संजीवनी मृत्युंजय कवच
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हम सभी ने महामृत्युंजय मंत्र ,यन्त्र के बारे में सुना है किन्तु हममें से अधिकतर लोग लघु मृत्युंजय ,मृत्युंजय और महामृत्युंजय के अंतर को नहीं जानते ,बहुत से लोग लघु मृत्युंजय और मृत्युंजय को भी महा मृत्युंजय ही कहते हैं जबकि इनमे बहुत बड़ा अंतर होता है |सभी के प्रयोग और उपयोग अलग होते हैं ,प्रभाव अलग होते हैं |इसी तरह लोग संजीवनी और मृत संजीवनी के अंतर को भी नहीं जानते |बहुत से लोग तो महा मृत्युंजय को ही संजीवनी मंत्र भी कहते हैं ,मृत संजीवनी तो बहुत ही कम लोगों को ज्ञात है |हमने इसीलिए इस विषय पर एक अलग लेख लिखा है की लोग समझ सकें की लघु मृत्युंजय ,मृत्युंजय ,महामृत्युंजय ,संजीवनी और मृत संजीवनी क्या है ,क्या अंतर है इन मन्त्रों में ,कहाँ यह प्रयोग होते हैं |महा मृत्युंजय और संजीवनी मंत्र में प्रायोगिक और प्रभाव का अंतर होता है |आज के लेख में हम आपको संजीवनी महामृत्युंजय कवच के बारे में बता रहे ,मंत्र तो हम पहले ही बता आये हैं |
वैदिक देवताओं में पांच शक्तियाँ आती हैं ,अग्नि ,वायु ,इंद्र ,विष्णु और रूद्र |इन सब में रूद्र मृत्यु के देवता हैं जिनका कार्य संहार है |इन रूद्र को मृत्युंजय महादेव भी कहते हैं और इनका एक विशिष्ट स्वरुप है |मृत्यु ,यम आदि सब इनके ही अधीन हैं और यह एक मात्र ऐसे देवता हैं जो मृत्यु भय को हटा सकते हैं |इनका मंत्र मृत्युंजय मंत्र और इनका यन्त्र मृत्युंजय यन्त्र कहलाता है |इनकी शक्तियों के साथ जब जीवनी शक्ति गायत्री का संयोग होता है तो इनका मंत्र बन जाता है महामृत्युंजय मंत्र और यन्त्र होता है महामृत्युंजय यन्त्र |इसमें जब ॐ को कुछ और विशिष्टता दी जाती है तो यही मंत्र बन जाता है संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र |यह मंत्र और यन्त्र मात्र मृत्यु भय ही नहीं हटाता अपितु जीवनी उर्जा भी बढ़ा देता है |इसीलिए संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र और यन्त्र को पृथ्वी पर सबसे बड़ा रक्षक कहा जाता है |इसमें एक विशेषता यह अलग से होती है की स्थितियों को पुनः पूर्व स्थिति में लाने की जीवनी उर्जा और परिस्थितियां यह बनाता है |
ज्योतिष हो अथवा पांडित्य ,कष्ट हो अथवा वायव्य भूत -प्रेत की बाधा ,टोना -टोटका हो या स्थान दोष -वास्तु दोष ,अकाल मृत्यु भय हो अथवा कुंडली में ग्रह बाधा ,जब भी कोई समस्या दिखती है एक सामान्य उपाय सुझाया जाता है ,महामृत्युंजय जप ,महामृत्युंजय अनुष्ठान ,रुद्राभिषेक अथवा शिव की पूजा |महामृत्युंजय का प्रयोग सबसे अधिक सुझाया जाता है और किया भी जाता है क्योंकि यह मृत्यु के भय को भी हटाने की क्षमता रखता है |सबके लिए पतिदिन महामृत्युंजय का जप करना अथवा पूर्ण महामृत्युंजय का अनुष्ठान कराना सम्भव नहीं होता क्योंकि यह समय भी लेता है ,शुद्ध पाठ भी करना होता है और गलतियों पर क्षति की सम्भावना भी होती है |इसके साथ ही इस अवधि में अनेक सावधानिय और बचाव भी रखने होते हैं जो आज के व्यस्ततम युग में सबके लिए सम्भव नहीं |अनुष्ठान कराने पर भी खुद व्यक्ति को भी सभी सावधानियां रखनी होती हैं तथा अनुष्ठान का लंबा खर्च भी आता है जो हर कोई वहन नहीं कर सकता |इस तरह जब महामृत्युंजय में यह स्थिति बनती है तो संजीवनी महामृत्युंजय तो और अधिक सक्षम मंत्र होता है जो बिना गुरु के तो जपा ही नहीं जाता |इस स्थिति में संजीवनी महामृत्युंजय यन्त्र धारण करना श्रेष्ठ विकल्प होता है |
