::::::::परमब्रह्म /परमात्मा /सदाशिव /परमतत्व :::::::::
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कुंडलिनी जागरण द्वारा योगी हों या तांत्रिक सभी परम ब्रह्म को पाना चाहते हैं |अर्थात कुंडलिनी जागरण का अंतिम लक्ष्य परम ब्रह्म की प्राप्ति है |इस परम ब्रह्म के बारे में भारतीय शास्त्रों में हर जगह लिखा गया है |हर बड़े और उच्च साधक का अंतिम लक्ष्य यही परम सत्ता रही है |पर यह परम ब्रह्म है क्या ?किसे कहते हैं परमात्मा ,क्यों हजारों ,सैकड़ों वर्ष इसको पाने में लगते हैं और योगी हजारों हजार वर्ष क्यों इसको पाने के पीछे लगाते हैं जबकि किसी भी देवी देवता की सिद्धि तो कुछ वर्ष में ही हो जाती है |कहा जाता है की परम ब्रह्म को पाना ही मोक्ष है अर्थात कुंडलिनी जागरण का भी अंतिम लक्ष्य मोक्ष है |इसका यह भी मतलब हुआ की मोक्ष को पाने में ही इतना अधिक समय लगता है ,तो फिर लोग क्यों कहते हैं की मात्र नाम जपने से मोक्ष हो जाता है ,काशी में मृत्यु होने से मोक्ष हो जाता है ,हरिद्वार में स्नान से या कुम्भ स्नान से मोक्ष मिलता है ,चारो धाम या अमुक देव के दर्शन से मोक्ष मिलता है |गंगा में नहाने से मोक्ष हो जाता है ,गौ दान करने से मोक्ष हो जाता है ,भगवान की पूजा करने से मोक्ष हो जाता है |
क्या योगी और सन्यासी यह सब नहीं जानते जो पहाड़ों में सैकड़ों वर्ष तपस्या करते हैं इस मोक्ष को पाने को |आखिर वह क्या पाना चाहते हैं जो इतना शरीर को कष्ट देते हैं |जब इन्ही सब से मोक्ष हो जा रहा तो तंत्र साधक क्यों आग से खेलते हैं और विपरीत पद्धति से कुंडलिनी जागरण करते हैं |लोग क्यों कुंडलिनी जागरण ही करते हैं जब मात्र ,नहाने ,नाम लेने ,पूजा करने से मोक्ष मिल जाता है तो |कुछ तो बात है जो अलग है |आज हम इसे ही देखते हैं की मोक्ष क्या है ,कुंडलिनी जागरण से क्या होता है ,मुक्ति किसे कहते हैं ,परमात्मा क्या है |इसके पहले हम यह देखते हैं की आखिर यह परम ब्रह्म क्या है |
जब सृष्टि नहीं होती ,तो केवल एक ही तत्व का अस्तित्व होता है |वह है सदाशिव ,जिन्हें वैदिक ऋषि परमात्मा अर्थात परम्सार कहते हैं |उपनिषदों में इसे परमतत्व कहा गया है |इसे परब्रह्म एवं परादेव ,आदिनाथ ,आदिदेव ,देवाधिदेव भी कहा जाता है ,क्योकि सबकी उत्पत्ति इसी में है ,इसी के कारण इसी से होती है और इसी अमृत तत्व से सबका जीवन चक्र चलता है |जिसे वेद परब्रह्म [परमात्मा ] कहता है ,उसे ही शैव मार्गी शिव के नाम से जानते हैं |उसके पांच गुण हैं |वह सर्वज्ञ है ,सभी कृत्यों को करने में समर्थ है ,वह सर्वेश्वर है ,वह मलरहित निर्विकार है ,वह अद्वय है ,अर्थात उसके सिवा दूसरा कोई भी नहीं है |इस प्रकार सभी आध्यात्मिक रहस्यों के बाद ज्ञात होता है की न कुछ बन रहा है ,न ही नष्ट हो रहा है |सब इसी तत्त्व में चल रहा है |सारी सृष्टि इसी तत्त्व का अनंत फैलाव मात्र है |समस्त सृष्टि इसी तत्व की धाराओं से बना परिपथ है और यह चक्रवात की भाँती उत्पन्न होकर विशालतम होती चली जाती है |
