हनुमान भक्त को शनि पीड़ा न होने के कारण की कथा
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बहुत कम लोगों को यह बात मालूम होगी कि जब महावीर हनुमान लंका मर्दन को पहुंचे थे तो वह एकबार में जलकर खाक नहीं हो पार्इ थी। बाद में शनिदेव के नजर से रावण का गढ तबाह हुआ था। इतना ही नहीं उसका स्वर्णमयी रंग भी काला हो गया था। कैसे हुआ यह कब इसके पीछे रामायण में बाकायदा प्रसंग भी हैं।
कहा जाता है कि राक्षस राज रावण ने कर्इ सारे राजाओं को जीत लिया था। उसके आतंक से पृथ्वी पर ही नहीं देवलोकों में भी त्राहि-त्राहि मच गर्इ थी। उसके इतने ताकतवर होने के पीछे ब्रह्माजी का वरदान माना जाता है। रावण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। वरदान में रावण ने मांगा कि मुझे न कोर्इ देव मार सके न कोर्इ दैत्य, गन्धर्व, यक्ष, यम-काल, शनि आदि भी। हां इंसान से कोर्इ खतरा होगा ही नहीं, यह सोचकर इंसान और वानर का नाम नहीं लिया।
वर पाते ही रावण को अंहकार हो गया और अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया। इस विपत्ति का निशाना काल और शनिदेव भी हुए। रावण ने कैद कर कालकोठरी में डाल दिया। दुखी शनि शिवअवतार के आने की प्रतीक्षा करते रहे। कालांतर में भगवान विष्णु ने मुसीबतें दूर करने और रावण को मारने के लिए धरती पर राम अवतार लिया। शेषनाग लक्ष्मण, शिव हनुमान और बाकी देवता भी वानरों के रूप में अवतरित हुए।
श्रीराम की मानव लीलाओं में जब सीताजी का हरण हुआ तो रूद्रावतार हनुमान लंका पहुंच गए। अशोक वाटिका उजाडी़, रावण के पुत्र अक्षयकुमार सहित कर्इ राक्षसों के वध के पश्वात़ वीर हनुमान ने लंका में आग लगार्इ। लेकिन इसके बावजूद वह जलकर खाक नहीं हुर्इ। बजरंग बली आश्चर्यचकित हुए और मर्म जानने की कोशिश की। जब उन्हें मालूम चला कि किसी को भी काला कर देने वाले खुद शनिदेव और महाकाल तो इसी रावण की कैद में हैं। वे लंका की काल कोठरी में उल्टे लटके हुए थे।
हनुमान जी ने शनिदेव को कैद से मुक्त कराया। फिर दोनों ने मिलकर लंका को राख के ढेर में तब्दील कर दिया। इसके बाद जब श्रीराम ने रावण का वध कर दिया तो हनुमान जी ने महाकाल को भी कैद से मुक्त कराया। कहा जाता है हनुमान यह काम न करते तो रावण पर विजय मुश्किल थी। इतना ही नहीं मान्यताएं हैं कि जो भक्त हनुमान का स्मरण करते हैं, उन्हें काल व शनि से कोर्इ पीडा़ भी नहीं होती।……………………………………………..हर- हर महादेव
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