Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

षोडशी कवच उन्नति देता है

चरित्रहीनता ,नशे की प्रवृत्ति रोकती है षोडशी कवच

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              वर्तमान समय में किसी भी परिवार में सबसे अधिक क्षति -हानि -टूट आदि केवल दो ही वजह से हो रही चारित्रिक दोष और दुर्व्यसन से |चारित्रिक दोष में विवाहेत्तर सम्बन्ध ,अनैतिक प्रेम सम्बन्ध ,खानदान -परिवार की मर्यादा के विपरीत प्रेम सम्बन्ध ,कहीं भी किसी के प्रति शारीरिक आकर्षण उत्पन्न होना ,गलत कार्यों -भावनाओं में लिप्त होना आता है ,जबकि दुर्व्यसन में नशे में लिप्त होना और ऐसे कार्यों में रूचि रखना जो सामाजिक -पारिवारिक मर्यादा -संस्कार -संस्कृति के अनुकूल न हो अथवा जिनसे किसी प्रकार की शारीरिक -आर्थिक हानि होती हो |पश्चिमी संस्कार तो लोग अपनान रहे किन्तु मूल भारतीय मानसिकता नहीं बदल पा रहे ,न खुद की न समाज की |भारतीय परंपरा में आज भी महिलायें पुरुष पर अधिकतर आश्रित होती हैं जबकि संतान भी स्वतंत्र कम होती है |पुरुष भी भले कितना ही आधुनिक हो जाय घर को संस्कारित ही रखना चाहता है अतः यदि पति -पत्नी -सन्तान किसी में भी चारित्रिक दोष हो तो उसे स्वीकार लोग नहीं कर पाते |इसके दुष्प्रभाव से महिलायें ही अधिक कष्ट पाती है जबकि परिवार भी टूटते हैं |परिवार टूटने की दर इस समय बढने का एक प्रमुख कारण चारित्रिक दोष ही है चाहे वह पुरुष में हो अथवा स्त्री में |इसी प्रकार नशा और दुर्व्यसन भी अनेक हानियों के लिए जिम्मेदार होता है |शराब आदि का सेवन हर काल में होता आया है किन्तु जितने प्रकार नशे के आज हो गए हैं उतने पहले कभी नहीं थे ,न ही सब तक उनकी उपलब्धता थी |विवाह पूर्व उच्च स्तर का आधुनिक दिखने -दिखाने के लिए भी अनेक लड़कों -लडकियों से सम्बन्ध रखना अथवा नशा आदि का सेवन विवाह बाद बिलकुल उल्टा प्रभाव देता है और जीवन तबाह करने के साथ ही परिवार भी तोड़ देता है |हम इसी चारित्रिक दोष और नशे आदि की लत को तांत्रिक आध्यात्मिक पारलौकिक शक्तियों के सहारे हटाने की बात कर रहे जिस पर हमने हजारों प्रयोग किये हैं और बहुत अच्छी सफलता पायी है |यद्यपि तंत्र आदि में हमेशा से अनेक उपाय इनके लिए रहे हैं किन्तु यह उपाय हमें अधिक कारगर इसलिए लगा की व्यक्ति खुद सुधरने का प्रयत्न करता है |

             शास्त्र और किताबे बहुत लोग पढ़ते हैं ,साधनाएं -पूजा -अनुष्ठान बहुत लोग करते हैं ,दीक्षित और गुरु मार्गदर्शित बहुत लोग होते हैं ,किन्तु अधिकतर इनमे से लकीर पर ही चलने वाले होते हैं ,प्रयोग नहीं करते चूंकि प्रयोगधर्मिता सबमें नहीं होती |हमारा स्वभाव रहा है लगातार प्रयोग करना और खुद अनुभव प्राप्त करना |हम महाविद्याओं के साधक होकर लगातार इनके मन्त्रों ,यंत्रों ,शक्तियों का विभिन्न समस्याओं पर प्रयोग करते हैं और उनका अनुभव संकलित करते रहे हैं |जो शास्त्र में प्रयोग लिखे हैं वह तो हैं ही पर समयक्रम के बदलाव से आज ऐसी ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो रही जो भिन्न भी हैं और जिनपर कम ध्यान भी दिया गया है |हमने अनेक ऐसे क्षेत्रों पर महाविद्याओं का प्रयोग किया है जो कहीं लिखा नहीं मिलता |हम कभी सफल रहे और कभी असफल भी रहे |हमारा चरित्रहीनता ,दुर्व्यसन ,नशा पर किया गया षोडशी महाविद्या का प्रयोग सफल रहा है अधिकतर मामलों में जिसे हम यहाँ लिख रहे ताकि लोग और साधक इसका लाभ उठाते हुए अपनी अथवा लोगों की समस्याओं का निदान कर सकें |

