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कुलदेवता /कुलदेवी में कितनी शक्ति होती है ?

कुलदेवता /कुलदेवी में कितनी शक्ति होती है ?

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           हमारे पूर्वजों ने अलग अलग स्थान पर बसने पर अपने कुल वंश की रक्षा के लिए स्थानिक रूप से अनुकूल एक देवी देवता या शक्ति को स्थानीय रूप से उपलब्ध वस्तुओं को अर्पित करते हुए पूजना शुरू किया जिससे वह शक्ति उस कुल खानदान की रक्षा करे |कालान्तर में इन्हें कुलदेवता या कुलदेवी कहा जाने लगा |सामान्तया यह सभी शक्तियाँ स्थानिक शक्तियाँ थी जिनका सम्बन्ध शिव और काली परिवार से था |बाद में कही कहीं विष्णु , दुर्गा , कृष्ण आदि देवता भी विभिन्न वंशों में अलग अलग कुलों में मुख्य नाम से अथवा भिन्न नाम से पूजे गए | सामान्य तौर पर इनकी पूजा वर्ष के विशेष दिन में एक बार अथवा दो बार होती है . किन्तु कहीं कहीं इन्हें अलग तरीके से भी पूजा जाता है |मूल स्थानों पर जहाँ से इनकी पूजा शुरू हुई होती है वहां इनके मंदिर भी पाए जाते हैं.| विवाह , जन्म , आदि अवसरों पर परिवारों में इन्हें विशेष पूजा दी जाती है जबकि किसी की मृत्यु होने पर उस परिवार में उस वर्ष इनकी पूजा नही होती है |अलग परिवारों में अलग परम्परा स्थापित है पर यह न तो पितृ होते है न तो ब्रह्म , सती . वीर होते हैं ,न ही किसी अन्य धर्म के कोई देवता , गुरु , अथवा आत्मा होते है.| यह ईश्वर के ही स्वरूप होते है जिनका स्थानिक रूप से नाम कुछ भी हो सकता है |.

        आपको ,हमको ,सबको मालूम है कि हम सभी विभिन्न ऋषियों के वंशज हैं ,इन्ही ऋषियों के नाम पर हमारे गोत्र होते हैं |कुलदेवता प्रत्येक वंश के उत्पत्ति कर्ता ऋषि के वह आराध्य हैं जिनकी आराधना उन्होंने अपने वंश की वृद्धि और रक्षा के लिए अपने वंश के लिए उपलब्ध सामग्रियों के साथ अपने लिए उपयुक्त समय में की थी |यह कुलदेवता हर ऋषि के लिए अलग -अलग थे जो उनके प्रकृति और गुणों के अनुकूल थे |ऋषि अलग अलग स्थानों पर रहते थे ,अलग अलग विशिष्टता रखते थे अतः उनके स्थान पर अलग अलग सामग्रियां उपलब्ध थी ,अलग कर्म थे ,उन्होंने अपने स्थान पर उपलब्ध सामग्री से ,अपने कर्म के अनुसार शक्ति का चयन किया और पदार्थ अर्पित किये जिनसे विशेष उर्जा उत्पन्न होती थी और उस आराध्य शक्ति को बल मिलता था ,प्रसन्नता मिलती थी और वह शक्ति उस पूजा करने वाले ऋषि तथा उसके कुल ,वंश की रक्षा करती थी |आज भी उस ऋषि और वंश के लोग जहाँ कहीं भी हों उनको उन्ही सामग्रियों से उसी तरीके से अपने कुलदेवता की पूजा करनी होती है क्योंकि उनके कुलदेवता को वाही पसंद होता है ,न तो अलग पदार्थ अर्पित किये जा सकते हैं नही अलग पूजा पद्धति अपनाई जा सकती है ,इसीलिए किसी और की पूजा पद्धति और चढ़ाए जाने वाले पदार्थ किसी दुसरे के कुलदेवी या कुलदेवता के अनुकूल नहीं होते |

   कुलदेवता /देवी वह सेतु हैं जो व्यक्ति /वंश और ब्रह्माण्ड की ऊर्जा में समन्वय का काम करते हैं साथ ही यहाँ की स्थानिक शक्तियों से सुरक्षा भी करते हैं |व्यक्ति सीधे ईष्ट या परम ऊर्जा या ब्रह्मांडीय ऊर्जा तक नहीं पहुँच सकता लौकिक रूप से जब तक की एक निश्चित उच्च अवस्था तक न पहुँच जाए |उस उच्च अवस्था तक जाने के लिए भी इन देवता की आवश्यकता होती है साथ ही परिवार की सुरक्षा -सम्वर्धन के लिए भी इनकी आवश्यकता होती है चूंकि ब्रह्माण्ड की उच्च ऊर्जा व्यक्ति से तो जुड़ सकती है पर पूरे परिवार से नहीं जुडती जब तक की कोई उस योग्य न हो |कुलदेवता /देवी पूरे परिवार /वंश से जुड़े होते हैं |यह वह बैंक हैं जो मुद्रा विनिमय जैसी क्रिया कर आपके द्वारा प्रदत्त मुद्रा अर्थात पूजन -भोज्य -अर्पित पदार्थ को बदलकर आपके पितरों तक ,आपके ईष्ट तक पहुंचाते हैं |यह वह चौकीदार हैं जो आपके वंश की ,परिवार की ,व्यक्ति की सुरक्षा २४ घंटे और १२ महीने करते हैं ताकि आपको किसी नकारात्मक ऊर्जा से कष्ट न हो |