सदाशिव की कोई आकृति नहीं है |इनकी जो छवि कैलेंडरों एवं मूर्तियों में दिखाई देती है ,वे इनके विभिन्न गुणों को प्रदर्शित करने वाली छवियाँ हैं |सदाशिव एक तत्व का नाम है ,जो परम सूक्ष्म ,परम विरल .अनश्वर ,सर्वत्र व्याप्त रहने वाला एक तेजोमय तत्व है |एक ऐसा तत्व जो सांसारिक नहीं है |इस सृष्टि में उस जैसा कुछ भी नहीं है |यह अजन्मा है अर्थात इसकी उत्पत्ति नहीं होती |यह सदा शाश्वत है |इसी प्रकार यह तत्व नष्ट भी नहीं होता [यह आत्मा नहीं है ,आत्मा भी इसी से अस्तित्व बनाती है ]|यह सांसारिक नहीं है पर इस प्रकृति और संसार की उत्पत्ति इसी से होती है |इसमें जीवन नहीं है ,पर यह सभी के जीवन को उत्पन्न करके पोषित करता है और जीवित रखता है |इसमें चेतना नहीं है किन्तु समस्त चेतना की उत्पत्ति इसी से होती है |यह कोई जीव नहीं है ,पर यह सब कुछ जानता है |इसमें भूत ,भविष्य और वर्त्तमान का सभी कुछ छिपा [अव्यक्त ] रहता है |यह अनंत तक फैला हुआ एक विचित्र और अद्भुत तत्व है |अजब लीला है इस तत्व की ,जिसको जानने के बाद वैदिक ऋषियों के मुह से निकला –हम नहीं कह सकते इसके बारे में |इस लीला का वर्णन नहीं किया जा सकता |यह समस्त ज्ञान ,बुद्धि और चेतना का हरण कर लेती है |हम कैसे कहें ? वाणी ,ज्ञान ,बुद्धि ,चेतना और सवेदना भी तो इसी से उत्पन्न होते हैं ,इससे स्थूल हैं |इन्ही से इसका वर्णन किस प्रकार किया जा सकता है |यही है परम ब्रह्म |
इसी परम ब्रह्म को पाना ही मोक्ष है और इसी के लिए कुंडलिनी जागरण की जाती है |बिना कुंडलिनी जाग्रत हुए परम ब्रह्म नहीं मिल सकता अर्थात मोक्ष नहीं हो सकता |मोक्ष उस अवस्था को कहते हैं जब आपकी आत्मा खुद उस परम ब्रह्म ,परमात्मा से मिल जाय ,उससे एकाकार हो जाय ,खुद परमात्मा बन जाय ,खुद ब्रह्म बन जाय |इस अवस्था पर इसी को कहते हैं अहम् ब्रह्माष्मी |चूंकि कुंडलिनी जागरण में वर्षों वर्ष लगते हैं अतः इस मोक्ष को पाने में सैकड़ों वर्ष तपस्या करनी पड़ जाती है जबकि हम जिस मोक्ष की बात काशी में मृत्यु ,गंगा स्नान ,पूजा पाठ या नाम जप से करते हैं वह मुक्ति है अर्थात इस जीवन मरण के चक्र से मुक्ति |जीवन मरण के चक्र से मुक्ति की अवस्था मोक्ष नहीं है यह मात्र जीवन चक्र से मुक्ति है जबकि आत्मा का अस्तित्व इसी रूप में बना रहता है और यह एक उच्च ऊर्जा या शक्ति के अंतर्गत आ जाती है और जन्म नहीं लेना होता |हम जितने भी देवी देवता की पूजा करते हैं वह एक उच्च ऊर्जा केंद्र है |उनका अपना उर्जा या शक्ति क्षेत्र होता है वहां तक पहुँचने पर जीवन मरण के चक्र से मुक्ति हो जाती है ,और तब इसे कहते हैं स्वर्ग मिलना |स्वर्ग मिलना मोक्ष नहीं मुक्ति है जबकि योगी और साधक स्वयं देव स्वरुप हो मोक्ष पाते हैं इसी लिए इतने वर्ष तपस्या करते हैं | ……..[क्रमशः ]……………………………………..हर-हर महादेव
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