दुर्गा महाविजय कवच
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हम सभी भगवती देवी दुर्गा जी को जानते हैं जिनकी उपासना का मुख्य समय नवरात्र होता है | दुर्गा पौराणिक ग्रन्थ मार्कंडेय पुराण के दुर्गा सप्तशती की मूल अधिष्ठात्री देवी हैं जिनमे समस्त देवी देवताओं की शक्तियां सन्निहित हैं |इनका विस्तार इनके नौ रूपों में होता है जिनमे यह अपने अलग अलग गुण और विशेषता के साथ ब्रह्माण्ड का कल्याण करती हैं |इसी से इनके प्रभाव को समझा जा सकता है कि ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियां इनमे हैं और जब समस्त देवता असुरों से त्रस्त, पराजित हो जाते हैं तो वह दुर्गा की शरण में जाते हैं |समग्र रूप से कहें तो इनसे बड़ी शक्ति ब्रह्माण्ड में नहीं है |महा काली आदि शक्ति हैं जो समस्त ब्रह्माण्ड की संहारक शक्ति हैं ,महालक्ष्मी समस्त ब्रह्माण्ड की भरण पोषण की शक्ति है और महा सरस्वती समस्त ज्ञान की शक्ति हैं |इन तीनों का समन्वित स्वरुप महा दुर्गा हैं |ब्रह्माण्ड में ऐसा कुछ भी अलभ्य नहीं है जो यह देनें में सक्षम नहीं हैं |
दुर्गा यन्त्र माता भगवती दुर्गा का निवास माना जाता है जिसमे वह अपने अंग विद्याओ ,शक्तियों ,देवों के साथ निवास करती है ,अतः यन्त्र के साथ इन सबका जुड़ाव और सानिध्य प्राप्त होता है ,|इनके अनेक यन्त्र होते हैं जो विभिन्न आकृतियों में निर्मित होते हैं किन्तु सभी यन्त्र इनके मूल मंत्र से ही अभिमंत्रित किये जाते हैं जिसे नवार्ण मंत्र कहा जाता है ,दुर्गा यन्त्र के अनेक उपयोग है ,यह धातु अथवा भोजपत्र पर बना हो सकता है ,पूजन में धातु के यन्त्र का ही अधिकतर उपयोग होता है ,पर सिद्ध व्यक्ति से प्राप्त भोजपत्र पर निर्मित यन्त्र बेहद प्रभावकारी होता है ,,धारण हेतु भोजपत्र के यन्त्र को धातु के खोल में बंदकर उपयोग करते है ,इसे ताबीज या कवच कहते हैं |जब व्यक्ति स्वयं साधना करने में सक्षम न हो अथवा किसी सिद्ध साधक से मंत्र प्राप्त न हो तो ,अधिकतर दुर्गा साधना और मंत्र जप निष्फल जाता है और लाभ कम मिलता है |ऐसे में उच्च साधक द्वारा निर्मित और अभिमंत्रित यन्त्र धारण मात्र से उसे समस्त लाभ प्राप्त हो सकते है |साधना भी सफल होती है और जीवन की कठिनाइयाँ भी दूर होती हैं |
,..दुर्गा कवच को देवी कवच भी कहा जाता है ,और इसको बनाने का अधिकारी वह साधक होता है ,जिसने कम से कम ९ लाख नवार्ण मंत्र का जप किया हो ,जो तंत्रोक्त प्राण प्रतिष्ठा और पूजन पद्धति जानता हो ,जो शुद्ध सात्विक ,सहृदय और परोपकार की भावना वाला हो |नवरात्र में बनया हुआ दुर्गा कवच विशेष प्रभावकारी होता है चूंकि नवरात्र में दैवीय शक्तियां अधिक प्रबल होती हैं तथा भगवती दुर्गा की शक्ति का अवतरण अधिक होता है |
