देवी आराधना और कुमारी पूजन :: नियम ,आवश्यकता
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देवी आराधना के क्रम में आराधक व् साधक कुमारी पूजन करते हैं |हमारे शास्त्रों ने कुमारी पूजन किये जाने को महत्वपूर्ण बतलाते हुए समय-समय पर इसकी महत्ता एवं फल का वर्णन मुक्तकंठ से किया है |अपने घर-परिवार और राष्ट्र के दुःख-दारिद्र्य का नाश करने के लिए कुमारी पूजन करना चाहिए तथा इसे करने से पारलौकिक सुख भी करता को सुलभ होता है |
कुमारी पूजन के लिए कन्या का चयन करने के सम्बन्ध में देवी भागवत पुराण में कुछ निर्देश दिए गए हैं |कुमारी वही कन्या कहलाती है जिसकी आयु कम से कम २ वर्ष हो |कुमारी पूजन हेतु दो वर्ष की आयु से दस वर्ष की आयु तक की ही कन्याओं का चयन करना चाहिए क्योकि वास्तव में यही कन्या की श्रेणी में मान्य है |विवाह रहित होने के बावजूद जो बालिका रजस्वला हो गयी हो वह कुमारी की श्रेणी में मान्य नहीं होती |महर्षि वेदव्यास जी का कथन है की पूजा विधि में एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या नहीं लेनी चाहिए क्योकि गंध और भोग [नैवेद्य ]के पदार्थों के स्वाद से वह एकदम अनभिग्य रहती है |उसी प्रकार दस वर्ष के ऊपर ग्यारह वर्ष की कन्या भी कुमारी पूजन में ग्राह्य नहीं है |
कुमारी पूजन में कन्याओं की संख्या का क्रम
—————————————————– अनेक परिवारों में पारिवारिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्र की अष्टमी अथवा नवमी को कुमारी पूजन निमित्त एक ही दिन नौ कुमारियों को बुलाकर पूजन करने की परंपरा का पालन किया जाता है |श्री मद देवी भागवत पुराण नवरात्र के नौ दिनों में प्रत्येक दिन कुमारी पूजन करने के सम्बन्ध में निर्देशित करता है की पहले दिन [प्रतिपदा ]को एक कन्या का पूजन कर प्रतिदिन क्रमशः एक -एक कन्या की वृद्धि करते जाना चाहिए अर्थात कुमारी पूजन में पहले दिन एक ,दुसरे दिन दो ,तीसरे दिन तीन के क्रम से नवें दिन नौ कन्याओं का पूजन किया जाना चाहिए |
नौ दिनों की कन्याओं की आयु ,उनके नाम तथा पूजन मंत्र
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[१] प्रथम दिवस दो वर्ष की आयु वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें कुमारी नाम से संबोधित किया जाता है |जो स्कन्द के तत्वों एवं ब्रह्मादी देवताओं की भी लीलापूर्वक रचना करती हैं ,उन कुमारी देवी की पूजा कर रहा हूँ ,ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए |
कुमारस्य च तत्वानी या सृजत्यपी लीलया |कादिनपी च देवास्तां कुमारी पूजयाम्यहम ||
[२] द्वितीय दिवस तीन वर्ष की आयु वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें त्रिमूर्ति नाम से संबोधित किया जाता है | जो सत्व ,रज और तम ,तीनो गुणों से तीन रूप धारण करती हैं ,जिनके अनेकों रूप हैं तथा जो तीनो कालों में व्याप्त हैं ,उन भगवती त्रिमूर्ति की मै पूजा करता हु ,ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए |
सत्वादिभिस्त्रिमूर्तिर्या तैर्ही नाना स्वरूपिणी ,त्रिकालव्यापिनी शक्तिः त्रिमूर्ति पूजयाम्यहम ||
[३] तृतीय दिवस चार वर्ष की आयु वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें कल्याणी नाम से संबोधित किया जाता है |निरंतर सुपूजित होने पर अपने भक्तों का कल्याण करना ही जिनका स्वभाव है, उन सम्पूर्ण मनोरथों [मनोकामनाओं] को पूर्ण करने वाली भगवती कल्याणी की मै पूजा कर रहा हूँ ,ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए |
कल्याणकारिणी नित्यं भक्तानां पूजितानिशम ,पूजयामि च तां भक्त्या कल्याणी सर्वकामदाम ||
[४] चतुर्थ दिवस पांच वर्ष वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें रोहिणी नाम से संबोधित किया जाता है |जो सम्पूर्ण प्राणियों के संचित बीजों का रोपण करती हैं उन भगवती रोहिणी की मे पूजा कर रहा हूँ |ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए |
रोहयन्ति च बीजानि प्राग्जन्म संचितानी च |या देवी सर्वभूतानाम रोहिणीम पूजयाम्यहम ||
