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दीक्षा और दीक्षित

गुरु दीक्षा :: मुक्ति का मार्ग    

===================[[भाग -३ ]]

         तांत्रिक ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है की गुरु मुख से दीक्षा लिए बिना कोई भी मंत्र सफल व् सिद्ध नहीं होता |गुरु मुख द्वारा दीक्षित मंत्र -जाप ग्रहण करने से जहाँ ज्ञान-विज्ञानं में वृद्धि होती है वहीँ सब प्रकार से पाप राशि का नाश भी होता है |वाही मंत्र सिद्धि को प्राप्त होता है ,जो सद्गुरु के मुख से निकलकर शिष्य के कान तक पहुँच पाता है |इसलिए लोकोक्ति में यह बात बहुत चर्चित है की इस चौरासी लाख योनियों के इस जीवन में हर प्राणी को माता-पिता तो स्वतः ही मिलते हैं पर गुरु परिवार की सेवा ,गुरु चरणों की रज अत्यंत ही दुर्लभ है |

          सामान्यतया लोग बिना बिचार मंत्र ले लेते हैं और जब जाप शुरू करते हैं या साधना प्रारम्भ करते हैं ,तो जो इन साधनों का विपरीत भाव है ,वह सामने आता है |किसी को हवा में देवी-देवता की आकृतियाँ घूमती नजर आती हैं ,तो वह निर्देश चाहता है ,पर कोई उपलब्ध नहीं होता |कोई निर्देश नहीं होता |व्यावसायिक गुरु प्रत्येक बार एक मोटी रकाम चाहता है |यह सबके वश में नहीं होता और शिष्य साधना बंद कर देता है ,पर गुरु-शिष्य ,सिद्धि ,जप ,साधना का पाखण्ड चलता रहता है |न शिष्य सोचता है न गुरु को फुर्सत है सोचने की |शिष्य बनाना वास्तव में अपने पुत्र से भी अधिक ख़याल रखना होता है |गुरु बनाना मतलब भगवान् से भी बड़ा पूज्य होता है |

     दीक्षा के विधि विधान सभी पंथ एवं सम्प्रदायों के अलग -अलग हैं |अलग-अलग देवी -देवता के लिए संस्कार भी अलग-अलग हैं |पर आजकल जो अपने को तांत्रिक कहते हैं ,वे वैदिक दीक्षा का विधि-विधान बता रहे हैं और जो वैदिक देवता पूजक हैं ,वे तांत्रिक विधि-विधान बता रहे हैं |इसी से ज्ञान होता है की कौन कितना और क्या जानता है |[[ क्रमशः ]]…………………………………………..हर-हर महादेव


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