            षोडशी [त्रिपुरसुन्दरी ]दश महाविद्या में से एक प्रमुख महाविद्या है और श्री कुल की अधिष्ठात्री हैं ,इनकी साधना से धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष चारो पुरुषार्थो की प्राप्ति होती है ,ऐसा कुछ भी नहीं जो ये देने में सक्षम नहीं ,ब्रह्मा-विष्णु-रूद्र और यम चारो इनके अधीन हैं ,ये अन्य साधनाओ में भी पूर्णता देने में समर्थ हैं |दुःख-दैन्य-किसी प्रकार की न्यूनता ,अभाव ,पीड़ा ,बाधा सभी को एक ही बार में समाप्त करने में सक्षम हैं ,इनकी साधना से कायाकल्प भी होता है ,यह सौंदर्य ,पुरुषत्व,हिम्मत, साहस ,बल ,ओज ,भी देती हैं |इन्हें लोग लक्ष्मी समझते हैं किन्तु यह लक्ष्मी नहीं त्रिदेवी में से एक महालक्ष्मी और महामाया हैं |यह धन की नहीं समृद्धि ,सौहार्द्र ,सम्पत्ति ,दाम्पत्य सुख ,दाम्पत्य प्रेम ,सम्मान ,सर्व सुख की प्रदायक देवी हैं और उत्पत्ति से पालन पोषण तक का क्षेत्र इनका है |इनका ही यन्त्र ,श्री यन्त्र होता है जो अधिकतर स्थानों पर पूजित होता है और ब्रह्मांडीय उर्जा संरचना को व्यक्त करता है |इन्ही को श्री विद्या ,त्रिपुरसुन्दरी ,षोडशी और बाला के भी नाम से जाना जाता है |

           षोडशी यन्त्र भगवती त्रिपुरसुंदरी [श्री विद्या ] का यन्त्र है ,जिसमे उनका अपने परिवार देवताओं के साथ वास होता है ,यह यन्त्र विशिष्ट मुहूर्त में और श्री विद्या साधक द्वारा ही निर्मित होता है ,तत्पश्चात प्राण प्रतिष्ठा ,मंत्र जप और हवन से इसे उर्जिकृत किया जाता है ,,यन्त्र धारण से शारीरिक  उर्जा ,धन-संमृद्धि-संपत्ति ,साधन सम्पन्नता ,हिम्मत, साहस, बल, ओज, पौरुष, प्राप्त होता है , ,आय के नए स्रोत बनते है ,अकस्मात् धन प्राप्ति की सम्भावना बनती है, दुःख-दारिद्र्य .रोग-शोक, समाप्त होते हैं ,सुरक्षा प्राप्त होती हैं ,किसी प्रकार की अशुभता का शमन होता है ,सौभाग्य वृद्धि होती है ,ग्रह बाधा का शमन होता है ,रुकावटें दूर होती हैं ,विजय प्राप्त होती है ,यश-मान सम्मान-प्रतिष्ठा ,पुत्र पौत्रादि की उन्नति प्राप्त होती है ,कलह -कटुता का प्रभाव कम होकर खुशहाली प्राप्त होती है ,मानसिक शांति प्राप्त होती है |यदि आप पर या घर पर नकारात्मक उर्जाओं का प्रभाव है ,दुःख-दरिद्रता से ग्रस्त हैं ,बनते काम बिगड़ रहे हैं ,रोग-शोक-कलह बढ़ गए हों ,आर्थिक-व्यावसायिक समस्याएं उत्पन्न हों ,अनेकानेक समस्याएं घर-परिवार में उत्पन्न हों तो एक बार अवश्य किसी अच्छे साधक से भोजपत्र पर निर्मित षोडशी यन्त्र चांदी के कवच में धारण करें |आपकी सारी समस्याएं क्रमशः दूर होने लगेंगी |यह अनेक बार हमारे द्वारा अनुभूत और परीक्षित है |हमने अनेकों को विभिन्न समस्याओं में इसे धारण कराया है और अब तक शत-प्रतिशत सफलता मिली है |,व्यावसायिक उतार-चढ़ाव से ग्रस्त लोगों को धारण करने पर उनके कार्य-व्यवसाय में स्थिरता प्राप्त हुई है ,पारिवारिक समस्याओं में उत्तम परिणाम प्राप्त हुए हैं |प्रत्येक क्षेत्र में सफलता बढ़ी है |घर के कलह-तनाव को दूर करने में मदद मिली है ,आय के नए स्रोत बनाने अथवा परीक्षा-शिक्षा में सफलता बढ़ी है |अतः यह अनुभूत प्रयोग है |षोडशी यन्त्र धारण शरीर को नव स्फूर्ति और जीवनी उर्जा प्रदान कर सकारात्मक ऊर्जा संचार बढाता है जिससे ऊर्जा संतुलन बेहतर होता है |

