Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

अथर्ववेदोक्त आसुरी महाकल्प

आसुरी दुर्गा सिद्धि

============

                 भगवती दुर्गा की साधना के सौम्य और क्रूर दोनों ही प्रकार के मंत्र प्रयोग यामल ग्रंथों में मिलते हैं |सौम्य साधना एवं सौम्य कर्म में साधक को विशेष कामना नहीं रहती है |वह केवल यही चाहता है की मुझ पर माता की कृपा बनी रहे |माँ की कृपा की चाह में सभी कामनाओं की पूर्ती समा जाती है |किन्तु जब कोई विशेष परिस्थिति के कारण समस्याओं अथवा शत्रुओं से घिर जाता है ,उनकी विपरीत गतिविधियाँ बढने से परेशानियां बढ़ जाती हैं तथा संकटों से छूटने का कोई मार्ग नहीं दिखाई देता तो माता के शत्रु संहारक ,संकट निवारक स्वरुप का स्मरण करना पड़ता है |ऐसे ही रूपों में एक रूप है आसुरी दुर्गा का |इस सम्बन्ध में वर्णन आता है -स्कन्द कार्तिकेय ने शिव जी से षट्कर्मों का रहस्य पूछा था तब शिव जी ने तंत्र सिद्धिरनेकधा -तंत्र सिद्धि अनेक प्रकार की होती है ऐसा कहकर आसुरी दुर्गा के विभिन्न स्वरुप और विभिन्न मन्त्रों का विधान बतलाया |साथ ही सहदेवी आसुरी ,राजिका आसुरी आदि के प्रयोग भी दिखलाए |

                 यहाँ दिया जा रहा प्रयोग आसुरी दुर्गा के मंत्र का है जो चमत्कारी दिव्य गुटिका /डिब्बी के साथ अधिक प्रभावी होता है किन्तु जो डिब्बी धारक नहीं हैं वह भी इस प्रयोग को दुर्गा के चित्र को आधार मान कर सकते हैं |आसुरी दुर्गा का प्रयोग तंत्रोक्त और वनस्पति आधारित है अतः यहाँ चमत्कारी डिब्बी बेहद प्रभावी हो जाती है क्योंकि कई सम्बन्धित वस्तुए डिब्बी में एक साथ मिल जाती है जिससे चामुंडा आसुरी दुर्गा सम्बन्धित होती हैं |दिव्य गुटिका पर किया गया प्रयोग उत्पन्न हो रही उर्जा को बिखरने नहीं देता और डिब्बी में समाहित करता चलता है जिससे ऊर्जा को आधार मिलता है और वह वर्षों वर्ष क्रिया करती रहती है जबकि बिना डिब्बी के किया गया प्रयोग उद्देश्य मात्र की दिशा में कार्य करता है |यदि साधक में क्षमता न हुई तो यह निष्प्रयोज्य हो सकता है |डिब्बी की तांत्रिक वस्तुओं का विशिष्ट संयोग की जाने वाली क्रिया और मंत्र को कई गुना अधिक गति और विस्तार के साथ प्रसारित करता है जिससे लाभ कई गुना बढ़ जाता है ,फिर भी प्रयोग कोई भी कर सकता है और लाभ उठा सकता है |

      इस प्रयोग को आसुरी महाकल्प के नाम से भी जाना जाता है |आसुरी राई को कहते हैं अतः इस प्रयोग में राई ही मुख्य रूप से प्रयुक्त होती है |राई के पंचांग अर्थात मूल ,तना ,पत्र ,पुष्प एवं फल हवंन में प्रयोग किये जाते हैं |यह विद्या शीघ्र फलदायिनी है और मुख्य रूप से सिद्ध वशीकरण विद्या भी है जो प्रतिकूल व्यक्ति को भी साधक के अनुकूल बना देती है |इसके विषय में कहा गया है की यदि इस विद्या की विधिवत उपासना कर ली जाए तो क्रुद्ध राजा या अधिकारी ,समस्त शत्रु यहाँ तक की क्रुद्ध काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते |यह विद्या अथर्ववेदोक्त आसुरी विद्या भी कही जाती है और इस वेद में इसके काम्य प्रयोगों का वर्णन भी किया गया है |प्रयोग में यह स्थिति स्पष्ट देखि गई है कि यदि पति पत्नी के मध्य परस्पर गहन विद्वेष हो गया हो और विवाह विच्छेदन तक की स्थिति आ गई हो तो ऐसी स्थिति में यह प्रयोग अत्यंत अनुकूल प्रभाव देता है और उनके मध्य सामंजस्य उत्पन्न करता है |व्यवहार में यह भी आया है की यदि किसी विशेष शत्रु की गतिविधि यकायक बढ़ गई हो तो उसके नाम से प्रयोग करने पर वह एकदम शांत होकर साधक के प्रति सम्मोहित अवस्था में आ जाता है |