[५] पंचम दिवस छः वर्ष की आयु वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें कालिका [काली] नाम से संबोधित किया जाता है |कल्प के अंत में प्रलय काल में चराचर सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को जो अपने में समाहित [विलीन]कर लेती है ,उन भगवती कालिका की में पूजा कर रहा हूँ ,ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए –
काली कालयते सर्व ब्रह्माण्डम सचराचरम |कल्पांतसमये या तां कालिकाम पूजयाम्यहम ||
[६] षष्टम [छठे] दिवस सात वर्ष की आयु वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें चंडिका नाम से संबोधित किया जाता है |जिनका रूप अत्यंत प्रकाशमान है एवं जो चंड और मुंड नामक राक्षसों का संहार करने वाली हैं ,तथा जिनकी कृपा से घोर पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं ,उन भगवती चंडिका की में पूजा कर रहा हूँ |ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए |
चंडिकाम चंडरूपां च चंडमुंडविनाशिनीम |तां चंडपापहारिणीम चंडिकाम पूजयाम्यहम ||
[७] सप्तम दिवस आठ वर्ष की आयु वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें शाम्भवी नाम से संबोधित किया जाता है |वेद जिनके स्वरुप हैं वे ही वेद जिनके प्राकट्य के विषय में कारण का अभाव बतलाते हैं तथा सबको सुखी बनाना जिनका स्वाभाविक गुण है ,उन भगवती शाम्भवी की मैं पूजा कर रहा हूँ |ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए –
अकारणातसमुत्पत्तिर्यन्मये: परिकीर्तिता |यस्तास्ताम सुखदाम देवी शाम्भवी पूजयाम्यहम ||
[८] अष्टम दिवस नौ वर्ष की आयु वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें दुर्गा नाम से संबोधित किया जाता है |जो भक्त को सदा संकट से बचाती हैं ,भक्तों का दुःख दूर करने में जिनका मनोरंजन होता है तथा देवता लोग भी जिन्हें जानने में असमर्थ हैं ,उन भगवती दुर्गा की में पूजा कर रहा हूँ |ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए –
दुर्गात त्रायती भक्तं या सदा दुर्गार्तिनाशिनी |दुर्ज्ञेया सर्वदेवानाम तां दुर्गा पूजयाम्यहम ||
[९] नवं दिवस दस वर्ष वाली कन्या का पूजन करना चाहिए |इन्हें सुभद्रा नाम से संबोधित किया जाता है |जो सुपूजित होने पर भक्तों का कल्याण करने में सदा लगी रहती हैं ,उन अशुभ विनाशिनी भगवती सुभद्रा की में पूजा कर रहा हूँ |ऐसी भावना मन में रखकर पूजन करना चाहिए –
सुभद्राणि च भक्तानाम कुरुते पूजिता सदा |अभद्रनाशिनी देवी सुभाद्राम पूजयाम्यहम ||
नवे दिन देवी की प्रतीक कुमारी का पूजन करने के साथ ही ८ वर्ष की आयु के एक बालक का भी भैरव के रूप में पूजन करना चाहिए |भैरव देवी के गण है तथा सदा उनके साथ ही रहते हैं |इन्हें वटुक नाम से संबोधित किया जाता है |ये समस्त विघ्नों का नाश करते हैं तथा साधक को सिद्धि दिलाने में विशेष सहायता करते हैं ||वं वटुकाय नमः ||संक्षिप्त मंत्र से अथवा विस्तृत मंत्र से उपलब्ध पूजा साहित्य से वटुक का पूजन करें |पूजन में पाद्य ,अर्ध्य ,आचमन ,वस्त्र ,अलन्कारादी सहित गंध ,अक्षत ,पुष्प माला आदि की व्यवस्था कर कन्या पूजन करने के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र ,आभूषण और अमृत के समान सुस्वादिष्ट भोजन सामग्री तैयार करनी चाहिए |सामर्थ्य रहने पर कृपणता नहीं करनी चाहिए |
विशेष
——— सभी कार्य की सिद्धि के लिए ब्राह्मण की कन्या ,युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए क्षत्रिय की कन्या तथा व्यापार में लाभ के लिए वैश्य अथवा शूद्र की कन्या का पूजन करना चाहिए |ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ण के लोग ब्राह्मण की कन्या ,वैश्य वर्ण के लोग ब्राह्मण ,क्षत्रिय एवं वैश्य तीनो वर्णों की कन्या तथा शूद्र वर्ण के लिए चारो वर्णों की कन्या पूजन के निमित्त लेने की आगया देवी भागवत में दी गई है |………………………………………………………………हर हर महादेव
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