ईष्ट तक आपकी पूजा पहुँच रही क्या ?
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पूजा का लाभ क्यों नहीं मिल रहा ?
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आप पूजा पाठ रोज कर रहे किन्तु क्या आपने सोचा है आपके जीवन में क्या परिवर्तन आ रहा |पूजा पाठ का मतलब मात्र भावना और श्रद्धा नहीं ,भावना और श्रद्धा प्रार्थना ,उपासना में होती है ,पूजा तो विशिष्ट वस्तुओं के अर्पण से विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा या शक्ति उत्पन्न करना है |पूजा पाठ ,आराधना प्रार्धना ,उपासना साधना के बाद भी आपको यदि लाभ नहीं हो रहा तो दो कारण हो सकते हैं ,या तो आप गलतियाँ कर रहे हैं या आपकी पूजा आपके आराध्य देवता तक नहीं पहुंच रही |गलतियाँ तो आप स्वयं परिक्षण कर जानें या किसी योग्य जानकार की मदद से सुधारें हम आपको इस लेख में यह बताने जा रहे की आपकी पूजा कब आपके ईष्ट देवता तक नहीं पहुँचती ,कौन कारण बाधा बनते हैं कौन कारक उसे रोकते हैं ,कौन वह पूजा ले लेता है ,आपकी पूजा कहाँ चली जाती है ?
आजकल सबसे बड़ी समस्या हर घर में कुल देवी/देवता की आ रही है ,बहुतों को इनका पता नहीं है |कुछ को पता है तो पूजा पद्धति भूल चुके हैं |यहाँ ध्यान देने योग्य है की कुलदेवता वह सेतु होते हैं जो आपकी पूजा सम्बंधित देवता तक पहुचाते हैं ,आपके कुल की रक्षा करते हैं |वायव्य बाधाओं को रोकते हैं |इन्हें ठीक से पूजा न मिलने पर आपकी पूजा भी ठीक से आपके इष्ट तक नहीं पहुचती है |घर में और आप पर नकारात्मक उर्जाये बेरोक टोक आ सकती हैं या प्रभावित कर सकती हैं |कभी कभी ऐसा भी होता है की कुलदेवता/देवी की ठीक से पूजा न होने पर कोई वायव्य बाधा जैसे भूत-प्रेत-ब्रह्म-पिशाच-जिन्न आदि आपको या आपके घर को प्रभावित करने लगता है |कुलदेवता के अभाव में वह आपके घर की अथवा आपकी पूजा लेने लगता है ,वह आपकी पूजा आपके इष्ट तक नहीं पहुचने देता अपितु आपकी पूजा से अपनी शक्ति बढाने लगता है और आपके घर में स्थायी डेरा जमा लेता है |ऐसे में आप चार घंटे रोज पूजा करो मिलेगा कुछ नहीं |होगा वही जो वह शक्ति चाहेगा |कभी कभी आपने देखा होगा लोगों पर आवेश आते हैं |यह अधिकतर ऐसी ही शक्तियों का प्रभाव होते हैं |अधिकतर मामलों में यह शक्तियां अपने आपको देवता या देवी के रूप में प्रस्तुत करते हैं |लोग भ्रम में पड़ जाते हैं की देवी या देवता का आवेश आ रहा है और उन्हें पूजा देने लगते हैं |चूंकि यह शक्तियां भूत काल जानती हैं अतः इनके द्वारा बताई गयी घटनाएं सही भी होती हैं ,लोगों का विश्वास बन जाता है की सचमुच देवी/देवता ही हैं ,पर सच्चाई बिलकुल उलट होती है |यह अधिकतर आत्मिक शक्तियां होती हैं जो किसी सिद्ध पीठ पर पहुचते ही आवेश देने लगती हैं |
ज्योतिष हो या तंत्र सबमे उपाय की अवधारणा है और जब उपाय किया जाता है तो उपाय की पूजा देवता को मिलनी चाहिए जिससे वह प्रसन्न हो या शांत हो |अधिकतर मामलों में उपाय या पूजा का फल नहीं दिखता |उपाय की ऊर्जा देवता तक नहीं पहुँचती या पूजा उसे नहीं मिलती |व्यक्ति अथवा पंडित पूरी तन्मयता से उपाय करता है किन्तु फिर भी लाभ नहीं होता क्योंकि जहाँ पूजा की ऊर्जा जानी चाहिए वहां नहीं जाती ,वह बीच में या तो किसी और द्वारा ले ली जाती है या बिखर जाती है |व्यक्ति सोच लेता है उपाय कर दिए समस्या हल होनी चाहिए ,किन्तु समस्या हल नहीं होती |कभी -कभी तो बढ़ भी जाती है |पंडित ने अपना कर्म कर दिया की अमुक पूजा करा दिया ,अपना दक्षिणा लिया और काम समाप्त मान लिया |उन्हें भी नहीं पता की पूजा जा कहाँ रही या काम करेगी या नहीं |शास्त्र में लिखा है यह करने से यह समस्या हल होगी ,उसने बताई और पूजा कर दी |ज्योतिषी ने किसी को अकाल मृत्यु भय से बचने को महामृत्युंजय जप बताया ,व्यक्ति ने ज्योतिषी के माध्यम से ही अथवा पंडित से जप करवा भी दिया किन्तु फिर भी व्यक्ति के साथ दुर्घटना हुई और उसकी मृत्यु हो गयी |अब वह महामृत्युंजय का जप गया कहाँ |उसका लाभ क्यों नहीं मिला |न पंडित जानता है न ज्योतिषी |व्यक्ति से सम्बन्धित लोग खुद मान लेते हैं की इतना बड़ा संकट था की महामृत्युंजय भी नहीं बचा सका या उन्हें कहा जाता है की समस्या बहुत गंभीर थी इसलिए जप बचा नहीं सका |यहाँ समस्या यह थी की महामृत्युंजय जप महादेव तक पहुंचा ही नहीं तो जान बचेगी कहाँ से |
आश्चर्यचकित मत होइए और यह मत सोचिये की अब महादेव से भी बड़ा कोई हो गया क्या जो उन तक जप नहीं पहुंचा और कहीं और चला गया या महामृत्युंजय का जप भी कोई रोक सकता है क्या |ऐसा होता है और जप वातावरण में बिखर जाता है ,महादेव तक नहीं पहुँचता |कारण की महादेव ने ही वह तंत्र बनाया है जिससे उन तक जप पहुंचे |वह तंत्र बीच से टूटा हुआ है तो जप महादेव तक नहीं पहुंचेगा |महादेव भी अपने ही बनाए तंत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकते |जो नियम और तंत्र महादेव और शक्ति ने मिलकर बनाया है उससे वह खुद बंधे हुए हैं |यदि वह किसी व्यक्ति के लिए तोड़ते हैं तो विक्षोभ हो जाएगा ,इसलिए वे उस तंत्र के अनुसार ही फल देते हैं |उन्होंने सभी के लिए एक विशिष्ट नियम और ऊर्जा संरचना बनाई है जिसके अनुसार ही ऊर्जा स्थानान्तरण होता है |उन तक पहुंचता है और उनसे व्यक्ति तक पहुंचता है |बीच में कुछ विशिष्ट कड़ियाँ हैं जो ऊर्जा रूपांतरण करती हैं |यह कड़ियाँ यदि टूट जाएँ या न हो तो महादेव तक ऊर्जा नहीं पहुंचेगी और उनकी ऊर्जा व्यक्ति तक नहीं पहुंचेगी |यह नियम सभी प्रकार के पूजा पाठ में ,उपाय में लागू होता है |व्यक्ति यदि सीधे उनतक पहुँच सकता तो फिर व्यक्ति को कोई समस्या ही नहीं होती |
यह बीच की कड़ियाँ ,स्थान देवता ,ग्राम देवता ,क्षेत्रपाल और मुख्य रूप से कुलदेवता /देवी होते हैं जो पृथ्वी के व्यक्ति और महादेव या देवताओं के बीच की कड़ी होते हैं |यह महादेव और शक्ति के ही अंश हैं किन्तु यह उनकी पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील ऊर्जा रूप हैं और बीच की कड़ी हैं |जितने भी भूत -प्रेत -ब्रह्म आदि हैं वह भी महादेव के ही अंतर्गत आते हैं अतः इनके द्वारा उत्पन्न व्यवधान में भी महादेव सीधे हस्तक्षेप नहीं करते |अब हम बताते हैं की क्यों पूजा महादेव या किसी देवता तक नहीं पहुंचती या उपाय असफल क्यों हो जाते हैं | उपाय अथवा पूजा पाठ तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक वह कहीं स्वीकार न हों |पूजा पाठ और उपाय एक ऊर्जा प्रक्षेपण है |इनसे ऊर्जा उत्पन्न कर एक निश्चित दिशा में भेजी जाती है |यह ऊर्जा जब तक कहीं स्वीकार न की जाए अंतरिक्ष में निरुद्देश्य विलीन हो जाती है और कोई लाभ नहीं मिलता अथवा यह ऊर्जा अपने गंतव्य तक न पहुंचे ,किसी और द्वारा ले ली जाए तो भी असफल हो जाती है ,अथवा उत्पन्न ऊर्जा का परिवर्तन प्राप्तकर्ता के योग्य ऊर्जा में न हो पाए तो भी अपने उद्देश्य में ऊर्जा सफल नहीं होती |
