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श्रापित तो नहीं है आप ?

कुंडली में श्राप योग /श्रापित कुंडली

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        श्रापित दोष का मतलब हुआ किसी व्यक्ति को श्राप मिला हुआ होना। श्राप कई तरह का होता है |पित्र श्राप ,मातृ श्राप ,मातुल श्राप ,भ्रातृ श्राप ,ब्राह्मण श्राप ,सर्प श्राप ,प्रेत श्राप ,गुरु श्राप ,ऋषि श्राप ,गौ श्राप आदि |इनमे से कुछ श्रापों को ज्योतिषीय आधार पर पहचाना जा सकता है जबकि कुछ में ज्योतिषीय आधार न होने पर भी श्राप परिणाम मिलते रहते हैं |इस जन्म के श्रापों का कोई पूर्व ज्योतिष आधार नहीं बनता किन्तु इनका परिणाम इसी बार भी मिल सकता है अथवा अगली बार भी जा सकता है |ऋषि ,गौ ,गुरु आदि के श्राप अवश्य मिलते हैं किन्तु इनका ज्योतिषीय विवेचन कठिन होता है |

             अधिकतर श्रापित लोगों को संतान सम्बन्धी दिक्कते ही आती हैं और इनका प्रभाव वंश वृद्धि पर पड़ता है जिससे या तो संतान उत्पन्न होने में ही बाधा आती है या उत्पन्न होने पर भी कुयोग्य होती है या खुद ऐसी होती है जो कष्ट ही दे |कुछ श्राप जीवन के किसी भी क्षेत्र में दिखाई दे सकते हैं |मुख्यतया सामान्य श्रापित दोष तब होता है, जब किसी की कुंडली के एक ही स्थान पर शनि और राहु दोनों उपस्थित होते हैं। यह व्यक्ति द्वारा पूर्व में किए पापों का नतीजा होता है, जो अब सामने आता है। अगर किसी की कुंडली में श्रापित दोष हो तो उसे अच्छा फल नहीं मिलता है, भले ही उसकी कुंडली में अच्छे ग्रहों का समूह मौजूद हो। लेकिन कालसर्प दोष की ही तरह प्राचीन ज्योतिषशास्त्रों में श्रापित योग की जड़ों का जिक्र भी नहीं किया गया है। पहले हम आपको ज्योतिष योगों के आधार पर श्राप दोष को बता रहे फिर इसके लक्षणों और निदान का उपाय भी बताएँगे |

1- पितृ दोष- यह किसी जातक की जन्मकुण्डली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि दोषों के कारण दोष हो तो इसके लिए नारायण बलि नाग बलि, गया श्राद्ध, अश्विन कृष्ण पक्ष में अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन व दानादि करना चाहिए।

2- मातृ दोष- यदि चंद्रमा पंचमेश होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रांत हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में हो तो मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी आती है। इस दोष की शांति के लिए गोदान अथवा चांदी के पात्र में गो दुग्ध भरकर दान देना शुभ होता है। इसके अलावा एक लाख गायत्री मंत्र का जप करवाकर हवन, ब्राह्मण भोजन, वस्त्रादि का दान एवं दशमांस का तर्पण करने से दोष शांत होता है। पीपल वृक्ष का 28 हजार परिक्रमा का विधान भी बताया गया है।

3- भातृशाप- तृतीय भावेश मंगल राहु युक्त होकर पंचम भाव में हो और पंचमेश व लग्नेश दोनों अष्टम भाव में हो तो भ्रातृ शाप के कारण कष्ट एवं हानि होती है। इसके उपास स्वरूप श्रीसत्यनारायण व्रत रखकर विधि पूर्वक विष्णु पूजन तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर प्रसाद वितरण करना चाहिए।

4-सर्प शाप- यदि पंचम भाव में राहु हो और उसपर मंगल की दृष्टि हो तो सर्प शाप के कारण संतान की हानि होती है। इसके उपाय स्वरूप नारायण नागबलि विधि पूर्वक करवाना चाहिए तथा ब्राह्मणों को यथा शक्ति भोजन, वस्त्र, गौ, भूमि, चांदी व सुवर्ण आदि का दान करना चाहिए।

5-ब्राह्मण शाप- यदि गुरु की राशि (धनु या मीन) पर राहु हो, पंचम में गुरु, मंगल व शनि हो तथा नवमेश ग्रह अष्टम में हो तो ब्राह्मण शाप से संतान का क्षय होता है। इस शाप की शांति के लिए मंदिर में या सुपात्र ब्राह्मण को श्रीलक्ष्मीनारायण की मूर्तियों का दान तथा यथाशक्ति कन्यादान, बछड़े सहित गोदान, शैय्या दान दक्षिणा सहित करना शुभ होता है।

