Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

महामृत्युंजय और मृतसंजीवनी में अंतर

लघु मृत्युंजय ,मृत्युंजय ,महामृत्युंजय ,संजीवनी और मृत संजीवनी में अंतर

==================================================

               जब कभी मनुष्य के प्राणों पर संकट आता है ,दुर्घटना ,बीमारी ,अकाल मृत्यु की सम्भावना किसी को दिखती है या कोई बताता है तब प्राण रक्षक उपायों की बात चलती है |इस स्थिति में सबसे पहले सभी के मन में महामृत्युंजय या मृत्युंजय भगवान् शिव और उनके मंत्र की याद आती है चूंकि अनादी काल से इन्हें मृत्यु से रक्षा करने वाले देवता के रूप में जाना जाता है |मृत्यु और काल इनके अधीन है ,यम इनके अधीन हैं अतः यही मृत्यु से बचा सकते हैं |जब इनके मंत्र की बात चलती है तो मृत्युंजय ,लघु मृत्युंजय और महामृत्युंजय तीन मंत्र इनके बताये जाते हैं |इन तीनों का ही प्रयोग अक्सर विद्वान् लोगों को सुझाते हैं और लोग यह समझते हैं |जब कभी निश्चित मृत्यु की सम्भावना दिख रही हो या कोई मृत्यु शैया पर पीडीए हो तब विद्वान् इससे भी अधिक शक्तिशाली संजीवनी अथवा मृत संजीवनी विद्या के प्रयोग का सुझाव देते हैं |मृत्युंजय और मृत संजीवनी सर्वाधिक शक्तिशाली प्राण रक्षक उपाय माने जाते हैं |

           अब हम आपको इन सबके बीच का मूल भूत अंतर बताते हैं और बताते हैं की कब कौन सा मंत्र अधिक प्रभावी होता है ,किन स्थितियों में कौन सा मंत्र प्रयोग करना चाहिए |महर्षि वशिष्ठ ने महामृत्युंजय मन्त्र को 33 अक्षर का बताया है , जो उनके अनुसार 33 देवताओ और दिव्य शक्तियोँ के धोतक है, इन 33 देवताओ मे है – 8 वसु , 11 रुद्र , 12 आदित्य , 1 प्रजापति एवं 1 वषट्कार ।ये 33 देवता प्राणियो के शरीर के भिन्न भिन्न अंगोँ मे स्थित है , इस मन्त्र के जप से ये सभी शक्तियां शरीर मे चैतन्य होकर प्राणी की रक्षा करती हैँ और शरीरगत निर्बलता , मृत्यु तथा रोगोँ को समाप्त करती है ।

माहामृत्युंजय मन्त्र —

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।

मूलतः यह मृत्युंजय मंत्र है ,महामृत्युंजय की स्थिति में इसमें लघु मृत्युंजय भी जोड़ दिया जाता है |लघु मृत्युंजय मंत्र होता है – ॐ हौं जूं सः या ॐ ह्रौं जूं सः ,अलग विद्वान अलग उच्चारण करते हैं किन्तु यह होता तीन अक्षर का ही है |इस लघु मृत्युंजय को जब गायत्री के प्रथम पद के साथ मृत्युंजय मंत्र में संयुक्त कर दिया जाता है तो यह महामृत्युंजय मंत्र बन जाता है |यथा – ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात भुर्विवः स्वः ॐ सः जूं हौं ॐ |यहाँ ध्यान देने की बात है की मृत्युंजय मंत्र के आगे पीछे गायत्री का प्रथम पद अनुलोम ही रहता है जबकि लघु मृत्युंजय अंत में विलोम हो जाता है |गायत्री और लघु मृत्युंजय के संयोग से मृत्युंजय मंत्र महा मृत्युंजय मंत्र बन जाता है और उसकी शक्तियाँ कई गुना बढ़ जाती है क्योंकि लघु मृत्युंजय की नाकारात्मक शक्तियाँ हटाने की शक्ति और गायत्री की जीवनी ऊर्जा बढाने की शक्ति भी उसमे सम्मिलित हो जाती है |

