एकाग्रता की शक्ति :;त्राटक ::असंभव कुछ भी नहीं
================================
एकाग्रता में बहुत शक्ति है ,मन अगर एकाग्र होने लगे तो बहुत कुछ संभव है ,यहाँ तक की ईश्वर प्राप्ति भी |इसी शक्ति को बढाने के लिए ध्यान किया जाता है ,जिसका आध्यात्मिक जगत में अत्यधिक महत्व है |किन्तु ध्यान सबके बस का नहीं होता है |एकाग्रता बढाने का सबसे सुलभ उपाय त्राटक होता है | जो लोग कुछ विशेष पाना चाहते हो वे ब्रह्ममुहूर्त में त्राटक का अभ्यास करे | त्राटक किसी एक चीज पर वृत्ति स्थिर करने की प्रक्रिया है ।इसके लिए किसी एक वस्तु को अपलक देखना पड़ता है जैसे की इस्ट का विग्रह को अपलक देखते रहना ,दिये की लौ को एकटक देखना ,काले बिंदु को पूर्ण एकाग्रता से देखना इत्यादि |
शब्दों से सब कुछ व्यक्त नही किया जा सकता है इस लिए यह प्रयोग स्वयं अनुभव करें | एकाग्रता में इतनी शक्ति
है कि आदमी मनःशरीर में पहुँच जाता है। फिर अपनेमन की इच्छा के अनुसार उसके रूप बन जाते हैं। ऐसा मनुष्य चाहे जितने शरीर बना सकता है, चाहे जहाँ जा सकता है। देखे–अनदेखे विषयों को जानना चाहे तो एकाग्रता से जान सकता है। समुद्र पार की चीजों को देखना चाहे तो देख सकता है। अज्ञात व्यक्तियों को देखना चाहे तो ध्यान द्वारा देख सकता है। एकाग्रता साधने के कई उपाय हैं। जैसेः हम छत पर सोये हैं। पलकें गिराये बिना चाँद को निहारते–निहारतेलेटे हैं। कुछ समय के बाद एक के बदले दो चाँद दिखने लग जायेंगे। फिर तीन दिखने लग जायेंगे। आँखे खुलीहोंगी और तीनों के तीनों
अदृश्य भी हो जायेंगे। हम दृश्य में फँसे हैं। दृश्य को देखते–देखते हम अदृश्य में पहुँच जायेंगे। व्यक्त में फँसे हैं लेकिन व्यक्त को निहारते–निहारते हमारी चेतना अव्यक्त में चली जाएगी | दीये की जलती लौ पर पलकें गिराये बिना देखते जाओ। भूत– प्रेत को देखने के लिए भी लोग लौ का उपयोग करते हैं। लौ को निहारते जाओ… निहारते जाओ, फिर आँखे बन्द कर दो तो वही लौ ललाट में दिखेगी। थोड़ी देर के बाद वह अदृश्य हो जायेगी। आँखें खोलकर फिर से लौ को निहारो। ऐसे भी एकाग्रता बढ़ती है। ऊपर नीचे के दाँतों के बीच जिह्वा के अग्र भाग को रोक दो। मुँह ऐसे बन्द करो कि जिह्वा न ऊपर तालू में लगे न नीचे लगे। मुँह के अवकाश में टिक जाये। ऐसा करके जिह्वा को मन से निहारते जाओ… निहारते जाओ। इससे भी एकाग्रता में मदद मिलेगी। घड़ी का काँटा सेकण्ड–सेकण्ड करके घूम रहा है। इस काँटे को देखते हुए सेकण्डों को गिनते जाओ। इससे भी एकाग्रता की साधना हो सकती है। मन में विचार चल रहे हैं। एक विचार उठा और गया। दूसरा अभी उठने को है। इसके बीच की जो निर्विचार अवस्था है उसको बढ़ाते जाओ तो तुरन्त साक्षात्कार का स्वाद आने लगेगा। दो विचारों के बीच की जो मध्यावस्था है उसको बढ़ाते जाओ तो चन्द दिनों में ऐसी ऊँचाई को पा लोगे की तुम्हारे आगे इन्द्र का राज्य भी कुछ नहीं लगेगा। कभी तुम नदी, सरोवर या सागर के तट पर बैठे हो तब पानी को निहारते–निहारतेचित्त को एकाग्र करो। कभी घर में ही त्राटक का अभ्यास करो। दीवार पर लगे हुए काले गोलाकार के बीच पीले बिन्दु को निहारते जाओ…. निहारते जाओ। आँखों की पलकें न गिरें। जब तक आँखों से पानी न गिरे तब तक निहारते जाओ। दिनोंदिन अभ्यास बढ़ाते जाओ। कुछ ही दिनों में शक्ति आने लगेगी। सामर्थ्य का एहसास होगा। उस शक्ति या सामर्थ्य को पढ़ाई में खर्च करो, धन्धे में खर्च करो, कहीं भी खर्च करो लेकिन हम तो चाहते हैं किउस शक्ति को शक्तिदाता परमात्मा के साक्षात्कार के लिए खर्च करके तुम उसको पा लो |………………………………………………….हर–हर महादेव
