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काली जी के भिन्न रूपों का रहस्य

भगवती महाकाली के विविध स्वरुप

========================= क्यों अलग अलग स्वरुप होते हैं चित्रों में काली के ?

            भगवती महाकाली हमारी ईष्ट देवी हैं |बचपन से ही इनके हर रूप ने ,हर गुण ने हमें आ कर्षित किया है और इस आकर्षण नें इनकी उपासना -साधना को प्रेरित किया |हाथ जोडकर मांगना हमें कभी पसंद नहीं रहा और हम हमेशा से चाहते रहे की ब्रह्मांडीय उर्जायें हममे स्थान ग्रहण करें |इस हेतु हमने साधना मार्ग चुना चूंकि साधना उसे कहते हैं की आप खुद को ऐसा साधो की शक्तियाँ आपको अपने अनुकूल पा आपमें स्थान ग्रहण करें |हम सभी की इतनी क्षमता कहाँ की हम शक्तियों को साध सकें ,हम तो खुद को ही साध सकते हैं की शक्तियाँ हमें अपने अनुकूल पायें |महाकाली के प्रति लगाव ने उसके विभिन्न रूपों की साधना को प्रेरित किया और उनके प्रति जानने की उत्कंठा रही |इनके जितने रूप हैं उतने रूप किसी भी अन्य देवी -देवता के नहीं क्योंकि सभी देवी -देवता इनसे ही उत्पन्न हुए हैं और समस्त सृष्टि इन्ही से उत्पन्न होकर इन्ही में विलीन होती रहती है |यह आदि मूल शक्ति हैं जिनके बिना shiv भी शव समान होते हैं |यह सृष्टि की शक्ति ,शिव की शक्ति और समस्त देवताओं की शक्ति हैं |इनके सभी रूपों के बारे में जानना किसी के लिए संभव नहीं हम तो बहुत तुच्छ जिव हैं |कुछ स्वरूपों की चर्चा हम इस लेख में करते हैं ,अपने पाठकों और श्रोताओं की जानकारी हेतु |

              भगवती आद्या ,महाकाली ही इस सृष्टि की इस ब्रह्माण्ड की मूल शक्ति हैं ,जो सृष्टि के पूर्व भी हैं और सृष्टि के बाद भी हैं |यही ब्रह्माण्ड में अनंत व्याप्त मूल शक्ति हैं |यही हर क्रिया की कारण शक्ति हैं |यही सभी शक्तियों की मूल शक्ति हैं |इनके बिना परम शिव भी शव अर्थात निष्क्रिय हैं |इन्हें विभिन्न वैदिक अथवा तांत्रिक शास्त्रों में विभिन्न स्वरूपों में परिभाषित किया गया है |यही एकमात्र सर्वमान्य शक्ति हैं जो वैदिक से लेकर तांत्रिक तक सभी जगह एक सामान पूजित हैं और हर पद्धति से पूजित हैं |इनके स्वरूपों को इनके रूप भेद कहते हैं ,जो विशिष्ट गुणों को परिभाषित करते हैं |इनके स्वरूपों के साथ इनके चित्रों में भी विशिष्टता आ जाती है |हर चित्र का प्रभाव अलग होता है ,ध्यान अलग होता है ,विशेषता और नाम अलग होता है |चेहरे के भाव के अनुसार भी प्रभाव अलग हो जाता है |

