐसा करते भी हैं |

         कुछ गुरु लोग इनकी दूकान खोले भी बैठे हैं जो कुछ पैसे लेकर कुछ मंत्र और किताबों में लिखी विधि पकड़ा देते हैं |बहुत से लोग साधना करके हानि भी उठाते हैं जबकि सफलता अधिकतर को नहीं मिलती |कुछ लोगों को तो मानसिक ,या शारीरिक या आर्थिक हानि भी उठानी पडती है |कुछ लोगों का गृहस्थ जीवन तबाह हो जाता है |सोचने की बात है की आप किसी सामान्य महिला को तो साधारनतया नियंत्रित कर ही नहीं सकते ,आपके बुलाने से कोई सामान्य महिला आ जायेगी यही निश्चित नहीं होता तो यह तो बहुत उच्च शक्तियाँ हैं जिनके सामने आपकी कोई क्षमता ही नहीं तो क्या यह मात्र आपके मन्त्र रटने से आ जायेंगी और आपकी बात मानने लगेंगी |क्या आपके मात्र मन्त्र रटने से यह खुश हो जायेंगी और आपके वशीभूत हो जायेंगी |आपमें ऐसा क्या है जो यह आपके नियंत्रण में आ जायेंगी |सामान्य मानव तक किसी के नियंत्रण में नहीं रहना चाहता तो यह कैसे आपके नियंत्रण में रहना चाहेंगी |कोई भी शक्ति नियंत्रित करने की कोशिश पर तीव्र प्रतिक्रिया करती है और आपमें क्षमता नहीं तो आपका अहित कर देती है |किताबी कल्पनाओं से हकीकत की दुनिया अलग होती है |हम बार बार कहते आये हैं की किताबें लिखने वाला सुनी सुनाई लिखता है वह साधक नहीं होता और जो साधक होता है वह किताबें नहीं लिखता ,साथ ही मूल अनुभव किसी को नहीं बताता |

        किसी भी शक्ति को साधने के लिए पहले खुद को साधना होता है ,खुद को ऐसा बनाना होता है की कोई शक्ति आपसे जुड़े |यहाँ साधना का मतलब कसरत और व्यायाम नहीं की शरीर मजबूत कर लिया ,अपितु खुद की आतंरिक ऊर्जा को बढाना होता है |अप्सरा ,यक्षिणी आदि साधना से पहले भी उच्च शक्तियों की साधना करनी पड़ती है |उच्च शक्तियाँ बहुत अधिक समय लेती हैं तो उनकी विशिष्ट साधना करके पहले खुद को उर्जावान किया जाता है तब अप्सरा ,यक्षिणी साधना करके उन्हें वशीभूत किया जाता है |इनसे भौतिक कार्य सम्पन्न कराते हुए मूल उच्च शक्ति की साधना जारी राखी जाती है ताकि लम्बे समय तक सब कुछ सुचारू भी रहे और साधना सम्पन्न हो शक्ति मूल शक्ति की प्राप्त भी हो जाय |यही मूल उद्देश्य था अप्सरा यक्षिणी साधना का और इनकी साधना सिद्धि में यही सूत्र आज भी लागू होता है |इन सूत्रों पर न चलने वाले अथवा सीधे साधना करने वाले असफल हो जाते हैं |पहले श्यामा ,लघु श्यामा ,काली ,मातंगी जैसी साधनाएं करने के बाद ही अप्सरा ,यक्षिणी आदि की सिद्धि भी आसान होती है |अतः समझने की कोशिश कीजिये ,भ्रम मत पालिए ,सक्षम गुरु तलाशिये जो तकनिकी रूप से सक्षम हो और सूत्र जानता हो ,साथ ही जिससे आप समय समय पर मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें क्योंकि इन साधनाओं में कब क्या हो कोई नहीं जानता |अब हम आपको कुछ सूत्र और नियम भी बता देते हैं जो सामान्यतया अप्सरा ,यक्षिणी आदि की साधना में आवश्यक होते हैं |

