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मंत्र जप और नियम

::::::::::::::::::::मंत्र जप और नियम ::::::::::::::::::::
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यदि साधनाकाल में मंत्र जप के नियमों का पालन न किया जाए तो कभीकभी बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं। प्रयोग करते समय तो विशेष
सावधानी‍ बरतनी चाहिए। मंत्र उच्चारण की तनिक सी त्रुटि सारे करे
कराए पर पानी फेर सकत‍ी है। तथा गुरु के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन
साधक ने अवश्‍य करना चाहिए। साधक को चाहिए कि वो प्रयोज्य वस्तुएँ जैसे
आसन, माला, वस्त्र, हवन सामग्री तथा अन्य नियमों जैसेीक्षा स्थान, समय और जप संख्या आदि का दृढ़तापूर्वक पालन करें, क्योंकि विपरीत आचरण करने से मंत्र और उसकी साधना निष्‍फल हो जाती है। जबकि विधिवत की गई साधना से इष्‍ट देवता की कृपा सुलभ रहती है। साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है।
* जिसकी साधना
की जा रही हो, उसके प्रति पूर्ण आस्था
हो।
* मंत्रसाधना
के प्रति
दृढ़ इच्छा
शक्ति।
* साधनास्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथसाथ साधन का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलगअलग हो।
* उपवास प्रश्रय और दूधफल आदि का सात्विक भोजन किया जाए तथा श्रृंगारप्रसाधन और कर्म विलासिता का त्याग
आवश्यक है।
* साधना काल में भूमि शयन।
* वाणी का असंतुलन, कटुभाषण, प्रलाप, मिथ्या वाचन आदि का त्याग करें और कोशिश मौन रहने की करें।
निरंतर मंत्र
जप अथवा इष्‍ट देवता का स्मरणचिंतन आवश्‍यक है।

मंत्र
साधना में प्राय: विघ्नव्यवधान जाते हैं। निर्दोष रूप में कदाचित ही कोई साधक सफल हो पाता है,
अन्यथा स्थान
दोष, काल दोष, वस्तु दोष और विशेष कर उच्चारण दोष जैसे उपद्रव उत्पन्न होकर साधना को भ्रष्ट हो जाने पर जप तप और पूजापाठ निरर्थक हो जाता है। इसके समाधान हेतुआचार्यों ने काल, पात्र आदि के संबंध में अनेक प्रकार के सावधानीपरक निर्देश दिए हैं।……………………………………………हरहर महादेव् 



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