           कुलदेवता या कुलदेवी जिनकी स्थापना हमारे पूर्वज ऋषियों ने हमारे कुल की सुरक्षा के लिए की उनकी शक्ति की कोई सीमा नहीं होती किन्तु हमारे लिए उनकी शक्ति कितना काम करेगी या वह हमारी कितनी शक्ति से सुरक्षा करेंगे यह कुछ तथ्यों पर निर्भर करता है |आपकी पीढ़ियों में पारंपरिक रूप से लगातार कुलदेवता या कुलदेवी की पूजा होती आ रही और आपकी पिछली तीन पीढ़ियों से अगली तीन पीढ़ियों तक कोई भी कुल परंपरा के विरुद्ध कार्य नहीं हुआ अथवा आपके पित्र असंतुष्ट नहीं हैं तो आपके कुलदेवता या देवी आपकी पूर्ण शक्ति से सुरक्षा करते हैं ,वंश का संवर्धन करते हैं उन्नति में सहायक होते हैं |जितनी अधिक इनकी पारंपरिक विधि से पूजा होती जाती है इनकी शक्ति बढती जाती है ,ऐसा कुल -खानदान सुरक्षित और उन्नतिशील होता है |

            यदि किसी कुल /खानदान में पिछली तीन पीढ़ियों से लेकर अगली तीन पीढ़ियों के बीच के सदस्यों द्वारा कोई भी कुल /वंश परंपरा के विरुद्ध कार्य हुआ हो तो कुलदेवता रुष्ट भी हो सकते हैं या वह पूर्ण सुरक्षा न दे रहे हों ऐसा हो सकता है |अंतरजातीय या अंतर्धार्मिक विवाह ,ब्रह्म हत्या ,गौ हत्या ,परंपरा अनुसार पूजन न करना ,विशेष अवसरों पर कुलदेवी /देवता को याद न रखना ,पित्रों को तृप्त न करना ,किसी आत्मिक शक्ति की पूजा करना ,गैर धर्म के ईष्ट को स्थान देना आदि कुछ ऐसे कार्य हैं जो कुलदेवता को असंतुष्ट करते हैं और वह अपनी सुरक्षा पूर्ण नहीं प्रदान करते |आप भले सबकुछ नियमासुसार कर रहे हों किन्तु खानदान में तीन पीढ़ी आगे पीछे किसी द्वारा की गई गलती पूरे खानदान पर प्रभाव डालती है |पिता या पुत्र द्वारा की गई गलती पिता या पुत्रों को सीधे प्रभावित करती है जबकि खानदान के अन्य लोगों को थोडा कम |एक बार असंतुष्ट या रुष्ट हुए कुलदेवता /देवी को प्रसन्न करने में वर्षों लगते हैं |

          इसी तरह जो व्यक्ति सीधे खानदान की परंपरा और संस्कार के विरुद्ध कार्य करता है कुलदेवता या देवी उसका साथ हमेशा के लिए छोड़ देते हैं |एक बार छूते हुए कुलदेवी /देवता की कृपा पाने में वर्षों लग सकत हैं जबकि गलती सुधार भी ली जाए |आपके वंश या कुल में कोई अन्य जाती धर्म से आया हुआ सदस्य आपके कुलदेवता या देवी की पूजा करता है तो वह इसे स्वीकार नहीं करते ,यहाँ तक की आपके ही कुल की विवाहित कन्याओं से भी जिनका विवाह अन्य गोत्र में हो गया हो उनसे भी कुलदेवता या देवी पूजा स्वीकार नहीं करते |इस तरह शक्ति होते हुए भी कुलदेवता सुरक्षा नहीं करते ,आपकी पूजा आपके ईष्ट तक नहीं जाती और वह व्यर्थ होने लगती है |पित्र और कुलदेवता /देवी पारंपरिक मूल्यों ,संस्कार और परंपरा से जुड़े होते हैं अतः इनकी पूजा उसी अनुसार होनी चाहिए ,इनकी कृपा तभी मिलती है जब सबकुछ सही रखा गया हो |……………………………..हर हर महादेव


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