सामग्री

———- मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठायुक्त दुर्लभ दिव्य गुटिका [चमत्कारी डिब्बी ],लाल रंग का वस्त्र ,इत्र ,लकड़ी की चौकी या बाजोट ,चांदी की तश्तरी [ न मिले तो पीतल ], असली सिन्दूर ,लौंग ,इलायची ,लाल फूल ,पान बीड़ा ,फल फूल ,प्रसाद चढाने को दूध की लाल मिठाई ,चावल ,सिक्का ,रुई ,देशी घी का दीपक |

माला

——– मंत्र सिद्ध चैतन्य रुद्राक्ष माला

आसन

——– लाल उनी आसन

वस्त्र

——- लाल रंग की धोती

दिशा

——- पूर्व दिशा

दिन

—— होली की रात्री अथवा शुभ मुहुर्तयुक्त मंगलवार अथवा नवरात्र अथवा शनिवार अथवा कृष्ण चतुर्दशी |

समय

——- रात्री दस बजे से 2 बजे तक

जप संख्या अवधि

———————- दस हजार [१०००० ]अपनी सुविधानुसार रोज की जप संख्या निश्चित कर दिन की अवधि निश्चित कर लें |प्रतिदिन जप संख्या समान हो और दस हजार जप ९ ,११ अथवा २१ दिनों में संपन्न हो |इस अवधि में पूर्ण सात्विकता ,ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक |जो केवल नवरात्र में ही साधना करना चाहें वह मंत्र जप रात में 10 बजे से 2 बजे तक करें बेहतर होगा |आसुरी दुर्गा सिद्धि के लिए निर्भय होना आवश्यक है |

मंत्र विधान

————-

विनियोग – अस्य श्री आसुरी दुर्गा मंत्रस्य अंगिरस ऋषि:विराट छंद: आसुरी दुर्गा देवता ॐ बीजं स्वाहा शक्तिः मम श्रीआसुरी दुर्गा प्रसाद पूर्वकं अभीष्ट कर्म सिद्धयर्थे जपे विनियोगः |

ऋषयादी न्यास – आंगिरस ऋषये नमः शिरसि  विराट छन्दसे नमः मुखे  आसुरी दुर्गा देवतायै नमः हृदये

ॐ बीजाय नमः गुह्ये     स्वाहा शक्तये नमः पादयो      विनियोगाय नमः सर्वांगे

 कर न्यास –  ॐ कटुके कटुकपत्रे हुँ फट स्वाहा अन्गुष्ठाभ्याम नमः

सुभगे आसुरि हुँ फट स्वाहा तर्जनीभ्याम नमः      रक्ते रक्त वाससे हुँ फट स्वाहा मध्यमाभ्याम नमः

अथवर्णस्य दुहिते हुँ फट अनामिकभ्याम नमः     अघोरे घोरकर्मकारिके हुँ फट कनिष्ठिकाभ्याम नमः

अमुकस्य गतिं दह दह उपविष्टस्य गुदं दह दह सुप्तस्य मनो दह प्रबुद्धस्य हृदयं दह दह हन हन पच पच  भगं दर मथ मथ तावद दह पच यावन्मे वशमायाति हुँ फट करतलकर पृष्ठाभ्याम नमः 

हृदयादि न्यास –  ॐ कटुके कटुकपत्रे हुँ फट स्वाहा हृदयाय नमः

सुभगे आसुरि हुँ फट स्वाहा शिरसे स्वाहा      रक्ते रक्त वाससे हुँ फट स्वाहा शिखायै वषट

अथवर्णस्य दुहिते हुँ फट कवचाय हुम     अघोरे घोरकर्मकारिके हुँ फट नेत्रत्रयाय वौषट

अमुकस्य गतिं दह दह उपविष्टस्य गुदं दह दह सुप्तस्य मनो दह प्रबुद्धस्य हृदयं दह दह हन हन पच पच  भगं दर मथ मथ तावद दह पच यावन्मे वशमायाति हुँ फट करतलकर अस्त्राय फट 

ध्यान -शरच्चंद्र कान्तिर्वरत्रि त्रिशूलं श्रृणिम हस्तपद्मैर्दधानाम्बुजस्था | अरीणाम वराकादीयुक्ता पवित्रा ,मुदाथर्वपुत्री करोत्वाशुनाशम |

मूल मंत्र –ॐ कटुके कटुकपत्रे सुभगे आसुरि रक्ते रक्तवाससे अथर्वणस्य दुहिते अघोरे अघोरकर्मकारिके मम शत्रून [ अमुकं ] दह दह पच पच मथ मथ हन हन तावत दह दह ,पच पच ,मथ मथ हन हन यावन्मे वशमानय स्वाहा |

