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क्यों एक समान जन्म समय पर भी भाग्य अलग होते हैं?

क्यों एक समान जन्म समय पर भी भाग्य अलग होते हैं?

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——————-तंत्रिकीय विश्लेषण ——————

         अक्सर एक प्रश्न ज्योतिष जगत में उठाया जाता है की एक ही समय एक ही स्थान पर एक ही घर में यहाँ तक की एक ही गर्भ अर्थात एक ही माता पिता की जुडवा संतानों के भाग्य अलग क्यों और कैसे हो जाते हैं |ज्योतिष को नीचा दीखाने के लिए भी कुछ लोग इस प्रश्न का उपयोग करते हैं |ज्योतिष जगत इसका उत्तर देश -काल -परिस्थिति के रूप में देता है ,अर्थात देश -काल और परिस्थिति अलग होने से भाग्य अलग हो जाता है ,किन्तु यह तर्क वहां बेमानी हो जाता है जब एक ही गर्भ से एक ही समय दो बच्चे पैदा हों और उनके भाग्य अलग हों |फिर यहाँ तर्क दिया जाता है की सेकण्ड के अंतर से मिनट के अंतर से भाग्य बदल जाता है |कुछ लोग षट्यांश अर्थात सातवें अंश की तो कुछ लोग नक्षत्र ,चरण आदि की बात करते हैं |ज्योतिष की थोड़ी ही सही पर जानकारी हमें भी है और उसके आधार पर हम पूर्ण संतुष्ट नहीं हो पाए ,जो इसे परिभाषित करते हैं वह खुद कितने संतुष्ट होते हैं पता नहीं हालांकि अपने ज्ञान के अनुसार व्यक्ति खुद तो संतुष्ट हो सकता है पर जब तक लोग संतुष्ट न हों तर्क बेमानी होता है |सोचने की बात है अगर लग्न और राशि ,नवांश ,महादशा ,नक्षत्र ,चरण ,अन्तर्दशा ,ग्रह स्थितियां तक समान हों तो भी एकदम से भाग्य विपरीत दो लोगों का कैसे हो सकता है |क्या केवल किन्ही एक दो वर्गों में थोडा अंतर आ जाने से पूरा भाग्य बदल जाएगा |तर्क पूरी तरह गले नहीं उतरता |चूंकि हम व्यावसायिक ज्योतिषी नहीं हैं ,[यद्यपि ज्योतिष की मूल भूत जानकारी है ]यह प्रश्न हममे उत्कंठा जगाता है तो हम इसका उत्तर जानने का प्रयास अपने तंत्र ज्ञान ,मनोवैज्ञानिक ज्ञान और अपने साधना अनुभवों के आधार पर करते रहे हैं ,जो हमने महसूस किया उसे प्रस्तुत कर रहे अपने इस अलौकिक शक्तियां चैनल और ब्लॉग पर अब पढने वाले पाठक निर्णय करेंगे की हम कितना सही हैं |जरुरी नहीं की हम पूरी तरह सही ही हों |

          इस प्रश्न का एक उत्तर ज्योतिष में ही मौजूद है जो कुछ हद तक सही है |ज्योतिष कहता है व्यक्ति के संचित कर्म उसका भाग्य बनाते हैं ,यह संचित कर्म हर व्यक्ति के अलग होते हैं अतः व्यक्ति का भाग्य अलग होता है |यहाँ इसे काटने वाला तर्क उत्पन्न होता है की संचित कर्मों के ही आधार पर तो ग्रह स्थितियां जन्म की बनती हैं और उन स्थितियों में जन्म लेने वाले वाले का भाग्य निर्धारित होता है ,फिर संचित कर्म अलग से कैसे प्रभावित करते हैं |इसका उत्तर ज्योतिष के पास कठिन होता है |अलग अलग तर्क प्रस्तुत किये जाने लगते हैं |किन्तु इसका उत्तर तंत्र के पास है |संचित कर्म अगले जन्म के भाग्य में भारी परिवर्तन लाते हैं भले ग्रह स्थितियां समान हों ,जन्म समय समान हों कई लोगों के ,परिस्थितियां और परिवार समान हों |