              आप अगर ध्यान दें तो मात्र पैरों के अलग अलग स्थान पर रखे होने के अनुसार ही काली के अनेक स्वरुप हो जाते हैं |काली जी के पैर शिव जी की गर्दन पर हैं या छाती पर हैं या जाँघों पर हैं या पैर जमींन पर हैं ,इन सबके अलग नाम ,गुण और प्रभाव हैं अलग मंत्र हैं ,कुछ मूर्तियों चित्रों में कई कई हाथ तो कुछ में कई कई सर होते हैं ,कुछ में हाथ की स्थिति और मुद्रा अलग होती है ,हथियार होते हैं या नहीं होते ,अलग शश्त्र होते हैं अलग चित्रों में ,तो कुछ में मुकुट या बिना मुकुट स्वरुप होता है ,कुछ में राजसी वस्त्र आभुष्ण तो कुछ में दिगंबर अवस्था होती है |सभी रूपों का अलग नाम होता है अलग गुण होते हैं ,अलग प्रभाव होता है |अब आप किस रूप को पूज रहे हैं उसे जानिये ,उसके गुण के अनुसार ही आपको विशेष लाभ मिलेंगे उनका नाम क्या है ,विशेषता क्या है ,इसी के अनुसार पूजा का परिणाम भी अलग हो सकता है |घर -परिवार -गृहस्थ के लिए कौन सा रूप अधिक लाभप्रद है ,कैसा चित्र आपको लगाना चाहिए ,समझिये |यह चित्र या मूर्तियाँ कपोलकल्पना नहीं हैं की जो जैसा सोचा बना दिया |सबके मंत्र अलग होते हैं ,भाव और ध्यान के अनुसार प्रभाव अलग होते हैं |बहुत गहरा रहस्य छिपा होता है इन रूपों में |काली के अलग-अलग तंत्रों में अनेक भेद हैं । कुछ शास्त्रों के अनुसार इनके मूल आठ स्वरुप भेद इस प्रकार हैं –

१॰ संहार-काली, २॰ दक्षिण-काली, ३॰ भद्र-काली, ४॰ गुह्य-काली, ५॰ महा-काली, ६॰ वीर-काली, ७॰ उग्र-काली तथा ८॰ चण्ड-काली ।

कुछ शास्त्रों में मूल आठ स्वरुप भेद इस प्रकार हैं –

१. सृष्टि काली २. स्थिति काली ३. संहार काली ४.अनाख्या काली ५.भाषा काली ६.गुह्य काली ७. कामकला काली ८. श्मशान काली

कुछ शास्त्रों के अनुसार भगवती काली के मूल कुल २४ स्वरुप हैं |सभी रूपों पर दृष्टिपात करने पर यह अधिक तर्क सगत लगता है |

‘कालिका-पुराण’ में उल्लेख हैं कि आदि-सृष्टि में भगवती ने महिषासुर को “उग्र-चण्डी” रुप से मारा एवं द्वितीयसृष्टि में ‘उग्र-चण्डी’ ही “महा-काली” अथवा महामाया कहलाई ।

योगनिद्रा महामाया जगद्धात्री जगन्मयी । भुजैः षोडशभिर्युक्ताः इसी का नाम“भद्रकाली” भी है । भगवती कात्यायनी ‘दशभुजा’ वाली दुर्गा है, उसी को “उग्र-काली” कहा है । कालिकापुराणे – कात्यायनीमुग्रकाली दुर्गामिति तु तांविदुः ।“संहार-काली” की चार भुजाएँ हैं यही ‘धूम्र-लोचन’ का वध करने वाली हैं । “वीर-काली” अष्ट-भुजा हैं, इन्होंने ही चण्ड का विनाश किया “भुजैरष्टाभिरतुलैर्व्याप्याशेषं वमौ नमः” इसी ‘वीर-काली’ विषय में दुर्गा-सप्तशती में कहा हैं । “चण्ड-काली” की बत्तीस भुजाएँ हैं एवं शुम्भ का वध किया था । यथा – चण्डकाली तु या प्रोक्ता द्वात्रिंशद् भुज शोभिता ।

समयाचार रहस्य में उपरोक्त स्वरुपों से सम्बन्धित अन्य स्वरुप भेदों का वर्णन किया है ।

संहार-काली – १॰ प्रत्यंगिरा, २॰ भवानी, ३॰ वाग्वादिनी, ४॰ शिवा, ५॰ भेदों से युक्त भैरवी, ६॰ योगिनी, ७॰ शाकिनी, ८॰ चण्डिका, ९॰ रक्तचामुण्डा से सभी संहार-कालिका के भेद स्वरुप हैं । संहार कालिका का महामंत्र १२५ वर्ण का ‘मुण्ड-माला तंत्र’ में लिखा हैं, जो प्रबल-शत्रु-नाशक हैं ।

