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अमावश्या -पूर्णिमा को मन विचलित क्यों होता है ?

 :::::पूर्णिमा और अमावस्या :::::

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  वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण दिन और रात हैं जिनका धरती और मानव मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें से ही माह में पड़ने वाले दो दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं- पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और अमावस्या के प्रति बहुत से लोगों में डर है। खासकर अमावस्या के प्रति ज्यादा डर है। वर्ष में बारह  पूर्णिमा और बारह अमावस्या होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार माह के तीस दिन को चन्द्र कला के आधार पर पंद्रह-पंद्रह दिन के दो पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या।

  शुरुआत से गिनें तो तीस तिथियों के नाम  पूर्णिमा , प्रतिपदा , द्वितीया , तृतीया , चतुर्थी , पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , एकादशी , द्वादशी , त्रयोदशी , चतुर्दशी  और अमावस्या  हैं।इनमे से पूर्णिमा और अमावस्या के अतिरिक्त अन्य का अमावस्या अथवा पूर्णिमा के बाद पुनरावर्तन होता है अर्थात इन दोनों के बाद अन्य सभी फिर से क्रमशः १४ दिनों तक आते रहते हैं |पूर्णिमा के बाद से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष और अमावस्या के बाद के पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष होता है | अमावस्या पंचांग के अनुसार माह की तीसवीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन कि चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता।चन्द्रमा की पंद्रह कलाएं अमृत ,मनदा ,पुष्प ,पुष्टि ,तुष्टि ,धृति ,शाशनी ,चन्द्रिका ,कान्ति ,ज्योत्सना ,श्री ,प्रीति ,अन्गदा ,पूर्ण और पूर्णामृत हैं ,इसी को प्रतिपदा ,दूज आदि पंद्रह दिनों के नाम से दोहराया जाता है |प्रत्येक कला आपके जीवन पर भिन्न तरह का प्रभाव डालती है |हर माह की पूर्णिमा और अमावस्या को कोई न कोई पर्व अवश्य मनाया जाता ताकि इन दिनों व्यक्ति का ध्यान धर्म की ओर लगा रहे। इसके वैज्ञानिक कारणों से इन्हें धर्म से भी सम्बंधित किया गया है |

                    धरती पर मुख्यतया दो तरह की शक्तियां होती हैं- सकारात्मक और नकारात्मक, इसी तरह दिन के दो तरह की प्रकृति होती है  दिन और रात,प्रकाश और अँधेरा ,दो तरह के गुण होते हैं अच्छा और बुरा आदि। हिन्दू धर्म के अनुसार धरती पर उक्त दोनों तरह की शक्तियों का वर्चस्व सदा से रहता आया है। हालांकि कुछ मिश्रित शक्तियां भी होती हैं, जैसे संध्या होती है तथा जो दिन और रात के बीच होती है। उसमें दिन के गुण भी होते हैं और रात के गुण भी। इन प्राकृतिक और दैवीय शक्तियों के कारण ही धरती पर भांति-भांति के जीव-जंतु, पशु-पक्षी और पेड़-पौधों, निशाचरों आदि का जन्म और विकास हुआ है। इन शक्तियों के कारण ही मनुष्यों में देवगुण और दैत्य गुण होते हैं। हिन्दुओं ने सूर्य और चन्द्र की गति और कला को जानकर वर्ष का निर्धारण किया गया। 1 वर्ष में सूर्य पर आधारित 2 अयन होते हैं- पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। इसी तरह चंद्र पर आधारित 1 माह के 2 पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। इनमें से वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं, तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य और पितर आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। अच्छे लोग किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात में नहीं करते जबकि दूसरे लोग अपने सभी धार्मिक और मांगलिक कार्य सहित सभी सांसारिक कार्य रात में ही करते हैं।

             पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं। चांद का धरती के जल से संबंध है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्‍त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है।

             जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में उपापचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्‍ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। ऐसे व्यक्‍तियों पर चन्द्रमा का प्रभाव गलत दिशा लेने लगता है। इस कारण पूर्णिमा व्रत का पालन रखने की सलाह दी जाती है। पूर्णिमा के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, पूर्णिमा और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है।

             वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है। अमा‍वस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए।  ज्योतिष में चन्द्र को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं, उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। लड़कियां मन से बहुत ही भावुक होती हैं। इस दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।

            धर्मग्रंथों में चन्द्रमा की 16वीं कला को ‘अमा’ कहा गया है। चन्द्रमंडल की ‘अमा’ नाम की महाकला है जिसमें चन्द्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। शास्त्रों में अमा के अनेक नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। अमावस्या के दिन चन्द्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है, तब इसे ‘कुहू अमावस्या’ भी कहा जाता है। अमावस्या माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और चन्द्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक ही राशि में रहते हैं। अमावस्या के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, अमावस्या और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है।

पूर्णिमा

चैत्र की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है।

वैशाख की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है।

ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री मनाया जाता है।

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू-पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इसी दिन कबीर जयंती मनाई जाती है।

श्रावण की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन का पर्व मनाया जाता है।

भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन उमा माहेश्वर व्रत मनाया जाता है।

अश्विन की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

कार्तिक की पूर्णिमा के दिन पुष्कर मेला और गुरुनानक जयंती पर्व मनाए जाते हैं।

मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है।

पौष की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। जैन धर्म के मानने वाले पुष्यभिषेक यात्रा प्रारंभ करते हैं। बनारस में दशाश्वमेध तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

माघ की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती, श्री ललित और श्री भैरव जयंती मनाई जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्व है।

फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है।

          अमावश्या पूर्णिमा को ध्यान करने से लाभ होता है |इस दिन तुलसी के पत्ते या विल्व पत्र नहीं तोड़ना चाहिए |जिनकी जन्म कुंडली में चन्द्रमा किसी भी प्रकार से सीधे लग्न को प्रभावित कर रहा हो अथवा चन्द्रमा लग्नेश बनता हो उन्हें पूर्णिमा अमावश्या को विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है ,उन्हें कुछ लाभ तो कुछ हानि होती ही है |ऐसे लोग भले अतिरिक्त ऊर्जा वाले होते हैं किन्तु इनका स्वभाव स्थिर कम ही होता है और अक्सर मानसिक विचलन इन्हें होता है ,मानसिक चंचलता होती है ,इन्हें काली कवच धारण करना चाहिए ,काली जी की उपासना करनी चाहिए ,चूंकि इन्हें नकारात्मक प्रभावों का अधिक भय होता है |जिनकी कुंडली में ग्रहण योग हो या सूर्य चन्द्रमा के साथ राहू -केतु की युति हो उन्हें भी ऐसा ही करना चाहिए |जिन्हें पूर्णिमा -अमावश्य को किसी भी तरह की परेशानी होती हो उन्हें काली ,भैरव जैसे उग्र देवी -देवता के कवच -ताबीज अवश्य धारण करने चाहिए ,इनकी उपासना करनी चाहिए |………………………………………………………हर-हर महादेव


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