कुंडलिनी जागरण से क्या शक्तियाँ प्राप्त होती हैं ?
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अध्यात्म जगत के साथ ही सामान्य लोग भी कुंडलिनी का नाम अक्सर सुनते हैं और इसे जाग्रत कर अलौकिक शक्तियां पाना चाहते हैं |कुछ लोग इसे मात्र साधकों -सन्यासियों ,योगियों -तांत्रिकों के मतलब का मानते हैं तो कुछ यह समझते हैं की कुंडलिनी वैराग्य की अवस्था में जगती है या यह सोचते हैं की इसका सामान्य जीवन से ,गृहस्थ जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं |ऐसा नहीं है |कुंडलिनी वह शक्ति है जो मानव को महामानव बना देती है ,अलौकिक -आश्चर्यजनक शक्तियां देती है और यह सबमे होती भी है तथा सभी इसे जाग्रत कर लाभ भी उठा सकते हैं |कुंडलिनी वह शक्ति है जिसका शरीर में भौतिक अस्तित्व नहीं होता किन्तु यह शरीर को प्रभावित करती है ,यह दिखाई नहीं देती किन्तु आश्चर्यजनक कारनामे करती है ,सिद्धि के लिए इसकी साधना नहीं की जाती किन्तु यह सिद्धियाँ स्वयमेव देती है ,इसे देखा नहीं जा सकता किन्तु यह भूत -भविष्य -वर्त्तमान सबकुछ दिखलाती है ,यह किसी धर्म की नहीं पर हर धर्म इसे पाना चाहता है ,इसके सोये रहने पर व्यक्ति मृत्यु की ओर दिन ब दिन बढ़ता रहता है और इसके जागने पर व्यक्ति मृत्यु को जीत लेता है |
कुंडलिनी जागरण से आध्यात्मिक उपलब्धियां होती हैं यह हम सभी जानते हैं और इसके जागरण का उद्देश्य भी आध्यात्मिक उन्नति ही होता है किन्तु इससे वह शक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं जिससे व्यक्ति यदि चाहे तो उसका भौतिक जीवन बदल सकता है |अधिकतर तंत्र के कुंडलिनी साधक इसके प्रथम चक्र के अर्थात मूलाधार के जागरण पर ही भटक जाते हैं क्योंकि वह प्राप्त शक्तियों से भौतिक सुख उठाने में पतित हो उसी में घुमते हुए अपनी ऊर्जा गँवा देते हैं |ऊर्जा संचित रखते हुए भौतिक जीवन जीते हुए साधनारत रहा जाय तो भौतिक जीवन भी सुखकारक हो सकता है और आध्यात्मिक उपलब्धियां भी पाई जा सकती हैं |हर उच्च स्तर का साधक कुंडलिनी को जानता है तथा इसे जाग्रत कर आध्यात्मिक सफलता पाना चाहता है ,योग का तो मूल उद्देश्य ही यही है ,किन्तु हम आध्यात्मिक उपलब्धियों को एक तरफ रख दें तो कुंडलिनी शक्ति से ,कुंडलिनी जागरण से या चक्र विशेष के जागरण से हमारे भौतिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ,हमें दैनिक जीवन में क्या लाभ होता है ,हमारे रोज के काम काज में इससे क्या अंतर आ जाता है यही सब अधिकतर लोग जानना चाहते हैं |यद्यपि कुंडलिनी जागरण का उद्देश्य भौतिक सुख पाना नहीं होता किन्तु इसके जागरण से भौति उपलब्धियां भी मिलती हैं ,अब साधक पर निर्भर करता है की वह भौतिक उपलब्धियां लेते हुए साधना रत रहना चाहता है या भौतिक जीवन से विरक्त रह मात्र आध्यात्मिक उपलब्धियां लेता है |
योग मार्ग से कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया में शुरुआत में ही शरीर और मन को कठोरता से नियंत्रित कर लिया जाता है और लगभग विरक्त अथवा सांसारिकता से निर्लिप्त रहते हुए साधना की जाती है अतः कुंडलिनी जागरण पर व्यक्ति भौतिकोन्मुखी कम होता है ,तथापि अनेक उदाहरण रहे हैं योग साधकों के जिन्होंने सिद्धियाँ प्राप्त कर भौतिक जीवन में उनका उपयोग किया या कर रहे हैं |सामान्य रूप से योग मार्ग व्यक्ति को कठोरता से स्व नियंत्रण की बात करता है अतः इससे