यदि यन्त्र रचना स्वयं नहीं की जा सकती क्योंकि संजीवनी मंत्र की दीक्षा बिना गुरु के नहीं होती और सभी लोग इसे जपने के स्वयं पात्र नहीं होते इसका सिद्ध साधक ही इसकी रचना शुभ मुहूर्त में चांदी ,ताम्बे के पत्र पर अथवा भोजपत्र पर इस यन्त्र को यक्ष कर्दम से अनार की कलम द्वारा करता है |यदि पूजन यन्त्र कोई बनवा रहा हैं तो इसे शुभ मुहूर्त में बनवाना चाहिये |बाजार में संजीवनी महामृत्युंजय यन्त्र मिलने मुश्किल हैं और वह कब बने यह भी निश्चित नहीं होता |शुभ मुहूर्त में तामे के पत्र पर इन्हें खुदवाना चाहिए और घर लाकर अग्न्युत्तरण विधि से प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए |धारण करने के लिए भोजपत्र यन्त्र श्रेष्ठ होता है ,निर्माण बाद यन्त्र को एकांत शुद्ध स्थान में प्रतिष्ठित कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है |फिर नियमित रूप से इसकी पूजा करते हुए संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र का एक निश्चित अवधि तक निश्चित संख्या में जप और हवन किया जाता है | इसके प्रभाव से साधक को और धारक को शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है |रोग शमन एवं मृत्यु संकट निवारण में इसका अद्वितीय प्रभाव है |धारण यन्त्र को निर्मित कर प्राण प्रतिष्ठा बाद इस पर कम से कम २१००० मंत्र जप से अभिमन्त्रण होना चाहिए और हवन बाद चांदी के कवच में इसे धारण करना चाहिए |यन्त्र तभी प्रभाव देता है जब उसमे ऊर्जा स्थापित की जाय |व्यक्ति अथवा साधक में शक्ति नहीं तो यन्त्र प्रभाव नहीं दिखाते |
संजीवनी महामृत्युंजय यन्त्र और कवच धारण से अकाल मृत्यु भय ,कुंडली में ग्रह निर्मित मारक ग्रह का प्रभाव ,शनी -राहू -केतु के दुष्प्रभाव ,कालसर्प दोष का शमन होता है |भूत -प्रेत -वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है तथा यह पहले से प्रभावित कर रहे तो क्रमशः इनके प्रभाव में कमी आती है |वाहन से ,आग्नेयास्त्र से ,शत्रु -विरोधी से अथवा संभावित दुर्घटना से बचाव होता है |स्थान दोष ,वास्तु दोष ,मकान दोष अथवा किये -कराये के दोष ,तांत्रिक टोने -टोटके से उत्पन्न ऊर्जा से बचाव होता है |अशुभ नकारात्मक उर्जाओं के प्रभाव से शरीर सुरक्षित रहता है |शरीर में व्याप्त नकारात्मक उर्जा का क्रमशः क्षय होता है जिससे आभामंडल की तेजस्विता बढती है |मांगलिक कार्यों में ,रोजगार के कार्यों में ,व्यवसाय में आ रही बाधाएं कम होती हैं |व्यक्ति में शुद्धता ,नयी ऊर्जा ,उत्साह का विकास होने से सफलता में वृद्धि होती है |कहीं किसी भी प्रकार के खतरे ,हानि ,संकट की सम्भावना होने पर संजीवनी महामृत्युंजय यन्त्र/कवच धारण करना सर्वश्रेष्ठ विकल्प होता है |टोने -टोटके ,तांत्रिक क्रिया ,अभिचार ,आकर्षण ,वशीकरण ,मारण आदि क्रिया से बचाव तो करता ही है आतंरिक ऊर्जा और शक्ति भी बढाता है जिससे व्यक्तित्व का प्रभाव भी बदल जाता है ,सफलता बढ़ जाती है |लम्बे ,असाध्य ,दुसाध्य ,प्राण धातक ,मारक रोग बिमारी में तो यह एक मात्र विकल्प होता है जबकि चिकित्सा विज्ञान और चिकित्सक भी असफल होने लगते हैं |मृत्युंजय ,महामृत्युंजय मंत्र घटना से पूर्व करने को कहे जाते हैं जबकि संजीवनी मृत्युंजय तब भी कार्य करता है जब कोई घटना हो जाय ,प्राण घातक समस्या उत्पन्न हो जाय |……………………………………………हर-हर महादेव
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