अप्सरा साधना के नियम

==================

अप्सराये अत्यंत सुंदर और जवान होती हैं. उनको सुंदरता और शक्ति विरासत में मिली है. वह गुलाब का इत्र और चमेली आदि की गंध पसंद करती हैं। उनके शरीर से बहुत प्रकार की खुशबू आती महसूस हो सकती हैं. यह गन्ध किसी भी पुरुष को आकर्षित कर सकती हैं। वह चुस्त कपड़े पहनने के साथ साथ अधिक गहने पहना पसंद करती है. इनके खुले-लंबे बाल होते है। वह हमेशा एक 16-17 साल की लड़की की तरह दिखती है। दरअसल, वह बहुत ही सीधी होती है। वह हमेशा उसके साधक को समर्पित रहती है। वह साधक को कभी धोखा नहीं देती हैं। इस साधना के दौरान अनुभव हो सकता है, कि वह साधना पूरी होने से पहले भी दिखाई दे। अगर ऐसा होता है, तो अनदेखा कर दें। आपको अपने मंत्र जप को पूरा करना चाहिए जैसा कि आप इसे नियमित रूप से करते रहे हैं। कोई जल्दबाजी ना करे जितने दिन की साधना बताई हैं उतने दिन पुरी करनी चाहिए। काम भाव पर नियंत्रण रखे। वासना का साधना मे कोई स्थान नहीं होता हैं। अप्सरा परीक्षण भी ले सकती हैं। जब सुंदर अप्सरा आती है तो साधक सोचता है, कि मेरी साधना पूर्ण हो गई है। लेकिन जब तक वो विवश ना हो जाये तब तक साधना जारी रखनी चाहिए।

कई साधक इस मोड़ पर, अप्सरा के साथ यौन कल्पना में लग जाते है। यौन भावनाओं से बचें, यह साधना ख़राब करती हैं। जब संकल्प के अनुसार मंत्र जप समाप्त हो और वो आपसे अनुरोध करें तो आप उसे गुलाब के फूल और इत्र समर्पित करें । उसे दूध की बनी मिठाई, पान आदि भेंट दे। उससे वचन ले ले की वह जीवन-भर आपके वश में रहेगी। वो कभी आपको छोड़ कर नहीं जाएगी और आपक कहा मानेगी। जब तक कोई वचन न दे तब तक उस पर विश्वास नही किया जा सकता क्योंकि वचन देने से पहले तक वो स्वयं ही चाहती हैं कि साधक की साधना भंग हो जाये।

किसी भी साधना मैं सबसे महत्वपुर्ण भाग उसके नियम हैं. सामान्यता सभी साधना में एक जैसे नियम होते हैं. परतुं मैं यहाँ पर विशेष तौर पर यक्षिणी और अप्सरा साधना में प्रयोग होने वाले नियम का उल्लेख कर रहा हूँ ।

1. ब्रह्मचये : सभी साधना मैं ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं. सेक्स के बारे में सोचना, करना, किसी स्त्री के बारे में विचारना, सम्भोग, मन की अपवित्रा, गन्दे चित्र देखना आदि सब मना हैं, अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्ट को, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अलंकार युक्त अप्सरा या देवी आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं. और उसके शरीर में से ग़ुलाब जैसी या अष्टगन्ध की खुशबू आ रही हैं । साकार रुप मैं उसकी कल्पना करते रहो.

2. भूमि शयन : केवल जमीन पर ही अपने सभी काम करें. |जमीन पर एक कम्बल पर वस्त्र बिछा सकते हैं और बिछना भी चाहिए |आपके आसन और शयन के लिए उन के वस्त्र अथवा कम्बल सबसे अधिक उपयुक्त हैं |

3. भोजन : मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, लहसुन, प्याज आदि सभी का प्रयोग मना हैं. केवल सात्विक भोजन ही करें.