कुंडलिनी जागरण पर सामान्य जीवन में कम ही साधक शक्तियों का उपयोग करते है और उनकी मन स्थिति पहले ही ऐसी बन जाती है की वह समाज से एकाकी होने लगते हैं |अधिकतर कुंडलिनी शक्ति का उपयोग तंत्र मार्गीय साधक ही भौतिक जीवन में करते हैं ,क्योंकि तंत्र मार्ग से कुंडलिनी साधना भोग से मोक्ष की ओर की प्रक्रिया पर आधारित होती है |मूलाधार के जाग्रत हुए बिना कुंडलिनी जागरण नहीं होता और मूलाधार जागरण ही सबसे कठिन होता है |मूलाधार जागरण से ही सबसे अधिक शक्तियां और सिद्धियाँ भी मिलती हैं तो सबसे अधिक पतित भी साधक इसी चक्र के प्रभाव से होते हैं |योग में इस चक्र के जागरण के पूर्व की साधक शरीर और मन को नियंत्रित भी कर चूका होता है और योग से जागरण धीरे धीरे भी होता है अतः पतन कम होता है किन्तु तंत्र मार्ग में भोग से साधना होने से काम शक्ति की प्रमुखता होती है अतः कामशक्ति के तीव्र ऊर्जा प्रवाह से जागरण होने पर मूलाधार का जागरण जल्दी तो होता है किन्तु इसका प्रभाव इतना तीव्र होता है की व्यक्ति इन सिद्धियों के चक्कर में फंसकर भोग की ओर भागने लगता है |बहुत ही कम साधक इस तीव्र ऊर्जा प्रवाह को नियंत्रित कर आगे बढ़ पाते हैं और तब उनकी कुंडलिनी का जागरण योग मार्ग की अपेक्षा बहुत ही कम समय में हो जाता है |हम आपको अब बताते हैं की कुंडलिनी में मूलाधार से लेकर सहस्त्रार तक के जागरण में क्या -क्या सिद्धियाँ ,क्या क्या उपलब्धियां प्राप्त होती हैं और कैसे व्यक्ति मानव से महामानव बन जाता है |
मनुष्य के मूलाधार चक्र में कुंडलिनी का सम्पर्क तंतु है जो व्यक्ति सत्ता को विश्व सत्ता के साथ जोड़ता है । कुण्डलिनी जागरण से चक्र संस्थानों में जागृति उत्पन्न होती है । उसके फलस्वरूप पारभौतिक (सुपर फिजीकल) और भौतिक (फिजीकल) के बीच आदान-प्रदान का द्वार खुलता है । यही है वह स्थिति जिसके सहारे मानवी सत्ता में अन्तर्हित दिव्य शक्तियों का जागरण सम्भव हो सकता है |मूलाधार चक्र में वीरता और आनन्द भाव का निवास है । मूलाधार चक्र के जागरण साधक दादुरी सिद्धि प्राप्त कर अत्यंन्त तेजस्वी बनता है। वह भूत, भविष्य तथा वर्त्तमान का ज्ञाता, त्रिकालदर्शी हो जाता है तथा सभी वस्तुओं के कारण को जान लेता है। जो शास्त्र कभी सुने न हों, पढ़े न हों, उनके रहस्यों का भी ज्ञान होने से उन पर व्याख्यान करने का सामर्थ्य उसे प्राप्त हो जाता है। जप करने मात्र से वह मंत्रसिद्धि प्राप्त करता है। उसे अनुपम संकल्प-सामर्थ्य प्राप्त होता है।जब योगी मूलाधार चक्र में स्थित स्वयंभु लिंग का ध्यान करता है, उसी क्षण उसके पापों का समूह नष्ट हो जाता है। किसी भी वस्तु की इच्छा करने मात्र से उसे वह प्राप्त हो जाती है। इससे सुषुम्णा नाड़ी में वायु प्रवेश करती है।तंत्र में इसी चक्र का महत्व सर्वाधिक होता है ,क्योकि यही चक्र जाग्रत करना सबसे कठिन होता है |इसके जाग्रत और उर्ध्वमुखी होते ही अन्य चक्र आसानी से क्रियाशील हो सकते हैं किन्तु यह जाग्रत ही जल्दी नहीं होता |अगर हो भी गया तो सबसे पहले इसका प्रभाव इतना बढ़ता है की व्यक्ति के पतित होने की ही संभावना अधिक होती है |तंत्र इसीलिए पृथ्वी का सबसे कठिन साधना मार्ग है की यह सबसे पहले इस मूलाधार के महिसासुर को ही नियंत्रित करता है जिससे बाद के देवता स्वतः अनुकूल होने लगते हैं |यह सभी भौतिक ,लौकिक ,तामसिक सिद्धियों का केंद्र है जिस पर नियंत्रण से भैरव ,काली ,डाकिनी ,शाकिनी ,भूत ,पिशाच ,यक्षिणी ,अप्सरा ,जैसी समस्त शक्तियां नियंत्रण में आने लगती हैं | मूलाधार में ही 99.9 लोगों की चेतना अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है। चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।