        अब हम आपको बताते हैं की इनका प्रयोग सामान्य स्थितियों में कब कब होता है |हम साधना और साधक की बात नहीं कर रहे ,हम मात्र सामान्य लोगों द्वारा अथवा पंडित द्वारा किसी के लिए अनुष्ठान की बात कर रहे |जब आप तीनो मृत्युंजय में से किसी की सवा लाख अथवा पांच लाख कलयुग के अनुसार जप करते हैं तो लघु मृत्युंजय सामान्य खतरों से बचाते हुए नकारात्मक शक्तियों से आपकी रक्षा करता है ,सकारात्मक ऊर्जा बढाता है |मृत्युंजय मंत्र सम्भावित दुर्घटना ,गृह दोष ,पीड़ा ,गंभीर रोग आदि ,मृत्यु के सम्भावित कारक की शक्ति को कम करता है |यह दोनों मंत्र किसी भी सामान्य व्यक्ति द्वारा स्वयं किये जा सकते हैं ,किन्तु महामृत्युंजय मंत्र के लिए बहुत अधिक बचाव ,सावधानी और नियम हो जाते हैं अतः इन्हें विशेषज्ञ ही करता है |वैसे तो आजकल के पंडित ,ज्योतिषी किसी को भी महामृत्युंजय का ही सुझाव सीधे दे देते हैं किन्तु अक्सर इनके परिणाम इसलिए उपयुक्त नहीं मिलते क्योंकि सामान्य लोग वह बचाव नहीं रख पाते जो आवश्यक होता है |गलती लोगों की नहीं बताने वाले की होती है और भुगतते हैं सामान्य लोग |

          जब प्राणों पर संकट आसन्न हो ,मृत्यु की निश्चित सम्भावना बन रही हो ,मारक या पार्केश की दशा अन्तर्दशा हो ,गंभीर नकारात्मक शक्तियों का प्रकोप हो ,घर परिवार ,मकान आदि शुद्ध करना हो ,ऐसी दुर्घटना की आशंका हो जिसमे प्राण जाने का भय हो तब मृत्युंजय और लघु मृत्युंजय नहीं ,महामृत्युंजय का प्रयोग होता है और यह संकल्पित अनुष्ठान की तरह होता है |सामान्य पूजन और जप की तरह इसे नहीं लिया जा सकता क्योंकि उर्जा विन्यास अति तीव्र हो जाता है जो प्राण रक्षा करता है |इस ऊर्जा में विक्षेप उत्पन्न हो तो यह विपरीत प्रभाव भी दे सकता है |कहने को कोई कुछ भी कहे किन्तु यहाँ मात्र भावना से काम नहीं चलता |यहाँ ऊर्जा उत्पन्न होती है ध्वनि उच्चारण और पूजन पद्धति से जिसकी अपनी अलग प्रकृति होती है और उसी के अनुरूप आचरण करना होता है |इस जप के समय जप करने वाला और जिसके लिए जप किया जा रहा दोनों के साथ ही उनके परिवार को भी विशेष सावधानियां और बचाव रखने होते हैं जिनके पालन न करने पर हमने अनेको विपरीत प्रभाव पाए हैं लोगों को मिलते हुए |

           जब प्राण अत्यन्त संकट मे होजीवन मे अचानक दुर्घटना आ सकती है , या कोई विशेष आपति , परेशानी , बाधा , राजभय , बीमारी या कष्ट अनुभव हो अथवा जब दुर्घटना हो जाए ,कोई संकट आ जाए ,खतरे शुरू हो जाएँ तब लघु मृत्युंजय ,मृत्युंजय या महामृत्युंजय से ही काम हो जाएगा इसमें सामान्य स्थितियों में संदेह हो जाता है |यहाँ तब शुक्राचार्य प्रणीत मृतसंजीवनी विद्या से प्रेरित संजीवनी महामृत्युंजय मन्त्र का जप करना चाहिए ,  —

संजीवनी महामृत्युंजय मन्त्र –

———————————-

ॐ ह्रौं ॐ जूं ॐ सः ॐ भुः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ ह्रौँ ॐ ।

