Alaukik Shaktiyan

ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

रोने से भाग्य बिगड़ता है ?

आंसुओ का भाग्य पर प्रभाव

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           बच्चा पैदा होता है रोता ही आता है ,जब कष्ट होता है तब रोता है ,बड़े होने पर भी यह आदत नहीं बदलती कभी कष्ट पर तो कभी असंतुष्टि पर ,कभी भाग्य पर तो कभी परिजनों पर रोता ही जाता है |बचपन से रोने की ऐसी आदत बनती है की बस रोता ही रहता है |कोई भी इंसान तुलनात्मक रूप से हँसता कम और रोता ज्यादा है |कभी बाहर रोता है तो कभी अन्दर से रोता है और अंततः रोता चला जाता है ,जाते समय दुसरे रोते हैं तथा वह उन्हें देखकर रोता है |यह एक स्वभाव है जो आदत बन जाती है |कोई कम रोता है तो कोई अधिक रोता है |किसी के आंसू निकलते हैं तो कोई अंदर से रोता है |कोई स्वाभाविक रूप से रोने की आदत वाला होता है तो कोई जल्दी रोता नहीं |रोने और आंसू का प्रभाव जीवन पर गहरा पड़ता है और इससे स्वाभाविक भाग्य ,कर्म ,जीवन सभी कुछ प्रभावित होते हैं |रोना अच्छा भी है और बुरा भी |न रोना भी अच्छा नहीं और अधिक रोना भी अच्छा नहीं |जो लोग सामान्य होते हैं उनसे हमारे पोस्ट का विशेष सम्बन्ध नहीं अपितु अधिक रोने वालों से है |आइये हम अब इसका विश्लेषण करते हैं की इसका प्रभाव क्या होता है और क्या हो सकता है |

            लोग अक्सर मंदिरों -मस्जिदों में ,भगवानों के सामने ,बड़ों के सामने ,पारलौकिक शक्तियों की अपेक्षा में रोते हुए दिखाई देते हैं |दुनिया में कुछ प्रतिशत लोगों को छोडकर अधिकांश लोग किसी न किसी कारण असंतुष्ट हो रोते हुए मिलेंगे |अधिकतर भाग्य को कोसते मिलेंगे और कहते मिलेंगे की जो भाग्य में लिखा है वह हो रहा |अपने रोने को अधिकतर लोग भाग्य से जोड़ते  हैं और इसे वह ईश्वर से भी जोड़ते हैं की ,जो हो रहा ईश्वर कर रहा ,वह कष्ट दे रहा ,वह रुला रहा ,उसने किस्मत ऐसी बनाई की रोना पड़ रहा |कोई खुद की कमी ,अपनी कमजोरी ,अपना दोष नहीं देखता |बस भाग्य और ईश्वर के नाम पर रोता जाता है |किसी किसी की ऐसी ग्रह स्थितिया होती है की रोना उसका स्वभाव है ,वह कभी संतुष्ट ही नहीं होता |लोग खुद रोते है और दोष ईश्वर को देते हैं ,सोचिये ईश्वर क्यों किसी को रुलाएगा ,उसे इसमें क्या मिलेगा |ईश्वर ने तो सबको उत्पन ही किया है और सबको अलग विशेषता देकर कर्म करने को भेजा है |कोई कर्म बिगाड़ ले और उसके परिणाम स्वरुप इस जन्म में या अगले जन्म में रोये तो ईश्वर की क्या गलती |ईश्वर तो एक ऊर्जा है ,शक्ति है ,जो सबमे सर्वत्र सामान रूप से व्याप्त है ,उसे किसी के रोने हंसने से कोई मतलब नहीं |भाग्य जरुर अलग लोगों के अलग होते हैं ,किन्तु भाग्य भी खुद नहीं रुलाता |भाग्य तो वही है जो आपने पिछले जन्मों में कर्म किये हैं |यह तो वही परिणाम दे रहा जो आपके कर्म थे |अतः आपके कर्म ही खराब थे जो भाग्य में रोने के अवसर अधिक आ रहे |न भाग्य दोषी है न ईश्वर |आज भी आप रोकर अपने भाग्य को बिगाड़ रहे हैं जबकि इसे सुधारा जा सकता है |भाग्य में रोना लिखा होना अंतिम सच नहीं है |अगर भाग्य ही अंतिम सच होता तो ज्योतिष में उपायों की अवधारणा ही न होती |उपायों को छोडिये ,हमारा विषय ज्योतिष नहीं ,आप न रोकर भी भाग्य को सुधार सकते हैं |

