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देवी पूजा सफल हो ऐसा क्या करें ?

भगवती पूजा और सफलता के सहायक कुछ तत्व 

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        देवी के सभी रूप उस परम आद्या शक्ति के ही अंश हैं ,अतः रूपों में भिन्नता केवल विशिष्ट कार्य कारणवश ही हमें दृष्टिगत होती है ,अन्यथा इनमे परस्पर कोई भेद नहीं है |इसीलिए अक्सर हमने सूना है की शिव जी कहते हैं जो मुझमे और विष्णु में भेद करेगा उसे दोनों नहीं मिलते |कुछ ऐसा ही विष्णु कहते हैं |ऐसी ही बात देवियों में है और भेद करने पर इन्हें बही पाया जा सकता |सभी शक्तियां एक ही हैं बस भाव और स्वरुप के अनुसार कल्पना और शक्ति बदल जाती है जिससे परिणाम भिन्न हो जाते हैं अर्थात कार्य विशेष वश मन्त्र और स्वरुप ही अलग है अन्यथा सब एक ही शक्तियां हैं |

        जगज्जननी भगवती की आराधना के निमित्त अलग अलग कामनाओं की पूर्ती और उनके लग अलग प्रत्येक रूपों के लिए पृथक -पृथक पूजन सामग्री की अवधारणा की गयी है |पूजन सामग्री की इस अवधारणा के पूर्व हमारे पूर्वजों ने पूजक के लिए कुछ आवश्यक मूल गुणों की चर्चा करते हुए कहा है की प्रत्येक पूजक में अथवा साधक में कुछ आधारभूत गुणों का होना आवश्यक है |यदि साधक के मन में इन गुणों का अभाव है तो उसके द्वारा अनेक प्रकार के आडम्बरों व् साधनों को एकत्र कर की गयी पूजा भी व्यर्थ ही होगी और उसे पूजा का फल कदापि प्राप्त नहीं होगा |इन गुणों को हम पूजा का सहायक तत्व भी कह सकते हैं |

भावना –

———- सर्व प्रथम पूजा करने वाले व्यक्ति में पूजा करने का भाव जागना चाहिए |इसे हम दृढ संकल्पता भी कह सकते हैं |मन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की भावना या दृढ संकल्पता होगी और उसे यह अनुभव हो की इस कार्य को किये बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा या वह चैन से नहीं रह सकेगा ,तभी उसे सिद्धि मिलेगी |यदि भाव या भावना ही नहीं है तो उसके द्वारा की गयी पूजा व्यर्थ ही होगी |

भक्ति –

———- जिस ईष्ट देव या देवी की पूजा करने के लिए तैयार हों उसके प्रति उसके मन में पूर्ण श्रद्धा भाव होना चाहिए |श्रद्धा भाव का दूसरा नाम भक्ति कहा जा सकता है |भक्ति ही मन में यदि नहीं है तो मनुष्य पूजा क्या करेगा |भावना ही ईष्ट से नहीं जुड़ पाएगी |

विश्वास –

———– मन में पूजा करने के प्रति पूर्ण आत्मविश्वास का होना भी आवश्यक है |स्वप्न में भी कभी संदेह नहीं होना चाहिए की इस पूजा को करने से फल मिलेगा या नहीं ?,पूर्ण विश्वास से चित्त को बड़ी प्रसन्नता प्राप्त होती है ,बल मिलता है और चित्त चिंता रहित होकर अपने कार्य में दत्त रहता है |

धैर्य –

——- आराधक जब फल की तत्काल प्राप्ति या विलम्ब से प्राप्ति के प्रति धैर्यवान होकर अपने चित्त को स्थिर रखकर संतोषजनक पूजा करता है तो उसे कृत पूजा का फल [सिद्धि] अवश्य ही प्राप्त होता है |आराध्य अपने भक्त की परिक्षा लेता है की भक्त स्थिर या अस्थिर ,द्रुतगामी है या विलम्बगामी |दुसरे शब्दों में धैर्यवान है या धैर्यहीन है |साधक को शीघ्रता या विलम्ब में धैर्य रखना चाहिए |

इन गुणों के साथ ही प्रत्येक ईष्ट देव अथवा देवी की आराधना में पूजा सामग्री का भी अपना विशेष महत्त्व होता है |ऐसा हमारे पूर्वजों ने बतलाया है किन्तु साथ ही यह भी बतलाया है की सामग्री के अभाव में पूजा न करने से दोष लगता है |इस प्रकार पूजा सामग्री की अनिवार्यता पूजा में बाधक नहीं होती ,हां विपरीत सामग्री का ध्यान अवश्य रखना चाहिए |जैसे किसी देव-देवी को जो सामग्री अर्पित नहीं होनी चाहिए ,भले आपके पास वह उपलब्ध हो और अन्य न उपलब्ध हो |………………………………………………हर-हर महादेव


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