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वशीकरण में खिलाने -पिलाने की क्रिया

वशीकरण में खिलाने -पिलाने के प्रयोगों का प्रभाव

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          तांत्रिक षट्कर्म के अंतर्गत आने वाले आकर्षण ,मोहन और वशीकरण में ही अधिकतर खिलाने -पिलाने की वस्तुओं का प्रयोग होता है |आकर्षण अधिकतर दूर के व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है अथवा ऐसे व्यक्ति के लिए जिससे संपर्क ही पहले मुश्किल हो या वार्तालाप ही नहीं हो पाती हो |मोहन की प्रक्रिया भिन्न होती है जिसमे व्यक्ति की संवेदनशीलता को प्रभावित किया जाता है |वशीकरण में व्यक्ति को वशीकृत कर दिया जाता है जिससे वह सबकुछ जानते समझते हुए भी मजबूर होता है बात मानने को |यह सम्मोहन से भिन्न होता है |व्यक्ति पूरी चेतन अवस्था में होकर भी अवश होता है और उस पर किसी और का नियंत्रण होता है |

          वशीकरण में खिलाने -पिलाने की वस्तुओं की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है जिससे खिलाया वस्तु शरीर में प्रवेश कर रासायनिक और तरंगीय परिवर्तन कर व्यक्ति की चेतना पर हावी हो जाता है |अभिमंत्रित खिलाई -पिलाई वस्तुएं नष्ट नहीं होती ,न ही यह पचती हैं जिससे यह शरीर से बाहर नहीं निकलती और वर्षों वर्ष शरीर में पड़ी रहती हैं |इन्हें पूजा -पाठ अथवा गंभीर अनुष्ठानों से भी नहीं निकाला जा सकता |इन्हें निकालने की एक निश्चित प्रक्रिया होती है जिसमे किसी शक्ति से यह कार्य कराया जाता है |इसके जानकार कहीं कहीं ही मिलते हैं जबकि इसके नाम पर धोखे भी खूब होते हैं |बहुत से ऐसे भी तांत्रिक होते हैं जो खिलाने पिलाने को निकालने के नाम पर विभिन्न वस्तुएं विभिन्न माध्यमों से निकाल कर दिखा देते हैं ,जबकि मूल पदार्थ यथावत शरीर में रह ही जाता है |इस प्रकार के कुछ हाथ की सफाई दिखाने वाले भी होते हैं जो वस्तुएं दिखा देते हैं और बोलते हैं की यह खिलाया गया था जो निकला है |इस नाम पर पैसे ऐंठ लेते हैं |

        जैसा की सभी जानते हैं सभी पदार्थों से तरंगों का उत्सर्जन होता है चाहे वह वनस्पति हो ,जड़ हो या कभी जीवित रही और आज मृत वस्तु |खिलाने -पिलाने की वस्तुओं को जब विशिष्ट क्रिया के बाद अभिमंत्रित किया जाता है तो उसके गुण धर्म में परिवर्तन हो जाता है और मूल गुणों के साथ नए गुण विकसित हो जाते हैं |यह अपनी मूल तरंगों के साथ नए तरंग भी उत्सर्जित करता है जो शरीर में जाने पर विशिष्ट चक्र की तरंगों से क्रिया करने लगता है ,जिससे व्यक्ति की रासायनिक क्रियाओं के साथ ही उसका चेतन और अवचेतन मन भी प्रभावित होने लगता है |उसके स्वप्न बदल जाते हैं ,उसकी सोच की दिशा एक तरफ अधिक भागती है |उसे उद्विग्नता का अनुभव होता है और बार बार वह विचलित होता है |उसे लगता है जैसे उसका कुछ खो गया हो और वह उसे ही खोजने का प्रयत्न करता है |इस स्थिति से निजात उसे तभी मिलती है जब वह वशीकृत करने वाले के संपर्क में आता है या उसके साथ होता है |