               लोग अक्सर कष्ट ,दुःख ,अवसाद ,चिंता ,मजबूरी ,दुर्घटना आदि पर रोते पाए जाते हैं |यह एक मानवीय प्रवृत्ति है जो मनुष्य के गुण से जुडी होती है |यह संवेदनात्मक गुण मनुष्य को विशेष बनाती है अन्य जीवों की अपेक्षा |इससे ही मनुष्य की सामाजिक संरचना ,संस्कृति ,अपनत्व जुड़ा होता है |इस गुण द्वारा ही मनुष्य खुद के और उसके बाद दूसरों के दुःख -कष्ट अनुभव करता है तथा एक दुसरे से जुड़ता है |इस तरह यह मनुष्य को मनुष्य बनाने का गुण है ,किन्तु जब इसकी अति हो जाती है तो यह मनुष्य के भाग्य को बिगाड़ देता है ,उसके व्यक्तित्व का ,गुणों का सत्यानाश कर देता है |फिर यह मानसिक विकृति का रूप ले लेता है और मनुष्य इसके दुश्चक्र में ऐसा घिरता है की वह लगभग नष्ट हो जाता है अथवा एक बेहद निम्न स्तर का जीवन रोते हुए जीने को विवश हो जाता है |

              हम रोने का अगर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो पाते हैं की जब आप रोते हैं तो आपका मनोबल बेहद कमजोर हो जाता है ,आप भावनाओं के प्रबल प्रभाव में होते हैं ,आप असहाय ,दीन और सहायता की अपेक्षा रखने वाले होते हैं |खुद पर विश्वास हिला होता है ,अपने को निर्णय लेने में सक्षम नहीं पाते ,खुद को दुसरे पर छोड़ने की स्थिति होती है ,आप किसी से उम्मीद कर रहे होते हैं ,मानसिक रूप से अस्थिर होते हैं |ऐसे में जो गुण और क्षमताएं आपमें होती भी हैं वह दब जाती हैं |आप उनका उपयोग नहीं कर पाते अथवा वह याद ही नहीं आते |यह मानसिक अवस्था आपके अवचेतन को कोई निर्णय नहीं लेने देती जबकि आपका चेतन मन पहले से विचलित होता है |यह तात्कालिक प्रभाव होता है जो अक्सर कुछ समय बाद ठीक हो जाता है ,किन्तु जब यही प्रक्रिया बार बार दोहराई जाए ,अर्थात बार बार रोने की आदत बने ,खुद को असहाय महसूस करें तो यह आपके अवचेतन को स्थायी रूप से प्रभावित कर देती है और किसी भी समस्या में ,किसी भी कठिनाई में आपका अवचेतन आपको रोने की सलाह देने लगता है तथा वह खुद निर्णय लेना बंद कर देता है ,जिससे आपके पास क्षमता होने पर भी आप कुछ नहीं कर पाते |

