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गुरु दीक्षा क्या है ?

गुरु दीक्षा :: मुक्ति का मार्ग 

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             आज जबकि दीक्षा और गुरु मंत्र लेना देना एक व्यापार बन चूका है अधिकतर लोग दीक्षा के वास्तविक अर्थ को ही नहीं जानते |मात्र मंत्र लेना ही दीक्षा समझते हैं |99 प्रतिशत लोग अपने भौतिक उद्देश्यों से मंत्र दीक्षा ले रहे ,यहाँ तक की साधक सम्प्रदायों में भी भौतिक उद्देश्यों से ही लोग शामिल हो रहे |हम सामाजिक लोगों की बात करते हैं तो पाते हैं की 99 प्रतिशत लोग गुरु मात्र जीवन में उपलब्धियां पाने और सुखी होने के लिए बनाते हैं |मात्र एक प्रतिशत मुक्ति अथवा मोक्ष के बारे में सोचते हैं |पहले के समय में चाहे संन्यास लेकर साधना करना हो अथवा सामाजिक जीवन में जाना हो सभी बच्चे गुरुकुलों में शामिल हो वहीँ रहते थे |गुरु अपने अनुसार उन्हें बनाता था |एक निश्चित समय पर जो सामाजिक जीवन जीना चाहते थे गृहस्थ जीवन में आ जाते थे और जो साधना करना चाहते थे साधना पथ पर लग जाते थे |तब भारत सोने की चिड़िया था और आर्यों का डंका पूरे विश्व में बजता था |आज पहले सामाजिक जीवन जिया जाता है फिर जीवन के संघर्षों से मुक्ति के लिए गुरु खोजा जाता है |लोग कहते हैं सही गुरु नहीं मिलता किन्तु हम कहते हैं वास्तव में आज सही शिष्य नहीं मिलता जो अपने गुरु से उनकी क्षमता प्राप्त कर सके |हमारा व्यक्तिगत अनुभव है की आज एक सही शिष्य मिलना मुश्किल है गुरु तो बाद की बात है |मुक्ति अथवा मोक्ष को लक्ष्य कर कोई नहीं मिलता |समर्पण ,श्रद्धा ,विश्वास सामयिक और कहीं न कहीं स्वार्थ से प्रेरित होती है |इसलिए गुरु भी अपनी शक्ति सामान्यतया नहीं देता |सबको कुछ धन के बदले शक्तिपात चाहिए ,मंत्र चाहिए की जीवन में चमत्कार हो जाए |गुरु सब जानता है इसलिए सामान्यतया शिष्य बनाने से दूर रहता है |

                 गुरु दीक्षा मानवों के लिए ईश्वर की अद्भुत कृपा है |ईश्वर गुरु के रूप में दीक्षा के माध्यम से मुक्ति का मार्ग बताता है |दीक्षा मुक्ति का मार्ग है ,भौतिक ,लौकिक ,अलौकिक ,पारलौकिक कष्टों से ,भवसागर से और जीवन चक्र से भी |दीक्षा शब्द मूल रूप से चार शब्दों से बना है और यह शब्द :द +ई +क्ष +आ ,|द -सद्यः कुंडली ,शिवा ,स्वस्तिक ,जितेन्द्रिय |ई -त्रिमूर्ति ,महामाया ,पुष्टि ,विशुद्धि ,शान्ति ,शिव -तुष्टि |क्ष -क्रोध ,संहार ,महाक्षोभ ,अनल-क्षय |आ -प्रचंड नारायण ,क्रिया |“जीवन में जो शिव और शक्ति का संयुक्त रूप हैं, जो महामाया, तुष्टि एवं विशुद्धता की स्थिति हैं और जो जीवन के मलों का संहार कर जीवन में कान्ति उतपन्न करने की क्रिया हैं, वह दीक्षा ही हैं.” या व्यक्ति को पूर्णत्व (नर से नारायण बनने की पद्धति) प्रदान करने की दुर्लभ प्रक्रिया ही दीक्षा हैं. दीक्षाओं के माध्यम से ही शिष्य को कृत्कृत्यता प्राप्त होती हैं. सदगुरु की करुणा तथा शिष्य की कृतज्ञता का यह पवन सम्मिलन दीक्षा की उदात्ततम परिणति हैं. भगवन कृष्ण को भी दीक्षाओं से संवलित गुरु की कलाओं ने महानतम बना दिया, संदीपन की दीक्षाओं ने उन्हें पुरुषोत्तम बना दिया, जगदगुरु बना दिया. श्रद्धा और समर्पण दीक्षाओं के मूलभूत आधार तत्व हैं, इनके द्वारा ही साधक अनंत सिद्धियों का स्वतः स्वामी बनता हैं.| निश्चय ही वह व्यक्तित्व सौभाग्यशाली एवं धन्य होता हैं, जिसके जीवन में सदगुरु दीक्षाओं के लिए ऐसा क्षण उपस्थित कर दें.|

           दीयते इति सः दीक्षा.-“दीक्षा” का तात्पर्य यह नहीं हैं की इधर आपको दीक्षा दी और उधर आप सिद्ध हो गए या सफल हो गए, दीक्षा तो गुरु द्वारा प्रदत्त ऊर्जा से सफलता के निकटतम पहुँचने की क्रिया हैं, इसके बाद पूर्णता, सफलता, सिद्धि तो आपके विश्वास, श्रद्धा और व्यक्तिगत रूप से मानसिक एकाग्रता से मंत्र जप के द्वारा ही संभव हैं. कोई भी साधना हो, दीक्षा प्राप्ति के उपरांत उसमें शिष्य के लिए करने को अधिक शेष नहीं रह जाता हैं, क्यूंकि सदगुरु अपनी ऊर्जा के प्रवाह द्वारा शिष्य के शरीर में वह शक्ति जाग्रत कर देते हैं, जिससे मनोवांछित सफलता प्राप्त हों |

         दीक्षा उस रस्म को कहते हैं जिसके द्वारा शिष्य-शिष्य बनाया जाता है |उस समय देना और लेना होता है |शिष्य देता है और गुरु लेता है |शिष्य समर्पण करता है ,और गुरु उसे स्वीकृत करता है |यदि इनमे से एक भी अपने धर्म का पालन न करे तो दीक्षा नहीं हो सकती |शिष्य ह्रदय से समर्पण न करे और गुरु स्वीकृत कर ले तो भी दीक्षा नहीं हुई |शिष्य समर्पण करने को तैयार हो परन्तु गुरु लेने को तैयार न हो तो भी दीक्षा नहीं हुई |इस प्रकार की बाहरी रस्म दीक्षा की अदा करने से कोई लाभ नहीं |दीक्षा तो ह्रदय के देने से होती है |आजकल प्रचलन है समूह में दीक्षा देने की ,प्रचार से दीक्षा देने की ,समूह में मंत्र बोलकर दीक्षा देने की ,वास्तव में यह दीक्षा है ही नहीं | दीक्षा तो गुरु और शिष्य के बीच होता है | शिष्य खुद को समर्पित करता है और गुरु उसे अपनी ऊर्जा से ईश्वर की और तत्पर करता है |[[क्रमशः ]]………………………………………………हर-हर महादेव


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