लोगों के कष्टों के हजारों उपाय शास्त्रों में दिए गए हैं ,इनमे ज्योतिषीय ,कर्मकांडीय अर्थात वैदिक पूजन प्रधान और तांत्रिक उपाय होते हैं |इन उपायों में छोटे टोटकों से लेकर बड़े -बड़े अनुष्ठान तक होते हैं |इन शास्त्रों में यह कहीं नहीं लिखा की कैसे यह उपाय काम करते हैं |किस सूत्र पर कार्य करते हैं ,कैसे पितरों-देवताओं तक ऊर्जा पहुँचती है ,कैसे यहाँ के पदार्थों का पित्र लोक -देवलोक के पदार्थों में परिवर्तन होता है ,कौन यह ऊर्जा स्थानान्तरण करता है ,कब यह क्रिया अवरुद्ध हो जाती है ,कौन इस कड़ी को प्रभावित कर सकता है ,कैसे उपायों से कितनी ऊर्जा किस प्रकार उत्पन्न होती है |कहीं कोई सूत्र नहीं दिए गए ,क्योंकि जब यह उपाय बनाए गए तब के लोग इन सूत्रों को समझते थे |उन्हें इसकी क्रियाप्रणाली पता थी |
उस समय के ऋषियों को यह अनुमान ही नहीं था की आधुनिक युग जैसी समस्या आज के मानव उत्पन्न कर सकते हैं |कुछ सूत्रों को पितरों के सम्बन्ध में गरुण पुराण में दिया गया है किन्तु पूरी तकनिकी वहां नहीं है क्योंकि बीच की कड़ी सामान्य जीवन से सम्बन्धित है |गरुण पुराण बताता है की विश्वेदेवा पदार्थ को बदलकर पित्र की योनी अनुसार उन्हें पदार्थ उपलब्ध कराते हैं ,किन्तु विश्वदेव तक ही कुछ न पहुंचे तो क्या करें |विश्वदेव ही नाराज हो जाएँ तो क्या करें |आचार्य करपात्री जी ने विश्वेदेवा की कार्यप्रणाली को बहुत अच्छे उदाहरण से बताया है किन्तु समस्या उत्पन्न उर्जा के वहां तक ही पहुँचने में होती है |उनके द्वारा स्वीकार करने और परिवर्तित कर पितरों को प्रदान करने में ही होती है |यही हाल सभी पूजा पाठ का होता है |लोग कहते हैं की यहाँ कुछ भी चढ़ाया भगवान् नहीं खाता या नहीं लेता ,किन्तु ऐसा नहीं है भगवान् को यहाँ का भोग उसके स्वीकार करने योग्य ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है और वह वहां पहुंचता है किसी अन्य रूप में |तभी तो प्रसाद आदि को परम पवित्र माना जाता है और चढ़ाए पुष्प आदि को जलाया नहीं जा सकता |उसे स्वयं विघटित होने दिया जाता है |भगवान् को प्रदान की आ रही पूजा की ऊर्जा का रूपांतरण उनके स्तर तथा लोक के अनुसार कुलदेवता और विश्वदेव करते हैं |
उपाय ,पूजा -पाठ ,ऊर्जा रूपांतरण के सूत्र हमारे पूर्वज ऋषियों को ज्ञात थे और तदनुसार सभी प्रक्रिया ब्रह्माण्ड की ऊर्जा संरचना की क्रियाप्रणाली के आधार पर हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा बनाई गयी थी जो की आधुनिक वैज्ञानिकों से लाखों गुना श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे |इस प्रणाली में एक त्रुटी पूरे तंत्र को बिगाड़ देती है |चूंकि यह प्रणाली प्रकृति की ऊर्जा संरचना पर आधारित है अतः यहाँ देवी -देवता भी हस्तक्षेप नहीं करते ,क्योंकि वह भी उन्ही सूत्रों पर चलते हैं |उनकी उत्पत्ति भी उन्ही सूत्रों पर आधारित है ,उन्हें भी उन्ही सूत्रों पर ऊर्जा दी जाती है ,उन्ही सूत्रों पर उन तक भी पूजा पहुँचती है |इस प्रकार ईष्ट चाहे कितना भी बड़ा हो ,देवी -देवता चाहे कितना ही शक्तिशाली हो कड़ियाँ टूटने पर कड़ियाँ नहीं बना सकता |सीधे कहीं हस्तक्षेप नहीं कर सकता |विरल स्थितियों में व्यक्ति विशेष के लिए इनके हस्तक्षेप होते हैं किन्तु यह हस्तक्षेप पित्र संतुष्टि अथवा देवताओं को पूजा मिलने को लेकर नहीं रहे हैं |पूजाओं की सबसे मूल कड़ी व्यक्ति के