            अधिक रोने वाले अधिक भावुक भी होते हैं और अस्थिर चित्त वाले भी होते हैं जो अधिक रोने में मानसिक दबाव में हो जाते हैं और जिनके अवसाद आदि के प्रभाव में आने की अधिक सम्भावना होती है जिससे उनकी उन्नति रुक जाती है |रोने से व्यक्ति व्यक्ति दूसरों पर अधिक आश्रित बनता है और उम्मीद करता है की लोग उसकी भावनाएं समझेंगे |कुछ समय में आदत बनने पर लोगों को भावनात्मक प्रभावित कर सहानुभूति का भी प्रयास कुछ लोग करते हैं किन्तु अक्सर लोग ऐसे लोगों से भागने लगते हैं और सामाजिक दायरा संकुचित होता जाता है |लोग जिंदादिल को पसंद करते हैं |रोने के भावावेग में अक्सर शोषण भी होता है जबकि भावुक व्यक्ति को झूठे आश्वासन ,सांत्वना देकर हितैषी बन लोग स्वार्थ सिद्धि करते हैं |अक्सर भावावेग में सही समझाने वाले को लोग नहीं समझते और झूठे सांत्वना देकर बरगलाने वाले को ही सही समझते हैं और अक्सर हानि उठाते हैं |रोने की आदत का सीधा सम्बन्ध भावुकता से होने से व्यक्ति स्थायी हो कोई काम नहीं कर पाता और थोड़ी कठिनाई पर रोने लगता है जिससे खुद की क्षमता का तो उपयोग कर ही नहीं पाता दूसरो का सहयोग भी खो देता है |कोई जानकर नहीं रोता पर बार बार रोने से आदत बन जाती है जो फिर कष्ट देती है |

            रोने से नकारात्मकता भी प्रभावित करती है |सामान्य रोना हंसना ,दुखी -सुखी होना मानव का विशिष्ट गुण है किन्तु जब रोना आदत बन जाती है तब बार बार रोने से मानसिक अस्थिरता की स्थिति में खुद पर से विश्वास उठ जाता है ,आत्मबल कमजोर हो जाता है ,साहस कम होती है ,कायरता विकसित होने लगती है ,हमेशा दूसरों की सहायता की अपेक्षा होने लगती है ,आत्मविश्वास गिर जाता है और तब गिरे हुए मनोबल को प्रभावित कर नकारात्मक शक्तियों को अनुकूल समय मिलता है की वह व्यक्ति को प्रभावित कर दें |आपने अक्सर देखा होगा नकारात्मक प्रभाव अक्सर महिलाओं और बच्चों को अधिक प्रभावित करते हैं ,कारण की यह कमजोर आत्मबल के होते हैं भावुक होते हैं ,आत्मविश्वास कमजोर होता है |दुःख ,अवसाद ,तनाव ,चिंता और भावावेग में पुरुष भी अधिक प्रभावित होते हैं जब आत्मबल कमजोर हो |इस तरह रोने की आदत नकारात्मकता बढ़ा भी भाग्य को प्रभावित कर उन्नति रोक दुर्भाग्य को आमंत्रित करती है |

              ज्योतिषी कह सकते हैं की रोने या दुखी होने का गुण कुंडली में अथवा भाग्य में लिखा होता है |ठीक है यह सच भी है ,किन्तु अवचेतन केवल इसी जन्म का तो प्रतिनिधित्व नहीं करता |आज मीन लग्न में जन्मा इंसान पिछले जन्म में सिंह लग्न और भिन्न राशि का रहा होगा ,उसके पिछले जन्म में वह वृश्चिक लग्न का हो सकता है |अवचेतन में तो इन सब जन्मों की सूचनाएँ होती हैं और उसकी प्रवृत्ति के अनुसार गुण भी संरक्षित होते हैं |माना आज उसकी रोने की प्रवृत्ति उसकी कुंडली के अनुसार है किन्तु यदि वह अपने अवचेतन के भिन्न जन्म के गुण को उत्प्रेरित करे तो वह गुण भी विक्सित होंगे जो उसके आज के गुण को प्रभावित करेंगे और निर्णय में पहले की सूचनाएँ भी शामिल करेंगे |इस तरह निश्चित रूप से कर्म प्रभावित होंगे और इसके बाद भाग्य भी |

