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कर्ण पिशाचिनी की अघोर साधना

कर्ण पिशाचिनी साधना

===============[प्रथम मंत्र -अघोर क्रियागत ]

कर्ण पिशाचिनी का नाम तंत्र जगत में जाना पहचाना है |सामान्य जन भी भूत -भविष्य बताने वाली सिद्धि के रूप में इसे जानते हैं ,यद्यपि यह भविष्य नहीं बता सकती |भविष्य के कथन साधक के पूर्वानुमान और तुक्के होते हैं जो कभी सही ,कभी गलत हो सकते हैं |हाँ यह पैशाचिक साधना से उत्पन्न शक्ति भूत और वर्त्तमान ठीक ठीक बता देती है अतः इस आधार पर व्यक्ति भविष्यवक्ता बन बैठता है,किन्तु भविष्य कथन केवल इस शक्ति के आधार पर सही नहीं होता |या तो सटीक अनुमान हो अथवा ज्योतिष का ज्ञान हो तभी भविष्य सही हो सकता है |कर्ण पिशाचिनी जितनी जल्दी आएगी उसकी शक्ति उतनी ही कम होगी |देर से आने पर शक्ति अधिक होती है |कर्ण पिशाचिनी के अनेक मंत्र और पद्धतियाँ हैं |कुछ सात्विक और कुछ अघोर क्रियागत |हम इसमें से कुछ पद्धतियों पर लिखते हैं और इस अंक में हम अघोर क्रियागत एक मन्त्र और उसकी पद्धति लिखते हैं |

मंत्र – ॐ ह्रीं कर्ण पिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनी मम् करणे अवतर अवतर सत्यं कथय कथय अतीतानागतं वर्तमानं दर्शय दर्शय ऐं ह्रीं ह्रीं कर्ण पिशाचिनी स्वाहा |

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स्थान – श्मशान

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वस्त्र – लाल या काला

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आसन – काला ,लाल या रक्त के रंग का कम्बल

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दिशा – दक्षिणोन्मुखि

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माला – अस्थियों की [पहनने के लिए २१ की ,जपने के लिए १४१ की ]

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दीपक – तीन [सरसों का तेल पूरा भरा रहे ] अथवा ११ दीपक और चमेली का तेल [अपनी पद्धति अनुसार ]

——–

समय

——– कृष्ण त्रयोदशी की अर्ध रात्री से

मंत्र संख्या

————– अर्ध रात्री से भोर तक प्रतिदिन 

सामग्री

———- काला कपड़ा ,लकड़ी का पटरा ,कांसे की थाली ,मल -मूत्र ,मूर्ती ,कर्ण पिशाचिनी यन्त्र ,

विधि

——– कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस तक इसका प्रयोग है |हर रात्री में १३  तिथि से अमावस्या तक जब तक नीरव शान्ति रहे तब तक जप करना चाहिए |दिन में मानसिक ध्यान में रहना चाहिए |इस साधना में साधक को कृष्ण तृतीया से ही नहाना -धोना ,संध्या वंदन ,मुख शोधन अर्थात दातुन मंजन सब बंद कर देना चाहिए |जूठे बर्तन में ही सभी दिन भोजन करना होता है |थोडा मल -मूत्र का भी सेवन करना होता है |आसन को ही शैया बनाना होता है और उसे उठाना नहीं चाहिए |साधना स्थल के आसपास ही मल मूत्र का त्याग करना होता है |साधना काल में मल मूत्र की शंका हो तो भी न करे |शरीर पर थोडा मल मूत्र का लेपन करे |पिशाची अमावस्या को साधक के पास आएगी |भय दिखायेगी ,पत्नी भाव के लिए कहेगी ऐसे में साधक अपने विवेक से कार्य करे |इसके बाद शुक्ल पक्ष की दशमी तक स्नान ,मुख शोधन और ध्यानादि न करे |जूठी थाली में ही इस प्रकार २३ दिन भोजन करे |मल मूत्र को भोजन के पहले ही ग्रहण करे |शरीर की शुद्धि शुक्ल एकादशी से ही करे |शक्ति और गायत्री उपासना जीवन में फिर न करे |

विशेष चेतावनी

========== उपरोक्त साधना पद्धति मात्र जानकारी के उद्देश्य से दिया जा रहा है |जैसा की शास्त्रों में ,किताबों में कर्ण पिशाचिनी की साधना दी हुई है ,हम भी ब्लॉग और पेज पर मात्र जानकारी देने के उद्देश्य से इसे प्रकाशित कर रहे हैं |मात्र इस लेख के आधार पर साधना न करें |साधना पूर्व अपने गुरु से अनुमति लें और किसी सिद्ध काली साधक से सुरक्षा कवच बनवाकर जरुर धारण करें ,जो ऐसा हो की सुरक्षा भी करेऔए पिशाचिनी के आगमन को रोके भी नहीं |योग्य ग्यानी से समस्त प्रक्रिया और मंत्रादी समझ लें ,जांच लें |किसी भी हानि अथवा परेशानी के लिए हम जिम्मेदार नहीं होंगे |धन्यवाद |..[अगला अंक -कर्ण पिशाचिनी साधना -सात्विक पद्धति ]………………………………………………………..हर-हर महादेव


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