Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

वशीकरण पागल बना सकता है

तांत्रिक क्रिया मानसिक संतुलन बिगाड़ सकता है

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                     वशीकरण ,आकर्षण ,मोहित करना यानी मोहन इन्ही तीन तांत्रिक षट्कर्मों के प्रति आज के समय में लोगों में भारी रूचि देखि जा रही है |जब व्यक्ति खुद की क्षमता ,योग्यता ,कर्म ,आकर्षण शक्ति ,व्यक्तित्व से किसी को आकर्षित या अनुकूल नहीं कर पाता तो वह चाहता है की कोई ऐसी युक्ति मिले जिससे वह जिसे चाहता है उसे अपने अनुकूल कर सके ,अपने पर मोहित कर सके ,वशीकृत कर सके |यह चाहत उसे इन कर्मों की तरफ झुकाती है और वह रास्ते तलाश करने लगता है |बहुत से लोग ,विशेषकर महिलायें इसमें अधिक रूचि लेती हैं ,यद्यपि इनमे से अधिकतर की इच्छा अपना भला करने या अपने परिवार के व्यक्ति को ठीक करने की ही होती है ,परन्तु बहुत सी ऐसी महिलायें भी होती हैं जो दूसरों पर भी इसका उपयोग करना चाहती हैं |पुरुष -महिलाओं का अनुपात दूसरों पर प्रयोग करने में लगभग बराबर ही होता है पर पुरुष खुद नहीं करना चाहता और चाहता है की उसका काम कोई और कर दे ,जबकि महिला खुद भी प्रयास करने या टोटके करने में गुरेज नहीं करती |पुरुषों में विवाहित जल्दी खुद यह प्रयोग नहीं करना चाहता जब तक की मजबूरी न हो जाए ,युवक या अविवाहित या प्रेम प्रसंगों में फंसे युवा अधिक इनमे रूचि लेते हैं |महिलाओं में विवाहित अधिक रूचि लेती हैं जबकि अविवाहित युवतियां तभी प्रयास करती हैं जबकि उन्हें किसी को पाना हो जो उनसे जुड़ा हो या फिर धन और प्रतिष्ठा के आकांक्षा में |

                इन मामलों में वशीकरण ही अधिक किया जाता है जबकि आकर्षण और मोहन के प्रयोग कम होते हैं |कुछ मामलों में सफलता भी मिलती है और कुछ में असफलता भी मिलती है ,किन्तु किये गए प्रयोग की ऊर्जा व्यर्थ नहीं जाती वह कहीं न कहीं तो क्रिया करती ही है ,भले सफलता मिले या न मिले |सफलता -असफलता ऊर्जा संतुलन का विज्ञान है जो कई कारकों पर निर्भर करता है |ऊर्जा संतुलन नहीं बना क्रिया असफल हो जायेगी |की गयी क्रिया असफल हो जाए पर भेजी उर्जा का कहीं कुछ प्रभाव तो जरुर होगा इसका रियेक्सन तो जरुर होता है ,दिखाई भले न दे |असफलता के कारण तो कई होते हैं पर एक कारण तो यह भी होता है की अधिकतर लोग यहाँ तक की अच्छे तांत्रिक भी यह नहीं समझ पाते की कहाँ वशीकरण का प्रयोग होना चाहिए ,कहाँ आकर्षण का और कहाँ मोहन का |जहाँ जिसका प्रयोग होना चाहिए ,उसके विपरीत प्रयोग परिणाम को असफल कर देगा किन्तु भेजी उर्जा कहीं न कहीं प्रभाव देगी और सम्बंधित व्यक्ति के मष्तिष्क पर बोझ तो डालेगी ही |

