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विष्णु भगवान के २४ अवतार

भगवान् विष्णु और उनके २४ अवतार

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          चराचर जगत के पालनकर्ता ‘श्री विष्णु, श्री हरि, श्री नारायण’ इत्यादि नामों से विख्यात हैं तथा कमला या लक्ष्मी देवी के पति हैं। आद्या शक्ति काली, सात्विक स्वरूप में साक्षात् श्री हरि में विद्यमान योगमाया या महामाया हैं, सर्वदा क्षीर सागर के मध्य, शेष नाग की शय्या पर शयन करने वाले श्री विष्णु, से जो तामसी तथा संहारक शक्ति उत्पन्न होती हैं, वे योगमाया या महामाया ही हैं तथा भगवान विष्णु की शक्ति हैं। विष्णु शब्द का अर्थ उपस्थित होने से हैं, जो सर्वदा सभी तत्वों तथा स्थानों में व्याप्त हैं वही विष्णु हैं, परिणामस्वरूप हिन्दू धर्म के अंतर्गत, ब्रह्माण्ड के प्रत्येक तत्व या कण में परमेश्वर की अनुभूति की जाती हैं। भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ पक्षी हैं तथा जगत पालन का कार्य-भार इन्हीं का हैं। देवताओं तथा चराचर श्रृष्टि की रक्षा हेतु, श्री विष्णु ने २३ अवतार धारण किये, शास्त्रों के अनुसार श्री विष्णु, २४ अवतार धारण करेंगे, जिनमें अंतिम २४वा कल युग के अंत में होगा।

             विष्णु के ध्यान मंत्र के अनुसार, यह अतिशय शांत प्रकृति वाले, शेषनाग की शय्या पर शयन करने वाल, नाभि में पद्म या कमल युक्त, देवतओं के ईश्वर हैं, सम्पूर्ण जगत के आधार, गगन या आकाश के अनुसार सर्वव्यापी, मेघ वर्ण के समान जिनका शारीरिक वर्ण तथा सम्पूर्ण अंग सुन्दर हैं। जिन्हें योगियों द्वारा ध्यान करने पर प्राप्त करते हैं, जन्म तथा मृत्यु रूपी पाश का नाश करने वाले तथा सम्पूर्ण जगत के स्वामी या पति, लक्ष्मी-पति, कमल के समान नेत्रों वाले श्री विष्णु को में प्रणाम करता हूँ।

            सामान्यतः इनका स्वरूप चार भुजाओ से युक्त हैं, श्री विष्णु या श्री नारायण चतुर्भुज स्वरूप में विख्यात हैं। अपनी चार भुजाओ में शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण करते हैं। शंख, ज्ञान का प्रतिक हैं, जो सृष्टि सञ्चालन का मूल तत्व हैं, चक्र का अभिप्राय माया से हैं, गदा परमेश्वर की व्यापक शक्ति से हैं तथा सृष्टि का कारण हैं, चराचर सृष्टि की उत्पत्ति पद्म से ही हैं। वैकुंठ में निवास करने तथा स्वामी होने के परिणामस्वरूप इन्हें वैकुंठ पति भी कहा जाता हैं। वैष्णव संप्रदाय इन्हीं के सिद्धांतों पर आधारित हैं, जिसके अंतर्गत सत्व गुण प्रधान हैं। सत्य के पथ का अनुसरण, अहिंसा, पवित्रता, स्वच्छता, सात्विक आचार विचार का पालन, वैष्णव सिद्धांत या संप्रदाय का मुख्य उद्देश्य हैं। चराचर जगत के पालन कर्ता के पद पर श्री हरि विष्णु आसीन हैं तथा सत्व गुण सम्पन्न हैं। वैकुंठ तथा गो-लोक के स्वामी श्री विष्णु ही हैं, जो सर्वोच्च स्थान माने जाते हैं। इन्हें दुःख या संकट हर्ता भी कहाँ जाता हैं, परिणामस्वरूप इन्हें ‘हरि’ नाम से जाना जाता हैं। महाभारत में गीता का उपदेश इन्हीं, श्री हरि के सोलह कला अवतार श्री कृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को दिया, जिसका मुख्य उद्देश, दुविधा में पड़े हुए मनुष्यों का मार्गदर्शन करना हैं। अर्जुन, गीता के उपदेश के पश्चात् ही, युद्ध के लिए पुनः तैयार हुआ तथा गीता संवाद के अंतर्गत श्री कृष्ण ने अपना विश्वरूप दिखाया, जिसके अंतर्गत श्री कृष्ण के शारीर में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाया हुआ था।