खानदान के मूल पूर्वज ऋषि के देवता या देवी होते हैं जिन्हें बाद में कुलदेवता /देवी कहा जाने लगा |इनका सीधा सम्बन्ध विश्वदेवा स्वरुप से होता है ,जो की पूजन स्थानान्तरण के लिए उत्तरदाई होते हैं |कुल देवता /देवी ब्रह्माण्ड की उच्च शक्तियों जिन्हें देवी /देवता कहा जाता है और मनुष्य के बीच की कड़ी हैं और यह पृथ्वी की ऊर्जा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच सामंजस्य बनाते हैं |यह कड़ी जहाँ टूटी सबकुछ टूट जाता है और फिर चाहे कितनी भी पूजा – शान्ति कराई जाए देवताओं तक दी जा रही पूजा नहीं पहुँचती और वह असंतुष्ट ही रह जाते हैं या प्रसन्न नहीं होते |
आपके घर में किसी बड़ी नकारात्मक या आसुरी शक्ति का वास हो या कोई ब्रह्म -प्रेत -जिन्न -वीर -सहीद -सती -साईं आप द्वारा पूजा जाता हो तो यह धीरे -धीरे आपकी पूजा खुद लेने लगता है और अपनी शक्ति बढाता है जिससे कुलदेवता की पूजा बाधित होती है |कुछ समय बाद यह कुलदेवता का स्थान ले लेता है और कुलदेवता रुष्ट हो जाते हैं |अब सभी पूजा यह ले लेगा और आपके ईष्ट तक कोई पूजा नहीं पहुंचेगी |आप कोई उपाय करें ,कोई अनुष्ठान कराएं सफल नहीं होगा ,कोई पूजा करें देवता को नहीं मिलेगा |आप मात्र खुद को संतुष्टि देंगे यह मानकर की आप पूजा कर रहे या करा रहे पर परिणाम नहीं मिलेगा |अब यह भी शिव के ही गण हैं |इन्हें भी शिव ने ही बनाया है |कुलदेवता भी शिव के ही अंश हैं तो शिव सीधे कैसे हस्तक्षेप करें |कुलदेवता की ठीक से पूजा न हो रही हो और कोई आसुरी शक्ति का प्रवेश हो जाय तो कुछ समय बाद वह सभी पूजा लेने लगता है कुलदेवता स्थान छोड़ देते हैं |फिर वह शक्ति उनका स्थान ले लेता है ,जब उसकी पूजा बंद ,खानदान की समाप्ति शुरू |कुलदेवता की अनुपस्थिति में पूजा ईष्ट तक नहीं जा रही और सभी उपाय असफल |एक तो कष्ट की समस्या दुसरे उपाय भी काम नहीं कर रहे |
आप ध्यान दीजिये ,जब आप किसी पूजा -पाठ -अनुष्ठान का संकल्प लेते हैं तो उसमे शब्द आते हैं ,स्थान देवता ,ग्राम देवता ,क्षेत्रपाल ,कुलदेवता तब ईष्ट देवता |अब आप सोचिये स्थान देवता की जगह कोई स्थानीय नकारात्मक शक्ति प्रभावी है ,ग्राम देवता को आप नहीं जानते या ठीक से पूज नहीं रहे |क्षेत्रपाल को आप नहीं जानते |आपके कुलदेवता /देवी रुष्ट हैं या कोई अन्य शक्ति आपके घर में प्रभावी है जो पूजा ले रही या आप अपनी गलतियों से किसी ऐसी शक्ति को पूज रहे अपने स्वार्थ में जो नैसर्गिक देवता की श्रेणी में नहीं आता ,तो आपके कुलदेवता आपका साथ छोड़ चुके हैं |ऐसे में अब कड़ी तो टूट गयी |आपकी पूजा वातावरण में बिखर जायेगी |अब आपके पूर्वज ऋषि मूर्ख तो थे नहीं जो उन्होंने पूजा -अनुष्ठान के संकल्प में इन लोगों का आह्वान किया था हमेशा |वह जानते थे की यह एक श्रृंखला है जो पूजा की ऊर्जा को ईष्ट तक पहुंचाती है ,तभी उन्होंने इसे सभी पूजा से जोड़ा था |आधुनिक लोग मन से भगवान् को मानने को ही मुख्य मान लिए और नियमों की अनदेखी की जिससे निष्काम पूजन तो ठीक ,किन्तु सकाम पूजन असफल होने लगे |सकाम पूजन के अपने नियम होते हैं और उन्हें उसी रूप में करना होता है यदि कोई विशिष्ट उद्देश्य है तो |उपाय इसी श्रेणी में आते हैं अतः यह असफल हो जाते हैं कड़ी टूटने पर ,फिर चाहे कितनी भी अधिक पूजा -जप किया जाए या किसी भी शक्ति को पूजा जाए | ………………………..हर हर महादेव
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