माता महाकाली और षोडशोपचार पूजन
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महाकाली के सभी रूपों का पूजन सामान्य गृहस्थ अथवा सामान्य व्यक्ति के लिए समान होता है |साधकों के लिए विशिष्ट रूपों के अनुसार और विशिष्ट लक्ष्य के अनुसार पूजन भिन्न हो सकता है |चूंकि हम सामान्य लोगों के लिए लिख रहे हैं ,अतः सामान्य पूजन क्रम दिया जा रहा है |विशिष्ट पूजन गुरु गम्य होता है जो गुरु ही बताता है |महाकाली के अंतर्गत इनके विभिन्न रूप आते हैं ,जैसे दक्षिण काली ,भद्रकाली ,शमशान्काली ,गुह्य काली आदि ,,|जब जिस स्वरुप की पूजा की जाए तो उसमे निम्न दिए गए मंत्र में महाकाली के स्थान पर उस रूप का नाम जोड़ दिया जाता है |अन्य अक्षर और बीज महाकाली के सभी रूपों हेतु सामान्य रूप से ग्राह्य हैं |कामकला काली आदि की पूजा और मंत्र भिन्न होते हैं जो गुरुगम्य होते हैं |इस पोस्ट में हम महाकाली पूजन हेतु पूजन क्रम प्रस्तुत कर रहे ,जिसके आधार पर ही अन्य स्वरूपों का भी पूजन होता है ,,केवल ध्यान उस विशिष्ट स्वरुप का अलग से जोड़ना होता है और मंत्र में उनका नाम |इस क्रम के आधार पर दैनिक पूजन की जा सकती है |
आद्या शक्ति महाकाली की एक रूप भद्रकाली हैं इनका ध्यान हम यहाँ प्रयोग कर रहे जबकि नाम हमने महाकाली का रखा है |महाकाली के अंतर्गत भद्रकाली की आराधना /साधना गृहस्थ के लिए बहुत लाभदायक होती है |महाकाली के नाम से ही अन्य काली रूपों की भी पूजा की जा सकती है ,बस ध्यान अलग से जोड़ देना होता है |काली की विशिष्ट पूजा /अनुष्ठान हेतु तो एक लम्बी पूजन-स्थापन-प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया करनी होती है जो बिना योग्य जानकार के सामान्य साधकों अथवा गृहस्थों के लिए मुश्किल होती है ,किन्तु प्रतिदिन की विधिवत षोडशोपचार पूजन कैसे की जाए और क्या क्या उसके अंग होते हैं यह निम्न क्रम से हो सकता है |इस पद्धति के आधार पर प्रतिदिन की पूजा साधक/आराधक कर सकते हैं |
ध्यान
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महामेघ प्रभां देवी कृष्णवस्त्रोसिधारिणीम् ।,
ललज्जिह्वां घोरदंष्ट्रां कोटराक्षीं हसन्मुखीम् ॥,
नागहारलतोपेतां चन्द्रार्द्धकृत शेखराम् ।,
द्यां लिखन्तीं जटामेकां लेलिहानासवं पिबम् ॥,
नाग यज्ञोपवीताङ्गी नागशय्या निषेदुषीम् ।,
पञ्चाशन्मुण्डसंयुक्तं वनमाला महोदरीम् ॥,
सहस्त्रफण संयुक्तमनन्तं शिरसोपरि ।,
चतुर्दिक्षु नागफणा वेष्टितां भद्रकालिकाम् ॥,
तक्षक सर्पराजेन वामकङ्कण भूषिताम् ।,
अनन्त नागराजेन कृतदक्षिण कङ्कणम् ॥,
नागेन रसनाहार कक्पितां रत्न नूपुराम् ।,
वामे शिव स्वरूपं तत्कल्पितं वत्स्रूपकम् ॥,
द्विभुजां चिन्तयेद्देत्नीं नागयज्ञोपवीतिनीम् ।,
नरदेह समाबद्ध कुण्डल श्रुति मण्डिताम् ॥,
प्रसन्नवदनां सौम्यां शिवमोहिनीम् ॥,
अट्टहासां महाभीमां साधकाभीष्टदायिनीम् ॥,
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आह्वान और पुष्प समर्पण :-
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ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते ,
यावत्तवां पूजयिष्यामि तावद्देवी स्थिरा भव,
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नमस्कार
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शत्रुनाशकरे देवि ! सर्व सम्पत्करे शुभे ,
सर्व देवस्तुते ! महाकालिके ! त्वां नमाम्यहम,
१. आसन :- प्रथम दिन कि पूजा में माँ को काले रंग के कपडे का / आम कि लकड़ी का सिंहासन, जो काले रंग से रंगा गया हो समर्पित करें एवं माँ को उस पर विराजित करने इसके बाद फिर प्रत्येक दिन माँ के चरणों में निम्न मंत्र को बोलते हुए पुष्प / अक्षत समर्पित करें,
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा आसनं समर्पयामि ),
२. पाद्य :- इस क्रिया में शीतल एवं सुवासित जल से चरण धोएं और ऐसा सोचें कि आपके आवाहन पर माँ दूर से आयी हैं और पाद्य समर्पण से माँ को रास्ते में जो श्रम हुआ लगा है उसे आप दूर कर रहे हैं
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा पाद्यं समर्पयामि ),
३. उद्वर्तन :- इस क्रिया में माँ के चरणों में सुगन्धित / तिल के तेल को समर्पित करते हैं
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा उद्वर्तन तैलं समर्पयामि ),
४. आचमन :- इस क्रिया में माँ को आचमनी से या लोटे से आचमन जल प्रदान करते हैं ( याद रहे कि जल समर्पित करने का क्रम आप मूर्ति और यदि जल कि निकासी कि सुगम व्यवस्था है तो कर सकते हैं किन्तु यदि आपने कागज के चित्र को स्थापित किया हुआ है तो चित्र के सम्मुख एक पात्र रख लें और जल से सम्बंधित सारी क्रियाएँ करके जल उसी पात्र में डालते जाएँ )
