:::::::::शक्ति पात ::गुरु की अद्भुत कृपा::::::::::
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जीवमात्र का परम उद्देश्य है ,जीवन से मुक्त होकर शिवत्व में प्रवेश करना ,और शिवत्व में प्रवेश करना तभी संभव है जब जीव अपनी आत्मस्थिति का अनुसंधान करते हुए उसमे अवलंबित हो जाता है |स्वरुप स्थिति में स्थायित्व प्राप्त कर लेना ही मुक्ति के द्वार तक पहुचने का लक्षण है |इस स्वरुप स्थिति तक पहुचने के लिए जो उपाय काम में लाया जाता है उसे ही शक्तिपात कहते हैं |शक्तिपात एक ऐसी आध्यात्मिक प्रक्रिया है ,जिसके माध्यम से सद्गुरु अपनी सम्पूर्ण शक्ति को शिष्य में संचारित करता है ,जिससे उसकी सुप्त आध्यात्मिक शक्तियों का जागरण हो जाये अथवा उसकी बुद्धि अतीन्द्रिय विषय को समझने में सक्षम हो सके |शिष्य पर गुरु द्वारा शक्ति उतारने की प्रक्रिया शक्तिपात कहलाती है |
शक्तिपात गुरु कृपा पर निर्भर करता है |सद्गुरु अध्यात्म विद्या को जानने वाले और तत्ववेत्ता होते हैं |वही गुरु है जो तंत्रों के वीर्य का प्रकाश करने वाला हो |सिद्धि के लिए शक्तिपात अत्यंत आवश्यक माना गया है और इसके लिए गुरु ही एकमात्र साधन है |शक्तिपात के न होने पर सिद्धि की भी प्राप्ति होना लगभग असंभव है |स्पर्श दीक्षा भी शक्तिपात का प्रकार होती है |जबकि गुरु द्वारा दीक्षा दिया जाता भी सम्बंधित मंत्र अथवा शक्ति शिष्य को दिया जाना ही होता है |यद्यपि मूल शक्तिपात गुरु की पूर्ण शक्ति शिष्य पर उतार देना या प्रदान करना है |
शक्तिपात के अनुसार ही तो शिष्य अनुग्रहीत होता है ,गुरु के बिना मार्ग प्राप्त नहीं होता |गुरु कृपा अथवा गुरु प्रसाद के प्राप्त हो जाने पर ही शिष्य का उद्धार हो जाता है |जिसकी देव में परा भक्ति है ,वैसी ही गुरु में भी पराभक्ति देव की ही भांति होनी चाहिए |यह गुरु का प्रसाद है जो तोष से प्राप्त होता है अन्यथा नहीं मिलता है |गुरु कृपा से ही मनुष्य इस भाव सागर को पार कर सकता है |सद्गुरु के सत्प्रसाद के होने पर मनुष्य के जो प्रतिबन्ध हुआ करते हैं ,उनका क्षय हो जाता है |शक्तिपात के समायोग के आभाव में तत्वतः तत्वों का ज्ञान ,आत्मा की व्यापकता और उसके शुद्ध -बुद्ध स्वरुप का ज्ञान कभी भी संभव नहीं है |तंत्र का मत है की शक्तिपात अथवा भगवत्कृपा के बिना जीव को पूर्णत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती है ,इसीलिए तंत्र में गुरु दीक्षा और शक्तिपात की अवधारणा सर्वाधिक महत्व रखती है |
शक्तिपात के समय गुरु की मानसिक स्थिति ,गंभीरता ,शिष्य के प्रति भाव ,शिष्य का बल अनुमान ,दिए जाने वाली शक्ति की मात्रा की इच्छा ,शिष्य की आवश्यकता का आकलन ,शिष्य की शारीरिक -मानसिक ऊर्जा और शक्ति संरचना की स्थिति बहुत महत्व रखती है |तदनुरूप ही गुरु शक्तिपात करता है |कभी कभी इतनी ही शक्ति प्रदान करता है की शिष्य की साधना शुरू हो जाए और वह मार्ग पर बढ़ने लगे ,फिर क्रमशः गुरु शक्ति बढाता और मार्ग दिखाता जाता है ,कभी कभी गुरु यदि शिष्य को योग्य और सक्षम पाता है तो पूर्ण शक्ति प्रदान करता है |
शक्तिपात ,गुरु -शिष्य परंपरा में एक महत्वपूर्ण अवसर होता है जो तंत्र और शक्ति साधना के साथ कुंडलिनी जागरण के क्षेत्र में तो आवश्यक तत्व की तरह हो जाता है ,किन्तु आधुनिक समय में वास्तविक गुरु मिलना दुष्कर है तो वास्तविक शिष्य खोजना भूसे के ढेर म सुई खोजने जैसा है ,इसलिय अक्सर क्षमता होने पर भी गुरुओं द्वारा पूर्ण शक्तिपात कम ही किया जाता है |ऐसे गुरु भी बहुत कम होते हैं जो वास्तविक शक्तिपात क्षमता रखते हों जबकि दावे तो बहुत किये जाते हैं |आजकल तो व्यावसायिक रूप ले रहा यह शक्तिपात ,भले क्षमता हो न हो ,मात्र आडम्बर ही हो |किसी भी पूर्ण दीक्षा पर शक्तिपात होता है जिसकी मात्रा दीक्षा के प्रकार और गुरु की इच्छा पर निर्भर करता है |[अगला अंक -शक्तिपात के लाभ ]…………………………………………हर हर महादेव
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