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ध्यान :: ध्यान के अनुभव :: ध्यान की प्रक्रिया और ध्यान के लाभ = [[ भाग -१ ]

क्या हैं ध्यान ,धारणा और समाधि
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ध्यान ,साधकों
के बीच एक जाना -पहचाना नाम है |यह साधना का मूल है |ध्यान अथवा ध्यानस्थ होना
अथवा किसी भाव -गुण में डूबना अथवा किसी ईष्ट पर एकाग्र हो जाना ,परम तत्त्व -परमात्मा
की प्राप्ति की और मुख्य कदम है |यही वह मार्ग है जिससे साधना क्षेत्र में सब कुछ
संभव है अर्थात इसके बिना कुछ भी संभव नहीं | आजकल तो यह ध्यान लगाना ,ध्यान करना ,योगा
करना अर्थात ध्यान करना हर ओर सूना जाता है |इसकी अनेक दुकाने भी खुली हुई हैं जो
ध्यान और योग सिखाती हैं |पर वास्तव में ध्यान होता क्या है ,इसमें कैसे -कैसे
अनुभव हो सकते हैं |ध्यान करने की प्रक्रिया अर्थात तरीके क्या क्या हैं ,इससे
क्या क्या पाया जा सकता है ,इसके वैज्ञानिक आधार क्या हैं और इसके लाभ क्या हैं
पूरी तरह सभी को नहीं पता होते |हम अपने इस विशेषांक में इस विषय पर एक सरसरी
दृष्टि डालते हैं पर यह सरसरी दृष्टि भी बहुत लम्बी हो जाती है क्योंकि यह विषय ही
बहुत वृहद् है ,अतः हम इसे कई अंकों में प्रकाशित कर रहे हैं ,जिन्हें पढ़कर हमारे
पाठक ध्यान को अच्छे से समझ पायेंगे और कम से कम इतना तो जरुर जान जायेंगे की यह
है क्या और क्या क्या हो सकता है |
महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन में ध्यान के बारे में कहा है — जिस स्थान
विशेष पर हमने अपना मन ठहराया है ,उसका वहां एक सा बने रहना ध्यान है |उस विचार के
अलावा हमारे मन में कोई अन्य वृत्ति न उठे |निरंतर हमारी वही वृत्ति उसी ओर बहती
रहे |हमारा मन उसी में डूब जाए |कहीं कुछ और न हो |ऐसी स्थिति में मात्र तीन
तत्वों का भान रहना चाहिए — ध्याता ,ध्यान और ध्येय अर्थात मैं ध्यान कर रहा हूँ
,यह ध्यान है तथा यह ध्येय है जिसका में ध्यान कर रहा हूँ |इस अवस्था विशेष में
ध्येय से सम्बंधित समान वृत्तियाँ आती रहेंगी लेकिन अन्य विजातीय वृत्तियाँ नहीं
आएँगी |यदि इस तरह का ध्यान हो तभी यह ध्यान है |जब मन एक ही स्थान पर रुक जाए और
उससे बांध जाए अर्थात ध्यान को एक ही जगह रोक दिया जाए अथवा जिसका हम ध्यान कर रहे
हैं उसे हमारा मन धारण कर ले तो यह धारणा कहलाती है |इसी में तीसरी स्थिति समाधि
की आ जाती है |जब ध्यान इतना गहरा हो जाए की ध्याता और ध्यान शून्य होकर केवल
ध्येय रह जाए तो इसे समाधि कहेंगे |दुसरे शब्दों में समाधि अंगी है तथा धारणा और
ध्यान अंग हैं |जब ध्यान की अवस्था इतनी गहरी हो जाए की कर्ता [ध्याता ] और क्रिया
[ध्यान ] दोनों का भान न रहे तथा ध्येय में ही दोनों एकाकार हो जाएँ तो आत्मा अपने
स्वरुप में ही स्थित हो जाती है |उसे ही समाधि कहते हैं |समाधि दो प्रकार की होती
है -पहली सम्प्रज्ञात और दूसरी असम्प्रज्ञात |अभी हम ध्यान पर ध्यान दे रहे अतः इस
विषय को क्रमशः आगे देखेंगे |क्योकि समाधियों के प्रकार में भी कई प्रकार होते हैं
|
ध्यान के वैज्ञानिक स्वरुप और इसके लाभ हेतु मनोवैज्ञानिकों के निष्कर्ष प्रमाण रूप में लिए जा सकते हैं |परामनोविज्ञान के वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क में छुपे हुए रहस्यमयी शक्तियों पर शोध करते हुये पता लगाया कि मनुष्य के अवचेतन मन मे अलौकिक, अविश्वसनीय और अकल्पनीय शक्तियां विद्यमान है। यदि अवचेतन मन की उन शक्तियों को योग आदि क्रियाओं के द्वारा जागृत कर लिया जाय तो अनेकानेक कौतुक मयी चमत्कार खुद खुद होने लगते हैं जैसेकिसी व्यक्ति के जीवन के गुप्त रहस्यों का पता लगना, मन की बात जान लेना, किसी भी व्यक्ति से मिलते ही उस व्यक्ति के भुत, भविष्य तथा वर्तमान की जानकारी प्राप्त कर लेना या उसके साथ घटने वाली घटनाओं को स्पष्ट देख लेना इत्यादि क्रियायें साधक के जीवन में आकस्मीक होने लगती हैं। ऐसी चमत्कारिक घटनाओं को अतिंद्रिय शक्ति का चमत्कार कहा जाता है।यह सभी ध्यान साधना से ही संभव हो पाता है ,केवल किसी मन्त्र से
अथवा तंत्र से यह पूरी तरह संभव नहीं है |
अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में उठ रही तरंगों पर काफी शोध किया फलस्वरूप वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मन के अन्दर की अवचेतन मन को यदि क्रियाशील बनाया जाय तो बीना किसी आधुनिक उपकरणों तथा बीना किसी संचार  माध्यमों के भी मन के तरंगों को पढ़ कर किसी भी व्यक्ति के मन के रहस्यों को जाना जा सकता है, तथा एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के मन पर अपना प्रभाव डाल सकता है और उसे अपने मनोकुल कार्य करने को बाध्य कर सकता है। 
इसी आधार पर मनो वैज्ञानिकों ने अतिंद्रिय शक्तियों से सम्पन्न व्यक्तियों पर परिक्षण कर पता लगाया कि मनुष्य के मस्तिष्क में विचार उत्पन्न होते ही सारे आकाश मंडल में अल्फा तरंगों के रूप मे फैल जातीे है जीसे कोई भी व्यक्ति अपने अंर्तमन को जाग्रत कर उन अल्फा तरंगो को पकड़ कर किस्ी भी व्यक्ति के मन मे उठ रहे विचारों को पढ़ सकता है अथवा हजारों किलोमिटर दुर घट रही घटनाओं को स्पस्ट रूप से देख सकता है तथा भुत भविष्य तथा वर्तमान काल मे भी प्रवेश कर भुतकाल की जानकारी तथा भविष्य में घटने वाली घटनाओं को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। प्राचीन योग शास्त्रों के अनुसार ध्यान साधना के द्वारा अतिंद्रय शक्तियों को जगाकर मानसिक शक्तियों के माध्यम से दुर दृष्टि, दुरबोध, विचार संप्रेषण एवं भुत भविष्य तथा वर्तमान दर्शन इत्यादि कार्य संपन्न किये जा सकते हैं।……….[[ क्रमशः — अगले अंकों में ]]………………………………………………हरहर महादेव


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