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डिप्रेसन [Depression] /अवसाद और ज्योतिषीय /तांत्रिक उपचार

डिप्रेसन [Depression] /अवसाद और ज्योतिषीय /तांत्रिक उपचार 

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        डिप्रेसन अथवा अवसाद में मन की भूमिका सर्वोपरि होती है जबकि इसके प्रभाव से शारीरिक रूप से
व्यक्ति खुद को पंगु समझने लगता है |मन जब अशांत हो ,दब गया हो तो शरीर की सुध जाती रहती है |न कुछ अच्छा लगता है न कुछ करने की इच्छा होती है |कभी कभी तो जीवन समाप्त कर देने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है और जीवन व्यर्थ लगता है |कोई उद्देश्य समझ नहीं आता ,कोई लक्ष्य और प्रेरणा नहीं समझ आती |इसके कारण अनेक हो सकते हैं |यह कारण सामाजिक ,पारिवारिक ,आर्थिक ,शैक्षिक ,व्यावसायिक अथवा स्वयं के कारण उत्पन्न हुए हो सकते हैं किन्तु प्रभाव मन पर ही आता है |गृह दशाओं में परिवर्तन अथवा चन्द्रमा के प्रभाव से भी यह उत्पन्न होता है |कुछ लोगों के जीवन में चन्द्रमा आदि की स्थिति के कारण जीवन भर ऐसी स्थितियां उत्पन्न होने की संभावना होती हैं |
          यह प्रभाव जब उत्पन्न होता है तो मनोबल गिर जाता है |आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है |कार्यक्षमता प्रभावित हो जाती है |सकारात्मक विचारों की बजाय नकारात्मक विचार उत्पन्न होने लगते हैं |अच्छे सुझाव भी बुरे लगते हैं |मन विचलित रहता है और ख़ुशी के पल भी खुश नहीं रख पाते |या तो मानसिक चंचलता बहुत बढ़ जाती है जो उद्विग्नता का रूप लेती है अथवा बिलकुल ही कम हो जाती है और गम्भीर निराशा उत्पन्न कर देती है |चिंता जैसी स्थिति लगातार बनी रहती है और एकांत पसंद आने लगता है |व्यक्ति लोगों से दूर भागता है और उसे बातचीत करने में रूचि कम हो जाती है |स्वभाव मे चिडचिडापन आ जाता है |कभी कभी वह पागलों सी हरकत करता है अथवा खुद से खुद ही बातें करने लगता है |इस स्थिति में उसे नकारात्मक शक्तियाँ ,उर्जायें और प्रभाव घेर लेते हैं क्योंकि मनोबल और आत्मविश्वास गिरा होता है |औरा अथवा आभामंडल कमजोर होता है |कभी कभी जो अभिचार अथवा वायव्य बाधाएं सामान्य स्थितियों में प्रभावित नहीं कर पाती ,इस स्थिति में प्रभावित कर देती हैं और उभर आती है जिससे स्थिति केवल मनोवैज्ञानिक न रहकर अलग रूप ले लेती है |
          डिप्रेसन की अवस्था में सबसे पहले तो यह आवश्यक हो जाता है की तत्काल अच्छे जानकार और पुराने वैदिक ज्योतिषी से सम्पर्क कर समस्याग्रस्त के गृह गोचरों का पूर्ण विश्लेष्ण कराया जाए |कमजोर ग्रहों के उपाय किये जाएँ और रत्नादि धारण कराये जाएँ |आवश्यक नहीं की वह ग्रह सीधे मन को प्रभावित कर रहे हों या नहीं |क्योकि वह ग्रह भिन्न समस्याएं भी दे रहा हो सकता है जिस समस्या के कारण चिंता और परेशानी उत्पन्न हो रही हो और अंततः डिप्रेसन की स्थिति बन रही हो |
           ज्योतिषीय समाधान के बाद व्यक्ति का तंत्रिकीय विश्लेष्ण भी जरुर कराना चाहिए की उसे कोई नकारात्मक ऊर्जा तो नहीं प्रभावित कर रही |जरुरी नहीं की यह ऊर्जा या शक्ति ही डिप्रेसन का कारण हो ,अपितु यह बाद में भी कमजोर पाकर पीड़ित को और पीड़ित कर सकती है |यह देखना भी आवश्यक हो जाता है की पीड़ित पर कोई अभिचार अथवा तांत्रिक क्रिया