यह 62 अक्षरोँ का शुक्राराधित महामृत्युंजय मन्त्र संसार का अमोघ मृत्युभय नाश करने वाला मन्त्र कहा गया है ।यहाँ ध्यान देने योग्य है की लघु मृत्युंजय में ह्रौं का प्रयोग होता है |लघु मृत्युंजय और गायत्री के प्रथम पद के हर अक्षर के साथ ॐ को सम्पुटित किया जाता है और मंत्र के अंत में गायत्री का प्रथम पद भी विलोम हो जाता है |इस मंत्र की शक्तियाँ महा मृत्युंजय से अधिक हो जाती है |

              अब हम आते हैं मृत संजीवनी विद्या पर |पौराणिक कथाओं के अनुसार मृत संजीवनी विद्या के द्वारा शुक्राचार्य युद्ध में मृत दानवों राक्षसों को जीवित कर देते थे और यह विद्या उनके द्वारा बनाई गयी थी जो गुरु वृहस्पति के पास भी नहीं थी |कथाओं के अनुसार यह मृत को भी जीवित करने वाली विद्या है किन्तु आज के कलयुग में जो भी साधक इतना सक्षम होगा वह सामान्य लोगों से नहीं मिलेगा अतः आज के समय में यह सोचना की इससे मृतक को जीवित कराया जा सकता है उपयुक्त नहीं |इस विद्या का प्रयोग वहां हो सकता है जहाँ महामृत्युंजय अथवा संजीवनी मृत्युंजय भी असफल हो रहे हों या उनके असफल होने की सम्भावना हो या जब अंतिम विकल्प ही मात्र विकल्प हो |जैसे कैंसर का रोगी ,अंतिम साँसें गिन रहा कोई भी बीमार ,दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति ,असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति जिसका कोई इलाज चिकित्सा विज्ञानं के पास न हो |कोमा में पड़ा व्यक्ति |इस विद्या का प्रयोग सम्भावना पर नहीं होता अपितु घटना होने के बाद या निश्चितता पर होता है |इसके अतिरिक्त जितने भी मन्त्र हैं वह पहले किये जाते हैं |

          मृत संजीवनी में प्रत्येक पद के साथ ॐ को सम्पुटित करते हुए लघु मृत्युंजय ,मृत्युंजय और पूर्ण गायत्री का संयोग होता है |ॐ सार्वभौम ऊर्जा है ,गायत्री जीवनी ऊर्जा है ,मृत्युंजय रक्षक ऊर्जा है |इनका संयोग रक्षा के साथ ही नै जीवनी ऊर्जा उत्पन्न करता है जिससे मृतक भी जीवित हो सकता है |मृत्युंजय द्वारा नई कोशिका का निर्माण अथवा जीवन की उत्पत्ति तब तक सम्भव नहीं जब तक की उसमे जीवनी उर्जा उत्पन्न करने की शक्ति न हो ,यह काम गायत्री से होता है और जीवनी ऊर्जा मिलती है |ॐ से ब्रह्मांडीय ऊर्जा द्वारा नया जीवन उत्पन्न किया जाता है सम्मिलित रूप से |यह मंत्र इतना अधिक तीव्र हो जाता है की इसे सामान्य पंडित ,ज्योतिषी और तांत्रिक भी नहीं जप सकता |केवल व्ही व्यक्ति इसका पात्र होता है जो गुरु संरक्ष्ण में इसे जप चूका हो |यहाँ पहले गायत्री और फिर महामृत्युंजय दोनों को करने के बाद ही व्यक्ति मृत संजीवनी जपने का पात्र बनता है |केवल तब जबकि सभी विकल्प समाप्त हो गएँ प्रयोग होने वाला मन्त्र इस प्रकार होता है |

मृत संजीवनी मंत्र

———————- “ऊँ हौं ॐ जूं ॐ स: ऊँ भू: ॐ भुव: ॐ स्व: ऊँ ˜त्र्यंबकंयजामहे ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ”


Discover more from Alaukik Shaktiyan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Latest Posts