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा आचमनीयम् समर्पयामि ),
५. स्नान :- इस क्रिया में सुगन्धित पदार्थों से निर्मित जल से स्नान करवाएं ( जल में इत्र , कर्पूर , तिल , कुश एवं अन्य वस्तुएं अपनी सामर्थ्य या सुविधानुसार मिश्रित कर लें यदि सामर्थ्य नहीं है तो सदा जल भी पर्याप्त है जो पूर्ण श्रद्धा से समर्पित किया गया हो )
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा स्नानं निवेदयामि ),
पंचामृत स्नानम : इस क्रिया में पंचामृत मिश्रित करें प्रथम दिन ( जिसमें गाय का शुद्ध दूध , दही , घी , चीनी , शहद आते हैं ) अन्य दिनों में यदि व्यवस्था कर सकें तो बेहतर है अन्यथा सिर्फ दूध या दही या शहद से भी काम चला सकते हैं
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा पंचामृत स्नानं समर्पयामि ),
शुद्धोदक स्नान :इस प्रक्रिया में भगवती को शुद्ध जल से स्नान कराएं
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा मधुपर्कं समर्पयामि ),
१५. वस्त्र :- इस क्रिया में माता को वस्त्र समर्पित किये जाते हैं ( एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वस्त्रों कि लम्बाई १२ अंगुल से कम न हो – प्रथम दिन कि पूजा में काले वस्त्र समर्पित किये जाने चाहिए तत्पश्चात [ मौली धागा जिसे प्रायः पुरोहित रक्षा सूत्र के रूप में यजमान के हाथ में बांधते हैं वह चढ़ाया जा सकता है लेकिन लम्बाई १२ अंगुल ही होगी )
अ. ( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा वस्त्रं समर्पयामि ),
उपवस्त्र : ( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा उप वस्त्रं समर्पयामि )
६. मधुपर्क :- इस क्रिया में शहद से काम लिया जाता है और माता को समर्पित किया जाता है |
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा मधुपर्कं समर्पयामि ),
१७. गंधंम :- इस क्रिया में माता को इत्र / सुगन्धित सेंट समर्पित करना है
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि ),
विशेष :- ध्यान रखें चन्दन या सिन्दूर में से कोई भी चीज मस्तक पर समर्पित न करें बल्कि माँ के चरणों में समर्पित करें
७. चन्दन :- इस क्रिया में सफ़ेद चन्दन समर्पित करें
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा चन्दनं समर्पयामि ),
८. रक्त चन्दन :- इस क्रिया में माँ को रक्त / लाल चन्दन समर्पित करें
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा रक्त चन्दनं समर्पयामि ),
१०. कुंकुम :- इस क्रिया में माँ को कुंकुम समर्पित करें
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा कुंकुमं समर्पयामि ),
आभूषण :इस क्रिया में भगवती को आभूषण समर्पित करें यदि सम्भव हो अन्यथा सिक्का अथवा पुष्प समर्पित करें |
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा आभूषणम समर्पयामि ),
९. सिन्दूर :- इस क्रिया में माँ को सिन्दूर समर्पित करें
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा सिन्दूरं समर्पयामि ),
२७. काजल :- माता को काजल समर्पित करें
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा कज्जलं समर्पयामि ),
२८. महावर :- इस क्रिया में माँ को लाला रंग का महावर समर्पित करते हैं ( लाल रंग एवं पानी का मिश्रण जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पैरों में लगाती हैं )
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा महावरम समर्पयामि ),
११. अक्षत :- अक्षत में चावल प्रयोग करने होते हैं जो काले रंग में रंगे हुए हों
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा अक्षतं समर्पयामि ),
१२. पुष्प :- माता के चरणो में पुष्प समर्पित करें ( फूलों एवं फूलमालाओं का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि यदि आपको काला गुलाब मिल जाये तो बहुत बढ़िया यदि नहीं मिलता तो लाल गुलाब उपयुक्त होगा किन्तु यदि स्थानीय या बाजारीय उपलब्धता के हिसाब से जो उपलब्ध हो वही प्रयोग करें )
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुष्पं समर्पयामि ),
१३. विल्वपत्र :- माता के चरणों में बिल्वपत्र समर्पित करें ( कहीं कहीं पर उल्लेख मिलता कि देवी पूजा में बिल्वपत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है तो इस स्थिति में आप अपने लोक/ स्थानीय प्रचलन का प्रयोग करें )
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा बिल्वपत्रं समर्पयामि ),
१४. माला :- इस क्रिया में माँ को फूलों कि माला समर्पित करें
