आपका अवचेतन कैंसर और लकवा से भी मुक्ति दिला सकता है
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एक धर्मगुरु से बहुत पहले मेरी मुलाक़ात हुई और उन्होंने बताया की वे बुरी तरह फ़ैल चुके फेफड़े के कैंसर से कैसे उबरे |उन्होंने पूर्ण स्वास्थ्य के विचार को अवचेतन तक पहुंचाकर यह चमत्कारी परिणाम पाया |मेरे आग्रह पर उन्होंने मुझे उस प्रक्रिया का जो विस्तृत वर्णन बताया उसके अनुसार वह दिन में कई बार खुद को मानसिक रूप से पूरी तरह शिथिल कर लेते थे |
वह अपने शरीर से यह बोलकर खुद को शिथिल करते थे की ” मेरे पंजे शिथिल हैं ,मेरे टखने शिथिल हैं ,मेरा दिल और फेफड़े शिथिल हैं ,मेरा सर शिथिल है ,मेरा पूरा अस्तित्व बिलकुल शिथिल है “|लगभग पांच मिनट बाद वह खुद को उनींदी अवस्था में पाते थे |फिर यह सत्यतापूर्ण प्रेरणा भरते थे |
ईश्वर की पूर्णता अब मुझमे व्यक्त हो रही है |सम्पूर्ण स्वास्थ्य और स्वस्थता का विचार अब मेरे अवचेतन मन में भर रहा है |ईश्वर ने मेरी जो छवि बनाई है ,जैसा मुझे बनाया है ,वह आदर्श छवि और व्यक्तित्व है |मेरा अवचेतन मन उसी आदर्श छवि और व्यक्तित्व के अनुसार मेरे शरीर को दोबारा बना रहा है |मेरे शरीर के क्षतिग्रस्त अंग और कोशिकाएं ठीक हो रहे हैं ,पुनर्निर्मित हो रहे हैं |मुझमे मौजूद ईश्वर इसमें मेरे अवचेतन की मदद कर रहा है |कोई भी रोगजनक जीवाणु -विषाणु मेरा शरीर का अंग नष्ट नहीं कर सकता ,मेरे शरीर की क्षति नहीं कर सकता |मेरा अवचेतन मेरे शरीर की सुरक्षा में सक्षम है ,पुनर्निर्माण में सक्षम है |पुनर्निर्माण फिर होगा अवश्य होगा और कोई भी समस्या ठीक होगी |
इस प्रकार के उपचारक और प्रेरणादायक विचारों को बार बार दोहराकार अवचेतन तक पहुचने से उनके अवचेतन ने इसे सही मान लिया और उसी दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया जिस दिशा की प्रेरणा उसे दि गई थी|वह धर्मगुरु जो की प्रकांड विद्वान् और मनोविश्लेषक भी थे इस तथ्य से भली भाँती अवगत थे की ईश्वर खुद में है उसे निर्देशित करने की आवश्यकता है |इस क्रिया से उनका उल्लेखनीय उपचार हुआ और वे पूरीतरह ठीक हो गए |उन्होंने जिस तकनीक का उपयोग किया था ,वह सम्पूर्ण स्वास्थ्य के विचार को अवचेतन मन तक पहुचाने का सीधा और सरल तरीका था |
स्वास्थय के विचार को अवचेतन मन तक पहुचाने का एक और अद्भुत तरीका अनुशाषित या वैज्ञानिक कल्पना है |एक लकवे का मरीज कभी आया था और लकवे का कोई इलाज नहीं मालूम था ,पर उसे राहत तो देनी ही थी अतः उसे देवी कवच धारण कराकर मैंने एक नया विचार उसे दिया |मैंने उसे बताया की वह कल्पना में स्पष्ट तस्वीर देखे की वह अपने घर में चहलकदमी कर रहा है ,घर के सामान खुद चलकर छू रहा है ,फोन पर बात कर रहा है और वे सभी काम कर रहा है ,जो वह सामान्य स्थिति में करता |मैंने उसे बताया की उसका अवचेतन मन सम्पूर्ण स्वास्थ्य की मानसिक तस्वीर को स्वीकार कर लेगा |उसे धारण कराया गया कवच किसी भी नकारात्मक ऊर्जा से उसे प्रभावित नहीं होने देगा |वह बार बार इस कल्पना को दोहराए |खुद को सामान्य महसूस करे |वह विश्वास रखे की वह ठीक होगा ,मन ही मन दोहराए की मैं जल्द ही ठीक हो जाऊँगा ,मैं वह सब पुनः कर सकूँगा जो पहले कर पाता था \मुझमे वह शक्ति है जो मुझे दोबारा स्वस्थ करेगी |