भोजपत्र के अभिमंत्रित यन्त्र से भरे हुए ताबीज या कवच के धारण से भगवती दुर्गा की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है ,शत्रु पराजित होते है ,सर्वत्र विजय मिलती है ,मुकदमो में विजय मिलती है ,अधिकारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,शत्रु का विनाश होने लगता है ,,ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ,व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है ,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,सम्मान प्राप्त होता है ,वाद-विवाद में सफलता मिलती है ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |किसी भी अभिचार का प्रभाव कम हो जाता है |छोटे मोटे टोटके -नजर प्रभावित नहीं कर पाती |आकर्षण -वशीकरण का प्रभाव बढ़ता है |किसी भी साधना -उपासना में होने वाली त्रुटी का दुष्प्रभाव रुकता है |वायव्य आत्माओं और बाधाओं का शरीर पर प्रभाव कम हो जाता है अथवा समाप्त हो जाता है ,,यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से प्राप्त होते है ,अतः आज के समय में यह साधना अथवा यन्त्र धारण बेहद उपयोगी है |
… जो लोग शत्रु-विरोधी से परेशान है ,अधिकारी वर्ग से परेशान है ,वायवीय बाधाओं से परेशान हो ,नवग्रह पीड़ा से पीड़ित हो ,,जिनके कार्य क्षेत्र में खतरे की संभावना हो ,दुर्घटना की संभावना अधिक हो |स्थायित्व का अभाव हो ,बार बार स्थानान्तरण से परेशान हों ,थक से कार्य न कर पाते हों ,ऊर्जा -उत्साह -शक्ति की कमी हो ,अत्यधिक आलस्य ,कर्म हीनता हो ,मोटापे और निष्क्रियता से परेशान हों ,चाहकर भी सक्रीय और कर्मठ न बन पाते हों ,जिन्हें बहुत लोगों को नियंत्रित करना हो उनके लिए यह बहुत उपयोगी है |जो लोग बार-बार रोगादि से परेशान हो ,असाध्य और लंबी बीमारी से पीड़ित हो अथवा बीमारी हो किन्तु स्पष्ट कारण न पता हो |कोई अंग ठीक से कार्य न करता हो |स्वास्थ्य कमजोर हो ,कहीं मन न लगता हो ,चिंता ,तनाव ,डिप्रेसन हो ,पूर्णिमा -अमावस्या को डिप्रेसन अथवा मन का विचलन होता हो उन्हें भगवती दुर्गा का यन्त्र धारण करना चाहिए |
जिन्हें हमेशा बुरा होने की आशंका बनी रहती हो ,खुद अथवा परिवार के अनिष्ट की सम्भावना लगती हो ,अकेले में भय लगता हो अथवा बुरे स्वप्न आते हों ,कभी महसूस हो की कमरे में अथवा साथ में उनके अलावा भी कोई और है किन्तु कोई नजर न आये |कभी लगे कोई छू रहा है अथवा पीड़ित कर रहा है ,कभी कोई आभासी व्यक्ति दिखे अथवा आत्मा परेशान करे |कभी अर्ध स्वप्न में कोई छाती पर बैठ जाए ,लगे कोई गला दबा रहा है |बार -बार स्वप्न में कोई स्त्री -पुरुष दिखे जिससे दिक्कत महसूस हो |आय के स्रोतों में उतार-चढ़ाव से परेशान हो ,ऐसा लगता हो की किसी ने कोई अभिचार किया हो सकता है या लगे की कोई अपना या बाहरी अनिष्ट चाहता है तो ऐसे व्यक्तियों को भगवती दुर्गा की साधना -आराधना-पूजा करनी चाहिए साथ ही सिद्ध साधक से बनवाकर दुर्गा यंत्र चांदी के ताबीज में धारण करना चाहिए |यदि साधना उपासना न कर सकें तो भी कवच अवश्य पहनना चाहिए |