स्वाधिष्ठान चक्र मूलाधार चक्र से ठीक ऊपर का चक्र है स्वाधिष्ठान की जागृति से मनुष्य अपने में नव शक्ति का संचार हुआ अनुभव करता है उसे बलिष्ठता बढ़ती प्रतीत होती है । श्रम में उत्साह और गति में स्फूर्ति की अभिवृद्धि का आभास मिलता है । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है । सर्व रोगों से विमुक्त होकर वह संसार में सुखरूप विचरता है। अणिमादि सिद्धियाँ प्राप्त कर उसके शरीर में वायु का संचार होता है जो सुषुम्णा नाड़ी में प्रविष्ट होता है। रस की वृद्धि होती है। सहस्रदल पद्म से जिस अमृत का स्राव होता है उसमें भी वृद्धि होती है। औरा या आभामंडल बदल जाती है ,तेजस्विता बढ़ जाती है ,सर्वत्र सफलता बढ़ जाती है |
इस चक्र के जागरण पर आलस्य ,हीन भावना ,आत्मविश्वास में कमी ,आत्मबल में कमी ,नकारात्मकता ,रोग -दोष ,कमजोरी ,मोटापा ,शारीरिक असंतुलन ,प्रभामंडल की नकारात्मकता ,भूत -प्रेत वायव्य बाधाएं ,देवी -देवताओं के दोष ,शत्रु -विरोधी समाप्त अथवा नष्ट हो जाते हैं |पाशविक प्रवृत्ति ,काम आदि पर विजय प्राप्त होता है |तेजस्विता ,वाणी का प्रभाव ,वाक्पटुता ,चंचलता ,क्रियाशीलता ,कर्मठता बढ़ जाती है |जो मिलता है प्रभावित होता है ,जहाँ भी जाएँ ,जो भी कार्य करें सफलता बढ़ जाती है |ग्रहों के प्रभाव परिवर्तित हो जाते हैं |किसी की नाकारात्म्कता ,रोग ,भूत -प्रेत हटाने की क्षमता आ जाती है ,वाक् सिद्धि हो जाती है और कही गयी बातें अपने आप सच होने लगती हैं |आशीर्वाद और श्राप फलीभूत होते हैं |सभी क्षेत्रों में विजय मिलने लगती है |सुख सुविधाओं की अपने आप उपलब्धी होने लगती है |जीवन का असंतुलन दूर होता है | चक्र जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है
मणिपुर चक्र से साहस और उत्साह की मात्रा और बढ़ जाती है । संकल्प दृढ़ होते हैं और पराक्रम करने के हौसले उठते हैं । मनोविकार स्वयंमेव घटते हैं और परमार्थ प्रयोजनों में अपेक्षाकृत अधिक रस मिलने लगता है ।यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं |इस चक्र के जागरण पर सर्वसिद्धिदायी पातालसिद्धि प्राप्त होती है। उसके सब दुःखों की निवृत्ति होकर सकल मनोरथ पूर्ण होते ह | सिद्धि से दीर्घजीवी हो सकते हैं | योगसाधक को परकाया-प्रवेश की सिद्धि प्राप्त होती है यद्यपि पूर्ण परकाया प्रवेश की शक्ति अनाहत जागरण पर ही आती है।व्यक्ति देवों के द्रव्य भंडारों को और दिव्य औषधियों तथा भूमिगत गुप्त खजानों को भी देख सकता है। इस चक्र के जागरण पर व्यक्ति अन्नदाता ,ऐश्वर्यशाली ,सम्पत्तिवान ,समृद्ध बनता है |उसके क्रोध ,उग्रता और अति चंचलता का शमन होता है तथा व्यक्ति गम्भीर ,लक्ष्य केन्द्रित ,आत्मनिर्भर ,बहुतों का उपकार करने वाला बनता है | यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है