दक्षिण-कालिका -कराली, विकराली, उमा, मुञ्जुघोषा, चन्द्र-रेखा, चित्र-रेखा, त्रिजटा, द्विजा, एकजटा, नीलपताका, बत्तीस प्रकार की यक्षिणी, तारा और छिन्नमस्ता ये सभी दक्षिण कालिका के स्वरुप हैं ।

भद्र-काली – वारुणी, वामनी, राक्षसी, रावणी, आग्नेयी, महामारी, घुर्घुरी, सिंहवक्त्रा, भुजंगी, गारुडी, आसुरी-दुर्गा ये सभी भद्र-काली के विभिन्न रुप हैं ।

श्मशान-काली – भेदों से युक्त मातंगी, सिद्धकाली, धूमावती, आर्द्रपटी चामुण्डा, नीला, नीलसरस्वती, घर्मटी, भर्कटी, उन्मुखी तथा हंसी ये सभी श्मशान-कालिका के भेद रुप हैं ।

महा-काली – महामाया, वैष्णवी, नारसिंही, वाराही, ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, इत्यादि अष्ट-शक्तियाँ, भेदों से युक्त-धारा, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा इत्यादि सब नदियाँ महाकाली का स्वरुप हैं ।

उग्र-काली – शूलिनी, जय-दुर्गा, महिषमर्दिनी दुर्गा, शैल-पुत्री इत्यादि नव-दुर्गाएँ, भ्रामरी, शाकम्भरी, बंध-मोक्षणिका ये सब उग्रकाली के विभिन्न नाम रुप हैं ।

वीर-काली -श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, पद्मावती, अन्नपूर्णा, रक्त-दंतिका, बाला-त्रिपुर-सुंदरी, षोडशी की एवं काली की षोडश नित्यायें, कालरात्ति, वशीनी, बगलामुखी ये सभी  वीरकाली के नाम भेद रुप हैं ।

काली सम्बन्ध में तंत्र-शास्त्र के 250-300 के लगभग ग्रंथ माने गये हैं, जिनमें बहुत से ग्रथं लुप्त है, कुछ पुस्तकालयों में सुरक्षित है । अंशमात्र ग्रंथ ही अवलोकन हेतु उपलब्ध हैं । ‘काम-धेनु तन्त्र’ में लिखा है कि – “काल संकलनात् काली कालग्रासं करोत्यतः”। तंत्रों में स्थान-स्थान पर शिव नेश्यामा काली (दक्षिणा-काली) औरसिद्धिकाली(गुह्यकाली) को केवल“काली”संज्ञा से पुकारा हैं । दशमहाविद्या के मत से  श्यामाकालीकोआद्या, नीलकाली (तारा) कोद्वितीयाऔरप्रपञ्चेश्वरी रक्तकाली(महा-त्रिपुर सुन्दरी) कोतृतीयाकहते हैं, परन्तु श्यामाकाली आद्या काली नहीं आद्यविद्या हैं ।पीताम्बरा बगलामुखी को पीतकाली भी कहा है।

कालिका द्विविधा प्रोक्ता कृष्णा – रक्ता प्रभेदतः ।

कृष्णा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता तु सुन्दरीमता ।।

काली के अनेक भेद हैं –

पुरश्चर्यार्णवेः-१॰ दक्षिणाकाली, २॰ भद्रकाली, ३॰श्मशानकाली, ४॰ कामकलाकाली, ५॰ गुह्यकाली, ६॰ कामकलाकाली, ७॰ धनकाली, ८॰सिद्धिकाली तथा ९॰ चण्डीकाली ।