यदि आप में हीनभावना है ,आलस्य है ,चंचलता की कमी है दब्बू स्वभाव है ,हर कोई आपको दबाना चाहता है ,खुद को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाते ,किसी के सामने बात करने में हिचकिचाते हैं ,शारीरिक कमजोरी है अथवा अधिक मोटापा है |,मानसिक बाधाएं हों ,फोबिया ,भूत प्रेत की बाधाएं हों ,चिंता ,अनहोनी की आशंका हो ,भय महसूस हो ,प्रलाप करे ,कभी कभी हिंसक प्रवृत्ति जागे और कभी कायरता अथवा हींन भावना ,पसीने की गंध तेज हो ,कभी अकेले में महसूस हो की कोई और है कमरे में या साथ में पर कुछ दिखे नहीं ।कभी सोये हुए में किसी अदृश्य की अनुभूति हो या स्पर्श लगे ,सम्मान में कमी महसूस हो ,अपमान की स्थिति आती हो ,मुकदमे अथवा विवाद हों ,लोग अनायास पीड़ित करते हों तो इस स्थिति में दुर्गा का यन्त्र धारण करता लाभदायक होता है |
यन्त्र निर्माण दुर्गा साधक द्वारा ही हो सकता है और इसकी शक्ति साधक की शक्ति पर निर्भर करती है |यन्त्र निर्माण के बाद इसकी तंत्रोक्त प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक होती है |इसके बाद इसका अभिमन्त्रण दुर्गा के मूल मंत्र से होता है |अभिमन्त्रण बाद हवन आवश्यक होता है |हवन के बाद इसी हवन के धुएं में चांदी के कवच में यन्त्र को भरकर धूपित भी किया जाता है| यहाँ साधक विशेष की जानकारी के अनुसार कवच में दुर्गा की ऊर्जा से सम्बन्धित वस्तुएं भी भरी जाती हैं -जैसे हम विशिष्ट जड़ी -बूटियाँ जो हमारे दुर्गा अनुष्ठान के समय अभिमंत्रित होती हैं इनमे यन्त्र के साथ रखते हैं ,हवन भष्म इसमें रखते हैं आदि |यह यन्त्र यदि पूर्ण अभिमंत्रित है तो बेहद शक्तिशाली हो जाता है |इसका परीक्षण उच्च स्तर का साधक कर सकता है अथवा जिन्हें भूत -प्रेत जैसी कोई समस्या हो उसके हाथ में रखते ही इसका प्रभाव मालूम होने लगता है |
यन्त्र /कवच धारण से लाभ
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१. भगवती दुर्गा की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है | सम्पत्ति में विशेष वृद्धि होती है और स्थावर सम्पत्ति विषयक मामलों में विशेष सफलता मिलती है |.
२. शत्रु पराजित होते है ,उसका स्वयं विनाश होने लगता है |शत्रु भयभीत होता है |
३. ,मुकदमो में विजय मिलती है ,वाद विवाद में सफलता मिलती है |सर्वत्र विजय का मार्ग प्रशस्त होता है |
४. कर्मचारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,व्यक्तित्व का प्रभाव बढ़ता है |सम्मान प्राप्त होता है ,| आभामंडल की नकारात्मकता समाप्त होती हैं |शरीर का तेज बढ़ता है |
५. मानसिक चिंता ,विचलन ,डिप्रेसन से बचाव होता है और राहत मिलती है |,पूर्णिमा -अमावस्या के मानसिक विचलन में कमी आती है |
६.किसी अभिचार /तंत्र क्रिया द्वारा अथवा किसी आत्मा आदि द्वारा शरीर को कष्ट मिलने से बचाव होता है |टोन -टोटकों का प्रभाव समाप्त होता है और भविष्य में इनसे सुरक्षा रहती है|
७. पारिवारिक सुख ,दाम्पत्य सुख बढ़ जाता है |
८. नौकरी ,व्यवसाय ,कार्य में स्थायित्व प्राप्त होता है | व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है |
९.,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,पहले से कोई प्रभाव हो तो क्रमशः धीरे धीरे समाप्त हो जाती है |,
१०. तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,भविष्य की किसी संभावित क्रिया से सुरक्षा मिलती है |किये -कराये -टोने -टोटके की शक्ति क्रमशः क्षीण होते हुए समाप्त होती है |