              जन्म लेने वाले हर व्यक्ति के पिछले जन्मों की अनुभूतियाँ अलग होती हैं ,उसकी यादें अलग होती हैं ,संघर्ष अलग होते हैं ,लग्न अलग होते हैं [भले इस जन्म में समान हों ],जिनके आधार पर उनकी अवधारणा और व्यक्तित्व अलग होता है पिछले जन्मों में |उन व्यक्तित्वों के अनुसार उनके अवचेतन की संगृहीत यादें अलग होती हैं |अवचेतन की कार्यप्रणाली अलग होती हैं |जैसा की हिन्दू मतावलंबी जानते हैं आत्मा अमर है कभी नहीं मरती ,शरीर बदलती है यह आत्मा |तो इस आत्मा के शरीर से अलग हो जाने पर आत्मा की यादें पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाती |अवचेतन की यादें आत्मा के साथ बनी रहती हैं |अगर आत्मा की यादें समाप्त हो जाती तो फिर पित्र नहीं होते ,न उन्हें अपने कुल की याद होती |भूत-प्रेत की यादें भी न होती और वह प्रतिक्रया अलग अलग नहीं कर रहे होते |गुरु और साधू महात्मा अपने अनुयाइयों और शिष्यों का मार्गदर्शन न कर रहे होते शरीर छूटने पर भी |कोई बच्चा अपने पूर्व जन्म की बातें न बता देता |इस तरह यह यादें व्यक्ति की आत्मा के साथ जुडी रहती हैं और जन्म के बाद अवचेतन में सुरक्षित रहती हैं |कभी कभी कोई स्वप्न दिखाती हैं किसी स्थान अथवा दृश्य की और कुछ दिन बाद व्यक्ति को आभास होता है की अरे यहाँ तो में सपने में पहले आ चूका हूँ |या अचानक लगता है अरे यहाँ तो पहले आया हूँ कभी ,भले स्वप्न नहीं आया था |यह पूर्व जन्म की यादें होती हैं जो अवचेतन में सुरक्षित होती हैं |

             जब व्यक्ति जन्म लेता है तो भले उसकी लग्न और ग्रह स्थितियां समान हों किन्तु अवचेतन की यादें और सोच अलग होती हैं |इसके कारण उसके निर्णय ,सोचने की दिशा ,उसका व्यक्तित्व ,उसकी अनुभूतियाँ दुसरे समान लग्न और समय में जन्मे बच्चे से अलग होती हैं |उसके सोचे प्रश्नों के उत्तर मन में अलग मिलते हैं अथवा उसकी प्रतिक्रिया दुसरे से अलग हो जाती है |इनके आधार पर उसके निर्णय ,क्षमता प्रभावित होते हैं फलतः उसका विकास अलग हो जाता है जिससे उसका भाग्य अलग होने लगता है |समान अवसर पर भी कोई अधिक विकास कर जाता है कोई कम क्योकि उसके अवचेतन में भिन्न ज्ञान हैं |सबके गुण ,रुचियाँ भी धीरे धीरे बदल जाती हैं ,कार्यशैली बदल जाती है |अपनी अनुभूतियों के अनुसार कोई साहसी होता है और रिस्क लेने में नहीं हिचकता क्योकि उसे उसका परिणाम और हल पता है अनजाने में ही सही वह साहस भरे निर्णय लेता है जबकि दूसरा असमंजस में होता है अथवा भययुक्त होता है ,क्योकि पिछले जन्मो में उसकी यादों में ऐसा कुछ नहीं ,उसका अवचेतन रिस्क लेने की गवाही नहीं देता उसे परिणाम नहीं पता |यहाँ भी समान ग्रह स्थितियां प्रभावित करती हैं और ग्रह रश्मियों से प्रतिक्रिया शरीर पर समान होने पर भी मन की दिशा अलग हो जाती है |

            यह विश्लेषण सामान्य ज्योतिषी ,यहाँ तक की सामान्य तांत्रिक और वैदिक ज्ञाता की भी समझ में नहीं आएगा किन्तु एक मनोवैज्ञानिक और जानकार तांत्रिक इसे समझ जाएगा |ऐसा ही होता है |यहाँ संचित कर्म कार्य करता है ,भले वह दिखाई नहीं देता |यद्यपि आलोचक इसके प्रमाण मांग सकते हैं किन्तु फिर भी ज्योतिषी इस तर्क को समझ कर उपरोक्त प्रश्न का उत्तर दे सकता है |यह विश्लेषण तो समान गर्भ से समान समय में जन्मे व्यक्तियों के लिए था |अब देखते हैं समान समय अलग परिवारों में जन्मे व्यक्तियों के भाग्य कैसे होंगे |

