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दीक्षा कब लिया जाता है ?

गुरु दीक्षा की महत्ता और समय

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           ब्राह्मन, क्षत्रिये, वैश्य और शूद्र ये चारो वर्ण ही गुरु-दीक्षा ग्रहन करने के अधिकारी है | दीक्षा के अभाव में सभी कर्म निष्फल होते है | तथा किसी भी प्रकार का जप, तप तथा पूजा आदि गुरु दीक्षा बिना कोई फल नहीं देता | ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार की पाषाण से मोती की उत्पत्ति नहीं होती है | गुरु दीक्षा ग्रहन करने से करोड़ो जन्मो के पाप दूर हो जाते है |

जो व्यक्ति गुरु दीक्षा लिए बिना ही मृत्यु को प्राप्त होते है उन्हें ‘रोरव’ नर्क की यातना भुगतनी पड़ती है | जो व्यक्ति स्वत : ही ग्रंथो में से मन्त्र देखकर मंत्र जाप करने लग जाते है | और किसी को आपना गुरु नहीं बनाते तथा दीक्षित नहीं होते, वे भी करोडों जन्मो तक अन्यान्य प्रकार के नर्को में यातनाये पाते रहते है |

          कदाचित अपने जन्म नक्षत्र राशी और नाम का ठीक चक्र मिल जावे तो दूसरे चक्र में मन्त्र लेने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती | जो मन्त्र बीस अक्षरों से अधिक का होता है | वह कभी भी सिद्द होने के योग्य नहीं होता | चेत्र मास में मन्त्र लेना अपेक्षाकृत अन्य महीनो से अति लाभदायक माना गया है | वैशाख में मन्त्र लेना रत्नों की प्राप्ति का घोतक है | ज्येष्ठ मास में मन्त्र लेने से मृत्यु तथा आषाड़ मास में मन्त्र लेने से मन्त्र लेने वाले के भाई की मृत्यु होती है | श्रावण मास में मन्त्र लेने से सभी मनोरथ सफल होते है |

         भाद्र मास में मन्त्र लेने से पुत्र नाश को प्राप्त होता है | क्वार मास में मन्त्र लेने से धन की प्राप्ति होती है | कार्तिक मास में मन्त्र लेने से मन्त्र की सिद्दी होती है | अगहन मास में मन्त्र लेने से बड़े शत्रु का भय उत्पन्न हो जाता है | माघ मास व फाल्गुन मास में मन्त्र लेने वाले की बुद्दी का विकास होता है | इसकी गणना सक्रांति से है न की चन्द्रमा से |

          रविवार, बुधवार, गुरुवार, और शुक्रवार मन्त्र ग्रहण करने के लिए अति शुभ माने गए है | दूज, तीज, पंचमी, छट, सप्तमी, नवमी, द्वार्द्शी तथा पूर्णमासी तक की तिथिया मन्त्र लेने के लिए उत्तम समझी जाती है | संध्या, बिजली गिरने, भूकंप और अन्य उपद्रवो के समय मन्त्र लेना अशुभ समझा जाता है | जो व्यक्ति निमंलिखित महीनो में मन्त्र ग्रहण करते है | उनको किसी मास, तिथि, तथा योग की कोई आवश्यकता नहीं | अर्थात भाद्र पद की षष्ठी, आश्विन कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी, कार्तिक की नवमी, अगहन तीज, फाल्गुन नवमी, पोष नवमी, माघ शुकल पक्ष की चतुथ्री, चेत्र चतुदर्शी, वैशाख तीज, ज्येष्ठ दशहरा, पंचमी आषाड़ सुदी तीज, श्रावण शुक्ला नवमी | किन्तु मन्त्र लेने हेतु सूर्यग्रहण उत्तमोत्तम है |

         कदाचित मंगल की चौथ, रविवार की सप्तमी अथवा सोमवार की अमावस्या मन्त्र लेने हेतु हो – तो सूर्यग्रहण से सौ हिस्से और ज़्यादा फल प्राप्त होता है |इसके अतिरिक्त गुरूजी जिस दिन अपनी किरपा से मन्त्र दे, वही दिन श्रेष्ठतर माना जाता है |( श्री शिव पुराण)………………………………………………..हर-हर महादेव


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