११. ,परीक्षा ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |हीन भावना में कमी आती है ,खुद पर विश्वास बढ़ता है |एकाग्रता बढती है तथा उत्साह ,ऊर्जा में वृद्धि होती है |
१२. भूत-प्रेत-वायव्य बाधा की शक्ति क्षीण होती है ,क्योकि इसमें से निकलने वाली सकारात्मक तरंगे उनके नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास करते हैं और उन्हें कष्ट होता है |,
१३. उग्र देवी होने से नकारात्मक शक्तियां इनसे दूर भागती हैं और धारक के पास आने से कतराती हैं |किसी वायव्य बाधा का प्रभाव शरीर पर कम हो जाता है |
१४. मांगलिक ,पारिवारिक कार्यों में आ रही रुकावट दूर होती है |ग्रह बाधाओं का प्रभाव कम होता है |शनि -राहू -केतु के दुष्प्रभाव की शक्ति क्षीण होती है |
१५. कार्यक्षमता में कमी दूर होती है |यदि बंधन आदि के कारण संतानहीनता है तो बंधन समाप्त होता है |
१६. शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह बढने से आत्मबल और कार्यशीलता में वृद्धि होती है |कोशिका क्षय की दर कम होती है |
१७. आलस्य ,प्रमाद का ह्रास होता है |व्यक्ति की सोच में परिवतन आता है ,उत्साह में वृद्धि होती है |नया जोश उत्पन्न होता है |
१८. किसी भी व्यक्ति के सामने जाने पर सामने वाला प्रभावित हो बात मानता है और उसका विरोध क्षीण होता है |,पारिवारिक कलह ,विवाद कम हो जाता है तथा लोगों पर आकर्षक शक्तियुक्त प्रभाव पड़ता है |
१९. घर -परिवार में स्थित नकारात्मक ऊर्जा की शक्ति क्षीण होती है जिससे उसका प्रभाव कम होने लगता है |पारिवारिक सौमनस्य में वृद्धि होती है |
२०. मोटापे की समस्या ,प्रमाद -आलस्य -उत्साह में कमी -साहस की कमी में राहत मिलती है |
२१. स्थान दोष ,मकान दोष ,पित्र दोष ,वास्तु दोष का प्रभाव व्यक्ति पर से कम हो जाता है क्योकि अतिरिक्त ऊर्जा का संचार होने लगता है उसमे |
२२. स्वाधिष्ठान चक्र के दोष से आ रही किसी भी शारीरिक -मानसिक परेशानी में सुधार होने से व्यक्ति का व्यक्तित्व बदलने लगता है और नकारात्मक उर्जाये हटने से उसका आभामंडल तेजस्वी बनता है |
यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से भी प्राप्त होते है और साधना से भी |,यन्त्र में उसे बनाने वाले साधक का मानसिक बल ,उसकी शक्ति से अवतरित और प्रतिष्ठित भगवती की पारलौकिक शक्ति होती है जो वह सम्पूर्ण प्रभाव प्रदान करती है जो साधना में प्राप्त होती है |,अतः आज के समय में दुर्गा यन्त्र धारण बेहद उपयोगी है किन्तु धारणीय यन्त्र का यदि उपयुक्त लाभ प्राप्त करना हो तो ,कम से कम २१ हजार मूल मन्त्रों से अभिमन्त्रण और उपयुक्त मुहूर्त में विधिवत तांत्रिक विधि से प्राण प्रतिष्ठा होना आवश्यक है, अन्यथा मात्र रेखाएं खींचने से कुछ नहीं होने वाला ,जबतक की उन रेखाओं में भगवती को प्रतिष्ठित न किया जाए और उपयुक्त शक्ति न प्रदान की जाए |………….हर हर महादेव
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