        एक ही समान जन्म समय पर समान परिस्थिति में किन्तु अलग परिवारों में जन्मे व्यक्तियों का भाग्य निश्चित रूप से अलग होगा |क्योकि यहाँ कई फैक्टर कार्य करते हैं जो भाग्य निश्चित रूप से बदल देते हैं |ऐसे लोगों में उपरोक्त अवचेतन की अनुभूतियाँ और यादें तो अलग होती ही हैं ,घर परिवार ,माता-पिता पर कार्य कर रही शक्तियां और उर्जायें भी अलग होती हैं जो जन्म लेने वाले बच्चे के आनुवंशिक गुणों के साथ ही जन्म के बाद उसके विकास को भी प्रभावित करती हैं |माता-पिता ,दादा-दादी ,परिवारीजनों के कर्मानुसार सकारात्मक अथवा नकारात्मक उर्जायें अथवा शक्तियाँ उनसे जुडी होती हैं |घर पर अलग उर्जाओं का प्रभाव हो सकता है ,कुलदेवता-देवी की अलग प्रकृति हो सकती है ,पितरों की अलग स्थिति और प्रभाव हो सकता है ,अलग ईष्टों के अनुसार अलग प्रभाव हो सकता है |यह सब मिलकर हर उस बच्चे पर अलग प्रभाव डालते हैं जो उसके विकास ,सोच ,अनुभव को प्रभावित कर देते हैं फलतः भिन्न वातावरण में विकास होता है और प्रतिक्रिया भिन्न हो जाती है जिससे उन्नति और भाग्य बदल जाते हैं |यहाँ तो लाखों वर्षों के संचित आनुवंशिक गुण अथवा उत्परिर्वन भी प्रभावी होते हैं फलतः बच्चा दुसरे समान समय के बच्चे से पूरी तरह अलग होता है और उसका भाग्य भी अलग होता है |

            जब एक गर्भ के समान समय के बच्चों और अलग परिवारों के समान परिस्थिति और समय के बच्चों में इतना अंतर आ जाता है तो अलग परिस्थिति और पारिवारिक स्तर के बच्चों में कितना अंतर आएगा यह आप समझ सकते हैं |इसीलिए कोई बच्चा गरीब परिवार में जन्म लेकर राजा बन जाता है जबकि समान समय में जन्मा राजा के घर का बच्चा राज्य गवां देता है |कोई कोई मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होता है तो कोई भुखमरी में इसका विश्लेषण हम कभी दुसरे पोस्ट में करेंगे |हमारा विचार है भाग्य का अंतर क्यों होता है यह सामान्य जन को समझ आ गया होगा |इसे इस तरह से समझा जा सकता है |विज्ञान के अनुसार किसी बच्चे का 90% मानसिक विकास ५ वर्ष की उम्र तक हो जाता है |यदि उसे बेहद अनुकूल वातावरण ,सकारात्मक ऊर्जा ,ऊत्तम सोच का मार्गदर्शन मिले तो उसका 90% बेहतरीन विकास समय से हो जाता है ,पर यदि नकारात्मक उर्जाओं का प्रभाव घर-परिवार में हो ,बेहतर वातावरण न हो ,सही मार्गदर्शन न मिले जिसके बहुत से कारण हो सकते हैं तो उसी समान समय में जन्मे बच्चे का समय से विकास नहीं हो पायेगा ,फलतः जीवन भर यह समय उसे प्रभावित करेगा |

           जिस तरह किसी पौधे में छोटी अवस्था में ही कोई रोग लग जाए अथवा उचित भूमि अथवा पोषक तत्व न मिले तो वह अविकसित रह जाता है ,भले बाद में उसे कितने ही अच्छे वातावरण मिले ,उसी तरह बचपन के ऊर्जा प्रभाव जीवन भर बच्चे को प्रभावित करते हैं |इसे धन- संपत्ति ,समृद्धि से न जोड़ें अपितु इनके अर्थ सकारात्मक ऊर्जा से हैं |इसी प्रकार जीन विविधता और उनके विशेष गुण भी समान लग्न ,समय होने पर भी दो बच्चे के कर्म -सोच -क्रिया-प्रतिक्रिया अलग कर देतें हैं जिससे एक ही विषय पर उनकी प्रतिक्रिया और नजरिया भिन्न होता है जिससे उनका भाग्य अलग हो जाता है |किसी के कुलदेवता ,घर पर प्रभावी ईष्ट की प्रकृति ,किसी वायव्य बाधा का प्रभाव ,घर पर प्रभावी उर्जाओं की प्रकृति ,पितरों की स्थिति भी पारिवारिक स्थिति और माहौल के साथ विकास की संभावनाओं को प्रभावित करते हैं जिसका सीधा प्रभाव बच्चे के आगे के भविष्य पर जरुर पड़ता है और भाग्य अलग हो जाता है |……………………….हर-हर महादेव


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