है कि आदमी मनःशरीर में पहुँच जाता है। फिर अपनेमन की इच्छा के अनुसार उसके रूप बन जाते हैं। ऐसा मनुष्य चाहे जितने शरीर बना सकता है, चाहे जहाँ जा सकता है। देखे–अनदेखे विषयों को जानना चाहे तो एकाग्रता से जान सकता है। समुद्र पार की चीजों को देखना चाहे तो देख सकता है। अज्ञात व्यक्तियों को देखना चाहे तो ध्यान द्वारा देख सकता है। एकाग्रता साधने के कई उपाय हैं। जैसेः हम छत पर सोये हैं। पलकें गिराये बिना चाँद को निहारते–निहारतेलेटे हैं। कुछ समय के बाद एक के बदले दो चाँद दिखने लग जायेंगे। फिर तीन दिखने लग जायेंगे। आँखे खुलीहोंगी और तीनों के तीनों
अदृश्य भी हो जायेंगे। हम दृश्य में फँसे हैं। दृश्य को देखते–देखते हम अदृश्य में पहुँच जायेंगे। व्यक्त में फँसे हैं लेकिन व्यक्त को निहारते–निहारते हमारी चेतना अव्यक्त में चली जाएगी | दीये की जलती लौ पर पलकें गिराये बिना देखते जाओ। भूत– प्रेत को देखने के लिए भी लोग लौ का उपयोग करते हैं। लौ को निहारते जाओ… निहारते जाओ, फिर आँखे बन्द कर दो तो वही लौ ललाट में दिखेगी। थोड़ी देर के बाद वह अदृश्य हो जायेगी। आँखें खोलकर फिर से लौ को निहारो। ऐसे भी एकाग्रता बढ़ती है। ऊपर नीचे के दाँतों के बीच जिह्वा के अग्र भाग को रोक दो। मुँह ऐसे बन्द करो कि जिह्वा न ऊपर तालू में लगे न नीचे लगे। मुँह के अवकाश में टिक जाये। ऐसा करके जिह्वा को मन से निहारते जाओ… निहारते जाओ। इससे भी एकाग्रता में मदद मिलेगी। घड़ी का काँटा सेकण्ड–सेकण्ड करके घूम रहा है। इस काँटे को देखते हुए सेकण्डों को गिनते जाओ। इससे भी एकाग्रता की साधना हो सकती है। मन में विचार चल रहे हैं। एक विचार उठा और गया। दूसरा अभी उठने को है। इसके बीच की जो निर्विचार अवस्था है उसको बढ़ाते जाओ तो तुरन्त साक्षात्कार का स्वाद आने लगेगा। दो विचारों के बीच की जो मध्यावस्था है उसको बढ़ाते जाओ तो चन्द दिनों में ऐसी ऊँचाई को पा लोगे की तुम्हारे आगे इन्द्र का राज्य भी कुछ नहीं लगेगा। कभी तुम नदी, सरोवर या सागर के तट पर बैठे हो तब पानी को निहारते–निहारतेचित्त को एकाग्र करो। कभी घर में ही त्राटक का अभ्यास करो। दीवार पर लगे हुए काले गोलाकार के बीच पीले बिन्दु को निहारते जाओ…. निहारते जाओ। आँखों की पलकें न गिरें। जब तक आँखों से पानी न गिरे तब तक निहारते जाओ। दिनोंदिन अभ्यास बढ़ाते जाओ। कुछ ही दिनों में शक्ति आने लगेगी। सामर्थ्य का एहसास होगा। उस शक्ति या सामर्थ्य को पढ़ाई में खर्च करो, धन्धे में खर्च करो, कहीं भी खर्च करो लेकिन हम तो चाहते हैं किउस शक्ति को शक्तिदाता परमात्मा के साक्षात्कार के लिए खर्च करके तुम उसको पा लो |………………………………………………….हर–हर महादेव
Leave a Reply