आप अपना उपचार खुद कर सकते हैं
कैंसर ,एड्स ,डेंगू ठीक कर सकता है आपका ही अवचेतन मन
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उपचार का नाम आते ही डाक्टर का चेहरा सामान्यतया उभरता है यादों में ,पर क्या वास्तव में डाक्टर ही उपचार करता है |अगर ध्यान से देखें तो उपचार हमारा खुद का शरीर ही करता है ,हमारी प्रातिरोध्क क्षमता उपचार करती है और इनमे उत्प्रेरक का कार्य अथवा समस्या विशेष की सुरक्षा का कार्य दवाएं करती है ,डाक्टर तो माध्यम है उन उपचार के अवयवों को संयोजित करने का |डाक्टर पर आपको विश्वास न हो तो डाक्टर की दवा देर में असर दिखाती है या आप खुद में आशाहीन हों तो आप देर से ठीक होते हैं जबकि डाक्टर पर विश्वास हो तो सामान्य विटामिन की गोली भी उसकी आपको ठीक करने लगती है |कभी घाव पर मात्र राख बांधना भी ठीक कर देता है और कभी बहुत सी दवाएं भी ठीक नहीं करती |इन सबका सीखा सम्बन्ध आम्न्सिक अवस्था से होता है जिसका प्रभाव प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है |अगर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाए तो उपचार मुश्किल हो जाता है |अर्थात उपचार हमारा खुद का शरीर करता है |शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को हम उपचारक के रूप में जानते हैं ,लेकिन यह कैसे उत्पन्न होती है ,कहाँ इसका मूल स्रोत होता है ,इसका जबाब विज्ञानं अलग ढंग से देता है |वह भौतिक प्रमाणों के अनुसार जबाब देता है ,किन्तु वास्तव में भौतिक प्रमाण भी कहाँ से उत्पन्न होता है ,इसका जबाब विज्ञान भी नहीं दे पाता |वास्तव में उपचारक शक्ति मनुष्य के अवचेतन मन में निवास करती है और रोगी के बदले हुए मानसिक नजरिये से वह सक्रीय होती है |बदलते नजरिये के अनुसार यह बदलती भी है |बदलते नजरिये के साथ इसकी शक्ति भी बदलती है |देखते हैं हम इसके प्रमाण –
किसी भी मानसिक या धार्मिक -मनोवैज्ञानिक उपचारक ,मनोवैज्ञानिक ,मनोविश्लेषक या डाक्टर ने कभी किसी मरीज को ठीक नहीं किया है |एक पुरानी कहावत है “”डाक्टर घाव पर पट्टी बांधता है ,इश्वर उसे ठीक करता है “” |वास्तव में यह ईश्वर आपका अवचेतन और आतंरिक शक्ति होता है | मनोवैज्ञानिक या मनोविश्लेषक मरीज के मानसिक अवरोध हटाकर प्रभावी परिवर्तन लाता है ,ताकि उपचारक सिद्धांत सक्रीय हो सके और रोगी दोबारा स्वस्थ हो सके |इसी तरह सर्जन शारीरिक अवरोध हटाता है ताकि उपचारक प्रवाह सामान्य ढंग से काम कर सके |कोई भी डाक्टर या सर्जन या मानसिक -विज्ञानं का प्रयोग करने वाला पूरी तरह से यह दावा नहीं कर सकता की उसने मरीज को ठीक कर दिया |डाक्टर भी फेल होने के भय से या हताश होने पर कहते हैं अब तो भगवान का ही सहारा है |सीधा सा मतलब विज्ञानं यह दावा नहीं कर सकता की वह सबको पूरी तरह से ठीक कर सकता है |उपचारक शक्ति एक ही है ,हालांकि इसे अलग अलग नामों से पुकारा जाता है – प्रकृति ,ईश्वर ,जीवन ,रचनात्मक ज्ञान आदि ,लेकिन वास्तव में ये सभी अवचेतन शक्ति की ओर इशारा करने के भिन्न -भिन्न तरीके हैं |