              जब भी कोई क्रिया या पूजा -पाठ ,तंत्र -मंत्र किया जाता है तो वह तरंगों में बदल जाता है |जैसे बिजली के लिए कोयला या ईंधन कहीं और जलाया जाता है और बिजली कहीं और तक पहुँचती है |टेलीवजन प्रोग्राम कहीं और बनते हैं और देखते कहीं और हैं लोग ,मोबाइल पर बोलते कहीं और से हैं और सुनते कहीं और से हैं |यह सब तरंगों से होता है |जो क्रिया होती है सब तरंग में बदल जाती है |पूजा -पाठ -साधना में लक्ष्य ईश्वर होता है ,जबकि वशीकरण ,मोहन आदि षट्कर्म में लक्ष्य व्यक्ति होता है |मोबाइल से कान में आवाज आती है और मष्तिष्क प्रभावित होता है ,वशीकरण में मष्तिष्क तक तरंग आती है और शरीर प्रभावित होता है |यदि पर्याप्त और उचित ऊर्जा आई तरंगों में तो सफल ,और पर्याप्त न रही तो असफल ,किन्तु जैसे लोहे पर हथौड़ा चलाने से निशान तो बन ही जाता है लोहा टूटे भले नहीं वैसे ही इसका भी प्रभाव तो हो ही जाता है काम भले न बने |ऐसा नहीं है की कोई क्रिया की जाए और वह व्यर्थ हो जाए ,वह प्रभाव जरुर दे जाती है |इसका असर यह होता है की किसी वस्तु पर जब कोई जोर लगा दिया जाय और उस पर चोट कर दिया जाय तो उसकी क्षमता पर प्रभाव तो पड़ ही जाता है ,साथ ही वह असंतुलित भी हो जाता है ,इसी तरह जब किसी पर कोई क्रिया कर दी जाए तो उसके मष्तिष्क पर तरंगों का बोझ तो बढ़ ही जाता है |

                  कई क्रियाएं हो जाएँ तो मष्तिष्क असंतुलित भी हो सकता है |जैसे कहा जाता है की किसी उग्र शक्ति की साधना करने में व्यक्ति के पागल होने का भय होता है |इसका कारण यह होता है की उस शक्ति की ऊर्जा तरंगे व्यक्ति नहीं संभाल पाता और उसके मष्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है | ऐसा ही कुछ यहाँ भी होता है |जब तरंगें भेजी जाती हैं तो वह मष्तिष्क पर भार बढ़ा देती हैं |व्यक्ति की सोच ,चिंतन ,चेतन की समझ और अवचेतन की क्रिया को प्रभावित करती हैं जिससे व्यक्ति के मष्तिष्क से निकलने वाले निर्देश अनियमित होते हैं फलतः व्यक्ति का शरीर और रासायनिक क्रियाएं प्रभावित हो जाती हैं |व्यक्ति में परिवर्तन आने लगता है |सफल हो गयी क्रिया तो व्यक्ति किसी की ओर झुक जाता है ,नहीं हुई सफल क्रिया तो भी उसके दिमाग पर प्रभाव कुछ न कुछ तो आ ही जाता है और उसकी कार्यशैली ,कार्य क्षमता प्रभावित होने लगती है |

                इसी तरह की कई क्रियाएं व्यक्ति पर हो जाएँ तो उसका मष्तिष्क कुंद यानी जड़ हो सकता है ,भले वह क्रियाएं अलग -अलग प्रकार की ही क्यूँ न हों |अक्सर सफल और उच्च लोग किसी न किसी गुरु अथवा तांत्रिक से सम्पर्क रखते हैं |इसका कारण केवल उनकी सफलता से सम्बन्धित ही नहीं होता ,अपितु उनकी सुरक्षा से भी होता है ,क्योंकि इस तरह की तांत्रिक अभिचारों का उन्हें भय होता ही है |क्रिया सफल भले न हो कोई किन्तु कोई न कोई प्रभाव तो देती ही है और कई क्रिया हो तो मिला जुला प्रभाव गंभीर होकर व्यक्ति को असंतुलित कर सकता है या उसे जडबुद्धि कर सकता है ,इसलिए लोग सुरक्षा रखते हैं |कभी कभी यह भी सूना होगा की कोई व्यक्ति बहुत बुद्धिमान और सफल था किन्तु धीरे धीरे वह कुंद हो गया ,निर्णय गलत होने लगे ,दिनचर्या प्रभावित हो गयी ,रहन सहन बदल गया और अंततः असफल हो गया |इसका कारण बहुत सा हो सकता है किन्तु तांत्रिक अभिचारों से इनकार नहीं किया जा सकता |