 यदि किसी व्यक्ति विशेष की ओर से शत्रुतापूर्ण कृत्य किया जा रहा हो तो मम शत्रून के स्थान पर अमुकायाः गतिं दह दह ,पच पच ———–यावत् अमुकिम वशमानय स्वाहा ,कहा जाएगा |

ॐ कटुके कटुकपत्रे सुभगे आसुरि रक्ते रक्तवाससे अथर्वणस्य दुहिते अघोरे अघोरकर्मकारिके अमुकस्य गतिं दह दह उपविष्टस्य गुदं दह दह सुप्तस्य मनो दह दह प्रबुद्धस्यम हृदयं दह दह हन हन पच पच तावद दह तावतपच यावन्मे वशमायातिं हुँ फट स्वाहा |

      यदि किसी स्त्री को अनुकूल करना हो अमुकस्य के स्थान पर अमुकायाः तथा उपविष्टस्य के स्थान पर उपविष्टायाः और सुप्तस्य के स्थान पर सुप्ताया का प्रयोग होगा |

 ॐ ह्रीं कटुके कटुकपत्रे सुभगे आसुरि रक्ते रक्तवाससे अथर्वणदुहिते अघोरे घोरकर्मकारिके अमुकस्य गतिं दह दह उपविष्टस्य गुदं दह दह सुप्तस्य मनो दह दह प्रबुद्धस्य हृदयं दह दह हन हन पच पच भगं दर मथ मथ तावद दह पच यावन्मे वशमायातिं हुँ फट स्वाहा |

           इस मंत्र का दस हजार जप ,घृत और राजिका [ राई ]से हवन तथा अन्य दशांश करे |फिर प्रयोग के लिए राई के पौधे का पंचांग लेकर उसे १०० मन्त्रों द्वारा अभिमंत्रित करके उसकी धूप से जिसको धूपित करे वह वश में होवे |

विधि

——– नवरात्र में अथवा शुभ मुहुर्त्युक्त मंगलवार को अथवा होली की रात्री अथवा कृष्ण चतुर्दशी अथवा किसी शनिवार को स्नानादि से निवृत्त हो शुद्ध हो लाल धोती धारण कर लाल उनी आसन पर पूर्व की और मुख कर अपने सामने लकड़ी के बाजोट या चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं |उस पर बीचोबीच रोली से अष्टदल कमल बनाएं फिर उस पर चांदी ,ताम्बे या पीतल की तश्तरी स्थापित करें और तश्तरी के बीचोबीच रोली से या अष्टगंध से ह्रीं बनाएं |अब  उस पर दिव्यगुटिका स्थापित करें |दिव्य गुटिका के पीछे दुर्गा जी का चित्र स्थापित करें |अब दुर्गा जी का और दिव्य गुटिका का पूजन यथाशक्ति करें और जल ,अक्षत ,लाल फूल ,धुप -दीप ,प्रसाद चढ़ाएं ,असली पिला पारायुक्त सिन्दूर गुटिका के अन्दर चढ़ाएं |पान बीड़ा ,लौंग ,इलायची और एक सिक्का अर्पित करें |अब मंत्र सिद्ध चैतन्य रुद्राक्ष माला से उपरोक्त मंत्र का जप निश्चित संख्या में करें [जो आपने रोज के लिए निर्धारित की है ]|

              इस प्रकार रोज करते हुए दस हजार जप पूर्ण हो जाने पर कम से कम १००० हवन अवश्य करें |जो केवल नवरात्र में जप कर रहे वह दसवें दिन हवन करें |इस प्रकार यह अनुष्ठान पूर्ण होता है |अब तश्तरी समेत दिव्य गुटिका अपने पूजा स्थान में स्थापित करें और रुद्राक्ष माला गले में धारण करें |गुटिका के बाहर चढ़ाए गए लौंग ,इलायची को उठाकर सुरक्षित रख ले यह किसी भी अभिचार ,पीड़ा ,बाधा के निवारण में मदद करेगा ,पीड़ित को खिलाने पर अथवा बाजू में बाँध देने पर |अन्य शेष सामग्री को बहते जल या तालाब ,कुएं में प्रवाहित कर दें |इस गुटिका पर सिन्दूर अर्पित करते रहें और प्रतिदिन इसकी पूजा सामान्य रूप से करते रहें |संभव हो तो एक -दो माला भी रोज करें |इस प्रयोग को संपन्न करने पर भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा ,अभिचार ,किया कराया दूर होगा ,सब प्रकार उन्नति होगी ,शत्रु पराजित होंगे |घर के अनेक दोष समाप्त होंगे |जहाँ भी रखा जाएगा गुटिका वहां के बंधन समाप्त हो जायेंगे |आगे होने वाले अभिचार काम नहीं करेंगे |गुटिका पर चढ़ाए सिन्दूर का तिलक करने पर आकर्षण शक्ति बढ़ेगी ,लोग प्रभावित होंगे ,सब प्रकार से सुरक्षा प्राप्त होगी |शत्रुओं का नाश होगा ,लोग वशीभूत होंगे |जब भी जहाँ भी दुर्गा जी के मंत्र का प्रयोग जिस उद्देश्य के लिए करेंगे सफलता बढ़ जायेगी | यह तो सिद्धि की बात हुई ,अब हम कुछ विशेष प्रयोग भी जानकारी के लिए बता दे रहे जिससे आपका उद्देश्य विशेष सफल हो सके |