यदि हम खुद चाहें तो हम स्वयं में मौजूद उपचारक जीवन -सिद्धांत के प्रवाह के मानसिक ,भावनातमक और शारीरिक अवरोधों को कई तरीकों से हटा सकते हैं |आपके अवचेतन मन में रहने वाला यह उपचारक सिद्धांत आपको सभी मानसिक तथा शारीरिक रोगों से मुक्त कर सकता है और करेगा ,बशर्ते आप या कोई दूसरा व्यक्ति इसे सही दिशा दे |यह उपचारक सिद्धांत सभी लोगों में काम करता है ,भले ही उनका पंथ ,रंग या जाती कोई भी हो |इसका प्रयोग करने और इस उपचारक प्रक्रिया का लाभ लेने के लिए आपको किसी विशेष ,मंदिर ,पंथ या समुदाय का सदस्य बनने की जरुरत नहीं |आपका अवचेतन आपके हाथ के जले हुए या कटे हुए हिस्से को ठीक कर देगा ,भले ही आप नास्तिक या संशयवादी हों |
आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं इस सच्चाई को जानता और मानता है की जैसी आपकी आस्था होगी ,आपके अवचेतन मन की प्रतिक्रिया भी वैसी होगी |मानसिक विज्ञानं का प्रयोग करने वाले या धर्म विशेषज्ञ अपने धार्मिक ग्रन्थ के आदेश का अमल करते हैं जो अधिकतर अवचेतन की शक्ति को ही कहीं न कहीं से लक्ष्य कर रहा होता है |जब यह किसी विषय पर खुद को केन्द्रित करते हैं तो नाम को तो यह अपने ईश्वर या शक्ति को याद करते हैं किन्तु प्रक्रिया सबमे लगभग सामान हो जाती है ,अंतर केवल नाम और धर्म का रह जाता है |ये एकांत में होकर मष्तिष्क को स्थिर कर लेते हैं |यह याद करते हैं अपने अपने ईष्ट को और उनकी शक्तियों को जो की लगभग सबमे कमोवेश समस्या विशेष के लिए समान हो जाती है ,अलग धर्म होने पर भी |ये अपने भीतर उस शक्ति को महसूस कर अपने मष्तिष्क का द्वार सभी बाहरी व्यवधानों तथा वस्तुओं के लिए बंद कर लेते हैं |फिर वे अपना आग्रह या इच्छा अपने ईष्ट को इस विश्वास के साथ बताते हैं की वह ईष्ट उन्हें सही जबाब देगा |वास्तव में नाम ईष्ट का होता है किन्तु यहाँ सम्पूर्ण प्रक्रिया अवचेतन पर चलती है |वह अपना आग्रह या इच्छा अपने अवचेतन मन को इस विश्वास के साथ बताते हैं की उनके मष्तिष्क का ज्ञान उन्हें सही जबाब देगा |
सबसे अद्भुत विशेषता अवचेतन की यह है की इच्छित परिणाम की कल्पना करें और इसकी वास्तविकता को महसूस करें ,जीवन का शास्वत सिद्धांत आपके चेतन चुनाव और आपके चेतन आग्रह पर प्रतिक्रया करेगा ,क्योकि क्रिया की प्रतिक्रिया प्रकृति का नियम है |विश्वास रखें की आपको मिल गया है और आपको मिल जाएगा |प्रार्थना चिकित्सा का प्रयोग करते समय आधुनिक मानसिक चिकित्सक या वैज्ञानिक यही काम करता है |धर्म विशेषज्ञ यही काम करता है |आपका विश्वास उनपर होता है और यह आपको विश्वास दिलाते हैं की आप मान लो आपको मिल या ,ईश्वर चाहे तो सब मिल सकता है |आप मान लेते हो इश्वर के नाम पर या किसी अन्य माध्यम के नाम पर |बस आपके अवचेतन की क्रिया शुरू हो जाती है और यह उस दिशा में काम करने लगता है स्वयं ईश्वर की तरह |
यदि आप अपने जीवन में कुछ चाहते हैं और आपने मन में इसकी साकार कल्पना नहीं की है तो वह चीज आपको नहीं मिल सकती। सकारात्मक विचारों के बार-बार दोहराने से यह कल्पना सहज ही दिखाई देने लगती है। यदि आपको कोई चीज चाहिए तो इसके लिए क्या करना होगा? सबसे पहले तो अपने मन में इसका सृजन करना होगा, तभी वह वास्तविक जीवन में प्रकट हो सकती है। विचारों का यह नियम कभी असफल नहीं होता।