                  आप किसी अपने को सुधारने या उसे सही रास्ते पर लाने के लिए कोई क्रिया कर रहे या करवा रहे ,अथवा अपने किसी प्रेमी -प्रेमिका ,पति -पत्नी या सगे -सम्बन्धी ,मित्र -परिजन के लिए क्रिया कर रहे या आप जिससे लगाव रखते हैं उसके लिए कोई क्रिया कर रहे अथवा किसी तांत्रिक से करवा रहे तो आप एक तरह से उसका नुक्सान कर रहे ,क्यंकि जो भी क्रिया आप कर रहे या करवा रहे उसका बोझ उस व्यक्ति के मष्तिष्क पर बढेगा ही बढेगा और थोडा ही सही उसका मष्तिष्क अपनी कार्यशैली बदलेगा जरुर ,दिखाई भले न दे |आप सफल होने तब भी ऐसा होगा और असफल होंगे तब भी ऐसा होगा |कई लोग क्रिया कर दें तो अलग ही प्रभाव आ जाएगा और व्यक्ति अनियंत्रित कार्य कर सकता है और उसके सोच का पता लगाना मुश्किल हो सकता है |इस प्रकार जिसे आप चाहते हैं उसका कहीं न कहीं से आप नुक्सान तो कर ही रहे अपने स्वार्थ में |वह आपको मिलता है या नहीं बाद की बात ,पहले ही आप उसका नुकसान शुरू कर दिए |कभी ऐसा भी हो सकता है कि कई तरह की असफल क्रियाओं ने व्यक्ति का मष्तिष्क ही असंतुलित कर दिया और वह पागल हो गया अथवा पागलों जैसी हरकतें करने लगा |जैसे लोहे को तोड़ने के लिए अनेक हथौड़े मार दिए ,लोहा टूटा तो नहीं पर उसका स्वरुप बिगड़ गया जो अब मूल रूप में आ ही नहीं सकता जब तक की उसे आग में न डाला जाए |

            यद्यपि मेरी बात लोग मानेंगे कहना मुश्किल है ,किन्तु कहना दायित्व बनता है |यदि आपका उद्देश्य यदि किसी को सुधारने का ,सही रास्ते पर लाने का हो तब तो ठीक है ,किन्तु यदि किसी को बेवजह वशीकृत करना चाहते हैं तो ऐसी क्रियाएं न करें |इससे आप उसकी क्षति कर रहे |किसी को वशीकरण आदि क्रिया से पाने का प्रयास न करें उसके मष्तिष्क की क्षमता आप प्रबावित करेंगे |अपनी योग्यता से उसे पायें |आपका उद्देश्य यदि अपने पति -पत्नी ,परिजन -सम्बन्धी ,मित्र -सहयोगी को सुधारने ,अनुकूल करने की है तो आप यहाँ वहां के टोटके न आजमायें उसपर ,छोटी -छोटी या ऐसी क्रियाएं न करें न करवाएं जिससे आपका काम भी न बने और उस व्यक्ति के मष्तिष्क पर मात्र बोझ बढ़े |आपका काम तो होगा नहीं व्यक्ति पर भार अवश्य बढ़ जाएगा |

           जब तक सही तरीका और पर्याप्त शक्ति /ऊर्जा की क्रिया न मिले आप कोई क्रिया न करें ,न करवाएं |जब भी करें ऐसा करें की काम हो ही जाए |आखिर आप किसी अपने के लिए ही क्रिया कर रहे |ऐसा करें की उसका नुक्सान न हो |जब आपका काम हो जाए तो आप उसके ऊपर ऐसी जो भी क्रियाएं हैं उन्हें हटाने का भी प्रयत्न करें जिससे उसके जो नैसर्गिक गुण हैं जो वास्तविक ग्रह प्रभाव हैं ,उनके अनुसार व्यक्ति कार्य कर सके |आप उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करें ताकि फिर उसपर कोई ऐसी क्रिया प्रभाव न डाल पाए |आपको लगता हो की आप पर या आपके किसी परिजन पर ऐसा कुछ है तो उसे हटाने का और फिर दुबारा न हो इसकी सुरक्षा की व्यवस्था करें |इससे उसके या आपके मष्तिष्क पर एक अतिरिक्त बोझ होगा जो कहीं न कहीं प्रभाव डाल रहा होगा |हमने इस विषय पर अनेक लेख लिखे हैं ,अपने यू ट्यूब चैनल पर अनेक विडियो प्रकाशित किये हैं जहाँ हमने हटाने और सुरक्षा के उपायों पर विस्तार से बताया है यहाँ केवल इतना कहेंगे कि ऐसे प्रभावों को निष्क्रिय भी किया जाता है और प्रभाव न डालें यह भी उपाय किये जाते हैं |…………………………………………………हर -हर महादेव  


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