           सामान्य रूप से रोने से भाग्य अच्छे रूप में नहीं बदलता ,बल्कि भाग्य और बिगड़ जाता है ,जब यह आदत अवचेतन तक पहुँच जाए |एक स्थिति में रोने से भाग्य प्रभावित होता है |अधिकतर रोने से भाग्य बिगड़ता ही है किन्तु एक अवस्था ऐसी भी होती है की रोने से भाग्य बनता भी है |जब आप इतने अधिक भावावेग में हों की रोने में आप खुद को भूल जाएँ और केवल ईश्वर याद रहे तो आपकी करुणामय पुकार ईश्वर तक पहुच जाती है |इसकी प्रक्रिया यह होती है की आपका प्रबल भावावेग आपके विशुद्ध चक्र से तरंगों का प्रक्षेपण तीब्र कर देता है जिससे वातावरण में उपस्थित ईश्वरीय ऊर्जा से उसका जुड़ाव हो जाता है और वह इनके साथ खींचकर आ जाती है |व्यक्ति की मानसिक तरंगों की दिशा के अनुसार उसके लक्ष्य को प्रभावित कर देती है जिससे उसे लाभ हो जाता है |इसे ही कहते हैं की ईश्वर ने पुकार सुन ली |यह घटना लाखों में एक के साथ होती है |हर रोने वाले में न इतनी क्षमता होती है न भावावेग |सामान्य रोने वाले तो अपना नुक्सान ही करते हैं |

             यदि रोने की आदत को समझदारी से ,यह मानकर की रोने से कोई समस्या हल नहीं होगी ,रोका जाए और खुद को संतुलित रखा जाए ,भावावेग में दिमाग से विषय को झटक दिया जाए या दूसरी तरफ घुमाने का प्रयास किया जाए तो धीरे धीरे यह गुण अवचेतन को प्रभावित करेगा |अवचेतन में आएगा की वह दुखों से निर्लिप्त है ,वह निर्णय कर सकता है |फिर वह क्या ,क्यों ,कैसे की ओर मुड़ेगा और समाधान की दिशा में घूमेगा |भले तत्काल कोई हल न मिले किन्तु कुछ समय बाद हल जरुर मिलेगा |यह आदत अवचेतन की कार्यप्रणाली को बदल देगी और वह अधिक सक्षमता से काम करने लगेगा |इस तरह यह अवचेतन व्यक्ति को सफल बना सकता है ,सक्षम बना सकता है ,उसके नैसर्गिक गुणों को विकसित कर सकता है ,उसकी क्षमता को कई गुना बढ़ा सकता है |

               समाज पर दृष्टि डालें तो अधिकतर सफल व्यक्तियों पर भावनाओं ,दुखों ,सुखों ,भावावेगों का प्रभाव कम होता है ,उन्हें हर स्थिति में खुद को संतुलित रखना आता है |सफल महिलायें भावावेगों से कम प्रभावित होती हैं |सफल पुरुष मानसिक रूप से अपेक्षाकृत स्थिर होते हैं |कुछ में गुण जन्मजात हो सकते हैं किन्तु बहुतेरे इसे विकसित करते हैं |जानते हैं की रोने से ,विचलित होने से समस्या हल नहीं होगी ,अपितु बढ़ेगी |यदि कोई पुरुष अथवा महिला खुद को नियंत्रित रखे और बजाय रोने के ,खुद को असहाय महसूस करने के ,खुद को सक्षम और सबल माने ,भले ही यह काल्पनिक हो तो कुछ समय बाद यह अवचेतन में घर कर जाएगा और अवचेतन स्थायी रूप से मान लेगा की वह सक्षम और सबल है |इसके बाद उसकी निर्णय क्षमता और कार्यशैली खुद बी खुद बदल जायेगी |अवचेतन ऐसे ऐसे सूत्र और सूचनाएँ खोज कर लाएगा की व्यक्ति खुद चमत्कृत हो जायेगा की उसे यह सब पहले क्यों नहीं दिमाग में आया ,जबकि यह उसके दिमाग में खुद उत्पन्न होगा और उसे लगेगा की यह तो मुझे पहले से पता था |यह होता है अवचेतन से |अवचेतन शरीर और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के साथ ही रासायनिक क्रियाएं तक बदल देगा |एक हर पल रोने वाला इंसान एक सफल इंसान में बदल जाएगा |अतः अंत में रोना छोडिये ,हँसना सीखिए ,लड़ना शुरू कीजिये ,भागना छोडिये ,दूसरों की सहानुभूति पर मत रहिये ,झूठे सांत्वना से बचिए ,खुद को सक्षम बनाइए ,खुद भी सुखी होइए और आसपास वालों को भी प्रसन्न बनाइए |…………………………………………………………..हर-हर महादेव


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