उसने खुद को इस भूमिका में झोंक दिया |उसने सचमुच महसूस किया की वह अपने आफिस से लौट चूका है |घर में खुद चलकर आ रहा है |वह जानता था की वह अपने अवचेतन मन को एक मूर्त और निश्चित काम दे रहा है |उसका अवचेतन मन वह फिल्म थी ,जिस पर तस्वीर की छाप छोड़ी जा रही थी |वह व्यक्ति पढ़ा लिखा था जिससे उसने मेरी बात समझी की में क्या कहना चाहता हूँ और क्या समझा रहा हूँ |कूप मंडूक मूर्ख और अन्धविश्वासी होता तो कहकर चला जाता की में तो ज्योतिषीय या तांत्रिक उपचार के लिए आया था यह पता नहीं क्या अजीब सा बता रहे हैं |कोई अनपढ़ या अन्धविश्वासी होता तो यही समझता की इन्हें कुछ नहीं आता उल्टा पुल्टा बता रहे हैं ,भला कल्पना करने से भी कोई ठीक होता है |अगर ऐसा होता तो सबकी कल्पनाएँ ही पूर्ण न हो जाती |किन्तु वह मर्म समझा और लग गया |
उसने कई सप्ताह तक गहनता से तस्वीर देखि |मन में विश्वास भरा |काल्पनिक रूप से अंगों का सञ्चालन किया ,पर एक निश्चित दिशा बनाये रही जैसा मैंने उसे कहा था |रोज अलग अलग कल्पनाएँ नहीं की ,ना ही दिशा बदली |इस तरह एक निश्चित दिशा में निश्चित कल्पना से उसके अवचेतन तक एक निश्चित विश्वास पंहुचा |फिर एक दिन उसके घर का एक छोटा बच्चा फर्श पर खेल रहा था जबकि वह बिस्तर पर थोड़े ऊँचे तकिये पर लेटा हुआ था |घर के लोग या तो बाहर थे या अपने कामों में थे |उसके पलंग से कुछ फुट की दूरी पर खेलता हुआ बच्चा अचानक मेज से लटक रहे कम्प्यूटर को बिजली सप्लाई करने वाले स्विच की और बढने लगा और पास पहुँच उसे पकड़ने का प्रयत्न करने लगा |व्यक्ति ने ख़तरा भांपा और खुद को सामान्य मानते हुए बच्चे के पास पहुँच बच्चे को उठा लिया |अचानक हुई इस प्रतिक्रिया से उसके निष्क्रिय अंगों का सञ्चालन शुरू हो गया |और उसी पल से उसका लकवा गायब हो गया |उसके अवचेतन मन की उपचारक शक्ति ने उसकी मानसिक तस्वीर पर प्रतिक्रिया की और उपचार संभव हो गया |यह व्यक्ति एक मानसिक अवरोध से पीड़ित था जिसने मष्तिष्क में उत्पन्न तंत्रिका आवेगों को उसके पैरों तक पहुचने से रोक दिया था |इसलिए वह चल नहीं पाता था |जब उसने अपना ध्यान अपने भीतर की उपचारक शक्ति पर केन्द्रित किया तो उसके एकाग्र ध्यान से शक्ति प्रवाहित होने लगी और वह दोबारा चलने लगा |
अपने तंत्र क्षेत्र के खोज और अनुभवों के आधार पर मैंने यह पाया है की सब कुछ आप ही करते हैं |ईश्वर आप में ही है |चमत्कार भी आप ही करते हैं |ईश्वर तो केवल सहायत करता है |बहुत से लोगों को हो सकता है अच्छा भी न लगता हो किन्तु तभी में कहता हूँ की “चमत्कार ईश्वर नहीं आप करते हैं “|ईश्वर तो उसे पूर्ण करता है |कहावत भी है पहले से की ,,ईश्वर उसी की सहायत करता है जो अपनी सहायत खुद करे |अर्थात आप खुद लड़ेंगे तभी वह आपका साथ देगा |ईश्वर को चमत्कार करना होता और वह खुद सांसारिकता में रूचि लेता तो दुनिया इतने रंगों और धर्मों की न होती |इतनी असमानता न होती ,इतने कष्ट न होते |कोई अति धनि और कोई अति दरिद्र न होता |ईश्वर वाही देखता है जो उसे दिखाया जाए |आपमें दिखाने की क्षमता चाहिए |आप नहीं दिखा सकते तो वह निर्लिप्त रहता है |कहानियाँ तो हमने कल्पना से बना रखी हैं .|इस लेख में इतना ही चूंकि लेख बहुत लम्बा हो गया ,अगले लेख में पुनः हम इस विषय पर चर्चा करेंगे |विषय को पूरा समझने के लिए आप हमारे पूर्व प्रकाशित लेखों को देखें ,समझें और लाभ उठायें |धन्यवाद ……………………………………………………………हर-हर महादेव
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