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुष्पमालां समर्पयामि ),
१५. धूप :- इस क्रिया में सुगन्धित धुप समर्पित करनी है
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा धूपं समर्पयामि ),
१६. दीप :- इस क्रिया में शुद्ध घी से निर्मित दीपक समर्पित करना है जो कपास कि रुई से बनी बत्तियों से निर्मित हो
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा दीपं दर्शयामि ),
१८. कर्पूर दीप :- इस क्रिया में माँ को कर्पूर का दीपक जलाकर समर्पित करना है
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा कर्पूर दीपम दर्शयामि ),
१९. नैवेद्य :- इस क्रिया में माता को फल – फूल या भोजन समर्पित करते हैं भोजन कम से कम इतनी मात्रा में हो जो एक आदमी के खाने के लिए पर्याप्त हो बाकि सारा कुछ सामर्थ्यानुसार )
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा नैवेद्यं समर्पयामि ),
२०. खीर :- इस क्रिया में ढूध से निर्मित खीर चढ़ाएं,
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा दुग्ध खीरम समर्पयामि ),
२१. मोदक :- इस क्रिया में माँ को लड्डू समर्पित करने हैं
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा मोदकं समर्पयामि ),
२२. ऋतू फल :- इस क्रिया में माता को ऋतु फल समर्पित करने होते हैं,
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा ऋतुफलं समर्पयामि ),
२३. जल :- इस क्रिया में खान – पान के पश्चात् अब माता को जल समर्पित करें,
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा जलम समर्पयामि ),
२४. करोद्वर्तन जल :- इस क्रिया में माता को हाथ धोने के लिए जल प्रदान करें,
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा करोद्वर्तन जलम समर्पयामि ,)
२५. आचमन :- इस क्रिया में माता को पुनः आचमन करवाएं,
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुनराचमनीयम् समर्पयामि ),
२६. ताम्बूल :- इस क्रिया में माता को सुगन्धित पान समर्पित करें,
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा ताम्बूलं समर्पयामि ),
२९. चामर :- इस क्रिया में माँ को चामर / पंखा ढलना होता है,
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा चामरं समर्पयामि ),
३० . घंटा वाद्यम् :- इस क्रिया में माँ के सामने घंटा / घंटी बजानी होती है ( यह ध्वनि आपके घर और आपसे सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है एवं आपके मन में प्रसन्नता और हर्ष को जन्म देती है ),
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा घंटा वाद्यं समर्पयामि ),
३१. दक्षिणा :- इस क्रिया में माँ को दक्षिणा धन समर्पित किया जाता है – ( जो कि सामर्थ्यानुसार है ),
( क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा द्रव्य दक्षिणाम समर्पयामि ),
३३. पुष्पांजलि :–
ॐ काली काली भद्रकाली कालिके पाप नाशिनी ,
काली कराली निष्क्रान्ते भद्रकाल्यै तवननमोस्तुते ,
ॐ उत्तिष्ठ देवी चामुण्डे शुभां पूजा प्रगृह्य में ,
कुरुष्व मम कल्याणमस्टाभि शक्तिभिः सह ,
भुत प्रेत पिशाचेभ्यो रक्षोभ्यश्च महेश्वरि ,
देवेभ्यो मानुषोभ्योश्च भयेभ्यो रक्ष मा सदा ,
सर्वदेवमयीं देवीं सर्व रोगभयापहाम,
ब्रह्मेश विष्णु नमिताम् प्रणमामि सदा उमां ,
आय़ुर्ददातु में भद्रकाल्यै पुत्रानादि सदा शिवा ,
अर्थ कामो महामाया विभवं सर्व मङ्गला,
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं महाकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं परमेश्वरि पुष्पांजलिं समर्पयामि,
३४. नीराजन :- इस क्रिया में पुनः माँ कि प्राथमिक आरती उतारते हैं जिसमे सिर्फ कर्पूर का प्रयोग होता है,
ॐ कर्पूरवर्ति संयुक्तं वहयिना दीपितंचयत नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके,
प्रदक्षिणा :-
नमस्कारम : –
३५. क्षमा प्रार्थना :–
ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम ,
क्षम्यतां तज्जगन्मातः कालिके देवी नमोस्तुते ,
ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम् ,
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी ,
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः ,
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः ,
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान् ,
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः,
३६. आरती :- इस क्रिया में माता कि आरती उतारते हैं और यह चरण आपकी उस काल कि साधना के समापन का प्रतीक है |…………………………………………………………….हर-हर महादेव
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