तंत्र में रतिक्रीड़ा का बहुत महत्व है चाहे वह कुंडलिनी तंत्र की भैरवी साधना हो ,भैरवी साधना का कोई अन्य प्रकार हो या वाम मार्ग की ऐसी साधना हो जिनमे जनन उर्जा साधना का आधार हो | कुछ साधनाओं में प्रत्यक्ष शारीरिक रति होती है तो कुछ में ऊर्जा तरंगों की रति को आधार बनाया जाता |मूलतः पूरा तंत्र ही ऊर्जा तरंगों की रति को महत्व देता है ,जिसके भावों में प्रत्येक बार अंतर होता है और भावो के अनुसार ऊर्जा तरंगें भी भिन्न होती हैं |तंत्र का मानना है की एक ही जोड़े की विभिन्न समय में की गयी एक ही प्रकार की रति के प्रकारों में अंतर होता है |तंत्र में रति को विभिन्न दृष्टियों से विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया गया और तदरुरूप उनके गुण-दोषों को परिभाषित किया गया है |११ प्रकार की रति में कुछ को तंत्र में अनुपयुक्त बताया जाता है जिनमे राक्षस रति और पशु रति भी आते हैं |इनकी परिभाषा तंत्र निम्न प्रकार बताकर इन्हें त्याज्य बताता है |
३.राक्षस रति
=========== इस रति में पुरुष कामुक होकर पशु भाव से नारी के साथ छेड़छाड़ करता है और उसकी इच्छा के विपरीत उससे रति करता है इसमें नारी को अत्यधिक कष्ट होता है |यह रति राक्षस रति है |आज के युग के अनुकूल शब्दों में यह बलात्संग है |इस बलात्संग के अंतर्गत पति-पत्नी की रति भी है |यदि पत्नी की इच्छा न हो और पति जबरदस्ती रतिक्रिया करे |यह रति आज आम हो रही है |इसका कारण विवाह हो जाना किन्तु मानसिक तालमेल और आकर्षण न उत्पन्न हो पाना होता है |कभी कभी पत्नी के कोई राज खुलने पर पति इस तरह से भी उसके प्रति कठोर हो जाता है ,जबकि वह अपनी भावना न व्यक्त करता है न कहता है |यहाँ ऊर्जा तरंगों और भाव का अभाव हो जाता है अतः यह साधना में किसी काम का नहीं होता |
4.पशु रति
======= शुद्ध कामुक भाव से जब पुरुष ,नारी के साथ कामुक छेड़छाड़ करके उसे उत्तेजित करता है और दोनों शारीरिक सुख की प्राप्ति के लिए रति करते हैं तो यह पशु रति है |पशुओं में भी यही प्रवृत्ति होती है |वे इसे शरीर तक ही सीमित रखते हैं |इसका मानसिक आनंद नहीं उठाते |यह रति रतिकाल में ही क्षणिक सुख देती है ,वह भी पशु सुख ही होता है |इसकी समाप्ति के बाद आलस्य ,प्रभावहीनता ,खिन्नता आदि का प्रकोप होता है |आज के समय में अधिकाँश युवक -युवतियों में पशु रति ही होती है ,जो जब भी ,जहाँ भी शारीरिक संतुष्टि मात्र के लिए रति कर लेते हैं |अधिकतर विवाहेत्तर संबंधों के मूल में भी पशु रति ही होता है |यहाँ तक की आपसी मानव रति भी कम ही देखने को मिलता है ,,देव रति ,ब्रह्म रति तो आज काल्पनिक ही लगते हैं ,यद्यपि यह भी होते हैं कुछ जोड़ों में ,जरुरी नहीं की वह पति-पत्नी ही हों |इस पशु रति को तंत्र साधना में उपयोगी नहीं मानता |
हम क्रमिक विवरण क्रम में अगले लेखों में अन्य विभिन्न रतियों को भी परिभाषित करेंगे जबकि पूर्ण विस्तार से कुंडलिनी तंत्र ,भैरवी साधना आदि समझने के लिए वेबसाईट के अन्य लेखों का आपको अवलोकन करना चाहिए |…………………………हर हर महादेव
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