जयद्रथयामलेः-१॰ डम्बरकाली, २॰ गह्नेश्वरी काली, ३॰एकतारा, ४॰ चण्डशाबरी, ५॰ वज्रवती, ६॰ रक्षाकाली, ७॰ इन्दीवरीकाली, ८॰धनदा, ९॰ रमण्या, १०॰ ईशानकाली तथा ११॰ मन्त्रमाता ।

सम्मोहने तंत्रेः-१॰ स्पर्शकाली, २॰ चिन्तामणि, ३॰ सिद्धकाली, ४॰ विज्ञाराज्ञी, ५॰ कामकला, ६॰ हंसकाली, ७॰ गुह्यकाली ।

तंत्रान्तरेऽपिः-१॰ चिंतामणि काली, २॰ स्पर्शकाली, ३॰ सन्तति-प्रदा-काली, ४॰ दक्षिणा काली, ६॰ कामकला काली, ७॰ हंसकाली, ८॰ गुह्यकाली ।

उक्त सभी भेदों में से दक्षिणा और भद्रकाली ‘दक्षिणाम्नाय’के अन्तर्गत हैं तथा गुह्यकाली, कामकलाकाली, महाकाली और महा-श्मशान-काली उत्तराम्नाय से सम्बन्धित है । काली की उपासना तीन आम्नायों से होती है । तंत्रों में कहा हैं “दक्षिणोपासकः का`लः” अर्थात्दक्षिणोपासकमहाकाल के समान हो जाता हैं ।उत्तराम्नायोपासाक ज्ञान योग से ज्ञानी बन जाते हैं । ऊर्ध्वाम्नायोपासकपूर्णक्रम उपलब्ध करने से निर्वाणमुक्ति को प्राप्त करते हैं ।दक्षिणाम्नाय में कामकला काली को कामकलादक्षिणाकाली कहते हैं । उत्तराम्नायके उपासक भाषाकाली में कामकला गुह्यकाली की उपासना करते हैं । विस्तृतवर्णन पुरुश्चर्यार्णव में दिया गया है ।

गुह्यकाली की उपासना नेपाल में विशेष प्रचलित हैं । इसके मुख्य उपासकब्रह्मा, वशिष्ठ, राम, कुबेर, यम, भरत, रावण, बालि, वासव, बलि, इन्द्र आदिहुए हैं ।

             जब आप काली जी की पूजा ,उपासना साधना कर रहे हों तो आपको अपने समक्ष पूजित होने वाली मूर्ती अथवा चित्र की भी जानकारी होनी चाहिए की आप किस स्वरुप को पूज रहे ,किस काली को पूज रहे ,आपका उद्देश्य क्या है और जिस रूप को आप पूज रहे उसकी मुख्या विशेषता क्या है |कुछ लोग कहते हैं की काली की मूर्ती या चित्र घर में नहीं लगाना चाहिए या काली की पूजा घर में नहीं करनी चाहिए किन्तु यह सही नहीं है ,सभी रूप एक सामान नहीं ,यहाँ सही है की कुछ रूप जैसे श्मशान काली आदि की स्थापना घर में नहीं उपयुक्त होती किन्तु भद्रकाली आदि की पूजा घर में हो सकती है ,सौम्य स्वरुप में काली की पूजा घर में हो सकती है ,मात्री भाव से की जा सकती है |सभी महाविद्यायें भी काली का ही स्वरुप हैं तो जब उनकी उपासना हो सकती है तो काली की क्यों नहीं |हम, काली ji के बारे में विस्तार से अपने इस चैनल पर सम्पूर्ण जानकारी दे रहे तथा हमने कई दर्जन वीडियों काली ji पर बनाए हैं ,आगे भी हम लगातार जानकारी देंगे ,अगले वीडियो में हम आपको बताएँगे की काली जी की साधना कैसे करें ,यदि गुरु न हों तो भी काली जी को कैसे सिद्ध करें ,मात्र सहस्त्रनाम से कैसे काली जी की शक्ति प्राप्त करें ,इनके अतिरिक्त और भी बहुत कुछ | …………………………………………………………………हर-हर महादेव


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