तो नहीं की गयी जिससे उसकी समस्याएं बढ़ गयी हों और वह डिप्रेसन में चला गया हो |यह भी देखना चाहिए की कहीं व्यक्ति को पूर्णिमा और अमावश्या को अधिक परेशानी तो नहीं होती |यदि पूर्णिमा और अमावश्या को अधिक परेशानी हो रही है तो सीधा मतलब है की व्यक्ति की समस्या चन्द्रमा और नकारात्मक शक्तियों से उत्पन्न हुई है |पूर्णिमा को चन्द्रमा की प्रबलता होती है और मनुष्य शरीर में लगभग
70 प्रतिशत जल होने से चन्द्रमा का प्रभाव पूर्णिमा को अधिक पड़ता है |चन्द्रमा का सम्बन्ध मन से होता है और यह मन को विचलित और उद्विग्न कर देता है |कभी यह मन को बहुत चंचल कर देता है जिससे घबराहट और उद्विग्नता ,बेचैनी उत्पन्न होती है तो कभी घोर निराशा में ला देता है |यह स्थितियां व्यक्ति के लिए चन्द्रमा के निश्चित प्रभाव पर निर्भर करती हैं |
          अमावश्या को चन्द्रमा का बिलकुल ही प्रभाव समाप्त हो जाता है और इस समय पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील नकारात्मक शक्तियाँ बहुत ही प्रबल हो जाती है |यह व्यक्ति को भयालू ,पतले रक्त का ,डरपोक पाकर प्रभावित कर देती हैं |अमावश्या को ही सूर्य को ग्रहण लगता है और राहू का प्रभाव पृथ्वी के आसपास ही इस समय होता है |ग्रहण भले हर अमावश्या को न लगे किन्तु राहू का प्रभाव हर अमावश्या को आसपास ही होने से नकारात्मक और हानिकारण उर्जाओं और शक्तियों की प्रबलता होती है जो की मन को प्रभावित करती हैं और वातावरण में अजीब सी भयानकता उत्पन्न करती हैं }कमजोर प्रकृति के पुरुष और सामान्य महिलायें इस समय प्रभावित हो सकते हैं |एक बार प्रभाव उत्पन्न होने पर अस्तव्यस्तता ,उलझनें ,समस्याएं उत्पन्न होनी शुरू हो जाती हैं और यह फिर डिप्रेसन का रूप ले लेती हैं |यह डिप्रेसन पूर्णिमा और अमावश्या पर दो अलग कारणों से बढ़ता रहता है |ऐसे लोगों को अक्सर पूजा ,देवता ,त्यौहार ,पर्व ,नवरात्र ,शक्ति स्थल से भी घबराहट होती है और यह बेचैन होते हैं |यह सब तंत्र का विषय है और ज्ञानी तांत्रिक ही इसका समाधान कर सकता है |
                  डिप्रेसन ग्रस्त व्यक्ति को कोई नकारात्मक शक्ति या ऊर्जा प्रभावित कर रही हो या नहीं ,चन्द्रमा की स्थिति के कारण डिप्रेसन उत्पन्न हो रहा हो या नहीं ,उसका आत्मबल ,आत्मविश्वास और शारीरिक सुरक्षा जरुर से बढाना चाहिए |उसके औरा अर्थात आभामंडल को जरुर सुधारना चाहिए |उसकी शारीरिक चंचलता ,साहस ,उत्साह जरुर बढाना चाहिए |इसके लिए भगवती काली का यन्त्र चांदी के कवच में धारण कराना बहुत कारगर होता है |यह उपरोक्त सभी कार्य करता और प्रभाव देता है ,साथ ही यह नकारात्मक ऊर्जा ,शक्ति या प्रभाव को भी कम करता है या हटाता है |शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और भावनात्मक कोमलता कम करता है |निराशा ,मानसिक विचलन ,उद्विग्नता ,घबराहट कम कर नया उत्साह और ऊर्जा देता है जिससे डिप्रेसन ग्रस्त व्यक्ति को राहत मिलती है |यह शनी ग्रह को भी नियंत्रित करता है और शनी के सहयोग के बिन राहू -केतु तथा नाकारात्मक ऊर्जा अधिक क्रियाशील नहीं होते |शनी की पीड़ा तो कम होती ही है ,चन्द्रमा द्वारा उत्पन्न मानसिक विचलन भी मानसिक ,शारीरिक ऊर्जा बढने से कम हो जाती है |यदि व्यक्ति कर सके तो उससे काली की उपासना भी करानी चाहिए अथवा काली सहस्त्रनाम का पाठ कराना चाहिए |……..[अगला अंक -“डिप्रेसन की समग्र चिकित्सा और उपाय “]…………………………………………….हरहर महादेव

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