कुण्डलिनी तंत्र और भैरवी साधना में सम्भोग
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तंत्र में रतिक्रीड़ा का बहुत महत्व है चाहे वक् कुंडलिनी तंत्र की भैरवी साधना हो ,भैरवी साधना का कोई अन्य प्रकार हो या वाम मार्ग की ऐसी साधना हो जिनमे जनन उर्जा साधना का आधार हो | कुछ साधनाओं में प्रत्यक्ष शारीरिक रति होती है तो कुछ में ऊर्जा तरंगों की रति को आधार बनाया जाता है |शारीरिक रति में भी भोग भाव नहीं होता ,यहाँ भी भाव मुख्य होता है |कुंडलिनी तंत्र साधना या मूल भैरवी साधना में शारीरिक रति को महत्व नहीं दिया जाता |मूलतः पूरा तंत्र ही ऊर्जा तरंगों की रति को महत्व देता है ,जिसके भावों में प्रत्येक बार अंतर होता है और भावो के अनुसार ऊर्जा तरंगें भी भिन्न होती हैं |तंत्र का मानना है की एक ही जोड़े की विभिन्न समय में की गयी एक ही प्रकार की रति के प्रकारों में अंतर होता है |तंत्र में रति को विभिन्न दृष्टियों से विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया गया और तदारुरूप उनके गुण-दोषों को परिभाषित किया गया है |हम मुख्य ११ प्रकार की रतियों के बारे में बता रहे जिनमे से आत्मिक रति और मानव रति का विवरण इस लेख में |
१.आत्मिक रति
============कुण्डलिनी तंत्र साधना अथवा भैरवी साधना अथवा वाम मार्ग की साधना में जब कोई स्त्री-पुरुष का जोड़ा एक दुसरे के प्रति उदात्त आकर्षण से युक्त होता है और दोनों एक दुसरे के प्रति प्रगाढ़ आत्मिक सम्बन्ध की अनुभूति करते हैं ,तो उन दोनों में एक आत्मिक सम्बन्ध बन जाता है |वस्तुतः यह आत्मिक सम्बन्ध विशुद्ध चक्र की ऊर्जा तरंगों द्वारा बनता है |विशुद्ध चक्र की भावना प्रधान तरंगे इन्हें गहरे आत्मिक सम्बन्ध से जोडती हैं |ऐसे भाव से बने सम्बन्ध में एक-दुसरे के आकर्षण में व्याकुल स्त्री-पुरुष जब अपने प्रियतम और प्रिया के प्रणय भाव में सुधि विहीन हो जाते हैं ,स्वयं को भूल एक दुसरे में लींन हो जाते हैं तो यह आत्मिक रति कहलाता है |इस रति में शारीरिक मिलाप हो यह आवश्यक नहीं है |यह स्त्री-पुरुष के दूर-दूर रहने पर भी होती है |कोई कहीं भी हो आत्मिक ,भावना प्रधान जुड़ाव इस रति में मुख्य होता है किन्तु दोनों तरफ से यह जुड़ाव होना चाहिए |इस रति में केवल ऊर्जा तरंगें एक दुसरे की ऊर्जा तरंगों को प्रभावित करती हैं और उनमे ही रति होती है |इस रति के फलस्वरूप उर्जा प्रवाह बढ़ता है और उर्ध्वमुखी होने पर चक्र जागरण ,शक्ति प्राप्ति ,सिद्धि प्राप्ति ,मंत्र शक्ति बढाने में सहायक होता है |
२.मानव रति
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अपने पिछले विसिओ में हमने आत्मिक रति के बारे में बताया है और आज हम इस वीडियो में आपको तंत्र साधना में होने वाली मानव रति के विषय में जानकारी दे रहे |जैसा की आप जानते हैं तंत्र में रतिक्रीड़ा का बहुत महत्व है चाहे वक् कुंडलिनी तंत्र की भैरवी साधना हो ,भैरवी साधना का कोई अन्य प्रकार हो या वाम मार्ग की ऐसी साधना हो जिनमे जनन उर्जा साधना का आधार हो | कुछ साधनाओं में प्रत्यक्ष शारीरिक रति होती है तो कुछ में ऊर्जा तरंगों की रति को आधार बनाया जाता है |शारीरिक रति में भी भोग भाव नहीं होता ,यहाँ भी भाव मुख्य होता है |कुंडलिनी तंत्र साधना या मूल भैरवी साधना में शारीरिक रति को महत्व नहीं दिया जाता |मूलतः पूरा तंत्र ही ऊर्जा तरंगों की रति को महत्व देता है ,जिसके भावों में प्रत्येक बार अंतर होता है और भावो के अनुसार ऊर्जा तरंगें भी भिन्न होती हैं |तंत्र का मानना है की एक ही जोड़े की विभिन्न समय में की गयी एक ही प्रकार की रति के प्रकारों में अंतर होता है |तंत्र में रति को विभिन्न दृष्टियों से विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया गया और तदारुरूप उनके गुण-दोषों को परिभाषित किया गया है |
मानव रति में भी आत्मिक रति की तरह पहले विशुद्ध चक्र की तरंगों का मिलन होता है और युवक -युवती एक दुसरे के प्रति उदात्त प्रेम भाव के क्रीड़ा करते हैं |विशुद्ध चक्र के भावना प्रधान सोच गहरा प्रेम भाव उत्पन्न करते हैं जिससे उनमे शारीरिक उर्जा बढ़ जाती है और प्रेम भाव से क्रीडा होने लगती है ,परन्तु बाद में मूलाधार की ऊर्जा की तीव्रता बढ़ जाती है और रति शारीरिक स्तर पर होने लगती है |ऐसी रति भी तभी संभव है जब स्त्री- पुरुष का एक दुसरे के प्रति अपनापन और प्रेम हो |इसमें आपसी स्वार्थ और शारीरिक संतुष्टि के लिए रति को शामिल नहीं माना जाएगा ,उनका वर्गीकरण भिन्न प्रकार से होता है और वह या तो कृत्रिम रति होती है या पशु रति |मानव रति यद्यपि कुंडलिनी तंत्र बहुत उच्च नहीं मानी जाती किन्तु इससे तीव्र ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे यह कुंडलिनी साधना सहित अन्य भैरवी साधनाओं में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है |तीव्र उर्जा जब उर्ध्वमुखी होती है तो शीघ्र सिद्धियाँ ,मंत्र में शक्ति देती है और इससे चक्र जागरण में शीघ्रता होती है | इस विषय सहित कुंडलिनी तंत्र ,भैरवी साधना ,वाम मार्ग और वामाचार साधना आदि को अधिक समझने के लिए आपको हमारे कुण्डलिनी तंत्र के अन्य लेख पढने चाहिए |………………………………….हर हर महादेव
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