4. वस्त्र : वस्त्रो में उन्ही रंग का चुनाव करें जो देवता पसन्द करता हो.( आसन, पहनने और देवता को देने के लिये) (सफेद या पीला अप्सरा के लिये)

5. क्या करना हैं :- नित्य स्नान, नित्य गुरु सेवा, मौन, नित्य दान, जप में ध्यान- विश्वास, रोज पुजा करना आदि अनिवार्य हैं. और जप से कम से कम दो-तीन घंटे पहले भोजन करना चाहिए

6. क्या ना करें :- जप का समय ना बद्ले, क्रोध मत करो, अपना आसन किसी को प्रयोग मत करने दें, खाना खाते समय और सोकर जागते समय जप ना करें. बासी खाना ना खाये, चमडे का प्रयोग ना करें , साधना के अनुभव साधना के दोरान किसी को न बताएं (गुरु को छोडकर)

7. मंत्र जप के समय नींद् आना , आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, बक्वास, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना( पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना ), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना, पिछ्ले दिन के गन्दे वस्त्र पहनकर मंत्र जप करना, यह सब कार्य मना हैं (हर मंत्र की एक मुल ध्वनि होती हैं जिससे , मंत्र सिद्धि बहुत जल्द प्राप्त हो सकती हैं जो केवल गुरु से सिखी जा सकती हैं )अतः मंत्र की मूल ध्वनि में जप करें |

8. यादि आपको सिद्धि करनी हैं तो श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि “जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं”

9. एक सबसे महत्वपुर्ण कि आप जिस अप्सरा की साधना उसके बारे में यह ना सोचे कि वो आयेगी और आपसे सेक्स करेंगी क्योंकि वासना का किसी भी साधना में कोई स्थान नहीं हैं । बाद कि बातें बाद पर छोड दे । क्योंकि सेक्स में उर्जा नीचे (मुलाधार) की ओर चलती हैं जबकि साधना में उर्जा ऊपर (सहस्त्रार) की ओर चलती हैं ,आपकी भावना गलत होने पर आपकी उर्जा उठ नहीं पाएगी और आप वह शक्ति नहीं प्राप्त कर पायेंगे जो सिद्धि के लिए आवश्यक है |

10. किसी भी स्त्री वर्ग से केवल माँ, बहन, प्रेमिका और पत्नी का सम्बन्ध हो सकता हैं । यही सम्बन्ध साधक का अप्सरा या देवी से होता हैं।

11.यह सब वाक सिद्ध होती हैं । किसी के नसिब में अगर कोई चीज़ ना हो तब भी देने का समर्थ रखती हैं । इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए।

१२. कहने को तो शास्त्रों में अप्सरा सिद्धि के लिए मंत्र संख्या निर्धारित किये गए हैं किन्तु यह उस समय की बातें हैं जब सबकुछ प्रकृति के नियमों के अनुकूल था |आज की परिस्थिति में जब तक सिद्धि न हो जाय तब तक अनवरत मंत्र जप और साधना चलने देना ही श्रेयस्कर है |

१३. साधना समय विपरीत भाव ,विपरीत वस्तु ,विपरीत आचरण से बचें क्योंकि इन साधनाओं में न गलती की गुंजाइश रखनी चाहिए और न ही विपरीत आचरण की |कभी कभी विपरीत कर्म से नुक्सान भी होते हैं और आ रही ऊर्जा व्यतिक्रम पर असंतुलन उत्पन्न करती है |

१४ .कभी भी बिना गुरु के अर्थात यदि गुरु नहीं हैं अथवा तंत्र जानकार गुरु नहीं हैं तो इन साधनाओं को न करें |जब भी साधना करें गुरु की अनुमति से ,सभी प्रक्रिया समझकर और गुरु द्वारा प्रदत्त कवच धारण करके ही साधना करें |

१५. साधना समय अपनी सुरक्षा पर विशेष ध्यान दें क्योंकि वातावरण अथवा आसपास की शक्तियाँ पूजा और सुगंध से आकर्षित हो सकती हैं जिससे आपको परेशानी हो सकती है |………………………………………………………..हर-हर महादेव


Discover more from Alaukik Shaktiyan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Latest Posts