सबसे बड़ा गुरु कौन होता है ?सात गुरु कौन कौन से होते हैं ?
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किस किस गुरु को आप जानते हैं ?
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अक्सर हम जब गुरु के बारे में सोचते हैं या हमसे पूछा जाता है तो हम या तो मंत्र देने वाले गुरु के बारे में सोचते हैं या प्रथम शिक्षा देने वाले शिक्षक को गुरु समझते हैं या अपने माता पिता को गुरु कहते हैं पर वास्तव में कौन कौन गुरु है और कितने गुरु होते हैं हममें से अधिकतर नहीं जानते |
सबसे बड़ा और प्रथम गुरु परमात्मा होता है; क्योंकि जिस संरचना में ज्ञान की उत्पत्ति होती है, वह उसी से निर्मित एवं पोषित होता है| यह परमात्मा तत्त्व ही जीवन का कारक है| इसी के कारण जीवन है किसी भी इकाई का नाभिक ही उसका जीवात्मा है, इसके केंद्रा में ‘आत्मा’ होती है; इससे सूक्ष्म कोई भौतिक अस्तित्व ब्रह्माण्ड में नहीं है| इससे सूक्ष्म अभौतिक परमात्मा तत्त्व ही है| यह ‘आत्मा’ ही जीव है और यह प्रत्येक इकाई के केंद्रा में होता है| इसलिए सभी जीव है| किसी को जन्म से कोई शिक्षा न दे ,माता पिता साथ न हों तब भी उसे ज्ञान प्राप्त होता है जीवन जीने का जो उसके समझ और अवचेतन से उत्पन्न होता है यह परमात्मा की देन है अतः पहला गुरु स्वयं परमात्मा है |
दूसरा गुरु जीव का स्वयं के आसपास का वातावरण होता है, जिसमें जीव उत्पन्न होकर विकसित होता है| उसकी प्राप्ति की इच्छाएं इसी के अनुरूप होती है| माहौल के अनुसार बालक समझने सीखने लगता है ,खुद की सोच बनाने लगता है जबकि माता पिता की बात उसे तो बाद में समझ आती है अतः दूसरा गुरु वातावरण होता है |
तीसरे गुरु माता-पिता होते है; क्योंकि संतान में उन्ही के ऊर्जा समीकरण व्याप्त होते है|बिना बताये ,बिना कुछ सिखाये बच्चे में अनेक आनुवंशिक योग्यताएं उत्पन्न होती हैं ,माता पिता की दी हुई शिक्षा और व्यावहारिक ज्ञान से बच्चा खुद को विकसित करने का प्रयत्न करता है ,साथ ही उनके आचरण और व्यवहार से ही वह खुद का व्यवहार बनाता है |
चौथा गुरु वह स्थान ,उर्जा और पारिवारिक संस्कार ,संस्कृति होता है जहाँ बच्चा बड़ा होता है इनके उत्तम और अनुकूल होने पर ही प्राप्ति होती है; वरना शुक्राचार्य और बृहस्पति भी उसे कोई प्राप्ति नहीं करा सकते यदि उर्जा विकृत हो और संस्कार ,संस्कृति खराब हों |
पांचवां गुरु वह प्रारम्भिक गुरु होता है, जो किसी विषय के प्रारंभिक क्षेत्र का आधार ज्ञान प्राप्त कराता है|इस पांचवें गुरु में अक्षर ज्ञान कराने वाले गुरु से लेकर समस्त शिक्षा का ज्ञान कराने वाले गुरु आ जाते हैं |इसी पांचवें गुरु में अधिकतर वह गुरु भी आ जाते हैं जो मंत्र आदि देकर कर्त्तव्य की इति श्री कर लेते हैं, या कुछ साधनात्मक जानकारियाँ दे देते हैं |
छठवां गुरु वह होता है, जो उस विषय का तकनीकी ज्ञान देकर अभ्यास कराता है; जो शिष्य प्राप्त करना चाहता है|सामान्य रूप से इसी गुरु की महत्ता सर्वाधिक दी जाती है|इसे ही लोग गुरु के नाम से सम्बोधित करते हैं अधिकतर |यह गुरु किसी भी विषय में पारंगत करता है और व्यक्ति को निखारकर विशेष बना देता है चाहे वह विज्ञान का क्षेत्र हो या अध्यात्म का |यह गुरु मात्र मंत्र या साधना ही नहीं देता अपितु पूर्ण तकनीकी ज्ञान और मार्गदर्शन करते हुए लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग बता देता है |
सातवाँ और सर्वश्रेष्ठ गुरु सांसिद्धिक गुरु होता है; जिसने स्वयं अपने ही प्रयत्न से किसी विषय का अछूता ज्ञान प्राप्त किया हो| उदाहरण हेतु न्यूटन या आइन्स्टाइन जैसे लोगों की जगह कोई फिजिक्स का प्रोफेसर नहीं ले सकता|यह गुरु किसी भी क्षेत्र में हो सकता है अध्यात्म ,साधना समेत किसी क्षेत्र का ऐसा गुरु जिसने स्वयं से स्वयं को विकसित किया हो वह सर्वश्रेष्ठ है |सामान्य रूप से यह गुरु न शिष्य बनाना चाहता है न ही लोगों से सम्पर्क रखना चाहता है ,इन्हें खोजना भी मुश्किल होता है क्योंकि अक्सर यह खुद में ही रहते हैं |यह गुरु ही प्रथम सबसे बड़े गुरु तक पहुंचा सकता है ,उसका अनुभव करा सकता है |
इन गुरुओं के बाद एक गुरु और होता है जो ज्ञान मार्गी होता है |यह ज्ञान मार्ग का गुरु श्रेष्ठों में श्रेष्ठ होता है; पर ऐसे लोग युगों में कहीं कोई एक पैदा होते है| जिस युग में यह पैदा होते है, वह युग धन्य हो जाता है|यह देश और समाज की दशा और दिशा बदल देते हैं |यह व्यक्ति विशेष के गुरु नहीं अपितु पूरे समाज के गुरु होते हैं |
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