        आसुरी दुर्गा मंत्र का दस हजार जप करके घी मिश्रित राई से एक हजार मन्त्रों की आहुति से हवन करने पर यह मंत्र सिद्ध हो जाता है |मधु युक्त राय की मंत्र से एक हजार आहुति देने से जगत वशीकरण होता है |मधु त्रय और राय के होम से सरसार का वशीकरण होता है |यदि किसी स्त्री का वशीकरण करना हो तो उसके बाएं पैर की मिटटी व् राई के मिश्रण से पुतली बनाकर एक सप्ताह तक १०८ मन्त्रों से होम करें ,राई की समिधा ही प्रयोग करे तो साध्या स्त्री जीवन पर्यंत वशीभूत रहती है |राई व् नीम के पत्तों को सरसों के तेल में मिलाकर होम करने से शत्रु को ज्वर चढ़ जाता है |राई तथा नमक के साथ होम करने से उच्चाटन व् विस्फोट होता है |विस्फोट मतलब फोड़ा फुंसी |अर्क के दूध और राई से होम करने पर शत्रु अंधा हो जाता है |मधु युक्त राई की समिधाओं को होम करने से व्यक्ति को भूमि में गदा हुआ खजाना प्राप्त होता है |जल कलश में राई के पत्ते रखें और घट में देवी का पूजन करें |उस जल से अभिसिंचन करने से समस्त उपद्रव नष्ट होते हैं |राई के पुष्प ,सफ़ेद चन्दन ,नागकेशर ,मैनसिल और तगर मिलाकर उनके चूर्ण को १०८ बार अभिमंत्रित करके जिसके सर पर डाल दें वही वशीभूत हो जाता है |नीम की लकड़ी ,सरसों तथा राई से क्रोध मुद्रा में होम करें तो शत्रु नष्ट होता है |होम एक सप्ताह तक दक्षिणाभिमुख होकर १०८ मन्त्रों से नित्य करे |

प्रयोग – लाल कम्बल का आसन बिछाकर उस पर आसुरी गायत्री का जप करे |आसुरी गायत्री मंत्र —

ॐ ह्रीं आसुरीदिव्यायै विद्महे ,ॐ ऐं अथर्ववेदाय धीमहि ॐ ह्रौं हुँ फट प्रचोदयात | इससे इच्छित कोई भी कार्य हो सफलता मिलती है |

     अर्क के पत्ते पर राई पीसकर उससे एक अंगुष्ठ के बराबर आसुरी की मूर्ती बनाए |प्राण प्रतिष्ठा करके मंत्र द्वारा उसकी पूजा करे और कृष्ण पक्ष की अष्टमी से सात दिन तक उसके समक्ष आसुरी मंत्र का जप करे |इससे कार्य सिद्धि होती है |

   सहदेव्यासुरी का प्रयोग इस प्रकार है -इसमें सहदेवी लाकर उसकी प्रतिष्ठा और पूजन करे तथा काक आसन से बैठकर एक पैर का अंगूठा चलाते हुए ॐ ह्रीं सह्देव्यासुरी तिष्ठ तिष्ठ किं पुरुषि ॐ किस किस्त्ये यः शक्यमसि किंवा सर्वदुष्टक्षयं क्रुरु कुरु स्वाहा ,इस मंत्र का एक हजार जप करे |इससे शत्रु का विनाश होता है |प्रतिक्रया शूलिनी दुर्गा एवं दुर्गा तंत्रोक्त ऐसे ही अन्य बहुत से प्रयोग हैं किन्तु वे अति कठिन हैं और इनके करने से किसी का अनिष्ट होने का प्रायश्चित लगता है जिसका निवारण न हो तो साधक को कष्ट उठाना पड़ता है |आसुरी दुर्गा के अनेक अन्य प्रयोग भी हैं किन्तु सार्वजनिक सभी नहीं बताये जा सकते क्योंकि असावधानी से साधक की भी हानि की सम्भावना होती है अतः गुरु द्वारा ही यह बताये जाते हैं और गुरु ही सुरक्षा की व्यवस्था भी करते हैं |………………………………….हर हर महादेव


Discover more from Alaukik Shaktiyan

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Latest Posts