विचारों के इस नियम के साथ यदि अवचेतन मन की शक्ति को जोड़ दिया जाए तो यह नियम आपके जीवन में चमत्कार कर सकता है। अवचेतन मन की कुछ शक्तियां हैं। रात को अगर आप यह सोचकर सोएं कि सुबह छह बजे उठना है तो अवचेतन मन की अलार्म घड़ी आपको जगा देती है। आपकी आंख छह बजे के करीब खुल जाती है। कई बार तो ठीक छह बजे ही आप जाग जाते हैं। आपने कभी सोचा कि ऐसा क्यों होता है? कभी नहीं ना। यह आपके अवचेतन मन का काम है। आप उसे जो आदेश देते हैं, वह उसे पूरा कर देता है, हालांकि आपको खुद यह पता नहीं रहता कि आपने उसे आदेश दे दिया है।
पिछली सदी में एक बड़ा रहस्य उद्घाटित हुआ है, वह यह है कि हमारा अवचेतन मन मजाक को नहीं समझ पाता। यह हर बात को सच मान लेता है। मान लीजिए, आपसे कोई काम गड़बड़ हो या और आपने खुद से कहा, मैं इतना मूर्ख कैसे हो सकता हूं? आप यह बात नहीं जानते, लेकिन आपने अपने अवचेतन मन को यह बताकर अनर्थ कर दिया है। इसके बाद होगा यह कि अवचेतन मन आपके जीवन की सारी घटनाओं की छानबीन करके, आपके सामने तस्वीरें पेश करके यह साबित कर देगा कि आप सचमुच मूर्ख हैं। इसके बाद अवचेतन मन आपके माध्यम से ऐसे काम ज्यादा करवाएगा, जिनसे आप मूर्ख साबित हों। यही अवचेतन मन की शक्ति है, यही विचार और कल्पना की शक्ति है।
इस्तेमाल कैसे करें-
———————– कल्पना शक्ति का सही उपयोग मानसिक चित्रों के रूप में किया जा सकता है। मान लें, आप कोई चीज चाहते हैं, जैसे इस लेख के सन्दर्भ में की आपको कैंसर या एड्स या डेंगू से मुक्त होना है और आपको पूर्ण स्वस्थ होना है । इस तरह अंतिम परिणाम तय हो गया। इस तक पहुंचने का एक तरीका तो यह मानसिक चित्र देखना है कि आप सार्वजनिक रूप से यह घोषणा कर रहे हैं कि मैंने ये-ये रचनात्मक कल्पना की थी, जो साकार हो गई। दूसरा तरीका यह मानसिक चित्र देखना कि आप वाकई स्वस्थ होकर अपने घर में रह रहे हैं और अपने दोस्त को बता रहे हैं कि आप पूरी तरह स्वस्थ हो गए हैं और अपनी समस्या से निकल गए है। जब आप यह करेंगे तो कुछ समय उपरांत आप हैरान रह जाएंगे कि आपको अपनी मनचाही स्वस्थता कितनी आसानी से मिल गई। वैसे आपका अंतिम परिणाम चाहे जो हो, कल्पना उसे साकार करने में आपकी मदद कर सकती है। यदि आपको स्वस्थ होना है तो मानसिक चित्र देखें कि आप पूर्ण स्वस्थ है और आराम से टहलते हुए सभी अपने कार्य कर रहे हैं | और हां, तारीख का ध्यान रखें। अगर मानसिक चित्र में साल यानी सन या समय का ध्यान नहीं रखा तो उस चित्र के साकार होने में देर लग सकती है। चित्र देखते समय अगर सारी बातें ध्यान में न रखी जाएं तो गड़़बड़ की आशंका रहती है।