         व्यक्ति की सोच और रुचियों में भी रासायनिक बदलावों से परिवर्तन आता है और उसकी पसंद नापसंद बदलने लगती है |उसे वशीकरण करता की सभी बातें अच्छी लगती है और उसका साथ उसे शान्ति देने वाला महसूस होता है |उससे दूर रहने पर उसे अपने मष्तिष्क पर एक बोझ महसूस होता है और वह उलझन जैसा महसूस करता है |यह स्थिति तब तक रहती है जब तक खिलाया पिलाया वास्तु शरीर में रहे |ऐसे व्यक्ति को गंभीर पूजा पाठ करनी पर या किसी तांत्रिक द्वारा कोई क्रिया करने पर पेट दर्द आदि हो सकता है |ऐसे लोगों का पेट अक्सर खराब हो जाया करता है अथवा उन्हें कब्ज जैसा महसूस होता है |चूंकि यह अभिचार है अतः इसके पराभाव तो आयेंगे ही |सामान्य मष्तिष्क पर एक अतिरिक्त बोझ पड़ जाने जैसा यह होता है जबकि शरीर ,मन और मष्तिष्क किसी का और अंदर से आदेश देने वाला कोई और |ऐसे में बार बार उलझन होती है और विचार भटकते हैं व्यक्ति के |उसकी एकाग्रता प्रभावित होती है |व्यक्ति स्वतंत्र होकर भी स्वतंत्र नहीं महसूस करता जबकि उसे कारण कुछ भी समझ नहीं आता |

         यदि खिलाने पिलाने में सामान्य जड़ी बूटियों का प्रयोग हो तब तो कुछ राहत रहती है किन्तु यदि खिलाने पिलाने की वस्तुओं में शरीर के उत्पाद या अवयव का प्रयोग किया गया हो या व्यक्ति की कोई वस्तु लेकर कोई क्रिया की गयी हो तो स्थिति और विषम होती है |ऐसे में व्यक्ति बार बार उस व्यक्ति तक पहुँचने का प्रयत्न करता है जिसने यह क्रिया की हो |यहाँ मोहन जैसी स्थिति उत्पन्न होने लगती है और व्यक्ति में एक निश्चित हारमोन और फेरोमोन की गंध के प्रति गंभीर आकर्षण जाग जाता है |उसे तभी संतुष्टि मिलती है जब वह उस गंध के आसपास हो या उसके अनुसार रहे |उसके भावनाओं तक के प्रति वह संवेदनशील होने लगता है |यदि व्यक्ति पर ऐसे कई प्रयोग कई लोग कर दें या बार बार क्रियाएं हो जाएँ तो व्यक्ति की मानसिक उलझन बहुत बढ़ जाती है ,व्यक्ति की मानसिक स्थिति अच्छी नहीं रह पाती और बार बार उलझने बढने पर किंकर्तव्यविमूढ़ जैसी स्थिति में पहुचने लगता है जो कभी मानसिक स्थिति बहुत बिगाड़ भी सकता है |इसके साथ ही उसका पाचन तंत्र औ सभी शारीरिक क्रियाएं भी प्रभावित होती हैं जिससे व्यक्ति की दिक्कते बढने लगती हैं |

खिलाये पिलाए का निदान बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इसे निकालना मुश्किल होता है |यह एक तकनिकी काम है जो बहुत कम जानते हैं |उच्च शक्ति के मन्त्रों का प्रयोग यदि वस्तु पर हो तो निकालना भी मुश्किल हो जाता है अच्छे अच्छे तांत्रिक के लिए |इसे निष्क्रिय करना और यह क्रिया दोबारा न हो पाए यह व्यवस्था करना अपेक्षाकृत आसान होता है |इसके लिए अच्छे तांत्रिक की आवश्यकता होती है जो खिलाये पिलाए की प्रकृति और उसकी शक्ति को पकड़ सके |यदि निकाल न पाए तो भी उसे प्रभावहीन कर सके |इसके लिए वस्तु विशेष को विशेष महाशक्ति के संपुटित मंत्र से अभिमंत्रित कर उपर से खिला -पीला दिया जाता है जिससे पहले की वस्तु या सभी वस्तुएं प्रभावहीन हो जाती है |कुछ समय बाद इनकी शक्ति समाप्त होने पर वस्तु पाच जाती है और शरीर से बाहर निकल जाती है |सुरक्षात्मक उपायों में उग्र महाविद्या के कवच /ताबीज कारगर होते हैं जो सरीर के संपर्क में सदैव रहें |इनके प्रभाव से खिलाये पिलाए वस्तु की मंत्र शक्ति प्रभावहीन हो जाती है जिससे वह वस्तु सामान्य वस्तु बनकर रह जाती है खिलाने के बाद भी और पाच जाती है शरीर में जिससे बाहर निकल जाती है |न शरीर में रहती है न प्रभाव दे पाती है |……………………………………………….हर हर महादेव


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