अनाहत चक्र भाव संस्थान है । कलात्मक उमंगें-रसानुभुति एवं कोमल संवेदनाओं का उत्पादक स्रोत यही है । बुद्धि की वह परत जिसे विवेकशीलता कहते हैं । आत्मीयता का विस्तार सहानुभूति एवं उदार सेवा सहाकारिता क तत्त्व इस अनाहत चक्र से ही उद्भूत होते हैं यह सोता रहे तो लिप्सा, कपट, तोड़-फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा । जागरण होने पर यह सब दुर्गुण हट जायेंगे । साधक को अपूर्व ज्ञान प्राप्त होता है। वह त्रिकालदर्शी होकर दूरदर्शन, दूरश्रवण की शक्ति प्राप्त कर यथेच्छा आकाशगमन करता है। अनाहत चक्र का जागरण होने से भूचरी सिद्धि प्राप्त होती है। इस चक्र के जागरण पर व्यक्ति जन पालक हो जाता है जो इच्छानुसार सब सुख पाकर उन्हें भोगता हुआ भी सात्विक और कल्याणकर्ता बना रहता है |जहाँ भी खड़ा होता है सम्मान प्राप्त करता है और उसका स्वभाव राजसिक होता है |अन्न -जन -धन की उसे कोई कमी नहीं होती |क्रमिक स्तर पर कुंडलिनी जागरण हुआ हो तो यहाँ पहुँचने पर व्यक्ति परकाया प्रवेश जब चाहे कर सकता है |आकाश गमन ,दूर श्रवण उसके लिए सम्भव होते हैं , व्यक्ति त्रैलोक्य सम्मानित होता है |व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
विशुद्धाख्य चक्र के जागरण से चारों वेदों के रहस्य की प्राप्ति होती है। योगी का शरीर वज्र से भी अधिक कठोर हो जाता है। दोष व दुर्गुणों के निराकरण की प्रेरणा और तदनुरूप संघर्ष क्षमता यहीं से उत्पन्न होती है । इस चक्र के जागरण पर व्यक्ति की वाणी में वह गुण उत्पन्न होता है कि लोग मोहित हो उठते हैं |व्यक्ति में वशीकरण ,आकर्षण ,मोहन के गुण उत्पन्न होते हैं तथा उसे स्वयमेव शास्त्र ज्ञान ,गुप्त ज्ञान ,गुह्य ज्ञान प्राप्त होता है |ऐसा साधक सभी कारणों के कारकों को जान लेता है और उसका व्यक्तित्व सर्वत्र पूजित होता है | इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।
आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं । इस चक्र के जागरण से पूर्वजन्म के सकल कर्मों का बन्धन छूट जाता है। यक्ष, राक्षस, गंधर्व, अप्सरा, किन्नर आदि योगी के वश हो जाते हैं। वह वासना के बन्धन से मुक्त होता है।यहीं से दिव्य-दृष्टि अथवा तीसरी आँख प्राप्त होती है | यह दृष्टि ही सामान्य मानव को सिद्ध-योगी, सन्त-महात्मा अथवा ऋषि-महर्षि बना देती है | इस चक्र का जागरण होने पर व्यक्ति किसी भी मनुष्य को नियंत्रित कर सकता है |किसी से भी अपनी बात मनवा सकता है |किसी को सम्मोहित कर सकता है तो किसी को टेलीपैथी से संदेश भेज सकता है |थोड़े से प्रयास में वह खुद के अन्य चक्रों का भी जागरण कर अनेकानेक सिद्धियाँ प्राप्त कर सकता है |साधक भूत -भविष्य और वर्तमान को देख सकता है अर्थात वह त्रिकालग्य बनता है |इस चक्र के जागरण पर इच्छित देव दर्शन सहज सुलभ हो जाता है |व्यक्ति में अलौकिक शक्तियाँ जाग्रत होती हैं और वह ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने वाला बनता है |
सहस्रार मस्तिष्क के मध्य भाग में है । यह संस्थान ब्रह्माण्डीय चेतना के साथ सम्पर्क साधने में अग्रणी है इसलिए उसे ब्रह्मरन्ध्र या ब्रह्मलोक भी कहते हैं । इस सहस्रदल कमल में स्थित ब्रह्मरंध्र के जागरण से योगी को परमगति मोक्ष की प्राप्ति होती है| हर चक्र की इससे अधिक विशेषताएं हैं ,हर चक्र से अनेक सिद्धियाँ प्राप्त होती है और हजारों भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होती हैं ,लाभ मिलते हैं ,जीवन बदलता है ,सुख -सम्पन्नता ,आरोग्य ,शक्ति प्राप्त होते हैं |……………………………………………………हर हर महादेव
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