                चरित्र हीनता ,नशे से ग्रस्त लोगों ,दुर्व्यसन ,दुर्प्रवृत्ति के लोगों ,परिवार -खानदान की मर्यादा बिगाड़ने को आतुर लोगों ,बिगड़े बच्चों ,अनैतिक अथवा विवाहेत्तर सम्बन्धों में लिप्त लोगों ,खानदान -परिवार की मर्यादा के प्रतिकूल प्यार -मुहब्बत में पड़ें युवक -युवतियों पर हमने इसका प्रयोग किया है और हमें 99% मामलों में सफलता मिली है कि व्यक्ति बदल गया है ,सुधर गया है और अपनी उन्नति के प्रति जागरूक हो गया है |हमारा अनुभव रहा है की यह अवचेतन पर बहुत अच्छा कार्य करता है और व्यक्ति की नैतिकता ,सदाशयता ,प्रेम ,दया ,बड़ों के प्रति सम्मान ,माता -पिता के प्रति श्रद्धा ,समझ ,अपनी उन्नति -भलाई के प्रति सोच बढ़ा देता है जिससे व्यक्ति स्वयं जागरूक हो अपना -अच्छा बुरा ,समझने लगता है और धीरे -धीरे ऐसे कार्यों से विमुख होने लगता है जो उसके और घर -परिवार के लिए उचित न हों |यह कवच उसकी सुप्त शक्तियों को जाग्रत करने और उत्साह प्रदान करने में सक्षम है |यह आतंरिक परिवर्तन लाता है जिससे सोच ,कर्म बदलते हाँ फलतः उन्नति के नए मार्ग मिलते हैं |यह यन्त्र अगर श्री विद्या के सिद्ध साधक द्वारा स्वयं बनाया जाता है और षोडशी मंत्र से अभिमंत्रित किया जाता है तो इससे अद्भुत परिणाम मिलते हैं |साधक द्वारा स्वयं भोजपत्र पर निर्माण करने से साधक की अर्जित की हुई शक्तियाँ भी इसमें सम्मिलित होती हैं और उसका अभिमन्त्रण इसमें अतिरिक्त शक्ति का प्रवाह प्रदान करता है |चारित्रिक दोषों ,नशे -दुर्व्यसन में लिप्त लोगों को कवच यह कहकर धारण कराया जाता है की इससे उनकी उन्नति होगी ,सम्पन्नता ,सफलता बढ़ेगी और यह सब तो होता ही है साथ ही उनके दोष भी कम होने लगते हैं जिससे व्यक्ति सुधर जाता है |

              इस यन्त्र के प्रयोग से एक लाभ यह भी होता है की सकारात्मक ऊर्जा का संचार व्यक्ति में बढ़ जाने से नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं ,जिससे यदि किसी में किसी नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से ,भूत -प्रेत वायव्य बाधा की वजह से ,किसी अभिचार -किये -कराये या टोन -टोटके की वजह से नशे और दुर्व्यसन की लत पड़ी हो तो सकारात्मकता बढने से वह भी कम होने लगती है |इसके साथ ही कोई किसी के प्रति किसी तांत्रिक क्रिया ,वशीकरण ,आकर्षण आदि के प्रभाव के कारण झुका हो या जुड़ा हो तो इन क्रियाओं का भी प्रभाव कम होने लगता है सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढने से जिससे व्यक्ति इनसे मुक्त हो अपनी नैसर्गिक स्थिति में आने लगता है  और खुद ही सुधार आ जाता है उसमे |इस प्रकार यह कवच उपरोक्त दोषों में हमने बहुत कारगर पाया है जबकि इससे लाभ तो सैकड़ों अन्य प्रकार के भी होते हैं |अतः हम कहना हहेंगे की जो भी व्यक्ति इस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर रहे हों उनके परिवारीजन उन्हें यह कहकर यह कवच धारण कराएं की उनकी सार्वभौम उन्नति होगी |इसके प्रभाव से सार्वभौम उन्नति तो होगी ही विभिन्न दोष भी समाप्त होंगे और सफलता ,समृद्धि बढ़ जायेगी |व्यक्ति स्वयं सचेत हो उन्नति करेगा जिससे खुद तो सुखी होगा ही पूरा परिवार लाभान्वित होगा |………………………………………हर हर महादेव


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