मान लें, किसी को अमीर बनना है और वह यह मानसिक चित्र देखने लगता है कि वह नोट गिन रहा है। वह इस चित्र को लगातार देखता है। आगे चलकर होता यह है कि वह बैंक में कैशियर बन जाता है। इस स्थिति में मानसिक चित्रों की शक्ति ने काम तो किया, लेकिन उसे अपना मनचाहा परिणाम नहीं मिला। दोष कल्पना का नहीं था, दोष तो उसके मानसिक चित्र का था। उसका मानसिक चित्र स्पष्ट नहीं था। वह जो चाहता था, उसका मतलब उसने अवचेतन मन को स्पष्टता से नहीं बताया। उसने यह नहीं बताया कि मैं अमीर बनना चाहता हूं और जो नोट मैं गिन रहा हूं, वह मेरा पैसा होना चाहिए। तो महत्वपूर्ण बात यह है कि आप पूरी स्पष्टता से अवचेतन मन को बताएं कि आप क्या चाहते हैं। इसी तरह एक इंसान ने यह चित्र देखा कि वह डॉक्टर बन रहा है। चित्र सही था, लेकिन उसमें समय अवधि का उल्लेख नहीं था। परिणाम यह हुआ कि उसे डॉक्टर बनने में कई साल लग गए। अवचेतन मन को सही अवधि बताना बहुत महत्वपूर्ण है। आप अमुक परिणाम कब तक चाहते हैं, इसकी अवधि निर्धारित करना भी जरूरी है।
मानसिक चित्र देखते समय आपको उस भावना को भी महसूस करना होगा, जो अंतिम परिणाम पाने पर आपको मिलेगी। अगर आप अपने रोग से निकल जाएँ तो आप कितने खुश होंगे? बस उसी खुशी को कल्पना-चित्र में महसूस करें। जिस खुशी को आप पाना चाहते हैं, जब आप उस खुशी को महसूस करते हैं तो आप चुंबक बन जाते हैं और उस अंतिम परिणाम को ज्यादा तेजी से अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह बात बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। वे कल्पना तो करते हैं, चित्र तो देखते हैं, लेकिन आनंद की भावना को महसूस नहीं करते। वे यह भूल जाते हैं कि भावना ही तो वह ट्रिगर है, जिससे अंतिम परिणाम साकार होना शुरू होता है। कुदरत आपकी इच्छा पूरी करने के लिए सबसे अच्छा, सरल, सुगम और सीधा रास्ता खोज लेती है। आपको तो इसे बस इतना भर बताना है कि आप अंतिम परिणाम क्या चाहते हैं।
यदि आप अपने अवचेतन मन से कहते हैं कि मेरी मदद करो, मुझे स्वस्थ होने की सख्त जरूरत है तो इतने भर से ही आपके अवचेतन मन तक संदेश पहुंच जाता है कि आपको क्या चाहिए। यह महत्वपूर्ण है। केवल मंजिल तय करें, रास्ता तय न करें। केवल लक्ष्य तय करें, तरीका तय न करें। वह सब अवचेतन मन पर छोड़ दें।आपके अवचेतन मन को यह विश्वास होना चाहिए की आप सचमुच स्वस्थ होना चाहते हैं |आपमें दुविधा नहीं होनी चाहिए ,संदेह नहीं होना चाहिए |यहाँ मूल तकनीक यह है की आपके मन को यह मानना चाहिए की आप पूर्ण स्वस्थ हैं या आप इस रोग अथवा समस्या से निकल सकते हैं ,आपमें खुद ऐसी शक्ति है की आप का रोग ठीक हो जाएगा और आप स्वस्थ हो पहले की तरह जीवन जियेंगे |आपको यह बैठाना है की आपको कुछ नहीं हो सकता ,आपको कोई रोग नहीं हो सकता या आपका रोग ठीक हो रहा और आप जल्दी ही स्वस्थ हो जायेंगे |इससे होता यह है की आपकी आतंरिक प्रतिरोधक शक्ति इतनी प्रबल हो जाती है की वह आपके रोग से कई गुना अधिक शक्ति से लड़ जाती है ,साथ ही आपकी जीवनी उर्जा आपको अतिरिक्त बल देता है ,अवचेतन सदियों के ज्ञान उस दिशा में लगा देता है और फिर चमत्कार होता है की आप मृत्यु साध्य रोग से मुक्त हो जाते हैं |………………………………………………………..हर -हर महादेव
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