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छठी इन्द्रिय [ Sixth Sense ] जगा देती है स्फटिक मूर्ति

छठी इन्द्रिय [ Sixth Sense ] जगा देती है स्फटिक मूर्ति

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          आज्ञा चक्र साधना हो ,तृतीय नेत्र जागरण साधना हो या सम्मोहन साधना या टेलीपैथी साधना इन सबमें त्राटक साधना होती ही होती है ,चाहे आतंरिक त्राटक हो या वाह्य त्राटक |इनमे कई चरण होते हैं और जब आप त्राटक के विभिन्न चरण की साधना करते हुए स्फटिक मूर्ति पर साधना करते हैं तो आपमें अतीन्द्रिय ज्ञान क्षमता का उदय होता है ,आपके आज्ञा चक्र पर जोर पड़ता है और आपकी सिक्स्थ सेन्स या छठी इन्द्रिय जाग्रत हो जाती है जिससे आपको आपके जीवन में होने वाली घटनाओं के साथ ही आसपास घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होने लगता है |किसी व्यक्ति का चेहरा देखते ही उसकी भावना का ,मन का ,उद्देश्य का आभास हो जाता है |किसी स्थान की अच्छी बुरी उर्जा का ज्ञान हो जाता है ,आगामी सफलता -असफलता का आभास हो जाता है |इस प्रकार व्यक्ति को जीवन के संकेत मिलने लगते हैं तथा वह सुरक्षित -सफल होने लगता है |

            त्राटक साधना के कई चरण में से एक चरण स्फटिक मूर्ति पर साधना भी होती है |इन चरणों को क्रमिक रूप से किया जाता है और अंत में बेधक दृष्टि प्राप्त करते हुए सम्मोहन शक्ति ,टेलीपैथी शक्ति ,टेलीकाईनेसिस शक्ति प्राप्त की जाती है |आज्ञा चक्र जागरण ,तृतीय नेत्र जागरण किया जाता है |यह सभी आँखों की शक्ति को बढ़ाकर पाया जाता है |एक समय ऐसा आता है कि व्यक्ति अपनी मात्र दृष्टि से किसी भारी वास्तु को उठाकर एक स्थान से दुसरे स्थान पर रख सकता है ,आग की लौ को मोड़ सकता है ,मात्र नजर से देखते हुए लोहे की मोटी राड को मोड़ सकता है |किसी की आँखों में देखकर उसे अपने वश में कर सकता है फिर चाहे वह जीव -जंतु हों ,जानवर हों या मनुष्य |क्रमिक रूप से साधना करते हुए व्यक्ति भूत -भविष्य -वर्त्तमान का ज्ञाता बन जाता है ,त्रिकालदर्शी हो जाता है |दुसरे का और अपना पूर्व का जीवन ,विभिन्न जन्म देख सकता है ,दुसरे के मन में अपनी भावना और बात बिना बोले पहुंचा सकता है |मात्र नजर से देखकर भौतिक परिवर्तन कर सकता है |

     स्फटिक मूर्ति साधना के क्रम में ६ से १० सेंटीमीटर लम्बाई की एक सफ़ेद स्फटिक मूर्ति का प्रयोग किया जाता है जिसे 2 फुट की दूरी पर रखकर उसके विशेष स्थान पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है |समय धीरे धीरे बढाया जाता है |एक समय ऐसा आता है जब मूर्ति पर विभिन्न आकृतियाँ और दृश्य दिखाई देने लगते हैं |आज्ञा चक्र पर मूर्ति स्थिर होते ही छठी इन्द्रिय का जागरण होने लगता है और आभासी शक्ति ,अतीन्द्रिय ज्ञान क्षमता का विकास होता है |


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