भगवान विष्णु के २४ अवतारों का वर्णन।

१. सनक, सनन्दन, सनातन एवं सनत कुमार अवतार : ब्रह्मा जी के घोर ताप से प्रसन्न हो उनके चार पुत्रों के रूप में अवतार धारण किया तथा प्रलय काल में लुप्त हुए ज्ञान को पुनः ऋषियों को प्रदान किया। 

२. वराह अवतार : जल प्रलय के समय पृथ्वी को अपने दांतों से अडिग रख रक्षा की तथा हिरण्याक्ष नामक दैत्य का संहार किया। 

३. नारद अवतार : ब्रह्मा जी के मानस पुत्र, कठिन ताप कर देवताओं के ऋषि देवर्षि पद प्राप्त करने वाले, लोक कल्याण के हेतु सर्वदा प्रयत्न शील।

४. नर-नारायण अवतार : तपस्वी स्वरूप में धर्म की रक्षा हेतु।

५. कपिल अवतार : सांख्य योग का उपदेश दिया।

४. दत्तात्रेय अवतार : योग का उपदेश।

७. सुयज्ञ अवतार : देवताओं के अनेक संकट दूर किये, कष्ट हरे तथा हरि नाम से विख्यात हुए।

८. ऋषभदेव अवतार : जैन धर्म के प्रवर्तक।

९. पृथु अवतार : आदिराज पृथु, राजा वेन की भुजाओं के मंथन से अवतरित तथा धर्मानुसार राज्य का पालन।

१०. मत्स्य अवतार : सृष्टि को प्रलय से बचाने हेतु या प्रलय कल में सत्यव्रत के नाव की रक्षा।

११. कूर्म अवतार : समुद्र मंथन के समान, कूर्म या कच्छप अवतार धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया।

१२. धन्वन्तरि अवतार : समुद्र मंथन में अमृत कलश के साथ प्रकट हुए तथा समस्त औषधियों के स्वामी।

१३. मोहिनी अवतार : असुरो से अमृत कलश ले देवताओं को अमृत पण करने वाली देवी।

१४. नृसिंह अवतार : हिरण्यकशिपु दैत्यराज का वध कर अपने भक्त प्रह्लाद को बचाना।

१५. वामन अवतार : महाराजा बलि से तीनो लोको को वापस ले देवताओ को प्रदान करना।

१६. हयग्रीव अवतार : मधु तथा कैटभ का वध कर, वेदों को पुनः प्राप्त कर ब्रह्मा जी को देना।

१७. श्रीहरि या ग्राह अवतार : गजेंद्र की स्तुति सुनकर, मगरमच्छ से गजेन्द्र की रक्षा करना।

१८. परशुराम अवतार : सहस्त्रबाहु सहित समस्त क्षत्रियों का वध।

१९. महर्षि वेदव्यास अवतार : वेदों के विभाग तथा पुननिर्माण, महाभारत की रचना।

२०. हंस अवतार : मोक्ष प्राप्ति हेतु, सनकादि मुनियों के संदेह का निवारण किया।

२१. श्रीराम अवतार : रावण के संहार सहित, अन्य राक्षसों का वध तथा धर्म रज की स्थापना।

२२. श्रीकृष्ण अवतार : द्वापर युग में समस्त अधर्मियों का नाश।

२३. बुद्ध अवतार : दैत्यों की शक्ति बहुत अधिक बढ़ने पर उनकी शक्तिओ को क्षीण करने हेतु।

२४. कल्कि अवतार : अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना तथा सत्य युग में पुनः जाना।

अधिकतर अवतारों की अवधारणा भगवान् विष्णु से जुडी है क्योकि इन्हें सृष्टि का पालन करता माना जाता है |पालन कर्ता ही धर्म -अधर्म ,संस्कार -संस्कृति के लिए भी उत्तरदाई होता है अतः धर्म स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए ही अधिकतर इनके अवतार हुए हैं |कुछ अवतार संस्कार ,संस्कृति सिखाने और रास्ता दिखाने के लिए हुए हैं तो कुछ आदर्श स्थापित करने के लिए |कुछ प्रेम -भक्ति -सद्भाव उत्पन्न करते हैं तो कुछ समस्या निवारण करते हैं |लगभग सभी अवतार जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े हैं |अन्य देवताओं के भी स्वरुप यद्यपि मिलते हैं किन्तु जितनी समग्रता सांसारिक दृष्टि से विष्णु जी के अवतारों में है उतनी अन्य में नहीं रही क्योकि यह पालन कर्ता रहे हैं और अन्य ने समस्या विशेष के कारण खुद को अवतरित किया है |यही कारण है की हिन्दू और आर्य सामाजिक संरचना में विष्णु भगवान् को मुख्या स्थान प्राप्त है |………………………………………………………………….हर-हर महादेव


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