6- मातुल शाप- पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु व राहु हों तो मामा के शाप से संतान की हानि होती है। उपाय स्वरूप किसी मंदिर में श्रीविष्णु प्रतिमा की स्थापना, लोक हितार्थ पुल, तालाब, नल या प्याऊ लगवाने से संतति व संपत्ति में वृद्धि होती है।

7- प्रेत शाप- जब किसी जातक की जन्मकुण्डली के पंचम भाव में शनि, रवि हों और सातवें में क्षीण चंद्रमा हो तथा लग्न में राहु व 12वें भाव में गुरु हो तो प्रेत शाप क९ कारण वंश वृद्धि में बाधाएं आती हैं।  इसके अतिरिक्त यदि किसी जातक द्वारा अपने दिवंगत पितरों के श्रद्धादि कर्म ठीक से न किए जा सके हों अथवा दिवंगत माता-पिता की उचित सेवा न की जा सकी हो तो भी प्रेत-पिशाचादि के कारण वंश वृद्धि में बाधाएं आती हैं। उपाय स्वरूप भगवान शिव की पूजा करवाकर विधिवत रूद्राभिषेक करवाना चाहिए और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।

          इन शापों के कारण व्यक्ति की उन्नति नहीं होती, पुरुषार्थ का फल उसे प्राप्त नहीं होता। उसकी संतान जीवित नहीं रहती ,यदि जीवित हो तो उनसे सुख नहीं मिलता या संतान को ही कष्ट मिलता है।जिनकी श्रापित कुण्डलियाँ हों या जिन्हें श्राप मिला हुआ हो उनके जीवन में भाग्य का पूरा शुभ फल नहीं मिलता ,बुरे परिणाम अधिक मिलते हैं |बेवजह रोग ,शोक ,दुर्घटनाएं ,अपयश ,चिंता ,अनहोनी ,विघ्न -बाधा ,उन्नति में रुकावट ,असफलता दिखाई देती है |कुंडली के अनुसार भाग्य कुछ और कहता है पर जीवन में होता कुछ और है |दाम्पत्य कष्ट ,चरित्रहीनता ,अपमान ,लम्बी बीमारियाँ ,अपंगता ,वियोग आदि भी देखने में आते हैं |गुरु ,ऋषि आदि के श्राप में आध्यात्मिक उन्नति में ,मुक्ति मार्ग में बाधा आती है ,पूजा साधना के परिणाम प्राप्ति में कमी दिखाई देती है ,कुलदेवता प्रभावित होते हैं | इन सब बुरे प्रभावों का कारण शापित कुंडलियां हैं। शापित कुंडलियों में त्रिशूल योग के आधार पर कालसर्प योग की तरफ ज्योतिष विद्वानों का ध्यान खींचा गया है। शापित कुंडलियों और कालसर्प योग की कुंडलियों में काफी हद तक समानता पाई जाती है।

        जन्मांग में किसी भी स्थान में राहु-मंगल, राहु-बुध, राहु-गुरु, राहु-शुक्र, राहु-शनि, राहु-रवि इनमें से एक भी युती हो तो उस कुंडली को शापित कुंडली कहना चाहिए। इसी तरह चंद्र-केतु, रवि-केतु, रवि-राहु, इन ग्रहों की युतियां या प्रतियोग, रवि-केतु युती या प्रतियोग, चंद्र, राहु युति, चंद्र-शनि-राहु, चंद्र-मंगल राहु ऐसी युतियां भी शापित कुंडलियों में देखने में आती हैं।सभी ग्रह राहु-केतु के बीच अटके हुए हों तो ‘पूर्ण कालसर्प योग’ बनता है और यदि कोई एक ग्रह राहु-केतु की पकड़ के बाहर हो तो ऐसी स्थिति को ‘कालसर्प योग छाया’ कहना चाहिए।‘कालसर्प योग’ वृषभ, मिथुन, कन्या एवं तुला लग्र के व्यक्तियों को विशेष रूप से प्रभावित करता है।कुंडली में राहु अष्टम स्थान में और केतु द्वितीय स्थान में हो और ऐसी अवस्था में यदि ‘कालसर्प योग’ बने तो यह ‘योग’ कष्टकारक होता है। ऐसे व्यक्तियों को सपने में सांप दिखाई देते हैं और व्यक्ति नींद में घबराकर भयभीत हो उठ बैठता है।ग्रहों के गोचर भ्रमण का फलित ज्योतिष में बड़ा महत्व है। कुंडली में जब गोचर भ्रमण से राहु छठे, आठवें या बारहवें स्थान में भ्रमण करता है तब या राहु-केतु की दशा-अंतर्दशा में कालसर्प योग के फल तीव्रता के साथ अनुभव में आते हैं।…………………………………………………..हर हर महादेव


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